कहानियां बनती हैं
और खो जाती हैं
किरदार बनते हैं
और मिट जाते हैं
इतनी लंबी ज़ुबान क्या
बस याद दिलाने के लिए है तुम्हें
कि मैं अब तक जाल में फंसे चिड़ा-सा
कराहता हूं
छटपटाता हूं
तुम्हारी यादों से आज़ाद होने को
तुम्हारी चाहत से आज़ाद होने को
गाहे बगाहे उभर आते हैं कुछ सुर
और तुम समझ लेते हो उसे
कविता मेरी
लेकिन मैं जानता हूं
मेरी कविता
तुम्हें पाने का एक बेसुरा प्रयास भर है
- सुब्रतो चटर्जी
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