गिरीश मालवीय
सदियों पहले गिरिधर कविराय कह गए हैं – बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय. काम बिगारै आपनो, जग में होत हंसाय. अब पता चला है कि कोरोना वैक्सीन के बारे में भी बिना विचारे बहुत से काम हुए है जो आज लोगों की जान पर भारी पड़ रहे हैं.
कल ‘वायर’ ने स्वास्थ्य मामलों से जुड़ी पत्रकार बंजोत कौर की एक रिपोर्ट पब्लिश की है, जो बताती हैं कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के लिए किए गए क्लिनिकल ट्रायल के तीन चरणों में कई तरह की अनियमितताएं हुईं है.
कृष्ण मोहन, जो भारत बायोटेक के निदेशकों में से एक हैं, उन्होंने बताया कि स्वदेशी टीका विकसित करने के लिए ‘राजनीतिक दबाव’ के कारण उन्हें कुछ प्रक्रियाओं को छोड़ना पड़ा. परीक्षण प्रक्रिया में उनके संशोधन नियामक द्वारा ‘पुनरीक्षण’ किए गए थे और कि टीके के क्लिनिकल परीक्षण ‘गति’ द्वारा निर्धारित किए गए थे.
इस रिपोर्ट का अर्थ यही निकाला जा सकता है कि स्वदेशी वैक्सीन बनाने की इतनी जल्दी मचाई गई कि भारत की तत्कालीन और वर्तमान मोदी सरकार ने पूरी ट्रायल प्रक्रिया को ताक पर रख दिया जबकि इस तरह के टीकों के ट्रायल बरसों चलते हैं और पूरी प्रभावकारिता टेस्ट किए जाने पर ही एप्रूव किए जाते हैं.
लेकिन नही ! यहां तो मोदी जी को स्वदेशी वैक्सीन बनाने का श्रेय लूटना था इसलिए वैक्सीन कितनी खतरनाक साबित हो सकती हैं, ये जाने बिना आपको हमको प्रयोगशाला के चूहे यानी गिनी पिग समझ कर वैक्सीन ठोके गए, जिसका नतीजा हम देख ही रहे हैं.
जैसा कि आप जानते ही हैं भारत में दो वैक्सीन को मान्यता दी गई थी और यही देश की 99 प्रतिशत आबादी को लगाई गई कोवीशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर बनाया था. इसे भारत में पुणे के अदार पूनावाला की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) वहीं, कोवैक्सिन स्वदेशी वैक्सीन को भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर बनाया था.
आपको यह भी याद होगा है कि दोनों वैक्सीन निर्माता कंपनियां ट्रायल डेटा पर आपस में झगड़ पड़ी थी. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के CEO अदार पूनावाला ने फाइजर, मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोवीशील्ड के अलावा बाकी सभी वैक्सीन को पानी की तरह बताया, तो उसके जवाब में भारत बायोटेक के MD कृष्णा एल्ला ने कहा कि एस्ट्राजेनेका ने ट्रायल के दौरान वॉलंटियर्स को वैक्सीन के साथ पैरासिटामॉल दी थी, ताकि वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स (adverse reaction) को दबाया जा सके. यानी दोनों के ही ट्रायल में कई अनियमितताएं थी.
बनजोत जी की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत बायोटेक कंपनी ने चरण 2 परीक्षणों के परिणामों के बिना चरण 3 परीक्षणों को शुरू कर दिया था. भारत बायोटेक के मोहन ने एसटीएटी में स्वीकार किया कि कंपनी ने अकेले जानवरों के अध्ययन के आधार पर तीसरे चरण का परीक्षण शुरू किया था. मोहन ने एसटीएटी को यह भी बताया कि कंपनी ने ‘नियामकों से बार-बार पुशबैक’ के बाद ये फैसले किए थे.
इसके अलावा प्लेसिबो इफेक्ट जो कि किसी भी टीके के ट्रायल में बहुत महत्त्वपूर्ण और निर्णायक प्रोसेस माना जाता है, उसे भी कोवेक्सिन ट्रायल प्रक्रिया में इग्नोर किया गया ( रिपोर्ट में विस्तार से लिखा है, लिंक पर क्लिक कर पढ़ें).
इसके अलावा 2020 के अंत में भोपाल के एक अस्पताल में, जो उन साइटों में से एक था जहां कोवेक्सीन के चरण 3 का परीक्षण किया गया था, Covaxin प्राप्त करने के बाद एक परीक्षण प्रतिभागी की कथित तौर पर मृत्यु हो गई. सरकार ने एक जांच की और बाद में आरोपों को खारिज कर दिया लेकिन इसके निष्कर्षों को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.
इन्ही सब कारणों को देखते हुए WHO ने कोविक्सिन को लंबे समय तक मंजूरी नहीं दी जबकि अन्य देशों की बनाई गई वैक्सीन को उन्होंने तुरंत मंजूरी दे दी थी. यानी मोदी सरकार की इस तथाकथित उपलब्धि की ‘जग में होत हंसाय’ हो चुकी है.
जब 2020 में भारत में वेक्सिन को लेकर जल्दबाजी मचाई जा रही थी, तब ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया वीजी सोमानी ने कहा था कि ‘हम किसी भी ऐसी वैक्सीन को मंजूरी नहीं देंगे जिसकी सुरक्षा को लेकर थोड़ी भी चिंता होगी.’ लेकिन 2022 में हम जान रहे हैं कि ये सब सिर्फ ऊपर-ऊपर कहने की बातें थी और अब हम गिनी पिग बन चुके हैं और हमारे साथ क्या क्या हो रहा है ये बताने की जरूरत नहीं है !
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