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भारत नहीं, मोदी की अवसरवादी विदेश नीति रुस के खिलाफ है

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यूक्रेन में अमेरिकी हस्तक्षेप और रुसी प्रतिकार ने भारत की विदेश नीति को नंगा कर दिया है. दुनिया के सामने माखौल बने भारत की दर्दनाक तस्वीर यूक्रेन से आ रही है जहां भारतीय छात्रों को नाजी यूक्रेनी के सैनिकों द्वारा न केवल पीटा जा रहा है अपितु कुत्ते-बिल्ली की तरह खदेड़ा जा रहा है, भगाया जा रहा है, यहां तक की हत्या भी कर दी गई है और शायद यह संख्या आगे और बढ़ेगा.

नेहरु का गुटनिरपेक्ष भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रुस के साथ है लेकिन नरेन्द्र मोदी हिन्दुत्ववादी अवसरवादी भारत अमेरिकी गुंडई और नवनाजी यूक्रेन के साथ है. नेहरु का भारत रुस के साथ है, यह मानते हुए नवनाजी यूक्रेनी सेना रुस के खिलाफ मानव ढ़ाल की तरह कर कर रहा है और मोदी का हिन्दुत्ववादी भारत यूक्रेनी सेना का लात खाता हुआ उसके चरणों में पड़ा है. जार्ज ओरवेल गंभीर टिप्पणी करते हैं. वे कहते हैं –

यूक्रेनी सैनिक भारतीयों को लात मारते दिखे. इस दृश्य को देख मैं सोच रहा कि यूरोपियन सैनिक नागरिकों के साथ ऐसा तो नहीं करते ! जबकि इसी के साथ वही सैनिक दूसरे देशों के नागरिकों के साथ सम्मान से पेश आ रहे हैं, भले ही उनके देश का स्टैंड यूएनओ में कुछ भी रहा हो. आखिर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि यूक्रेनी सैनिक यूं खुलेआम एक निरीह भारतीय नागरिक को लात मार रहा है ?

… कि आज एक तस्वीर देखी जिसमें एक भारतीय लड़की सैनिकों को अपनी व्यथा बताकर उसके चरणों में लेटकर मदद की भीख मांग रही है. दूसरी तरफ दूसरे देशों के नागरिक कभी किसी के चरणों में नहीं लेटते भले उनकी जान पर बन आये.

बस यही वह फ़र्क़ है जिसकी वजह से एक यूक्रेनी सैनिक आपके बच्चों को लतियाते हुए कुछ झिझक महसूस नहीं कर पाता. जब आप उसके चरणों में गिरते हैं तो वह यह फील ही नहीं कर पाता कि जिसे वह लात मार रहा है वह एक इंसान है या पशु से भी नीचे का कोई जीव. दूसरे उसके अनकॉनसस दिमाग में उसे लगता है कि बन्दा चरणों में पड़ रहा है जरूर किसी गलत बात, नियम आदि के विरूद्ध कुछ कर रहा होगा, तभी न्यूनतम मानवीय गरिमा से नीचे गिरकर वह मदद मांग रहा है.

पैर छूना, पैरों में लेटना, किसी के पैर छूकर या पैरों की मिट्टी को माथे पर लगाना, पैर को पानी से धोकर उसी पानी को पीना आदि आदि ये सब इंसानी जेस्चरस नहीं हैं. इंसान जैसा व्यवहार कीजिये तभी दूसरे के मन में आपके लिए इंसानी व्यवहार करने की फीलिंग होगी.

