मुख्तार अंसारी की तथाकथित मौत या हत्या को पूर्वांचल के राबिन हुड की मौत या हत्या के रूप में देखा जा रहा है. राबिन हुड मध्यकालीन युरोपीयन साहित्य के एक किंवदन्ती अथवा पात्र का नाम है, जो था तो डकैत मगर अमीरों को लूटकर गरीबों में बांट देता था.
मुख्तार के जनाजे में शामिल गरीबों की आंखों में आंसू देखकर ऐसा ही लगता है और जिस तरह तमाम सरकारी प्रतिबंधों, पुलिसिया आतंक, अर्धसैनिकों के बूटों की दहशत, धारा 144 लगाने जैसे तमाम सरकारी अवरोधों के बावजूद मुख्तार अंसारी की अन्तिम विदाई में भारी भीड़ उमड़ी थी, उससे शासन प्रशासन चलाने वाले लोग खलनायक दिख रहे थे और मुख्तार का व्यक्तित्व एक राबिन हुड की तरह दिख रहा था.
मुख्तार अंसारी की तथाकथित मौत या हत्या का अप्रत्यक्ष तौर पर श्रेय लेने वाले दावा कर रहे हैं कि ‘हमने माफिया को मिट्टी में मिला दिया’ मगर उनका दावा झूठा है. गैंगवार से माफिया को मिट्टी में नहीं मिलाया जा सकता बल्कि इस तरह की वारदातों से माफिया राज और बढ़ता है. मुख्तार अंसारी की तथाकथित मौत या हत्या से उत्तर प्रदेश में गैंगवार थमने वाला नहीं है.
मुख्तार की छवि एक बाहुबली नेता के रूप में रही है. एक समय मुख्तार का जलवा था, उस वक्त कई गरीब किसानों के होनहार बच्चे बन्दूक के बल पर मुख्तार अंसारी बनना चाहते थे, पर उनमें से कुछ लोग शूटर बनकर रह गये. इनमें से कुछ मारे गये तो कुछ आज भी जेलों में हैं. दरअसल वे नहीं जानते थे कि कोई मुख्तार अंसारी कैसे बनता है.
बहुत से पत्रकार हैरान हैं कि जिसके नाना सरहद पर लड़ते हुए शहीद हुए और मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित हुए, जिसके दादा कभी कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे, जिसके कई पुरखे आजादी की लड़ाई में जेल गये, जिसके पिता कम्यूनिस्ट पार्टी के ईमानदार छवि वाले नेता थे उसके परिवार में कोई माफिया डान कैसे बन जाता है ?
गैंगवार की जड़ें भारत की मौजूदा भूमि संबंधों में
ऐसे लोगों को जानना चाहिए कि खून के रिश्तों से कोई माफिया डान नहीं बनता. मुख्तार अकेले बाहुबली नहीं थे. भारत में शायद ही कोई जिला बाकी होगा जहां दो-चार छोटे-बड़े बाहुबली न हों. ये सारे बाहुबली बन्दूकों से नहीं पैदा हुए हैं, न ही किसी पुरखों के प्रभाव से पैदा हुए हैं बल्कि इन सबकी जड़ भारत की मौजूदा भूमि संबंधों में मौजूद है. अत: पूरे प्रकरण को समझने के लिए भारत के मौजूदा भूमि संबंधों को समझना होगा.
फ्रांस में जनवादी क्रान्ति हुई थी, जिसमें मजदूर किसान लड़ रहे थे और पूंजीपति वर्ग ने क्रान्ति का नेतृत्व करते हुए सामन्तों, जमींदारों, राजे-रजवाड़ों से जमीन छीन कर सारी जमीन किसानों को बांट दिया था. ऐसी ही क्रान्ति इंग्लैंड में हुई थी. वहां कोई सामन्ती बाहुबली नहीं पैदा होता मगर भारत में होता है.
दरअसल इंग्लैण्ड के पूंजीपति जब भारत आए और यहां के सामन्तों अर्थात राजे-रजवाड़ों, नवाबों, जमींदारों को हराकर अपने अधीन कर लिया तो उन सामन्तों की जमीन छीन कर किसानों में नहीं बांटा बल्कि जमीन पर उन्हीं सामन्ती राजाओं, नवाबों, जमींदारों का मालिकाना बरकरार रखा. उनसे लगान का एक हिस्सा वसूलने लगे और उन्हीं सामन्तों को ठेका, पट्टा, कोटा, परमिट, लाइसेंस, एजेंसी, सस्ते कर्ज, अनुदान और अपनी संगठित सेना का संरक्षण आदि देकर उन्हें अर्धसामन्त जैसा बनाकर पहले से अधिक मजबूत और टिकाऊ बना दिया.
