भारत का यह दुर्भाग्य है कि जमीन से निकलने वाले अधिकांश बुद्विजीवी, जिसे देश की जनता हाथोंहाथ लेती है, एक वक्त के बाद पाला बदलकर सत्ता का चाटूकार या गद्दार बन जाता है. भारत के सौ साल के इतिहास में भगत सिंह के अलावा कोई भी बुद्धिजीवी-नेता पैदा नहीं हो सका है, जो सत्ता की आंखों में आंख डालकर बात किया हो और अपने अंतिम वक्त तक जनता के प्रति पूरी वफादारी के साथ खड़ा रहा हो. शायद यही कारण है कि भगत सिंह के बाद कोई भी बुद्धिजीवी नेता भगत सिंह की ऊंचाई हासिल नहीं कर सके हैं.
सत्ता की चाटूकारिता में जनता के विश्वास को तार-तार करते हुए भारत में हजारों बुद्धिजीवी हुए है, जिसमें एक नाम शेहला रशीद का भी है, जिसे जनता ने तो हाथोंहाथ लिया था और उम्मीद भी लगाई थी, लेकिन इन्होंने भी जनता के विश्वास के साथ घात करते हुए सत्ता का हमजोली ही साबित हुई. शेहला ने कहा, ‘मेरे हृदय परिवर्तन का कारण यह अहसास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक निस्वार्थ व्यक्ति हैं जो भारत को बदलने के लिए क्रांतिकारी निर्णय ले रहे हैं. उन्होंने बहुत आलोचनाओं का सामना किया है, लेकिन समावेशी विकास के अपने दृष्टिकोण पर कायम रहे, जिसमें कोई भी पीछे नहीं छूटता.’
What caused my change of heart is the realisation that the Hon'ble PM @narendramodi is a selfless man who is taking radical decisions to transform India. He has braved intense criticism but remained steadfast to his vision of inclusive development that leaves no one behind. pic.twitter.com/s06cA2Q2ua
— Shehla Rashid (@Shehla_Rashid) November 16, 2023
ऐसे में ऐसे शापित बुद्धिजीवी के ऐसे ‘हृदयपरिवर्तन’ न केवल जनता के द्वारा उसपर जताये गये विश्वास का मजाक बनाते हैं, बल्कि जनता भी आगे ऐसे बुद्धिजीवियों पर विश्वास करने से कतराने लगती है. ऐसे ही माहौल में जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं, एन. साई. बालाजी ने शेहला रशीद के नाम एक पत्र लिखा है, जो शेहला रशीद के सवालों का बेहतरीन जवाब पेश करती है. यहां हम उस पत्र का मजमून अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.
हैलो शेहला (अब कॉमरेड नहीं) !
मुझे उम्मीद है कि आप ठीक हो और अच्छी जगह हो. आपका पॉडकास्ट देखना मेरे लिए मुश्किल था. लेकिन, मैं नहीं कहूंगा कि मैं दु:खी, गुस्से में या नाराज हूं. मैं कहूंगा कि मैं थोड़ा निराश हूं. आपने राष्ट्र के प्रति नरेंद्र मोदी और अमित शाह की निस्वार्थ सेवा का जिक्र किया, जिसने आपका हृदय परिवर्तन किया. हृदय परिवर्तन होते हैं, हृदय को चोट भी पहुंचती है लेकिन हृदयहीनता सुविचारित और खतरनाक होती है.
कई लोगों ने छात्र आंदोलन, खासकर वाम संगठन छोड़ दिये; जिसके कई कारण थे और जिनमें अन्य पार्टियों में उनके अपने हित साधना भी एक कारण था. लेकिन, अधिकांश फासीवाद विरोधी मोर्चे या उससे लड़ रही पार्टियों में ही रहे. आप भी, लंबे समय से, खुद को वाम आंदोलन और छात्र आंदोलन, जिसका आप प्रतिनिधित्व कर रही थीं, से अलग कर चुकी हो. तब मैंने, अन्य के साथ, निराश होते हुए भी, आपके फैसले का सम्मान किया.
लेकिन, अब मेरी निराशा आपके लगातार रुख बदलने से है. आप अपने नजरिए, विचारों और हृदय परिवर्तन के लिए स्वतंत्र हो लेकिन, मुझे परेशान हृदयहीनता करती है. मैं यह पूर्व जेएनयू छात्र यूनियन अध्यक्ष या छात्र कार्यकर्ता के रूप में नहीं कह रहा, जिसके साथ आपने घंटों बैठकर चर्चा की, न ही एक दोस्त के रूप में जिसके पास आपके साथ मिलकर कार्य करते हुए कई सुखद यादें हैं. मैं यह एक नैतिक और राजनीतिक नजरिए से कह रहा हूं.
