Home गेस्ट ब्लॉग मोदी सरकार में मेक इन इंडिया-मेड इन इंडिया की असलियत

मोदी सरकार में मेक इन इंडिया-मेड इन इंडिया की असलियत

6 second read
0
0
410

मोदी सरकार में मेक इन इंडिया-मेड इन इंडिया की असलियत

गिरीश मालवीय

खबर आयी है कि वर्ष 2015 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का देश की जीडीपी में कुल योगदान लगभग 15 फीसदी से ज्यादा था, जो अब गिरकर 13 फीसदी से भी नीचे आ चुका है. यह असली हाल है मोदी सरकार में मेक इन इंडिया – मेड इन इंडिया का. आज हम इस सिलसिले में बात कर रहे है टेक्सटाइल इंडस्ट्री की. जैसा कि आप जानते ही है कि कृषि के बाद ये उद्योग सबसे ज्यादा नौकरियां देता है.

टेक्सटाइल उद्योग

कुछ दिन पहले ही संसद में जानकारी दी गई कि कोरोना काल में भी चीन को कॉटन निर्यात को बंद नहीं किया गया और भारत ने तमाम झंझटों के बाद भी चीन को कुल कपास निर्यात का करीब आधा कॉटन एक्‍सपोर्ट किया है.
बांग्‍लादेश के बाद चीन भारत से कपास आयात करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. दुनिया में सबसे ज्यादा कपास भारत में ही पैदा होती है, और हम क्या करते हैं ? हम उसे बांग्लादेश और चीन को एक्सपोर्ट कर देते है और फिर वहां से सिले सिलाए वस्त्र यहां आयात किये जाते हैं !

टेक्सटाइल उद्योग का भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान है. टेक्सटाइल उद्योग का भारत की जीडीपी में 5 प्रतिशत का अपना योगदान देता है. कपड़ा उद्योग देशभर में 4.5 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार मुहैया करता है जबकि अप्रत्यक्ष रूप से क़रीब 6 करोड़ लोगों की आजीविका इस पर निर्भर है. कुल मिलाकर देश भर में इससे 21 फ़ीसदी लोगों को रोज़गार प्राप्त होता है.

यह भारत के आईआईपी यानी इंडेक्स आफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन का 14 प्रतिशत है. कहने का मतलब यह है कि भारत में जितने औद्योगिक उत्पादों का उत्पादन होता है उसमें से टेक्सटाइल का हिस्सा 14 प्रतिशत का है. यानी टेक्सटाइल इंडस्ट्री वाकई कृषि के बाद सबसे बड़ी रोजगार प्रदाता है.

आपको शायद याद नहीं होगा 2019 में देश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने सम्मिलित रूप से देश के बड़े अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया था. विज्ञापन का शीर्षक था – ‘भारत का स्पिनिंग उद्योग बड़े संकट से गुज़र रहा है, जिसकी वजह से काफी संख्या में लोग बेरोज़गार हो रहे हैं.’

विज्ञापन के मुताबिक दावा किया गया है कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री का एक्सपोर्ट पिछले साल के मुकाबले (अप्रैल-जून) करीब 35% घटा है. इससे इंडस्ट्री की एक तिहाई क्षमता भी कम हुई है. मिलें इस हैसियत में नहीं रह गई हैं कि वो भारतीय कपास को खरीद सकें. साथ ही अब इंडस्ट्री में नौकरियां भी जाना शुरू हो गई हैं.

नोटबंदी और जीएसटी के बाद कपड़ा उद्योग की स्थिति काफी खराब हुई है. कपड़ा उद्योग निवेशकों को आकर्षित नहीं कर पा रहा है. टेक्सटाइल सेक्टर में बिक्री में 30-35 प्रतिशत की कमी आई है. कच्चे माल पर जीएसटी लगने के बाद से लागत बढ़ने के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पादकों को बहुत परेशानी आ रही है. इसके कारण भारत में सिले-सिलाए कपड़ों की लागत बढ़ गयी है और भारत निर्यात की प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गया है.

इसके उलट चीन अपने सस्ते कपड़े बांग्लादेश भेजकर वहां रेडिमेड कपड़े तैयार करवाकर दुनिया भर में, खासतौर पर एशियाई देशों को निर्यात बढ़ाने में सफल रहा है. भारत से कम टैक्स और सस्ते लेबर के कारण बांग्लादेश में सिले-सिलाए कपड़ों की निर्माण लागत 15-20 प्रतिशत तक कम होने के कारण वहां से आयात बढ़ा है. पिछले सालों में बांग्लादेश ने टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में ही निवेश कर अपनी प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया है, जो आज भारत से भी अधिक हो गयी है.

