गिरीश मालवीय
देश के प्रधानमन्त्री मोदी अपने चहेते अडानी को बड़े-बड़े ठेके दिलवाने के लिए दूसरे देशों के शासन प्रमुख पर दबाव डालते हैं. अब यह बात ऑन रिकार्ड है क्या आपको अब भी यह भ्रष्टाचार नहीं दिखता ? श्रीलंका के सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के अध्यक्ष एमएमसी फर्डिनेंडो ने पिछ्ले शुक्रवार को एक संसदीय पैनल को बताया था कि राष्ट्रपति राजपक्षे ने उन्हें बताया है कि पीएम मोदी ने उन पर उत्तरी मन्नार जिले की पवन ऊर्जा परियोजना को सीधे अडानी समूह को देने के लिए दबाव डाला था. उनके शब्द थे ‘राजपक्षे ने मुझे बताया था कि वो मोदी के दबाव में हैं.’
हम श्रीलंका की हालत अच्छी तरह से जानते हैं. श्रीलंका लंबे समय से गंभीर आर्थिक संकट में डूबा हुआ है. वहां खाने-पीने के सामान और पेट्रोल-डीज़ल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी लोगों को मुश्किल से मिल रही हैं. संकट के इस समय में भारत श्रीलंका को बड़ी आर्थिक मदद दे रहा है इसलिए अगले दिन एमएमसी फर्डिनेंडो ने अपने बयान को वापस ले लिया और उन्होंने अपना बयान रेकॉर्ड से हटाने को कहा और सोमवार को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
अगर आप यह सोच रहे हैं कि मोदी को अडानी के फेवर करने की यह पहली घटना है तो आप बिल्कुल गलत सोच रहे हैं. इसके पहले वह ऐसी ही लॉबिंग बंगलादेश, म्यांमार, आस्ट्रेलिया, ईरान आदि देशों में भी कर चुके हैं. बांग्लादेश में तो उन्होनें हद ही पार कर दी थी.
बांग्लादेश में बिजली की भारी कमी है. 2010 में भारत ने बांग्लादेश को एक अरब डॉलर का कर्ज देने का ऐलान किया था. यह कर्ज बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए था. उसी साल भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी और बांग्लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड ने एक समझौता किया. इसके तहत बांग्लादेश में कोयले से चलने वाले दो ऊर्जा संयंत्र बनाए जाने थे.
2014 तक बांग्ला देश भेजी जाने वाली बिजली पर सरकारी उद्यमों का ही नियंत्रण था लेकिन नरेंद्र मोदी के आते ही चीज़ें बदल गईं. छह जून 2015 को अपनी पहली ढाका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ‘बांग्लादेश में ऊर्जा उत्पादन, प्रसारण और वितरण क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के प्रवेश के लिए’ प्रधानमंत्री शेख हसीना से मदद मांगी.
ठीक अगले दिन बांग्लादेश पावर डिवेलपमेंट बोर्ड ने अडानी पावर लिमिटेड और रिलायंस पावर लिमिटेड द्वारा बनाए जाने वाले पावर प्रोजेक्ट्स से बिजली खरीदने के लिए समझौतों की घोषणा कर दी. दो महीने बाद, 11 अगस्त 2015 को अडानी और बांग्लादेश ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए और अप्रैल 2017 में शेख हसीना की नई दिल्ली यात्रा के दौरान यह डील फाइनल हो गई. बांग्लादेश इस डील के लिए मान जाए इसलिए भारत की मोदी सरकार ने सीमा से लगे कई गांव बांग्लादेश को गिफ्ट कर दिए.
बांग्लादेश से हुए इस बिजली खरीद समझौते में यह साफ किया गया था कि बिजली आपूर्ति कितनी मात्रा में और किस दर पर की जाएगी. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि खरीद की यह मात्रा और दरें छोटी अवधियों के लिए तय की जाती हैं ताकि ऊर्जा बाजार के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखा जा सके. साथ ही बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों को भी कॉम्पिटिटिव बिडिंग के माध्यम से चुना जाता है ताकि कीमतें कम और भ्रष्टाचार की संभावना खत्म की जा सके लेकिन अडानी के साथ बांग्लादेश का करार 25 साल का करवाया गया.