एएनआई के साथ साक्षात्कार में, आपने दावा किया कि आपके इस अचानक हृदय परिवर्तन के पीछे आपका मोदी और शाह की सेवा देखना था. पर आश्चर्यजनक रूप से, आप पिछले कुछ वर्षों में हुए और कई हृदय परिवर्तनों को लेकर चुप रही. मुझे लगता है आपको यह भी बताना चाहिए कि आपने एक पार्टी क्यों बनाई जिसे बाद में भंग कर दिया और आपने अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ याचिका क्यों दाखिल कि जो बाद में हृदय परिवर्तन के कारण वापस ले ली.
हां, मैं निराश हूं. मैं ऐसा क्यों महसूस कर रहा हूं, बताता हूं. मेरा दोस्त उमर खालिद जेल में है. इसी तरह, कई कश्मीरी पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और अन्य निर्दोष लोग जेलों में हैं, बिना किसी मुकदमे के और यूएपीए के तहत फर्जी आरोपों में. फादर स्टेन स्वामी की भीमा कोरेगांव में राजनीति प्रेरित झूठे मामले में जेल में ही मौत हो गई और उन्हें भोजन ग्रहण करने के लिए एक स्ट्रॉ तक नहीं दिया गया. फातिमा नफीस अभी तक अपने बेटे को ढूंढने के लिए संघर्षरत हैं. राधिका अम्मा अब भी रोहित वेमुला को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ रही हैं.
मुझे आश्चर्य इस बात का है कि आप इन सभी आंदोलनों का हिस्सा रही. यही नहीं बल्कि कई और आंदोलनों का भी. यही वह हृदयहीनता का बिन्दु है जहां मैं चुप नहीं रह सकता. आपने जिस तरह मोदी और शाह के अपराधों को धोने की कोशिश की है, उनकी ‘निस्वार्थ’ होने के लिए तारीफ कर रही हैं, यह केवल हृदय परिवर्तन के कारण नहीं हो सकता. उनके इतिहास, जिसके लिए कभी कोई पछतावा भी व्यक्त नहीं किया गया, को भुलाने और माफ करने, के लिए हृदय परिवर्तन की नहीं, हृदय होने के अभाव की आवश्यकता है.
कई लोग जिन्होंने प्रताड़ना सही, किसी भी कारण से लड़ नहीं पा रहे थे, ने या तो चुप्पी साध ली, या देश छोड़ दिया या फिर राजनीतिक रास्ते से अलग होने का तरीका चुन लिया लेकिन, वह फासीवादी मोर्चे के समर्थक नहीं बन गए.
पॉडकास्ट में, आपने अपने ट्वेंटीस की कम उम्र के जोश में क्रांतिकारी राजनीति में कुछ समय के लिए शामिल होने का जिक्र किया था. वैसे, पत्रकार स्मिता प्रकाश आपके साथ बैठीं और उन्होंने आपके विचारों को तरजीह ही आपकी उस कम उम्र में क्रांतिकारी राजनीति का हिस्सा बनने के लिए दी, जो सैकड़ों छात्रों व अन्य के त्याग की बुनियाद से बनी है.
याद रहे, भगत सिंह अपने ट्वेंटीस में ही थे जब वह देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए. स्वतंत्रता की लड़ाई में, आजादी के बाद और उस कैम्पस से, जहां से आप ग्रैजुएट हुईं, ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं. मुझे आपको चंद्रशेखर प्रसाद के बारे में तो बताने की जरूरत नहीं है न, जो जेएनयूएसयू के दो बार अध्यक्ष चुने गए थे और भूमिहीन लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए सामंतवादी गुंडों के हाथों कत्ल किए गए. वैसे वह भी अपने ट्वेंटीस में ही थे.
युवापन में क्रांतिकारी जोश को केवल ‘आदर्शवाद’ मानना गलत है. इस भावना की ईमानदारी को खारिज करना, जैसा कि आपने किया है, इसकी अवमानना और विश्वविद्यालयों में छात्रों के आंदोलनों का अपमान है, वही आंदोलन जिनका आपकी लोकप्रियता में योगदान है.
