भारत की तथाकथित 1947 की आजादी के दो वर्ष बाद 1949 में चीन ने अपनी आजादी पाई और माओ-त्से तुंग की अगुवाई में सर्वहारा अधिनायकत्व की शक्तिशाली हथियार के बल पर समाजवादी सत्ता स्थापित की. तब से अब तक चीन ने तमाम क्षेत्रों में लंबी डग भरी है, वाबजूद इसके की 1976 में सर्वहारा के महान शिक्षक माओ-त्से तुंग की मृत्यु के बाद ही चीन ने पूंजीवादी रास्ता अपना लिया था.
चीन 1949 से लेकर 1976 तक समाजवादी व्यवस्था के तहत विकसित होता रहा, जिसका परिणाम यह रहा कि चीन जल्दी ही दुनिया के ताकतवर देश में शुमार हो गया. आज जब चीन पूंजीवादी व्यवस्था को अपना लिया है, तब भी उसका समाजवादी हिस्सा बुनियादी जनता के बीच बरकरार है, फलतः चीन सामाजिक साम्राज्यवाद का स्वरूप ग्रहण कर लिया है, जो एक समय (1956 के बाद) सोवियत संघ ने ग्रहण किया था.
हिटलर के फासीवाद से भारत के फासीवादी ताकतों ने सबक सीखा है. वह हिटलर की तरह आत्महत्या नहीं करना चाहता, ठीक उसी तरह सोवियत संघ के विघटन को देख चुकी चीनी सामाजिक साम्राज्यवादी भी सबक सीखा है. वह भी सोवियत संघ की तरह ढहना नहीं चाहता है. आज जब दुनिया कोरोना वायरस की आतंक से तले कराह रहा है, तब चीनी सामाजिक साम्राज्यवाद दुनिया में अपनी तकनीकी ताकत का लोहा मनवा रहा है.
उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा एवं जनवादी किसान सभा ने प्रश्नोत्तरी के शक्ल में साम्राज्यवादी चीन को अलग करते हुए समाजवादी चीन की तकनीकी श्रेष्ठता को शानदार तरीके से लोगों के सामने रखा है, जो सोशल मीडिया पर वायरल होते हुए बेहतरीन बहसों को उठाया है. आइये, हम भी इसे जानते हैं.
बांयें : सर्वहारा के महान शिक्षक और चीन के महान नेता माओ-त्से तुंग
दांये : पूंजीवादी राह के राही गद्दार तेंग श्याओपिंग के उत्तराधिकारी और चीन के वर्तमान शासक शी जिनपिंग
प्रश्न- क्या चीन कोरोना वाइरस की ताकत से सुपर पावर बनना चाहता है ?
उत्तर- सच्चाई यह है कि कोरोना नहीं समाजवाद की ताकत से अपने विराट औद्योगीकरण के बल पर चीन बहुत पहले ही सुपर पावर बन चुका है, मगर वो सुपर पावर होने की शेखी नहीं बघारता. सन् 2011 में ही औद्योगिक उत्पादन में अमेरिका को पछाड़कर चीन नं0-1 पर आ गया था.
सन् 2014 में परचेजिंग पावर पैरिटी के अनुसार जीडीपी के मामले में अमेरिका को चीन ने पीछे छोड़ दिया था. जहांं अमेरिका की जीडीपी 17.4 ट्रिलियन डालर थी, वहीं चीन की जीडीपी 17.8 ट्रिलियन डालर हो चुकी थी. हालांंकि नॉमिनल जीडीपी के आधार पर आज भी अमेरिका टाप पर है, मगर अन्दर से इतना खोखला हो चुका है कि सन् 2016 में अमेरिकी चुनाव में ट्रम्प की पार्टी का नारा था ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’. इसी से सिद्ध हो जाता है कि अमेरिका ग्रेट नहीं रह गया है, वह फिर से ग्रेट बनना चाहता है. दरअसल चीन ने उसे काफी पीछे छोड़ दिया है.
प्रश्न- क्या यह आरोप सही है कि चीन कोरोना वाइरस नामक जैविक हथियार बनाकर सारे पूंंजीवादी देशों के बाजार पर कब्जा करना चाहता है ?
उत्तर- सच्चाई यह है कि जैविक हथियार से नहीं अपने मालों के सस्ते दाम के बल पर दुनिया के 80 प्रतिशत बाजार पर चीन बहुत पहले से ही छा गया है तो अब उसे जैविक हथियार बनाने की क्या जरूरत ?
प्रश्न- क्या चीन कोरोना वाइरस फैलाकर दुनिया के दूसरे देशों की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त करना चाहता है ?
उत्तर- ‘वन बेल्ट वन रोड’ नाम की विश्व की सबसे बड़ी परियोजना के जरिये सैकड़ों देशों की अर्थ-व्यवस्था को चीन ने खुद मजबूत किया है. अगर किसी देश की अर्थ-व्यवस्था को पंगु बनाना होता तो वह ऐसा न करता.