बांग्लादेश में अब इस महंगी बिजली खरीद का कड़ा विरोध हो रहा है. बहुत संभव है कि कुछ दिनों बाद वहां भी कोई न कोई बड़ा अधिकारी शेख हसीना और मोदी के बीच की इस डील की पोल खोल दे जैसी श्रीलंका में खुली है.
सूखता पेट्रोल पंप, गहराता तेल संकट
श्रीलंका की तरह ही भारत में भी आर्थिक संकट की आहट सबसे पहले पेट्रोल पंप से आनी शुरू हो गई है. देश के कई प्रदेशों में ईंधन की किल्लत के कारण हजारों पेट्रोल पंप बंद हो चुके हैं. तेल कंपनियों की मांग और आपूर्ति की चेन डिस्टर्ब होने के बाद राजस्थान में लगभग 2000 पेट्रोल पंप ड्राई हो चुके हैं. आपको बता दें कि राजस्थान में कुल लगभग साढ़े 6 हजार पेट्रोल पंप हैं. ऐसे में लगभग 2 हजार पेट्रोल पंप के ड्राई होने के बाद स्थिति काफी गंभीर हो गई है.
ऐसी ही स्थिति उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में भी देखी जा रही है. पेट्रोल-डीजल सप्लाई की अघोषित कटौती से संकट गहरा गया है. सैकडों पंप सूखने जैसी स्थिति में हैं. जिन पंपों पर ईंधन है भी तो वहां मात्र तीन-चार दिन का ही स्टॉक बचा है.
मप्र पेट्रोल पंप डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय सिंह ने कहा, ‘सप्लाई में दिक्कत आ रही है, जिससे मप्र के बहुत सारे पंप ड्राई आउट हो गए हैं. किसानों को परेशानी हो जाएगी, हमें भी दिक्कत होगी. इस सीजन में नुकसान कवर नहीं कर पाएंगे. शहर के पंप 2 से 3 घंटे बंद हो रहे हैं क्योंकि सप्लाई नहीं हो रही है.
अब समझिए कि दिक्कत कहां आ रही है ! भारत में मुख्य रूप से पांच बडी कंपनियां है जो पेट्रोल डीजल की मार्केटिंग करती है. तीन सरकारी है – इन्डियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम. दो प्राईवेट है – रिलायंस और एस्सार (नायरा). इसमें सिर्फ इन्डियन ऑयल ही ऐसी कंपनी है जो अपने पेट्रोल पंप को निर्बाध आपूर्ति कर रही है. बची हुई दो सरकारी फ्यूल ऑयल कंपनियां भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम की डिमांड और सप्लाई का अनुपात अस्थिर हो गया है.
अगर कोई पंप मालिक इन दोनों कम्पनियों से दिन के तीन टैंकर मंगवाता है तो ये सिर्फ एक ही टैंकर दे रही है और कई जगहों पर तो वो भी नहीं दे पा रही है. कंपनियों को एडवांस देने के बावजूद भी कंपनियां सप्लाई नहीं कर रही हैं. बाकि बची दो प्राईवेट कम्पनी रिलायंस और एस्सार, तो उनके पंप तो कई दिनों पहले बंद हो चुके हैं. यानी सारा बोझ अब इन्डियन ऑयल पर है लेकिन उसका प्रोडक्शन भी सीमित है.
कच्चे तेल की प्राइस लगातार बढ़ रही है, ऐसे में मौजूदा पेट्रोलियम कंपनियों का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है. इस बीच सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में कटौती की है. ऐसे में माना जा रहा है कि दोनों बड़ी सरकारी तेल कंपनियां सप्लाई में कटौती कर ज्यादा नुकसान होने से बचाव की कोशिश में हैं, इन पर रिलायंस और एस्सार के पंप बंद होने का भी दबाव है.
एक बात और है कि ओपेक देशों ने जुलाई में भारत को सप्लाई किए जाने वाले कच्चे तेल की कीमत और भी बढ़ा दी है यानी कुल मिलाकर हालात लंबे समय तक सुधरते नजर नहीं आ रहे हैं. मोदी सरकार की असली परीक्षा की घड़ी आ गई है क्योंकि यहां जुमलेबाजी से काम नहीं चलेगा.
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