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मोदी मंत्र : जो जितना कमजोर है, वह उतना अधिक कर्ज चुकाएगा

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विष्णु नागर

बहुत सी बातें मेरी अक्लदानी देर में समाती हैं. मोदी जी, अच्छे शिक्षक हैं, वो बढ़िया से समझा देते हैं कि बेट्टा असल माजरा ये है !

उन्होंने कहा, देख बच्चू, प्रधानमंत्री बनना जरा टेढ़ी खीर है मगर मेरा जैसा कोई एक बार बन जाए तो फिर उसकी मौज्जां ही मौज्जां है. बंगला-कार, हवाई जहाज तो छोड़ो, दुनिया की जो भी चीज़, जब भी चाहो, हाजिर है. पद नाम जरूर हमारा प्रधानमंत्री है मगर हैं हम राजाओं के राजा. सब साले मेरे आगे पानी भरते हैं. जिसको, जहां कहो, नंगा नचवा दूं, उल्टा लटकवा दूं, जेल भिजवा दूं. विदेश भगवा दूं.

मंत्री मेरा, भाजपाई मुख्यमंत्री की जान भी मेरी मुट्ठी में. उसे जैसा चाहूं, ट्रीट करूं. चपरासी बना दूं, हटा दूं तो भी वह चूं नहीं कर सकता. पद देता हूं और जबान खींच लेता हूं. कहीं पूजा-पाठ करता हूं तो राज्यपाल-मुख्यमंत्री सबको बाहर खड़ा रखता हूं. जो आज तक अपने को राजा समझते हैं, उनका असली कद भी पिछले दिनों मैंने दिखा दिया. मंदिर के गर्भगृह से बाहर खड़ा रखा राजाजी को !

लोग समझते हैं, जिसके ऊपर पूरे देश की जिम्मेदारी है, उसके पास बहुत काम होता होगा. कुछ नहीं होता. मुझे देखो, कुछ करता दिखता हूं ! एक ही काम प्रतिदिन करता हूं भाषण झाड़ना, उजाड़ में भी हाथ हिलाते रहना और टीवी पर अपना मुखड़ा दिखाते रहना. वैसे सबसे जरूरी काम है- तन-मन से बड़े सेठों की बड़ी सेवा करना.

चार दिन भगवान की पूजा नहीं करोगे तो वह नाराज नहीं होगा मगर सेठ ने कहा कि मुझे अभी ये मंगता तो अभी च देना पड़ता है. लेट हो गए, तन गये, प्रधानमंत्रीगीरी दिखा दी तो समझो गई नौकरी. वो एक मांगे तो, एक की कीमत में दो, दो.

इसके अलावा पार्टी को जिताते जाओ, फिर मजे से देश-विदेश घूमते रहो. जहां जाओ, भव्य स्वागत करवाओ. एक घंटे में करोड़ों फुंकवाओ और हां, फेकना कभी मत छोड़ो मगर सेठ के सामने कभी फेको मत और जनता को धर्म की अफीम खिलाते जाओ, खिलाते जाओ. होश में आने ही मत दो, इसके लिए मंदिर-मंदिर जाओ.

धर्म की पाखंड पताका फहराओ. कारीडोर पर कारीडोर, मंदिर पे मंदिर लोकार्पित करते जाओ. गरीब जनता का पैसा पानी की तरह बहाते जाओ. धर्म के नाम पर विपक्षी भी सवाल नहीं करेंगे. करेंगे तो अपनी राजनीतिक मौत खुद मरेंगे. बाकियों को सोशल मीडिया पर बक-बक करने दो, थकने दो, ‘वीरता’ का मजा लेने दो.

उधर मंदिर-मंदिर खेलने से हिन्दू जनता गदगद रहती है. वाह मोदी, वाह मोदी करती है. मोदी को देखो, महाकाल को महाकाल-लोक बना दिया ! हिंदू जनता खुश, तो फिर उसके लिए मंदिर का विकास ही देश के विकास हो जाता है. मंदिर ही उसका आटा, दाल, सब्जी, गैस का सिलेंडर, मकान, रोजगार सब हो जाता है. हिंदू जनता के सभी रोगों की एक ही रामबाण दवा है – मंदिर, बाकी जनता तो महज़ गिनती है !