1946-51 में तेलंगाना सशस्त्र किसान विद्रोह, तेभागा किसान आन्दोलन, 1967 में नक्सलवाड़ी किसान विद्रोह तथा पूरे भारत में जमीन के सवाल को लेकर छिट-पुट हजारों किसान विद्रोह हुए जिससे भयभीत होकर शासकवर्ग ने जमींदारी उन्मूलन कानून लागू करके कुछ जमीनें किसानों को दिया मगर इस कानून में जानबूझकर कुछ खामियां छोड़ी गयी थीं, जिसका फायदा उठाकर अधिकांश उपजाऊ और मूल्यवान जमीनों पर अर्धसामन्ती ताकतें आज भी काबिज हैं.
देश की उपजाऊ और मूल्यवान जमीनों पर अर्धसामन्ती ताकतों का कब्जा
जंगल, तालाब, ऊसर बंजर, परती आदि पर ट्रस्ट, मठ आदि के नाम पर जमींदार वर्गों के लोग आज भी कब्जा बनाए हुए हैं. जब बहुसंख्यक ग्रामीण आबादी भूमिहीन व गरीब किसानों की होती है, और मुट्ठी भर लोग ऐसे होते हैं जिनमें प्रत्येक के पास सैकड़ों या हजारों एकड़ जमीन होती है तो ऐसे सामन्ती वर्गों के लोग अपनी सैकड़ों या हजारों एकड़ जमीन की हैसियत के आधार पर ही ठेका, पट्टा, कोटा, परमिट, लाइसेंस, एजेंसी, अनुदान, सस्ते कर्ज आदि हासिल करके अर्धसामन्त (आधा सामन्त आधा पूंजीपति) बन जाते हैं, जो पुराने सामन्तों से अधिक ताकतवर स्थिति में पहुंच जाते हैं.
उनमें से बहुत से बाहुबली अक्सर नशीले पदार्थों व हथियारों की तस्करी, कालाबाजारी भी करवाते हैं. ज्यादातर शिक्षा माफिया, भूमाफिया इसी अर्धसामन्ती वर्गों में से ही निकलते हैं. कई ऐसे सामंत हैं जो ऐसे बड़े मठों के मालिक हैं, जिन मठों के पास हजारों एकड़ जमीन है. इन महन्तों में अधिकांश ऐसे लोग होते हैं जो भोले भाले दिखते हैं मगर वे भी जमीन की हैसियत के आधार पर गुण्डे या शार्पशूटर पालते हैं.
यह नया सामन्त वर्ग विभिन्न पूंजीवादी पार्टियों से टिकट लेकर सांसद, विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं. इनमें से कुछ ऐसे भी माफिया होते हैं जो हथियार उठाकर, गैंग बनाकर करोड़ों रूपये लूटते हैं और हजारों रूपये दान करके राबिन हुड जैसी छवि बना लेते हैं.
अगर अमीर लोग हथियार उठा कर वसूली करके धन इकट्ठा करते हैं तो उन्हें बाहुबली कहते हैं, उन्हें सेना, पुलिस का संरक्षण दिया जाता है, वहीं जब कोई गरीब आदमी गरीबों के अधिकारों के लिए कलम (या हथियार-सं.) उठा लेता है और भारत के कृषि संकट को दूर करने के लिए मांग करता है कि मंहगाई वापस लो, बेरोजगारों को रोजगार दो, जोतने वालों को जमीन दो, कृषि उपज का लाभकारी मूल्य दे दो, कृषि लागत को सस्ता और सुलभ करो तो उसे नक्सली, माओवादी, उग्रवादी और न जाने क्या-क्या कह कर बदनाम करते हैं. उसे फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेल भेज देते हैं या फर्जी मुठभेड़ में मार देते हैं.
जब तक कृषि संकट दूर नहीं होगा तब तक जो सैकड़ों या हजारों एकड़ जमीनों के मालिक हैं, उनमें से गुंडे, माफिया, बाहुबली पैदा होते रहेंगे और सरकार बनाने, बिगाड़ने तथा सरकार चलाने में उनकी भूमिका बनी रहेगी और उनमें से कुछ राबिन हुड भी पैदा होंगे.
सरकार तो अमीरों के लिए राबिन हुड बनने की कोशिश कर रही है. सेना, पुलिस के बल पर जनता की आवाज कुचल कर मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, जुआखोरी आदि के जरिए खरबों रूपये जनता से लूटकर बड़े पूंजीपतियों को मालामाल कर रही है और जनता को 5 किलो राशन देकर फर्जी राबिन हुड बन रही है.