आज चीन अगर अपनी मुद्रा का रेट सिर्फ 5 प्रतिशत घटा दे तो अमेरिका समेत कई पूंंजीवादी देश दिवालिया हो जायेंगे. ऐसे में जैविक हथियार जैसा अमानवीय कृत्य करने की उसे जरूरत क्या है ? अगर चीन चाहे तो अमेरिका को दिया गया लगभग 2.5 ट्रिलियन डालर कर्ज वसूली कर ले तो भी अमेरिका दिवालिया हो जायेगा.
दरअसल पूंंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्थायें अपने भीतर के अन्तर्विरोधों के कारण डूब रही हैं और कोरोना संकट से पहले ही डूब चुकी थी. अब वे पूंंजीवादी अर्थ-व्यवस्था की कमियों को तथा अपनी सरकार की विफलताओं को कोरोना वाइरस की बीमारी के पीछे छिपा रहे हैं.
सच्चाई यह भी है कि अमेरिका समेत सारे पूंंजीवादी देश सन् 2008 से ही भयानक आर्थिक मंदी झेलते-झेलते खुद ही तबाह होते जा रहे हैं. उनके बैंक दिवालिया होते जा रहे हैं.
हमारे देश भारत की 56 इन्ची अर्थव्यवस्था, चौथी या पांंचवीं महाशक्ति होने का दावा करने वाली अर्थव्यवस्था बहुत पहले ही इतनी खोखली हो चुकी है कि दो हफ्ते का लाकडाउन झेल नहीं पायी और प्रधानमंत्री केयर नाम का कटोरा लेकर भीख मांंगने लगे. सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते-पेंशन में कटौती करने लगे. दिल्ली सरकार के सबसे योग्य मुख्यमंत्री दांंत चियार दिये हैं कि दो महीने बाद सरकारी कर्मचारियों को तनख्वाह देने के पैसे तक नहीं है.
अमेरिका जैसा सुपर पावर आज किसी भी दूसरे देश की मदद की कौन कहे खुद अपनी समस्याओं से नहीं निपट पा रहा है. ‘दो हफ्ते का लाकडाउन न झेल पाना’ यह बताता है कि पूंंजीवादी अर्थव्यवस्था बहुत पहले ही दिवालिया हो चुकी है.
हमारे देश भारत की पूंंजीवादी अर्थव्यवस्था कोरोना वाइरस को दो हफ्ते भी नहीं झेल पायी जबकि चीन कोरोना महामारी से उबर कर आज 100 से अधिक देशों की मदद बिना सूद, बिना मुनाफा, बिना शर्त कर रहा है.
प्रश्न- चीन कैसे दुनिया के सारे देशों की मदद कर रहा है ?
उत्तर- चीन यह सब सिर्फ समाजवादी अर्थव्यवस्था के बल पर कर रहा है. जबकि हमारे देश की तबाही पूंंजीवादी अर्थव्यवस्था के कारण हो रही है. अब समाजवादी अर्थव्यवस्था ही हमारे देश को तथा दुनिया को बचा सकती है.
प्रश्न- चीन के दूसरे शहरों में यह महामारी क्यों नहीं फैल पायी ?
उत्तर- इसका सबसे बड़ा कारण है कि चीन एक समाजवादी देश है. उसका सरकारी ढांचा मजबूत है. क्यूबा, वियतनाम, उत्तर कोरिया आदि देश जहांं समाजवादी व्यवस्था है और इस कारण वहांं राजकीय ढांंचा मजबूत है इसीलिये वे कोरोना महामारी को मजबूती से मात दे दिये जबकि जिन देशों में पूंंजीवादी अर्थव्यवस्था है, इसकारण वहांं निजी ढांंचा मजबूत है- निजी अस्पतालों-संस्थाओं ने हाथ खडे़ कर लिये. परिणामस्वरूप पूंंजीवादी देश कोरोना महामारी के सामने लाचार दिख रहे हैं.
प्रश्न- अगर चीन ने कोरोना वाइरस नहीं फैलाया तो कोरोना वाइरस आया कहांं से ?
उत्तर- इटली में दो हफ्ते में 5 हजार से बढ़कर 50 हजार मरीज हो गये. स्पेन में दो हफ्ते में 5 हजार से बढ़कर 80 हजार मरीज हो गये जबकि अमेरिका में दो हफ्ते में 5 हजार से बढ़कर 2 लाख मरीज हो गये.
इतनी ‘चुस्त-दुरूस्त’ स्वास्थ्य व्यवस्था के बावजूद अमेरिका में इतनी तेजी से कोरोना वाइरस का प्रकोप फैलने का मतलब साफ है कि कोरोना वाइरस की बीमारी वहांं पहले से थी, उसे अमेरिका ने छिपाये रखा था. अब जब जांच हो रही है तो सारे आंंकडे़ खुल कर सामने आ रहे हैं.
आप वह वीडियो क्लिप देखिये जिसमें अमेरिकी संस्था C.D.C. के डायरेक्टर राबर्ट रेडफील्ड ने हाउस आफ रिप्रजेन्टेटिव के सामने- जो कहा था कि- ‘इन्फ्लूएन्जा से होने वाली मौतें जो हैं, उनमें अधिकांश मौतें कोरोना वाइरस से हुई हैं,’ यह बात सही है. इससे यह भी सिद्ध होता है कि कोरोना वाइरस का जन्मदाता चीन नहीं अमेरिका ही है.
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