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तिरंगा को आतंक बना कर गद्दार सावरकर को स्थापित करने का कुचक्र रचा मोदी ने

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अंग्रेजों के हाथों अपनी जमीर बेच चुके आरएसएस ने देश के साथ गद्दारी करते हुए सैकड़ों क्रांतिकारियों को मौत और जेलों तक पहुंचाया, इसके बाद भी जब देश ने किसी तरह आजादी हासिल की तो सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में गांधी की हत्या की और फिर सैन्य विद्रोह प्रायोजित कर सत्ता पर काबिज होने का प्रयास किया. असफल होने पर उसने वह तमाम काम किया जिसके सहारे वह सत्ता तक आ सकताथा.

इस कोशिश में उसने देश के उन तमाम लोकप्रिय नारों, प्रतीकों को आतंक का पर्याय बना दिया. सदियों से लोकप्रिय प्रतीक गाय, गोबर, गोमूत्र की लकीरों को इस कदर पीटा की वह आतंक का पर्याय बन गया और उसने सैकड़ों लोगों को पीट-पीटकर मार डाला. और देश को गोमांस के निर्यात में नम्बर वन बना दिया और हजारों करोड़ का विशाल कारोबार खड़ा कर लिया. अब जब आतंक का पर्याय बना चुकी गाय, गोबर, गोमूत्र पर गोमांस के निर्यात कर हजारों करोड़ की बिजनेस खड़ा कर लेने के आरएसएस की सच्चाई लोगों के सामने जाहिर हो गया और लोगों ने पूरी सख्ती से नकार दिया तब उसने नये नारों को ढूंढ़ा.

‘भारत माता की जय’, ‘बंदे मातरम्’ ‘जय हिन्द’, ‘जर भारत’, ‘जन गण मन’ आदि जैसों लोकप्रिय नारों की आड़ में लोगों के बीच आतंक फैलाने लगा और ‘देश में रहना है तो फलां फलां कहना होगा’ कहकर आरएसएस के गुंडों ने लोगों की हत्या करना, मारपीट करना, आतंकित करना, अपमानित करने का कारोबार शुरु कर दिया और इसके आड़ में हजारों-लाखों करोड़ की अवैध कमाई शुरू कर दिया. धीरे-धीरे लोगों ने इस नारों पर भी संघी गुंडों को किनारे लगा दिया. विदित हो कि ये वे तमाम नारे आजादी के लड़ाई के दौरान लोगों में साहस और ऊर्जा का संचार करता था, जिसे संघियों ने आतंक का पर्याय बना दिया.

संघियों के आतंक के मोहर बने ये नारों के भी पीट जाने पर संघियों ने इस वर्ष भारत की आजादी के सबसे लोकप्रिय प्रतीक तिरंगा झंडा को चुना और लोगों को आतंक से भर दिया. यह ऐतिहासिक तथ्य है कि तिरंगा झंडा को संघियों ने कभी नहीं अपनाया और खुलेआम इसे मनहूस कहते हुए अपने पैरों तले रौंदा, सड़कों पर जलाया. लेकिन संघियों के गलत नीतियों का प्रतिकार करने के लिए विगत वर्षों में लोगों ने एक बार फिर तिरंगा को जब अपना हथियार बनाया तब संघियों ने इस प्रतीक को आतंक का पर्याय बनाने के लिए ‘हर घर तिरंगा’ जैसा नारा गढ़कर लोगों को मौत के मूंह में धकेल दिया, जिसकी कुछ खबरें उपर के संकवन में आप देख चुके हैं.

इतना ही नहीं ‘हर घर तिरंगा’ नारा का इस्तेमाल कर 20 करोड़ घरों पर झंडा लगाने और प्रति झंडा 25 रुपये का चार्ज करते हुए झटके में 500 करोड़ का बिजनेस खड़ा कर लिया, जिससे की आगामी गुजरात चुनाव में मदद मिल सके ताकि 500 करोड़ का यह बिजनेस गुजरात के ही नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाऊन से मंद पर चुके कपड़ा उद्योगों को काम दिया जा सके और चुनाव में वोटों के लिए अपने काम गिना सके.

तिरंगा झंडा, जो आजादी की लड़ाई के दौरान और उसके बाद भी भारतीयों के स हस, शौर्य, गौरव का प्रतीक है, उसे आतंकी बनाने के लिए संघियों ने ‘तिरंगा नहीं खरीदा तो रोटी नहीं’ से जोड़ कर लोगों को आतंकित कर दिया. इससे तिरंगे की प्रतिष्ठा तो नहीं घटी लेकिन संघियों की नैतिकता पर सवाल जरूर उठ गया क्योंकि उसके साथ ही लाल किले से संघी ऐजेंट नरेंद्र मोदी ने नेहरु को गायब करते हुए गद्दार सावरकर को स्थापित करने का कुप्रयास किया, जिस कारण देश में तनाव का माहौल बन गया और कुछ लोग घायल भी हो गये.

यहां यह महत्वपूर्ण तथ्य को भी ध्यान में रखना होगा कि खुद संघी ऐजेंट मोदी जब नेहरू के विशाल फलक को विस्थापित करते बौना और गद्दार सावरकर को स्थापित कर रहा था, तब शर्म से इस निर्लज्ज मोदी की भी आंखें शर्म से झुक गई थी क्योंकि यह संघी ऐजेंट मोदी जानता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के विशाल फलक के सामने गद्दार सावरकर कहीं टिकता भी नहीं है.

गाय, गोबर, गोमूत्र से आगे बढ़ते हुए संघियों ने लोकप्रिय नारों और प्रतीकों को हथियार बनाकर जिस तरह अपने प्रतिक्रियावादी नारों और देश के गद्दारों – सावरकर, मुखर्जी, दीनदयाल आदि जैसों – को स्थापित करने का प्रयास किया है, निश्चय ही देश की जनता विफल कर देगी क्योंकि अनेकों राष्ट्रियताओं की एकता की नीतियों के विरुद्ध चल रहा संघी शासक हर बार की तरह इस बार भी नकार दिये जायेंगे क्योंकि संघियों के तमाम कोशिशों के बाद भी जनता की मूल समस्या – रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य – को हल करने की जगह बढ़ा ही रही है, वरना ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के तहत हाथ में तिरंगा लिए अपने लिए तिरंगा लगाने के लिए घर मांगने नहीं पहुंच जाते लोग.

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