केन्द्र की मोदी सरकार पागल हो गई है. वह अपने पागलपन में देश के तमाम न्यायप्रिय बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, वकीलों, मानवाधिकारवादी कार्यकर्ताओं पर एक के बाद एक हमले कर रही है, उनकी हत्या कर रही है. फादर स्टेन स्वामी की नृशंस हत्या इसका ताजा उदाहरण है. छापामारी, गिरफ्तारी, हत्या की इस वारदातों में केन्द्र की मोदी सरकार न तो किसी कानून को मानती है और न ही अदालतों के आदेशों की ही परवाह करती है. ऐसा ही आज देखने को मिला है ‘न्यूजक्लिक’ और उससे जुड़े पत्रकारों के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई में.
न्यूज वेबसाइट ‘न्यूजक्लिक’ के के उपर ‘चीन से फंडिंग’ का एक फर्जी मामला गढ़कर दिल्ली पुलिस ने आज (3 अक्टूबर) को इसके संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर लिया और उससे जुड़े कुल 37 पुरुष और 9 महिला पत्रकारों से उनके आवास पर पूछताछ की. इस दौरान उनके मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर और दस्तावेजों आदि को जप्ती के नाम पर चुरा या छीन लिया. मोदी सत्ता के चाटूकार अधिकारियों ने बताया कि मोदी की पुलिस की स्पेशल सेल ने विदेशी फंडिंग की जांच के बहाने ‘न्यूजक्लिक’ के दफ्तर को सील कर दिया है.
संविधान और अदालतों के आदेशों से परे हैं मोदी की पुलिस
न्यूजक्लिक ने इन फर्जी आरोपों पर 7 अगस्त को एक बयान जारी करते हुए संस्थान ने कहा था कि ‘पिछले 12 घंटों से Newsclick के खिलाफ कई तरह के झूठे और आधारहीन आरोप लगाए गए हैं. ये मामला कोर्ट के सामने विचाराधीन है. हम कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करते हैं और मीडिया ट्रायल में नहीं उलझना चाहते हैं. कई राजनेताओं और मीडिया संस्थान हमारे खिलाफ जो आरोप लगा रहे हैं, उनका कोई आधार नहीं है. न्यूजक्लिक एक स्वतंत्र न्यूज संस्थान है. ये कहना कि हम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के प्रवक्ता की तरह या उसके हितों के लिए काम करते हैं, पूरी तरह गलत है. हम भारतीय कोर्ट में भरोसा करते हैं और भारतीय कानून के हिसाब से काम करते रहेंगे.’
संस्थान ने ये भी कहा था कि दिल्ली हाई कोर्ट ने मौजूदा केस में न्यूजक्लिक के पक्ष में एक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कंपनी के कई अधिकारियों को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत भी दी है. इसके अलावा, एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने न्यूजक्लिक के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा दर्ज शिकायत को रद्द करते हुए कहा था कि ‘केस में मेरिट नहीं है.’ वाबजूद इसके मोदी सरकार की दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ‘गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम’ (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज कर आज सुबह से न्यूजक्लिक और उससे जुड़े पत्रकारों के घर पर छापेमारी शुरू कर दी.
न्यूजक्लिक पर मोदी सरकार का आरोप
‘गोली मारो … को’ के नारे से कुख्यात होकर केन्द्रीय मंत्री का पुरस्कार हासिल कर चुके अनुराग ठाकुर ने 7 अगस्त, 2023 को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर न्यूजक्लिक पर आरोप लगाते हुए कहा था कि ‘भारत लंबे समय से बता रहा था कि न्यूजक्लिक भी प्रचार की एक खतरनाक वैश्विक चाल है…जब मैं न्यूजक्लिक की बात करता हूं, तो चीन के एक ग्लोबल मीडिया संस्थान से इसकी फंडिंग हुई है.’
अनुराग ठाकुर मोदीभक्ती में सराबोर होकर कहा था कि ‘आपको बता दूं कि पिछले दिनों न्यूजक्लिक के खिलाफ 5 दिनों की रेड हुई थी. तो उसमें कहां-कहां से पैसा लिया गया, कितने पैसे आए, वो सभी जानकारी दूंगा.’ लेकिन यह ‘जानकारी’ अभी तक पब्लिक डोमेन में नहीं दिया है और मोदी सरकार की पिछली रिकार्ड को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह ‘जानकारी’ कभी मिलने वाली भी नहीं है.