आज ठीक ऐसी ही भारत की विदेश नीति का भी हालत 2014 के बाद बन गई है. निर्लज्ज विदेश मंत्री एस. जयशंकर कहते हैं कि ‘दुनिया बहुआयामी है, भारत को भी अवसरवादिता अपनाते हुए पूर्व में किए गए संकोच को छोड़ना होगा.’ इस बेवकूफ को यह भी नहीं पता है कि अवसरवादिता यानी गद्दार को कोई भी पनाह नहीं देता. असल में 2014 के बाद यही गद्दारी भारत के विदेश नीति की पहचान बन गई है, जिसकी कीमत यूक्रेन में भारतीय छात्र चुका रहे हैं. सोमित्र राय भारत की विदेश नीति के बारे में सटीक विश्लेषण करते हुए लिखते हैं –

भारत और रूस के बीच 1971 में मित्रता और सहयोग की संधि हुई थी और बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में भारत पर अमेरिकी हमले को रोकने के लिए रूस आगे आया था. यह 20 साल का समझौता था. लेकिन वही रूस 1962 में चीन के हमले के वक़्त बाहर खड़ा तमाशा देख रहा था. उसके लिए तब भारत दोस्त और चीन भाई था.

20 साल के उस समझौते ने भारत को रूसी तकनीक, हथियार और औद्योगिक मदद ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे पर रूस का वीटो भी दिलवाया. फिर भारत ने 1993 और 94 में रूस से दो संधियां की. इन संधियों से भारत की सैन्य साज़ो-सामान, तकनीक और हथियारों के मामले में रूस पर निर्भरता 86% तक बढ़ा ली. फिर 2014 में फेंकू (मोदी) की सरकार बनी और 370 को हटा दिया. फेकेंद्र अमेरिका से लेकर चीन और पूरी दुनिया में फोटू खिंचवाते घूमते रहे और खुद को एक मूर्ख नेता साबित कर दिया.

खैर, उनके राज में भी रूस से 3 समझौते हुए और एस 400 मिसाइल, एके रायफ़ल का सौदा भी हुआ. लेकिन झुठेन्द्र ने दग़ाबाज़ी में रूस को भी नहीं छोड़ा और अमेरिकी दबाव में क्वाड की गोद में बैठ गए. ट्रम्प से दोस्ती और जिन पिंग को झूला झुलाकर फेकू ने साबित कर दिया कि उनके जैसा मूर्ख और कोई नहीं.

नतीजा, गलवान और डोकलाम पर रूस चुप रहा और क्वाड ने एक भी बयान में चीन की घुसपैठ और दादागीरी का ज़िक्र तक नहीं किया. अब रूस जंग में फंसा है. भारत वैश्विक बिरादरी में रूस के साथ है. पाकिस्तान और चीन भी रूस के साथ है. लेकिन ताकत सिर्फ 2 यानी रूस और चीन के पास है. दोनों एक-दूसरे के ख़िलाफ़ अब और नहीं बोलेंगे. लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों एक-दूसरे के सियासी दुश्मन हैं. चीन से राजनयिक रिश्ते खराब हैं, लेकिन व्यापार ज़रूर है.

झुठेन्द्र को अब यही समझ नहीं आ रहा है आगे किसे झूला झुलाये, किसके गले पड़े और किसकी गोदी में जाकर बैठे ? और अगर लद्दाख और अरुणाचल में मुसीबत आये तो किसके चरण धोए ? अपने यहां कूटनीति का काम खलासी स्तर का एक पूर्व अफ़सर कर रहा है, जो समय से यूक्रेन से बच्चों को नहीं निकाल पाया. हमारे लिए विदेश नीति गोबर से गैस और उपले बनाने जैसी बन चुकी है.

आज जब युक्रेन में अमेरिकी उकसावे पर रुस ने आंखें तरेरी है तब भारत की यह अवसरवादी विदेश नीति गोबर बन गई है और युक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को रुस के खिलाफ यूक्रेन ने मानव ढ़ाल बना लिया है. संयुक्त राष्ट्र में मोदी सरकार ने बेशक रूस के खिलाफ मतदान से भाग गया लेकिन भारतीय मीडिया और भारत सरकार असलियत में रुस के खिलाफ लड़ लहा है. यह आपको अपने टीवी चैनलों पर चीखते, चिग्घाड़ मारते एंकरों को देखकर समझ में आ जायेगा. यही अवसरवादी विदेश नीति की पहचान है.

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