हुआ यों कि कल सबऑर्डिनेट चुतुरभुजा भाई के साथ नाइट डियुटी लग गयी थी अपनी.
दु राउंड फील्ड का लगाने के बाद रात साढ़े एगारह बजे. डिरेभर को बुलेरो को ऐसी जगह लगाने को कहा जंहांं किसी की नजर न पड़े हम पे.
मुहलगा डिरेभर … हम लोगों की तरह ही पुराना पापी है … झाड़ियों के बीच धुप्प अंधेरे में गाड़ी खड़ी कर बोला .. ‘साहेब इन्हें सुतते हैं … सुबह 4 बजे एक आध राउंड मार के घर निकलेगें.’
बस का था, मुंंह पर ढक्क्न की तरह लगा मास्क उतार, पूस बटन दबा लम्बा होने लगे तीनो कि … तभी चतुर्भुजा बोल पड़ा .. ‘अन्दर की लाइट जला दो, जल्दी में खाना नहीं खा सका था … टिफिन मैं ले आया हुंं …’
‘खबरदार ! लाइट नहीं जलेगी. दिन भर का थका हरा अब इसके लिए जागरण करेगे लाइट जला के रात भर …’. मेरी घुड़क सुन चतुरभुजा … सकपकाया सा लेट गया. पर करे तो का करे … ! भूखा कब तक सोने का ढोंग करता … !!
घण्टे भर बाद सुनसान माहौल में … कानों में चबर-चभर कि आवाज आनी शुरू हुई … कनखियों से देखा तो पठ्ठा टिफिन उड़ा रहा था … ! मन में करुणा उपज पड़ी विचारा भूखा है … रोक कर महा पाप हुआ हमसे .., करवट बदल मुंंह दूसरी तरफ कर सो गया ताकि विचारा … झेंपे न.
बमुश्किल आधा घण्टा बिता होगा कि … चतुरभुजा … हम को झकझोर के उठाया –
‘साहेब एग्गो, बात पूछना था, अर्जेंट है.’
‘पूछ.’
‘साहेब क्या ये सही है कि … कोरोना मरीज को स्वाद और गन्ध का पता नहींश चलता ?’
‘सुना तो है, आज टीवी पे भी बता रहा था.’ ऊबता हुआ मैं बोला.
‘मुझे कोरोना हो गया है.’ बम फोड़ दिया, चतुर्भुजा.
‘क्या बकते हैं ?’ हम से पहले डिरेभर बोल पड़ा.
‘बिल्कुल सही कह रहा हूं. मेरा यकीन करो आप लोग … तब से रोटी खाये जा रहा हुंं. तीन रोटी खा चुका … कोई स्वाद नहीं आ रहा है, मुझे अपनी नहीं आप लोगों कि फिक्र है … प्लीज मुझे जल्दी से अस्पताल ले चलो.’ चुतूरभुजा गिड़गिड़ाया.
अब उछलने की बारी हम दोनों कि थी … कुछ कहता उस से पहले … अंदर से हिलता डिरेभर गाड़ी अस्पताल की ओर दौडा लिया.
अस्पताल के दरवाजे पे पहुंचते ही … 2 पुलिस वाले पहरा देते नजर आए.
‘अब्बे ! उतरने से पहले मास्क पहन लो वरना कोरोना से बाद में मरोगो … ये लोग पहले मार देंगे.’
अब हम तीनों के हाथ अंधेर में मास्क तलास रहे थे … पता नही इस आपाधापी में किधर पड़े थे, मिले ही नहीं …
‘लाइट जला … दे भाई … जल्दी, … वो इधर ही आ रहे हैं.’
इस बार बड़ी देर बाद चतुर्भुजा बोला.
लाइट जली … मास्क की तलाश शुरू हुई … पर तीनों के मॉस्क को तो जईसे जमीन निगल गयी या आसमान में उड़ गए … कहीं आता पता ही नहीं …
अफरातफरी भरी तलाश में अचानक चतुर्भजा के टिफन बॉक्स पे नजर पड़ी …
टिफिन हाथ मे पकड़ मैंने फट से उसका ढक्क्न खोल दिया.
टिफिन खुलते ही कि … विस्फोटक नेत्रों से उसे देखता … चतुर्भुजा चीखा … ‘इसमें तो तीनों रोटियां सलामत है, तो फिर मैं खाया क्या ?’
बैल कहीं के … फादरजात, … ठरकी … पकड़ इसको …
आज इसका पेट चिर के निकालेंगे … मास्क
- विराट यादव
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]