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मेरा कानपुर कभी सांप्रदायिक नहीं था…

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मेरा कानपुर कभी सांप्रदायिक नहीं था...
मेरा कानपुर कभी सांप्रदायिक नहीं था…
आभा शुक्ला

आज 3 जून को कानपुर दंगे की पहली बरसी है…! प्रशासन ने दंगे के नाम पर जाने कितनों की जिंदगी, जाने कितनों के घर बर्बाद कर दिए…!

एक सामाजिक कार्यकर्ता हयात जफर हाशमी की धार्मिक मसले में हस्तक्षेप करने की सनक में बंदी की घोषणा करना, फिर प्रशासन के आग्रह पर हयात का बंदी वापस लेना, तब तक तीर कमान से निकल जाना, चंद्रेश्वर हाते से मुस्लिम बच्चों पर पत्थर चलना, प्रतिरोध स्वरूप इधर से भी कुछ शरारती और जुनूनी लड़कों का वही पत्थर उठाकर फेंकना, और बस…!

हयात जफर हाशमी आज नहीं तो कल जेल से बाहर आ ही जायेंगे… और असल में हयात को बाहर आना भी चाहिए क्योंकि हयात अपराधी नहीं है… ये पत्थर की लकीर है… पर हयात का बिना किसी से सलाह मशविरा किए, बिना शहरकाजी की सहमति लिए, अपनी महत्वाकांक्षा में उठाया गया कदम कानपुर को क्या दिन दिखा गया, ये तो कोई कानपुर वाला ही समझ सकता है…!

कई सबूत हैं कि पत्थरबाजी चंद्रेश्वर हाते से भी हुई…., पुलिस की मौजूदगी में पुलिस की सरपरस्ती में मुस्लिम लडकों पर पत्थर फेंके गए…, शहरकाजी का मोबाइल छीना गया…, शहरकाजी से अभद्रता की गई…., पर आप यकीन मानिए कि चंद्रेश्वर हाते वालों पर एक एफआईआर तक दर्ज नहीं है…! जांच अधिकारियों ने संलग्न सीडी तक छुपा डाली है…!

उत्तर प्रदेश का डीजीपी अगर चाहे तो ओपन प्रेस कांफ्रेंस में मेरी बात सिर्फ दस मिनट सुन ले…., कानपुर का जो भी अधिकारी चाहे…, उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट का न्यायाधीश चाहे तो बस 10 मिनट का समय मुझे दे दे ईमानदारी से…., डीएम, एसएसपी, जांच अधिकारी, सबको नंगा कर दूंगी…. कोई साहस तो जुटाइए बात करने का….मेरा कानपुर कभी सांप्रदायिक नहीं था…, न है…!

पर 3 जून 2022 हमारे कानपुर के चेहरे पर जो दंगे का दाग लगाकर गया है न, हमारे व्यथित हृदय इसके लिए कानपुर प्रशासन को कभी माफ नहीं करेंगे…!

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