मुख्तार अंसारी की हत्या साम्प्रदायिक नहीं
मुख्तार अंसारी की तथाकथित मौत या हत्या का श्रेय माफिया को ‘मिट्टी में मिलाने’ का दावा करने वाले एक नेता को दिया जा रहा है. परन्तु माफिया सिर्फ मुख्तार अंसारी ही नहीं थे. इस वक्त लगभग 80% माफिया भाजपा का दामन थाम चुके हैं. भाजपा सरकार उन्हें संरक्षण दे रही है. इससे पूरे देश में रामराज नहीं माफियाराज बन गया है और माफियाराज पहले से अधिक मजबूत हो गया है.
कुछ लोगों का कहना है कि मुख्तार को मुस्लिम होने की सजा मिली है. मगर जहां तक हम जानते हैं मुख्तार के परिवार का एक भी शख्स यह नहीं कहा कि उनके परिवार को मुसलमान होने की सजा मिली है. पूरा परिवार इस घटना को साम्प्रदायिक दृष्टि से नहीं देख रहा है.
माफिया को मिट्टी में मिलाने का दावा करने वाले लोग इस घटना को साम्प्रदायिक रंग देकर हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने की बहुत कोशिश कर रहे हैं, और इस तरह अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए हिन्दू मुसलमान के नाम पर मेहनतकश वर्ग को आपस में लड़ाकर एक बार फिर देश को बांटने की बुनियाद मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. वैसे भी पूरे एतिहासिक घटनाक्रमों को जोड़कर देखें तो इसमें साम्प्रदायिक जैसा कुछ नहीं दिख रहा है. यहां तो गैंगवार चल रहा है. इस गैंगवार में हिन्दू मुस्लिम का कोई भेद भाव नहीं है. हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गैंग में मौजूद हैं.
इस समय उत्तर प्रदेश की सत्ता पर दाऊद इब्राहिम गैंग की पकड़ मजबूत
मुख्तार के परिजनों ने हत्या का जिम्मेदार जिसे बताया है वे हिन्दू हैं, और दाऊद गिरोह के शार्पशूटर रहे हैं. 1992 में हुए जेजे हास्पिटल काण्ड को याद करिए, जिन्हें आज मुख्तार अंसारी का मुख्य दुश्मन बताया जा रहा है, वही लोग दाऊद इब्राहिम के एक इशारे पर जान पर खेलकर गवली गिरोह से दुश्मनी मोल ले लिए थे. ये लोग दाऊद इब्राहिम के बहनोई इस्माइल पारकर की हत्या का बदला लेने के लिए गवली गिरोह के शार्पशूटर शैलेश हलदनकर को मारे थे. इन लोगों ने हलदनकर को मारने के लिए जेजे हास्पिटल में घुस कर करीब दो हजार राउंड गोलियां चलाई थी.
दाउद इब्राहिम के इशारे पर हुए इस काण्ड के मुख्य शार्पशूटर माफिया बृजेश सिंह भाजपा के समर्थित एमएलसी हैं और बृजेश सिंह तथा उनके साथियों को अपने आवास में शरण देने के आरोपी ब्रजभूषण शरण सिंह भाजपा के सांसद हैं. ब्रजभूषण को कानून के जाल से बचाने का प्रयास करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के प्रात: स्मरणीय आज भी हैं. जेजे हास्पिटल काण्ड में बृजेश सिंह की मदद करने के आरोपी तत्कालीन मंत्री कल्पनाथ राय की बहू भाजपा में ही हैं. बृजेश सिंह के कई नजदीकी लोग भाजपा में ही हैं.
इन तथ्यों से साफ पता चलता है कि मुख्य रूप से दो ही गैंग है एक तरफ दाउद इब्राहिम गैंग है तो दूसरी तरफ मुख्तार अंसारी गैंग. इस समय सत्ता पर दाऊद इब्राहिम गैंग की पकड़ मजबूत बनी हुई है. उत्तर प्रदेश की सरकार के दावों पर यकीन करें तो दूसरी गैंग के विख्यात माफिया या तो जेलों में हैं या प्रदेश छोड़कर भाग गये हैं.
अगर सरकार की बात सही है तो आए दिन आपराधिक वारदातों को अंजाम देने वाले कौन हैं, कहीं उनके अपने ही लोग तो नहीं है ? जो भी हो, गैंगवार जारी है. अत: हिन्दू मुसलमान के नाम पर जनता के बीच साम्प्रदायिकता का नशा चढ़ाना शोषकवर्ग की साज़िश है. इस साजिश से बचने के लिए गरीबों को अपने रोजी रोटी के सवाल पर संघर्षरत रहने की जरूरत है.
- रजनीश भारती
जनवादी किसान सभा
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