जीएसटी और नोटबन्दी के बाद गुजरात की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान हुआ. देश भर में मध्यम और बड़ी कपड़ा प्रसंस्करण इकाइयों की सर्वाधिक संख्या (600 से अधिक) गुजरात में ही है. गुजरात दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डेनिम उत्पादक है. 2017 के पहले एक अनुमान के मुताबिक़ गुजरात में 8.5 से 9 लाख लूम काम करते थे, लेकिन जीएसटी के बाद इनकी संख्या गिरकर 6.5 लाख हो गई. जीएसटी के लागू होने के बाद कई मालिकों ने एक लाख रुपये की लागत वाले अपने लूम को महज 15 हज़ार रुपये में बेच दिया.

साफ है कि मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण देश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री बर्बादी के कगार पर पहुंच गयी है. देश में उत्पादित कॉटन की बुकिंग चीन करवा रहा है. पहले ही पोलिएस्टर का मार्केट चीन के कब्जे में है. मोदी सरकार को यहां गारमेंट निर्माताओं के पक्ष में नीति बनानी होगी, नहीं तो बचे खुचे बिजनेस से भी हम हाथ धो बैठेंगे.

वोडाफोन आइडिया

वोडाफोन आइडिया के पटिये उलाल होने वाले है. हालात यहां तक खराब है कि कुमार मंगलम बिड़ला जो वोडाफोन आइडिया लिमिटेड में पार्टनर है, ने हाथ खड़े कर दिए है. कल उन्होंने ऑफर किया है कि कंपनी पर अपना नियंत्रण छोड़ने को भी तैयार हैं. उन्होंने सरकार से कहा है कि कंपनी का अस्तित्व बचाने के लिए वो किसी भी सरकारी या घरेलू फाइनेंशियल कंपनी को अपनी हिस्सेदारी देने को राजी हैं.

वोडाफोन-आइडिया पिछले 10 महीनों से 25,000 करोड़ रुपये जुटाने का प्रयास कर रही है लेकिन अब तक उसकी कोशिशें नाकाम ही रही हैं. सरकार की ओर से कोई राहत नहीं मिलने से कंपनी की वित्तीय स्थिति तेजी से खराब हुई है. कंपनी में कुमार मंगलम बिड़ला की 27% और ब्रिटेन की कंपनी वोडाफोन पीएलसी की 44% हिस्सेदारी है. कंपनी की खस्ता हालत देख दोनों प्रमोटर्स ने कंपनी में ताजा निवेश नहीं करने का फैसला किया है.

वोडाफोन पिछले साल ही कंपनी में अपने पूरे निवेश को बट्टे खाते में डाल चुकी है. वोडाफोन पीएलसी के सीईओ निक रीड पहले ही कह चुके हैं कि भारत सरकार यदि स्पेक्ट्रम मांग को सुगम नहीं बनाएगी तो वोडाफोन आइडिया परिसमापन में चली जाएगी. यानी वोडाफोन आइडिया का बन्द होना लगभग तय है अब इसका असर क्या होगा यह समझना हम सब के लिये जरूरी है.

सबसे बड़ा असर बैंकों पर आएगा

वोडाफोन इंडिया पर करीब 1.8 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है. बैंकिंग सेक्टर में भारतीय बैंकों ने तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया हुआ है. इसमें 43 हजार करोड़ रुपये सिर्फ एसबीआइ का है. यानी अगर आइडिया वोडाफोन दिवालिया होती है तो भारतीय बैंकों को बहुत बड़ा नुकसान होगा. उनके फंसे कर्जे (एनपीए) की स्थिति और बिगड़ेगी.

दूसरा सबसे बड़ा असर उन उपभोक्ताओं पर पड़ना तय है जो इस कंपनी की सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं. ट्राई के डाटा के अनुसार वोडाफोन-आइडिया के पास लगभग 30 करोड़ ग्राहक हैं. यह देश की दूसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कम्पनी है. यह सारे ग्राहक एयरटेल ओर जियो में बंट जाएंगे.

तीसरा असर इसके कर्मचारियों पर पड़ेगा. वोडाफोन-आइडिया कंपनी बंद होती है तो उसके करीब 13,520 कर्मचारियों की नौकरी जाएगी.

