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मोदी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान से खिलवाड़ को चौकीदारी बता रहे हैं

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मोदी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान से खिलवाड़ को चौकीदार बता रहे हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मैं भी चौकीदार वाला’ जो नया अभियान चलाया है, उसे न तो मजाक समझा जाना चाहिए और न एक जुमला क्योंकि ऐसी समझदारी उसमें अंतर्निहित खतरे को अनदेखा कर देती है. नरेंद्र मोदी की देखा-देखी उनके अनेक मंत्री भी अपने को ‘चौकीदार’ करार देने लगे हैं. यह अलग बात है कि उनके कर्मों-कुकर्मों से हमारे देश की सभ्यता-संस्कृति का कई बार अपमान हुआ है. इसलिए इस अभियान की वास्तविक मंशा और उसमें निहित खतरे को समझना जरूरी है.

सवाल है कि मोदी और भारतीय जनता पार्टी को ‘मैं भी चौकीदार हूं’ अभियान चलाने की आखिर वजह क्या है और इस अभियान के जरिये वे किसे निशाना बना रहे हैं या किसकी मंशा रखते हैं ? यह जानने के लिए इस ताजा अभियान के अलावा उनके हालिया बयानों को परखना होगा.

नरेंद्र मोदी के ‘मैं भी चौकीदार हूं’ अभियान के पीछे जो पहला और स्पष्ट कारण नजर आता है वह है कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा चलाये गये ‘चौकीदार चोर’ अभियान की धार को कुंद करना. मोदी और भाजपा की आंखों से यह तथ्य ओझल नहीं था कि राहुल का यह अभियान विकास के उनके तमाम दावों को खोखला और झूठा साबित करने में कामयाब हो सकता है. अन्यथा नहीं कि प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के बदले ‘मैं भी चौकीदार हूं’ अभियान के जरिये लोकसभा चुनावों में उतरने का फैसला किया है. नरेंद्र मोदी के ‘मैं भी चौकीदार हूं’ वाले ट्वीट के साथ तीन मिनट 45 सेकेण्ड का एक म्यूजिक विडियो भी है, जिसमें वह यह कहते दिखाई देते हैं कि निश्चिन्त रहें आपका चौकीदार सावधान है.




प्रधानमंत्री के इस अभियान को तो केवल वही सच समझ सकता है जो पिछले साल-दो साल में सुर्खियां बनी घटनाओं से अनजान हो या इनकी वाकपटुता के प्रति पूरी तरह अनुरक्त हो. आखिर एक पूरी तरह मुस्तैद चौकीदार पुलवामा में हुए अब तक के सबसे भयानक आतंकवादी घटना को कैसे नहीं रोक सका, जबकि कश्मीर में सुरक्षाबलों की जबरदस्त तैनाती है. फिर पूर्ण रूप से मुस्तैद चौकीदार ने नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल भाई को देश से हजारों करोड़ रूपये लेकर कैसे भागने दिया ?

प्रधानमंत्री मोदी ने चौकीदार की जो नई परिभाषा गढ़ी है, उसके अनुसार अब केवल रखवाली करना ही चौकीदार का काम नहीं है बल्कि अब उसमें भ्रष्टाचार, गंदगी और सामाजिक बुराईयों के साथ लड़ने की जिम्मेदारी भी शामिल हो गई है. इस तर्क से तो प्रशांत भूषण, अरूण शौरी, यशवंत सिन्हा को भी चौकीदार कहा जाना उचित होगा, क्योंकि आखिरकार वे भी तो विवादित राफेल सौदे में बड़ी अनियमितताएं और भ्रष्टाचार को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं. फिर उन पत्रकारों और आरटीआई कार्यकर्ताओं के बारे में क्या कहा जाए, जिन्हें पिछले पांच वर्षों के दौरान शीर्ष पदों पर होने वाले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के एवज में अपनी जान गंवानी पड़ी. क्या मोदी उन्हंें भी चौकीदार मानने को तैयार हैं ? क्या सभी के लिए चौकीदारी का समान मानदंड है ? कतई नहीं. क्योंकि यदि मोदी और उनके समर्थक भ्रष्टाचार, गंदगी के खिलाफ लड़ाई लड़े तो वहचौकीदार है लेकिन यही काम कोई दूसरा करे तो गद्दारी है. यह समझदारी हास्यास्पद और बिडम्बनात्मक है.

