Home गेस्ट ब्लॉग मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौतें क्या किसी दवाइयों के परीक्षण का परिणाम है ?

मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौतें क्या किसी दवाइयों के परीक्षण का परिणाम है ?

28 second read
0
0
705

मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौतें क्या किसी दवाइयों के परीक्षण का परिणाम है ?

बिहार में फिर से दिमागी बुखार का भूत आ गया है और भूत का नामकरण चमकी कर दिया गया है, मैंने इस पर पांच साल पहले लिखा था (असल में ये किसी प्रकार की दवा का परीक्षण है जो गरीब और अनपढ़ लोगोंं की बस्तियों में किया जा रहा है और एक विशेष प्रकार के क्लाइमेट में किया जा रहा है ताकि दवा के साइड इफेक्ट के असर का पता लगाया जा सके).

पांच साल पहले तक लोग इसे देव प्रकोप मानकर चुप रह गये थे. बाद में कइयों ने किसी प्रेतशक्ति की विपदा मानकर पूजा-पाठ और न जाने क्या-क्या क्रियाकांड कर डाले थे. फिर इसे दिमाग का बुखार कहा जाने लगा और अब चमकी कहा जा रहा है और इसका दोषारोपण जबरन लीची पर किया जा रहा है !




मेरे ख्याल से जिसने भी ये लीची वाला फंडा चलाया है वो महामूर्ख है क्योंकि उसका ये तर्क 2 मिनिट में ध्वस्त किया जा सकता है उसे ये बताकर कि इतने गरीब लोगोंं के पास खाने को रोटी नहीं, वो लीची कहांं से खा रहे हैं ? और 2 -3 महीने के बच्चे लीची कैसे खाते है ? (वो तो सिर्फ अपनी माँ के दूध पर डिपेंड होते हैं).

सबसे बड़ी बात कोई अपने बाग़ से एक फूल नहीं तोड़ने देता और तोड़ने पर बच्चों की जूतमपेल कर देता है तो क्या ये संभव है कि इतने सारे बच्चे बागो में से लीचियां ले ले और उन्हें कोई कुछ न कहे ?

कोई भी भूखा बच्चा रोटी तलाश करता है, बागों से लीची लूट कर / तोड़ कर / चोरी कर के नहीं खाता. असल में ऐसे उलजुलूल बयान इसे जस्टिफाय करने के लिये है, ताकि कोई जांंच न हो.




आम तौर पर ऐसे परिक्षण हमेशा धर्मांध, गरीब और पिछड़े इलाकों में ही होते हैंं. विश्व में सबसे ज्यादा परीक्षण अफ्रीकी देशों में होते हैंं क्योंकि वहां ज्यादातर गरीब आदिवासी धर्मांध प्रजातियां हैं, वे इसे बीमारी न मानकर देवी प्रकोप मान लेते हैं और ऐसे में इस तरह से होती मौतों पर कोई बवाल खड़ा नहीं कर पाती. इसका सबसे बड़ा उदाहरण इबोला था, जिसके वाइरस 40 साल बाद एक्टिवेट किये गये और परीक्षण किया और जैसे ही परीक्षण पूरा हुआ, इबोला शांत होकर किसी लेबोरट्री में आराम करने चला गया. पता नहीं कब फिर जागेगा. अफ्रीका के बाद दूसरे नंबर पर भारत है, जिसमें उड़ीसा, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, यूपी जैसे अशिक्षित और धर्मांध क्षेत्र परीक्षण के प्रमुख स्थान है. ऐसे परीक्षणों में हज़ारों इंसानी मौते होती है और इन्हें छुपाने के लिये ऐसे ही क्षेत्र अनुकूल होते हैं.

सरकारों को इसके बारे में पता होता है लेकिन वे जानबूझकर चुप रहती है और मामलो को दबाये रखती है क्योंकि इस तरह की दवा परीक्षण करने वाली कम्पनियांं कानूनन और गैर-कानूनी दोनों तरीकों से परीक्षण करती है और इसके लिये लाखोंं डॉलर सबंधित सरकार और नेता को घुस भी देती है. कई बार तो ऐसी कम्पनियांं धन के लालच में ऐसी घातक बीमारियों के वाइरस भी खुद ही डेवलप करके फैलाती है और ज्यादातर लोग इसे प्राकृतिक आपदा मानकर चुप रहते हैं और सामान्यतः बुद्धिजीवी भी ऐसी बातों को फिल्मों से प्रेरित कोरी कल्पना मानकर चुप्पी साध लेता है लेकिन हकीकतन ऐसे परीक्षण होते हैं और इसका सबूत है ये चमकी से होती मौतें. इसे साल में एक बार एक विशेष अवधि में परीक्षण किया जा रहा है और एक विशेष उम्र वर्ग के बच्चों पर किया जा रहा है क्योंकि बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और ऐसे इलाकों में ज्यादातर बच्चे कुपोषण का शिकार भी होते हैं अर्थात ऐसे वायरसों के परीक्षण के लिये एकदम अनुकूल वातावरण !