सरकार जो 5G स्पेक्ट्रम की बिक्री करने जा रही है, उसे भी सही कीमत नहीं मिलेगी. बैंक अब टेलीकॉम को और ज्यादा कर्ज देने से डर जाएंगे. वोडाफोन-आइडिया के दीवालिया होने से विश्व मे भारत की साख को बहुत बड़ा धक्का पहुंचेगा क्योंकि जब वोडाफोन भारत आई थी, तब इसे सबसे बड़ा विदेशी निवेश बताया गया था. ऐसे में कौन विदेशी निवेशक भारत में अपना पैसा लगाने को अब तैयार होगा. मोदी जी ने अपने मित्र की कम्पनी जिओ को प्रिडेटर प्राइसिंग की छूट देकर इस पूरे सेक्टर की कब्र खोद दी है.

बीमा सेक्टर

बीमा कर्मचारी सोच रहे थे कि चार में से एक कम्पनी बिकेगी, बाकी तीन तो बच जाएगी. लेकिन जब विधेयक पेश हुआ तो पता चला कि एक नहीं बल्कि चारों ही बिकेगी. उन्हें लगा था कि इस पर सदन में व्यापक बहस होगी और जनता को उसके लाभ हानि की जानकारी दी जाएगी लेकिन बिना किसी चर्चा के सरकार ने साधारण बीमा व्यवसाय राष्ट्रीयकरण संशोधन विधेयक पारित कर यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी सहित साधारण बीमा क्षेत्र की राष्ट्रीयकृत कंपनियों के निजीकरण का एलान कर दिया, तब उनके हाथों से तोते उड़ गए.

सरकार द्वारा लाए गए ‘सामान्य बीमा व्यापार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1972’ में जिन संशोधनों को मंजूर किया गया है. उनमें एक यह भी है कि 51 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व की शर्त को खत्म कर दिया जाएगा. अब सभी बीमा कर्मचारी हड़ताल प्रदर्शन कर रहे हैं.

1972 में जनरल इंश्‍योरेंस इंडस्‍ट्री का राष्‍ट्रीयकरण हुआ था और उस दौरान 107 इंश्‍योरेंस कंपनियों का विलय कर 4 इंश्‍योरेंस कंपनियां बनाई गईं थी. इस प्रकार कुल 4 कम्पनियां अस्तित्व में आई, ये है – नेशनल इंश्‍योरेंस कंपनी लिमिटेड, न्‍यू इंड‍िया एश्‍योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरिएंटल इंश्‍योरेंस कंपनी लिमिटेड और यूनाइेडट इंडिया इंश्‍योरेंस कंपनी लिमिटेड.

ये सब जनरल इनश्योरेंस कॉर्पोरेशन (जीआईसी) के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियां थी. 2003 में इन चार कंपनियों का स्वामित्व सरकार को दे दिया गया लेकिन अब नया संशोधन लाकर इसमे सरकार के स्वामित्व को समाप्त किया जा रहा है.

कर्मचारी नेता कह रहे कि यह देश की संपत्ति की खुली लूट है. इन कंपनियों की 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति आधार है. उसमें भी 1 लाख 78 हजार करोड़ रुपए की राशि इन्होंने सरकारी क्षेत्र में निवेश की है. केवल 12 रुपए के प्रीमियम पर 2 लाख रुपए का प्रधानमंत्री बीमा सुरक्षा योजना यही कंपनी उपलब्ध करा रही है. आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना का भार भी यही कंपनियां उठा रही है.

निजी क्षेत्र की आम बीमा कंपनी तो यह काम करने से रही, घाटे के इन योजनाओं को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ही घाटा सहकर चला रही है. लेकिन इसके लिए उन्हें इनाम के बदले सजा दी जा रही है. सरकार की ओर से मुआवजा देना चाहिए, इसके बजाय सरकार इन्हीं कंपनियों को नीलाम कर रही है.

इस देश की दिक्कत यही है कि इस देश की जनता पड़ोसी को पिटता हुआ देख कर बड़ी खुश होती है, लेकिन वह यह भूल जाती है कि अगली बारी उसकी है. जब बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाई तो बीमा कर्मचारियों ने तमाशा देखा. जब रेलवे कर्मचारियों ने निजीकरण को लेकर हड़ताल की तो बैंक कर्मचारी चुपचाप रहे. बाद में जब बैंक कर्मचारियों और बीमा कर्मचारियों का आंदोलन हुआ तो उनके साथ भी कोई खड़ा नहीं हो रहा.

वो कहते हैं न –

जलते घर को देखने वालों, फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है, आगे मुकद्दर आपका है !
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नम्बर अब आया,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है, अगला नम्बर ‘आपका’ है

बस यही कहानी बार बार दोहराई जाती है.

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…