गिरिश मालवीय
यूरोप के बड़े-बड़े देश अपने यहां इस वक्त राष्ट्रीयकरण की मुहिम चला रहे हैं और निजीकरण से दूरी बना रहे हैं. पिछ्ले हफ्ते फ्रांस की प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्न ने मल्टिनेशनल इलेक्ट्रिक यूटिलिटी कंपनी इलेक्ट्रीसाइट डी फ्रांस एसए (EDF) का राष्ट्रीयकरण करने की योजना की घोषणा की. बोर्न ने फ्रांस की संसद को संबोधित करते हुए कहा –
‘अपने बिजली उत्पादन और प्रदर्शन पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए. … हमें युद्ध के परिणामों (यूक्रेन में) और आने वाली भारी चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी संप्रभुता सुनिश्चित करनी चाहिए. … इसलिए मैं आपको पुष्टि करती हूं कि ईडीएफ की पूंजी का 100 प्रतिशत स्वामित्व सरकार का है.’
जर्मनी भी देश में गज़प्रोम पीजेएससी की एक इकाई का नियंत्रण करने को तत्पर है, जो गैस आपूर्ति से जुड़ी हुई है. जर्मनी के वित्त मंत्री रॉबर्ट हैबेक ने बर्लिन में संवाददाताओं से कहा कि ‘फेडरल नेटवर्क एजेंसी एक शेयरधारक की भूमिका ग्रहण करेगी और आपूर्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय कर सकती है.’ इटली के मंत्री देश की लुकोइल रिफाइनरी का राष्ट्रीयकरण करना चाहते है.
और भारत में इस वक्त क्या हो रहा है ? आप सब देख रहे हैं बड़े बड़े उद्योगों को बेचा जा रहा है, देश की तेल और गैस पाइपलाइन, एयरपोर्ट, बंदरगाह आदि का निजीकरण किया जा रहा है.
अभी जो श्रीलंका में संकट चल रहा है उसकी एक बड़ी वजह निजीकरण ही है. श्रीलंका में बंदरगाहों के निजीकरण के विरोध में लंबे समय से एक मुहिम चल रही है. ट्रेड यूनियन, सिविल सोसाइटी और विपक्षी पार्टियां भी इस विरोध में शामिल है. श्रीलंका सरकार ने पहले हंबनटोटा बंदरगाह को कर्ज के बदले चीन को सौपा उसके बाद ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल का ठेका भारत के अदानी समूह को देने का फ़ैसला किया, बढ़ते दबाव के कारण इस फैसले को वापस लिया गया.
श्रीलंकाई सरकार ने देश में शिक्षा प्रणाली के निजीकरण की योजना भी बनाई थी, इसके विरोध में छात्र एकजुट हुए. आप जो सोशल मीडिया पर श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन पर जनता के कब्जा करने के वीडियो फुटेज देख रहे हैं, इस प्रदर्शन का नेतृत्व वहां के छात्र ही कर रहे हैं.
देश की लंका लगने वाली है. लगातार बढ़ती मंहगाई श्रीलंका जैसे हालात पैदा कर देगी. 18 जुलाई से अनब्रांडेड प्री-पैकेज्ड व प्री लेबल आटा, मैदा और सूजी, दाल, दही, गुड समेत अनेक खाद्य उत्पादों पर 5 फीसदी जीएसटी लगने जा रहा है.
23 मार्च 2017 को केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि ‘जिन खाने-पीने की वस्तुओं पर अभी तक कोई टैक्स नहीं लगता है, उन्हें जीएसटी से अलग रखा जाएगा लेकिन आज 2022 में इस निर्णय को पुरी तरह से पलट दिया गया है.
सरकारें जब भी कोई कर या कर सुधारों से जुड़ी व्यवस्थाएं लेकर आती हैं, तो उसे ‘ग्लासनोस्त’ और ‘पेरेस्त्रोइका’ के रूप में ही पेश करने की कोशिश करती हैं, लेकिन हकीकत कुछ सालों बाद नजर आती है, जैसा आज हमें जीएसटी के मामले में देखने को मिल रहा है. अनब्रांडेड प्री-पैकेज्ड व प्री लेबल खाद्यान पदार्थों पर जीएसटी लगाने के इस निर्णय का प्रभाव क्या होगा, इसे समझने का प्रयास करते हैं.
दरअसल, मल्टीनेशनल कंपनी अपना उत्पाद ऊंचे दाम पर रजिस्ट्रड ब्रांड से बेचती है, जबकि छोटे-छोटे एमएसएमई या छोटी-छोटी आटा चक्की, अपना उत्पादन कम दाम व कम लाभ पर बेचती है. बड़े उद्योगपतियों की गुलाम मोदी सरकार को शायद यही बात अखर रही है. पांच प्रतिशत जीएसटी लगाने से कुटीर उद्योग बुरी तरह से प्रभावित होगा. वह अब बड़े ब्रांड से मुकाबला नहीं कर पाएंगे.
इससे महंगाई तो बढ़ना तय है कि क्योंकि जीएसटी लगने से रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली खाद्य वस्तुओं के भाव बढ़ेंगे ही बढ़ेंगे, कई एमएसएमई 5 प्रतिशत जीएसटी की वजह से बंद हो जाएंगे, जीएसटी की ऊंची टैक्स दरों के बाद बन्द होने का फायदा बड़ी कंपनियों को मिलेगा और यही मोदी सरकार चाहती हैं. साफ़ दिख रहा है कि असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ने जा रही है.
कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज़ (कैट) और अन्य खाद्यान्न संगठनों का मानना है कि –
देश के सभी बड़े ब्रांड की कंपनियां देश की आबादी का 15 प्रतिशत उच्चतम वर्ग, उच्च वर्ग एवं उच्च मध्य वर्ग के लोगों की ही जरूरतों की पूर्ति करता है जबकि सभी राज्यों में छोटे निर्माता जिनका अपना लोकल लेबल का नेटवर्क होता है, वे देश की 85 प्रतिशत आबादी की मांग को पूरा करते हैं. ऐसे में इन वस्तुओं के जीएसटी कर दायरे में आने से छोटे निर्माताओं व व्यापारियों पर टैक्स अनुपालन का बोझ बढ़ेगा. साथ ही दैनिक जरूरतों के सामान भी महंगे हो जाएंगे. कैट का कहना है कि यह भी खेद की बात है कि देश में किसी भी व्यापारी संगठन से इस बारे में कोई परामर्श नहीं किया गया है.
सरकार के द्वारा इस प्री-पैकेज्ड व प्री-लेबल शब्द के इस्तेमाल से लग रहा हैं कि किसान भी इस निर्णय से प्रभावित हो सकता है क्योंकि किसान भी अपनी फसल बोरे में पैक करके लाता है तो क्या उस पर भी जीएसटी लगेगा ?
भारत के इतिहास में 18 जुलाई एक काले दिन के रुप में याद किया जाएगा, जब आम गरीब आदमी के उपयोग में आने वाले नॉन ब्रांडेड उत्पादों जैसे आटा, चावल, दूध, दही जैसी वस्तुओं पर टैक्स लगाया जा रहा है. आजादी के बाद ऐसा पहली बार है, जब बिना ब्रांड वाले खाद्य पदार्थों को जीएसटी के तहत लाया जा रहा है.
लोग ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं कि मामला क्या है, दरअसल अभी तक खाद्यान्न में दो श्रेणियां थीं, ब्रांडेड और नॉन ब्रांडेड. पैकेट बंद ब्रांडेड खाद्यान्न जैसे आटा, मैदा, सूजी, दाल, चावल, गेहूं, पनीर, शहद आदि पर पांच फीसदी जीएसटी देय था. अब इस कड़ी में बदलाव हुआ है. अब नॉन ब्रांडेड पर भी जीएसटी लगेगा.
ब्रांडेड का अर्थ था कि जिस नाम का लेबल लगा है वह ट्रेडमार्क में रजिस्टर्ड है लेकिन अब रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है. यदि कोई खाद्यान्न पेकिंग में है और उस पर किसी भी तरह की पहचान का लेबल है तो उस पर सीधे पांच फीसदी जीएसटी देय होगा. अभी तक केवल पंजीकृत ब्रांडों पर ही 5% जीएसटी लगता था. अब सब पर जीएसटी लगेगा.
अब नियम में प्रयोग किए गए शब्द प्री-पैकेज्ड एवं लेबल्ड को लीगल मैट्रोलॉजी कानून की धारा दो के अनुसार माना जाएगा. इसमें प्री पैकेज्ड वह है जिसमें पैकेज सील्ड हो या अनसील्ड, दोनों ही प्री-पैकेज्ड माने जाएंगे, यदि वह निर्धारित मात्रा में पैक किए गए हों.
यहां लेबल्ड का अर्थ है किसी पैकेज पर लिखित, अंकित, स्टांप, प्रिंटेड या ग्राफिक मार्का लगा हो. खास बात यह है कि जीएसटी परिषद की घोषणा में पैकिंग के साथ रिटेल शब्द जोड़ा गया था, जबकि हाल के नोटिफिकेशन में लीगल मैट्रोलॉजी नियमावली पर जोर दिया गया है. इसके नियम छह एवं 24 में रिटेल व होलसेल दोनों प्रकार के पैकेज पर लेबल लगाने (स्व घोषणा) की अनिवार्यता है.
व्यापारियों में यह भी भ्रांति फैली है कि केवल 25 किलोग्राम से कम की पैकिंग में खाद्य सामग्री के विक्रय पर ही जीएसटी लगेगा, परंतु जीएसटी अधिनियम के अंतर्गत जारी नोटिफिकेशन से यह स्पष्ट है की सभी प्रकार के पैकेज्ड एवं लेबल्ड खाद्य सामग्रियों पर 5 प्रतिशत की दर से जीएसटी 18 जुलाई 2022 से लागू हो गया है.
अधिसूचना में जिस शब्दावली का उपयोग किया है उसमें प्री-पैकेज्ड एवं लेबल्ड शब्द ही दिए गए हैं, ऐसे में इंडस्ट्रियल व इंस्टिट्यूशनल सप्लाय को छोड़कर अन्य सभी ग्राहकों को किसी भी वजन की पैकिंग में बेचे गए प्री-पैकेज्ड एवं लेबल्ड फूड ग्रेन्स पर अब 5% की दर से जीएसटी लागू होगा. यानी, कोई भी खाद्य उत्पाद जो किसी भी फूड प्रोसेसिंग यूनिट, फैक्ट्री, फ्लोर मिल में प्रोसेस हुआ हो उस पर जीएसटी देय होगा.
खुले रूप में बिकने वाले पनीर, शहद, दही, लस्सी, बटर मिल्क, सूखे दाल-दलहन, सूखी अदरक, केसर, सूखी हल्दी, अजवाइन, कड़ीपत्ता व अन्य मसाले, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी व सभी प्रकार के अनाज, राई, जौ, चावल, जई (ओटस), कुटू, मिलेट, केनरी बीज, धान्य आटा, मक्का आटा, राई आटा, सूजी, दलिया, आलू का आटा, सभी प्रकार का गुड़, फूला हुआ चावल अब जीएसटी के दायरे में आ गए हैं. इससे महंगाई और भी बढ़ना तय है 18 जुलाई का आज का दिन एक काला दिन है.
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