अनुराग ठाकुर आगे बताते हैं कि ‘विदेशी नेविल रॉय सिंघम ने इसकी फंडिंग की. और सिंघम को फंडिंग कहां से आई, वो चीन पीछे से करता है. नेविल रॉय का सीधा संपर्क कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के एक प्रोपेगैंडा विंग के साथ है. कांग्रेस और विपक्षी दल जिन अखबारों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, उन्होंने ही पुष्टि की है. उस बात की पुष्टि की जिसके बारे में भारत ने दो साल पहले कहा था.’ गौरतलब हो कि ‘पुष्टि’ दो साल पहले की गई थी,. कार्रवाई अब ठीक लोकसभा चुनाव के पहले की जा रही है.
मोदी मंत्रीमंडल के नयाब नमूने अनुराग ठाकुर ने कहा कि ‘उन्होंने 2021 में न्यूजक्लिक के बारे में खुलासा किया था कि कैसे विदेशी हाथ भारत के खिलाफ है. कैसे विदेशी प्रोपेगैंडा भारत के खिलाफ है और इस ‘एंटी-इंडिया कैंपेन’ में कांग्रेस और विपक्षी दल भी उनके समर्थन में आए थे. चीनी कंपनियां नेविल रॉय सिंघम के जरिये न्यूजक्लिक को फंड कर रही थीं, लेकिन उनके सेल्समैन भारत के ही कुछ लोग थे, जो कार्रवाई के खिलाफ उनके समर्थन में आ गए थे. उन्होंने चीन के एजेंडे को फैलाने और फर्जी प्रोपेगैंडा के जरिये आम लोगों को गुमराह करने की कोशिश की है. ठाकुर ने कहा कि ये ‘फ्री न्यूज’ के नाम पर ‘फेक न्यूज’ परोसने वाले हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट ‘चीन कनेक्शन’ क्या है ?
वेबसाइट ‘द लल्लनटॉप’ लिखता है कि पूरा विवाद 5 अगस्त को न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) में छपी एक रिपोर्ट के बाद शुरू हुआ था. NYT ने अमेरिकी बिजनेसमैन नेविल रॉय सिंघम के बारे में रिपोर्ट छापी. बताया कि नेविल रॉय किस तरह दुनिया भर की संस्थाओं को फंड करते हैं, जो चीनी सरकार के ‘प्रोपेगैंडा टूल’ की तरह काम करती हैं. रिपोर्ट बताती है कि सिंघम खुद शंघाई में रहते हैं. पिछले महीने उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के वर्कशॉप में भी हिस्सा लिया था, जिसमें पार्टी को दुनिया भर में फैलाने की चर्चा हुई थी.
नेविल रॉय सिंघम एनजीओ, शिक्षण संस्थानों, मीडिया संस्थानों को फंड करने को लेकर चर्चित हैं. 69 साल के नेविल समाजवादी चिंतक और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में प्रोफेसर रहे आर्चिबॉल्ड डब्ल्यू सिंघम के बेटे हैं. 1991 में आर्चिबॉल्ड का निधन हुआ था. उन्हें आर्चि सिंघम भी कहा जाता था. आर्चि मूल रूप से श्रीलंका के रहने वाले थे. साम्राज्यवाद के खिलाफ उन्होंने कई किताबें भी लिखी. बेटे नेविल रॉय सिंघम ने शिकागो में आईटी फर्म की शुरुआत की थी. उन पर बहुत पहले से चीनी सरकार को प्रोमोट करने वाले संस्थानों को फंडिंग करने का आरोप लगता रहा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रॉय सिंघम का ग्रुप कई फ्रंट पर चीनी सरकार के कामों का प्रचार करता है. मसलन, अफ्रीका में राजनेताओं को ट्रेनिंग देना, प्रोटेस्ट (जैसा लंदन में हुआ) को फंड करना. NYT ने दावा किया है कि उसने सिंघम से जुड़ी कई चैरिटी और शेल कंपनियों का पता लगाया है और ग्रुप से जुड़े कई पूर्व कर्मचारियों से बात भी की है. ये भी लिखा है कि ये ग्रुप्स साझा काम करते हैं. वे एक-दूसरे के आर्टिकल और क्रॉस शेयर करते हैं. वे बिना संबंध बताए एक-दूसरे के प्रतिनिधियों का इंटरव्यू करते हैं.
अखबार लिखता है कि कॉरपोरेट फाइलिंग से पता चलता है कि नेविल रॉय सिंघम का नेटवर्क भारत में एक न्यूज वेबसाइट ‘न्यूजक्लिक’ को फंड करता है. अखबार ने न्यूजक्लिक का एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा है कि वेबसाइट में चीन की सरकार का काफी कवरेज है. जैसे एक वीडियो में वेबसाइट कहती है, ‘चीन का इतिहास मजदूर वर्ग को अब भी प्रेरित कर रहा है.’