और, आपका हमारे साथ अपनी चर्चाओं और समय को ‘एको चैम्बर में होना’ कहना एक समय आपकी समझदारी, राजनीतिक विवेक और सूक्ष्म अभिव्यक्तियों पर मेरी अपनी समझ पर मुझे सवाल उठाने पर मजबूर करता है. एक बार फिर, याद दिला दूं, उसी कथित ‘एको चैम्बर’ ने आपके विचारों और रुख को धार दी जिन्हें कि फासीवाद का प्रतिरोध करने वाले लोगों ने हाथों हाथ लिया. अब, पलट जाना और उन्हें खारिज करना केवल यही दर्शाता है कि आप जरूरत पड़ने पर किसी भी चीज को छोड़ सकती हैं. क्या गारंटी है कि एक बार वर्तमान शासन सत्ताच्युत हो जाए, आपका फिर से हृदय परिवर्तन नहीं हो जाएगा ?
फिर, यह क्रांतिकारी जोश ट्वेंटीस तक सीमित नहीं है. आपको याद दिलाऊं फादर स्टेन स्वामी ट्वेंटीस में नहीं थे, न फातिमा नफीस (नजीब की मां), राधिका (रोहित की मां), प्रबीर पुरकायस्थ (न्यूजक्लिक संपादक), परंजॉय गुहा ठकुरता और अन्य कई ट्वेंटीस में हैं जो न्याय के लिए लड़ रहे हैं और मोदी के क्रोनी पूंजीवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं.
सच का सामना करने की हिम्मत रखें कि वाम और प्रगतिशील आंदोलनों के साथ आपके अतीत का जुड़ाव आपके भविष्य की आकांक्षाओं के आड़े आ रहा है और आपको अलग राह पकड़नी है, जो आप बहुत पहले कर भी चुकी हो. हम समझते हैं और हमने कभी सवाल नहीं किया. लेकिन, यदि आपकी आकांक्षाओं या मजबूरियों का तकाजा उन आंदोलनों का अपमान करना है तो आपके हृदय परिवर्तन के बारे में मुश्किल सवाल पूछे ही जाएंगे. क्या यह सचमुच हृदय परिवर्तन है या वह दिशा परिवर्तन जिसमें हृदय कुछ खास चीजों को ही देखना चाहता है और कई अन्य को ‘देखकर भी नहीं देखना चाहता’ ?
यही वह घुमावदार नैतिक और राजनीतिक रुख हैं जो कट्टरपंथियों को भारत को नष्ट करने में मदद करते हैं, जो मैं स्वीकार नहीं कर पा रहा. कई लोगों ने लिखा है और कह रहे हैं कि आपके इस कदम के पीछे कुछ मजबूरियां और दबाव जरूर होंगे. यदि एक आम नागरिक, जो बेरोजगारी, प्रताड़ना, महंगाई झेलते हुए ज़िंदगी काट रहा है और फिर भी प्रतिरोध कर रहा है, मतदान कर रहा है और भाजपा को दूर रखने के लिए लड़ रहा है, तो हमारे जैसे लोगों, जो छात्र और फासीवादी विरोधी आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं और जिन्हें समलोचनावादी शिक्षा से लाभ मिला है, से बहुत उम्मीदें बढ़ जाती हैं.
यह वह बिन्दु है जहां आपने हाथ खड़े किए और पाला बदल दिया. यह निराशाजनक है लेकिन निरुत्साहित करने वाला नहीं क्योंकि लाखों लोग अब भी प्रतिदिन भाजपा का प्रतिरोध कर रहे हैं.
वर्तमान समय में, एक युवा शोध विद्यार्थी के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय में केवल एक जॉब इंटरव्यू में जाना काफी है यह देखने के लिए कि धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतान्त्रिक राष्ट्र के प्रति निष्ठा का क्या नतीजा हो सकता है. लोग अपने करिअर जोखिम में डाल रहे हैं, ऐसी नौकरियां कर रहे हैं जिनके लिए वह ओवर क्वालिफाइड हैं, सिर्फ इसलिए कि वह एबीवीपी का विरोध करते रहे हैं.
फिर भी वह मजबूत खड़े हैं और नौकरी पाने के लिए समझौते के लिए तैयार नहीं हैं. मेरे लिए यह प्रेरित करने वाले लोग हैं; इससे मुझे प्रेरणा मिलती है कि मैं ज़िंदगी में जो करूं, सही करूं. मुझे ऐसे लोगों से प्रेरणा मिलती है जो मोलभाव करने से इनकार करते हैं. खैर, मैं अब ट्वेंटीस पार कर चुका हूं, इसलिए आप मेरे विचार की अनदेखी कर सकती हैं.
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