जनता को क्या पता कि यह जो जगमग-जगमग मंदिर है, यह उसी के पैसे की चमक है, जो दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करके वह कमाती है ! दियासलाई खरीदने पर भी जो टैक्स जनता देती है, यह उसी की चमक है. यह जो प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी, मंत्री जी और अफसर जी की मौज और हेकड़ी है, सब उसी की माया है. ये चमक, ये आनंद,

ये मौज मस्ती सब उस खून की है, जिसे उसने दिन भर मेहनत करके पानी बनाया है. यह चमक उसकी अपनी गलती हुई हड्डियों की है. ये मुफ्त कोरोना का टीका, ये पांच किलो अनाज, ये उसकी और उसके पत्नी-बच्चों के भूख की खेती की उपज है. ये धन्यवाद मोदी जी, ये धन्यवाद मोदी की नहीं, उसकी अपनी कमाई है. उसके पैसे से खरीदा गया मजबूत जूता है, जो उसी के ही सिर पर मारा जा रहा है.

जनता समझती है कि यह जो लुटाया-बहाया जा रहा है, सरकारी पैसा है, सरकार जैसा चाहे, खर्च करे. हमारी जेब से तो नहीं जा रहा. हमसे तो मांगा नहीं जा रहा ! तो हमारा क्या आता-जाता है. खूब खाएं, खूब लुटाएं. वे राजा हैं. हमीं ने इनको राजा बनाया है और शिवराज टाइप कुछ जबर्दस्ती बन गए हैं तो ये तो राजनीति में है – जिसकी लाठी, उसकी भैंस की प्राचीन राजनीति !

मोदी जी ज्ञान देते हैं कि कि मीडिया यह नहीं बताएगा कि दुनिया भर में मंदी चल रही है और इससे भी भयानक मंदी आनेवाली है. सरकारी खजाना खाली हो रहा है. हर रोज रुपया डालर के मुकाबले जमीन सूंघ रहा है. डालर मुटिया रहा है, रुपया सूख कर कांटा हो रहा है, मगर आज जो खा-पी रहे हैं, मस्ती ले रहे हैं, वे मंदी में भी खा-पीकर डकारते रहेंगे, पैसा बनाते रहेंगे तो फिर मुझे फिक्र क्यों हो ? यही तो मेरी असली जनता है, बाकी तो पांच किलो अनाज वाली चुनावी जनता है ! मंदिर-मस्जिदवाली जनता है ! उसे तो जब चाहो, झांसा दे दो.

मरना तो आखिर में इसी जनता को है, जो महाकाल-लोक पर तालियां बजाती है. उसे कौन बताएगा कि इस महाकाल-लोक के लिए मध्य प्रदेश की जिस सरकार ने 421 करोड़ रुपये दान किए हैं, वह कर्ज के दलदल में गले-गले तक डूबी है यानी हर प्रदेशवासी डूबा हुआ है. इस कर्ज को शिवराज सिंह अपनी जेब से तो चुकाएंगे नहीं. जो जितना कमजोर है, वह उतना अधिक चुकाएगा. समर्थ तो चुपके से कट लेंगे. उन्हें सौ चोर रास्ते मालूम हैं. गरीब तो मर कर भी बच नहीं पाएगा और नीरो मधुर-मधुर बांसुरी बजाना कभी नहीं छोड़ेगा.

एक महत्वपूर्ण शिक्षा उनकी यह भी है कि सिर्फ महाकाल लोक, काशी विश्वनाथ कारीडोर, राममंदिर से काम नहीं चलता. वोट का असली सशक्तिकरण दूसरे धर्मावलंबियों के प्रति नफ़रत बढ़ाने से होता है. नफ़रत की मिकदार बढ़ाते रहो, वोट की फसल काटते रहो. तो बताइए, इतने बढ़िया ढंग से आज का कौन-सा शिक्षक समझाता है ?

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