न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट में न्यूजक्लिक के खिलाफ भारतीय एजेंसियों की छापेमारी का भी जिक्र किया. बताया कि अधिकारियों ने तब आरोप लगाया था कि वेबसाइट का संबंध चीन की सरकार से है, लेकिन कोई सबूत पेश नहीं किया गया था. इन आरोपों पर रॉय सिंघम ने ईमेल से NYT को जवाब दिया था कि जिन देशों में भी उनका काम है, वहां वे टैक्स कानूनों का पालन करते हैं. ईमेल में उन्होंने बताया कि ‘मैं इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करता हूं कि मैं किसी पार्टी का सदस्य हूं, या उसके लिए काम करता हूं या किसी से आदेश लेता हूं. मैं सिर्फ अपने विचारों से चलता हूं.’
पहले पाकिस्तान, अब चीन
मोदी सरकार की जीवन रेखा ही नफरतों पर टिकी हुई है. पहले पाकिस्तान का नाम लेकर देश में ‘देशद्रोहियों’ की पहचान होती थी तो अब चीन का नाम लेकर. आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार ने नफरतों की नई जमीन की तलाश की ‘खालिस्तान’ के रुप में. खालिस्तान का मसला कब से ठंढ़े बस्ता में चला गया था. लोग भूलने लगे थे उसे, लेकिन संघियों ने पंजाब में एक रोडयात्रा का कर मुद्दे को सुलगाया और फिर अभी कुछ ही दिन पहले कनाडा में भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ के माध्यम से निज्जर की हत्या कर दी.
कनाडा अपने ही नागरिक की इस शातिराना हत्या से बौखला उठा और भारत के खिलाफ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही की मांग जोरदार तरीके से उठाने लगा. भारत की संघी सरकार और उसकी गोदी मीडिया ने पलटवार किया और कनाडा को आतंकवादी राष्ट्र घोषित कर उसपर हमला तक करने की बात करने लगा. लेकिन उसे जल्दी ही पता चल गया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘फाईव आईज’ यानी अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा न केवल एकजुट है और इस निज्जर हत्याकांड के खिलाफ है बल्कि कनाडा नाटो सदस्य भी है. और कनाडा पर किसी भी सैन्य हस्तक्षेप का मतलब अपनी मौत को बुलावा देना है. ऐसे में मोदी की मूर्खता से भारत अमेरिकी चंगुल में जा फंसा.
निज्जर के बहाने अमेरिकी चंगुल में फंसा भारत
अब जब निज्जर हत्याकांड को लेकर भारत अमेरिकी चंगुल में फंस गया है, तब यूक्रेन युद्ध में बुरी तरह मार खा रहे अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो गिरोह भारत के बहाने अब रुस के साथ मोलभाव भी करेगा और रुस के मित्र देशों को कमजोर करने या उसमें फूट डालने का भी षड्यंत्र करेगा. राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि चीन का बहाना लेकर आज ‘न्यूजक्लिक’ वेबसाइट और उससे जुड़े 46 पत्रकारों पर किये गये पुलिसिया रेड इसी ओर इशारा कर रहे हैं.
जैसा का भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर समाचार एजेंसी ANI से चीन के सम्बन्ध में बात करते हुए कहते हैं कि ‘हमें ये समझना होगा कि वे (चीन) हमसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. इसका मतलब ये है, हमें ऐसे में क्या करना चाहिए ? एक छोटी इकॉनमी होते हुए क्या हम आगे बढ़कर अपने से बड़ी इकॉनमी से लड़ाई कर लें ? सवाल कॉमनसेंस के इस्तेमाल का है.’ तो साफ है भारत न तो रुस से दुश्मनी मोल ले सकता है और न ही चीन से, तो अमेरिकी प्रोपेगैंडा के तहत वह केवल भारत के चंद बचे ईमानदार संस्थाओं को ही निशाना बना सकता है. वह संस्थान उसे ‘न्यूजक्लिक’ में नजर आया.
भारत की मूर्ख मोदी सरकार निज्जर के बहाने अब अमेरिकी चंगुल में है. अब इसी बहाने उसे 2024 की संभावित लोकसभा चुनाव की बैतरणी भी पार करनी है, और अपने विरोधियों को ठिकाने भी लगाना है. ऐसे में ‘न्यूजक्लिक’ जैसे हमले और होंगे. आखिर फासिस्ट सत्ता पर कब्जा भी तो इसी प्रकार करता है न ! बहरहाल, कहा जाता है कि कुत्ता अगर पागल हो जाये तो गोली मार देनी चाहिए, वरना वह हर किसी को काटता घुमेगा.
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]