पांच साल पहले गैर-सरकारी आंकड़ों में 250 मौतेंं होने पर इसका खुलासा हुआ था लेकिन उससे पहले भी 1995 से ये परीक्षण हो रहा है मगर किसी की नजर में न था क्योंकि ऐसे पिछडे इलाकों में न तो नेशनल मीडिया या बड़े पत्रकार जाते हैं और न ही क्षेत्रीय पत्रकार.

हालांंकि अचानक एक ही तरह से एक खास उम्र वर्ग के बच्चों की मौतों ने पांच साल पहले तूल पकड़ा मगर क्षेत्र की धर्मान्धता और अशिक्षा के कारण फुस्स हो गया और मीडिया तो वैसे भी उन्हीं बातों में इंट्रेस्ट लेती है जिसमें टीआरपी हो. और ऐसे गरीब बच्चों की मौतों में न तो टीआरपी होती है और न ही लोगों का रुझान ऐसी खबरों में होता है.

कई बार ऐसी किसी दवा के परीक्षण को कानूनी तौर पर परमिशन दी जाती है, जिसमें लिखित कागजों में ‘किसी की जान पर कोई खतरा नहीं’ ऐसा लिखा जाता है, मगर गैर-कानूनी रूप से दवा की जगह वाइरसों का परीक्षण होता है और लोगों की मौतें भी होती है.

ऐसे लीगली परीक्षण में शामिल लोगों के लिये उन कम्पनियों को सहायता राशि देनी पड़ती है (इसका पूरा प्रोसेस मुझे पता नहीं है) मगर गरीब और अनपढ़ लोग न तो इतना जानते हैं और न ही उन्हें इस बारे में पता होता है. उल्टा उन्हें तो परीक्षण के बारे में भी नहीं बताया जाता और साइड इफेक्ट से होती मौतों को वे अपनी धंर्मान्धता में इसे देवी प्रकोप मान लेते हैं और सरकार में बैठे मंत्री-नेता इस गैर-कानूनी परीक्षणों के लिये उन कम्पनियोंं से घुस खा जाते हैं और विदेशी बेंकों में कालेधन के रूप में लाखों करोडों डॉलर जमा कर डकार तक नहीं लेते.




लीची का उत्पादन भारत में सबसे पहले 1890 में देहरादून से शुरू हुआ (बेसिकली ये चीन से आयातित वनस्पति है) और आज भी सबसे बड़ा उत्पादक देहरादून ही है, मगर वहां आज तक एक भी मामला (मेरी जानकारी में ) नहीं है.

मेरी जानकारी के अनुसार बिहार में 1995 से ऐसी मौतेंं शुरू हुई लेकिन 2017 से पहले ऐसा कोई भी तथ्य कभी नहीं कहा गया कि भूखे पेट लीची खाने से ब्लडशुगर कम होता है हालांंकि ये तथ्य भी अतिश्योक्तिपूर्ण ही है क्योंकि इस बीमारी का मुख्य लक्षण दिमाग के हिस्सों में सूजन है जो कि ब्लड शुगर कम या अनियमित होने से नहीं हो सकती.

अभी जो स्थिति बिहार में है उससे बहुत ज्यादा बदतर स्थिति 1995 या उससे बाद के सालो में रही होगी लेकिन तब भी ऐसा कभी नहीं कहा गया और साल दर साल कुछ न कुछ स्थिति सुधार सामाजिक स्तर पर हर जगह होता ही है अर्थात ये भी नहीं माना जा सकता कि गरीब लोग बाद में आकर बसे होंगे अथवा पहले स्थिति ठीक थी और बाद के सालों में बिगड़ गयी.

  • पं. किशन गोलछा जैन
    ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ




Read Also –

और अदानी के इशारे पर पुलिस ने गुड्डी कुंजाम को घर से निकालकर हत्या कर दी
स्युडो साईंस या छद्म विज्ञान : फासीवाद का एक महत्वपूर्ण मददगार
दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति भूखमरी, गरीबी व बीमारी से पीड़ित देश के साथ सबसे बड़े भद्दे मजाक का प्रतीक है
भ्रष्टाचार में आकंठ डुबा है IGIMS का MS मनीष मंडल




[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे.] 




Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…