मोहन चंद
एक क़मीज़ है
जिसे रोज धोता है
रोज सुखाता है
रोज पहनता है
सादा जीवन
उच्च विचार का
जीवित प्रतिरुप
मोहन चंद
करम चंद
भारत नामक मुल्क की
जनाकीर्ण सड़कों पर
अक्सर दिख जाता है
मजबूर मजदूर
रोज घूमता है
दिल्ली की सड़कों पर
कल काम न मिलने की
अपनी छुट्टी पर था
आज सरकार की घोषित छुट्टी पर है
झोपड़ियाँ टूटती रहीं
परिवार उजड़ता रहा
अदालती आदेश पर
हवा में जरुर गूँजता है
स्वच्छता के
अमृत महोत्सव का अनुगूँज
गोल मटोल भाषण
नाटकीय और नटवरीय
डॉयलॉग डेलिवरी
पर, कहां जाये
बिना छत
छतरी, यह
मोहन चंद
करम चंद
- राम प्रसाद यादव
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