गिरीश मालवीय
सरकारी हेलीकॉप्टर सेवा पवन हंस की बिक्री पर मोदी सरकार को अपने कदम पीछे लेने पड़े हैं. आपको याद होगा कि दो हफ़्ते पहले मोदी सरकार ने बड़ी शान से घोषणा की थी कि ‘हमने पवन हंस के लिए स्टार 9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड की 211 करोड़ की बोली को मंजूरी दे दी है’ तो मात्र दो हफ़्ते में ही ऐसा क्या हो गया कि सरकार को अपने कदम पीछे लेने पर मजबूर होना पड़ा ?
दरअसल पवन हंस को किसी ‘टॉम डिक हैरी’ को बेचे जाने का सोशल मीडिया कर बड़ा विरोध देखने को मिला. जिस दिन पवन हंस को बेचने की खबर आई उसके ठीक अगले दिन मैंने लेख लिखा, जिसमें पहली बार यह तथ्य सामने लाया गया कि जिस स्टार9 मोबलिटी कम्पनी को पवन हंस को बेचा गया है, उसे मात्र 6 महीने पहले 29 अक्टूबर, 2021 को मुम्बई में रजिस्टर किया गया है.
अगले दिन कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने इसी तथ्य को मुख्य मुद्दा बनाकर दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस की ओर इस प्रकार मोदी सरकार का औने-पौने दाम में पवन हंस को बेचने में किया गया. घोटाला धीरे-धीरे खुलने लगा. दरअसल Star9 मोबिलिटी तीन अलग-अलग संस्थाओं का एक कंसोर्टियम है महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड, जिसके पास 25%, बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड (26% के साथ) और शेष 49% के साथ अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड है.
इस बोली के लिए Star9 मोबिलिटी कंसोर्टियम के तीन भागीदारों ने 699.49 करोड़ रुपये की संयुक्त संपत्ति का प्रमाण प्रस्तुत किया था लेकिन बाद में पता चला कि 31 मार्च, 2021 को महाराजा एविएशन की निवल संपत्ति मात्र 7.59 करोड़ रुपये थीं और बिग चार्टर की कुल संपत्ति लगभग 9.5 करोड़ रुपये थी. कंसोर्टियम के पास कुल बोली की शर्तो के अनुसार खरीदने वाले की 300 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति होनी चाहिए थी.
इस कमी को अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड ही पूरा कर सकता था, लेकिन उसकी निवल संपत्ति के बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है. कंपनी केमैन आइलैंड में रजिस्टर्ड हुई है इसलिए अल्मास कैपिटल के पीछे कौन लोग हैं, यह किसी को जानकारी नहीं है.
इन दो हफ्तों में अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ जिससे सारा सौदा ही खटाई में पड़ गया. पता चला कि दिवालिया मामले को सुलटाने के लिए बनाई गई अदालत एनसीएलटी की कोलकाता बेंच ने 22 अप्रैल 2022 को एक आदेश में अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड पर पाबंदियां लगा दी थी. इस फंड ने इंसॉल्वेंसी रिज्यॉल्यूशन प्रोसेस में 568 करोड़ रुपये में कोलकाता की एक कंपनी ईएमसी लिमिटेड (EMC Ltd) को खरीदने की बोली लगाई थी. प्रोसेस में फंड की बोली को चुना गया था, लेकिन वह भुगतान करने में असफल रहा था.
एनसीएलटी ने अपने आदेश में Almas को न सिर्फ कड़ी फटकार लगाई थी, बल्कि कंपनी के खिलाफ इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की धारा 74(3) के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई करने की बात की थी. एनसीएलटी ने अपने उक्त आदेश की कॉपी इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (IBBI) और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के सेक्रेटरी को भेजने के लिए कहा.
इस बीच अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड ने कंसोर्टियम बनाकर पवन हंस का बड़ा सौदा सरकार से कर लिया, अब आप ही बताइए कि जो कम्पनी एनसीएलटी के सामने 568 करोड़ रुपये ही नहीं चुका पा रही हो वो केसे दक्षिण एशिया की सबसे बडी हेलीकॉप्टर सेवा को खरीद रही थी ?
वैसे यह पहली बार नहीं है जब नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा निजी कंपनियों को सरकारी संपत्ति की बिक्री ने नए मालिकों पर सवाल उठाए गए हो. जनवरी 2022 में, इसी सरकार को सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की बिक्री पर रोक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि विजेता बोली लगाने वाले के वित्तीय ट्रैक रिकॉर्ड, एनसीएलटी में इसके खिलाफ लंबित मामले और बोलीदाताओं के बीच संदिग्ध इंटर-कनेक्शन के बारे में संदेह किया गया था. अब यही काम पवन हंस सौदे में हुआ है.
साफ़ है कि मोदी जी जल्दबाजी में औने-पौने में हजारों करोड की सरकारी संपति अपने मित्र पूंजीपतियों को मात्र कुछ करोड़ रुपए में बेचकर जल्दी से अलग होना चाहती है.
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