अमावस की रात
जली हुई काली रोटी है
जब मुझे भटकना अच्छा लगता है
तो मैं तुम्हारे पास आ कर
अपनी भूख मिटाने के लिए
किसी गंदी नाली के
किनारे बैठ जाता हूं
उच्छिष्ट को अपना
भोजन बनाने के लिए
मनुष्यता की परिभाषा से परे
धुत नशे में
अपने वस्त्रों पर पेशाब करते हुए
लोगों को देखा है मैंने
तिनका तिनका सांसों को बटोर कर
आशियाना बनाने की जुगत में
जो परे चले गए
आदमीयत की हदों से बाहर
उनसे पूछा है कई बार
समूह गान का रहस्य
वे लोग
जो मारे गए
गीत गाते हुए
वे लोग
जो मारे गए
तुम्हें ज़िंदा रखने के लिए
उन लोगों की याद में उगेगा
कल का सूरज
ऐसा विश्वास था मुझे
उस अमावस की रात की
काली रोटी पर
लिखी थीं
बीती रात की कहानियां
और
आने वाले दिनों की दास्तान
मेरे दोस्त !
- सुब्रतो चटर्जी
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