क्या मोदी की नजर में स्वामी सदानंद जी भी चौकीदार थे, जो गंगा की सफाई के प्रति सरकार की उदासीनता के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान दे दी ? स्वामी अग्निवेश, पनसारे, दाभोलकर, कलबुर्गी, गौरी लंकेश आदि को भी वे चौकीदार मानेंगे, जिन्हें सामाजिक बुराईयों के खिलाफ लड़ने के एवज में अपमानित किया गया और जान भी गंवानी पड़ी. ‘मैं भी चौकीदार हूं’ वाले विडियों में एक गाना बजता है जिसके बोल हैं-ये देश ये मेरा वतन, ये मेरा घर ये मेरा चमन, सबका विकास चाहता और चाहता हूं बस अमन. क्या यह गीत गाने का अधिकार उन लोगों को मिलना चाहिए, जिन्होंने पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले कश्मीरियों पर हमले किये और अपने होटलों तथा रेस्तरों के बाहर तख्ती लगा दी कि कुत्तों को इजाजत है लेकिन कश्मीरियों को नहीं. ऐसे तमाम लोग मोदी के ही समर्थक थे.




ऐसी चौकीदार किस काम की, जो अपने देश के लोगों को कुत्तों से गया गुजरा समझे. आज जो भी ‘मैं भी चौकीदार हूं’ का राग अलाप रहे हैं, उनमें अधिकात्तर वही हैं जो पुलवामा का बदला आम कश्मीरियों से लेने के पैरोकार थे. जबकि महंगाई से जनता त्रस्त है, भुखमरी से लाचार है, किसानों की आत्महत्या की रफ्तार थम नहीं रही, महिलाएं, अल्पसंख्यकों और दलितों के खिलाफ अत्याचार रोज-रोज बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे में आपकी चौकीदार किस काम की ?

यह मोदी की आत्ममुग्धता की परकाष्ठा है कि वह केवल स्वयं को ही सच्चा, ईमानदार और देशभक्त समझते हैं और जो उनकी हां में हां न मिलाए या सवाल करें वह गद्दार हो जाता है. दरअसल, मोदी ने असली चौकीदारों की जिंदगी देखी ही नहीं है. उन्हें समझना चाहिए कि उनके बच्चे आज भी स्कूल नहीं जा पाते. उनके तन पर न ठीक से कपड़ा नहीं होता है और न कोई सुविधा. महीने भर 12 घंटे की ड्यूटी करने के बावजूद उन्हें भरपेट खाना तक नसीब नहीं होता. अगर आपको या आपके समर्थकों को चौकीदार बनने का इतना ही शौक है तो ज्यादा नहीं केवल एक सप्ताह तक उनकी स्थिति में रह कर देखिये. आटा-दाल का भाव मालूम हो जायेगा.

भाजपा समर्थकों से पूछा जाना चाहिए कि क्या वह अपने बच्चों को चौकीदार बनायेगें ? मोदी ने ऐसी चौकीदारी की कि देश का 79% धन 1% की जेब में पहुंच गया. लघु-मंझोले उद्योगों के हिमायती बन कर उन्होंने दोनों को तबाह कर दिया. चौकीदार बन कर मोदी ने लाखों नौकरियां खत्म कर दी. अभी हाल में उन्होंने पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के 41 हजार करोड़ रूपये एनपीए में डाल दिये. अब आप भी बताइये कि आपको चौकीदार कैसे कहा जाए ? देश तब आगे बढ़ता है जब प्रधानमंत्री अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों का ईमानदारी से वाहन करता है लेकिन दुर्भाग्य कि मोदी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान से खिलवाड़ को चौकीदार बता रहे हैं.

  • कुमार नरेन्द्र सिंह




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क्या 2019 चुनाव का मुद्दा बेरोजगारी होगा ?
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अब भी आप चाहते हो कि ऐसा तानाशाह ही दुबारा चुन कर आए !
मोदी की ‘विनम्रता’ ! 




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