गिरीश मालवीय
कल रात नेटफ्लिक्स पर आई नई वेब सीरीज ‘ट्रायल बाय फायर’ देख रहा था, जो 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा में लगी आग की दुर्घटना और उसमें मारे गए लोगों और उनके परिजनों के दु:ख दर्द की दास्तान पर आधारित है. सीरीज मुख्य रूप से कृष्णमुर्ति दंपती द्वारा लड़ी गई लंबी कानूनी लड़ाई पर आधारित है. इस सीरीज को देख कर मुझे याद आया कि ऐसा ही एक हादसा गुजरात के मोरबी में भी कुछ महीने पहले हुआ, जिसमें 140 लोगों की ब्रिज टूटने से मौत हो गई.
इस हादसे के बाद यह तथ्य सामने आया था कि ब्रिज के मेंटेनेंस की जिम्मेदारी ओरेवा ग्रुप के पास ही थी. इस ग्रुप ने मार्च 2022 से मार्च 2037 यानी 15 साल के लिए मोरबी नगर पालिका के साथ एक समझौता किया था. यानी दो पक्ष थे जो इस हादसे के जिम्मेदार थे – पहला था मोरबी नगर पालिका निगम और दूसरा था ओरेवा ग्रुप. लेकिन जब अदालत में केस आया तो दोनों पक्ष अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते नज़र आए. एक पक्ष तो इसे एक्ट ऑफ गॉड बताने लगा.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी जनहित याचिका दाखिल की गई. सुप्रीम कोर्ट ने घटना के संबंध में गुजरात हाईकोर्ट से समय-समय पर जांच और अन्य संबंधित पहलुओं की निगरानी करने को कहा. हाईकोर्ट ने नवम्बर के मध्य में गुजरात सरकार को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने पुल की मरम्मत के लिए ठेका देने के तरीकों पर भी सवाल खड़े किए.
कोर्ट ने मुख्य सचिव को तलब कर पूछा कि इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए टेंडर क्यों नहीं आमंत्रित किए गए थे ? प्रधान न्यायाधीश अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह भी पूछा कि इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए समझौता मात्र डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो गया ?
अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि समूह ने 30 अक्टूबर को 3,165 टिकट बेचे थे और पुल के दोनों ओर टिकट बुकिंग कार्यालयों के बीच कोई समन्वय नहीं था. उन्होंने दावा किया था गिरफ्तार किए जा चुके बुकिंग क्लर्क को टिकटों की बिक्री बंद कर देनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने टिकट बेचना जारी रखा और अधिक लोगों को पुल पर जाने दिया. कार्यवाही पर अगली सुनवाई अगले दिन के लिए टल गई.
कल जब मोरबी हादसे से संबंधित खबरें खंगाल रहा था तो पता लगा कि मोरबी से कुछ सौ किलोमीटर दूर दमन में भी 28 अक्टूबर, 2003 को ऐसे ही पुल टूटने का हादसा हुआ था. इस हादसे में भी 30 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना की जांच इतने धीरे हुईं कि उपहार सिनेमा पीड़ित संघ जैसे ही यहां भी पीड़ित परिवारों को ‘दमन ब्रिज पतन पीड़ित समिति’ बनाने को मजबूर होना पड़ा.
2003 में हुए इस हादसे का फैसला अगस्त 2022 में सामने आया. जिला सत्र न्यायाधीश अदालत ने इस मामले में तीन अधिकारियों को मात्र दो साल कैद की सजा सुनाई. उपहार सिनेमा से जुडे केस का फैसला आने में 25 साल लग गए. दमन के पुल हादसे में 19 साल बाद फैसला आया. शायद मोरबी पुल हादसे के फैसले के लिए भी हमें 2044 का इंतजार करना होगा !
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