5 अगस्त, 2020 को केन्द्र की संघी मोदी सरकार अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढ़ाहकर राम मंदिर बनाने जा रहा है. इसी के साथ यह एक सत्य स्थापित हो गया कि ब्राह्मणवादी हिन्दुओं ने अपने हजारों सालों के इतिहास में केवल विध्वंश किया है और अपने दुष्कृत्य को सही ठहराने के लिए इतिहास के साथ मनमानी छेड़छाड़ कर दूसरों के द्वारा बनाये गये इमारतों, प्रसिद्ध स्थलों और प्रसिद्धियों को हड़पने का कार्य किया है. खुद निर्माण करने की क्षमता नहीं है. ब्राह्मणवादियों द्वारा विरोधियों की प्रसिद्धियों को हड़पने के सिलसिला का इतिहास हजारों सालों का है, जिसका सबसे बेरहम शिकार भारत के मूलनिवासी, बौद्ध और अब मुसलमान बन रहे हैं.
कहा जाता है कि ब्राह्मणों ने बौद्धों के बौद्ध विहारों को नष्ट कर मंदिर बना दिया और गौतम बुद्ध की प्रतिमा को रंगरोगन कर विष्णु का रूप बना दिया. यहां तक कि विश्व प्रसिद्ध बौद्ध सम्राट अशोक के प्रसिद्ध कामों को विनष्ट करने का भरपूर प्रयास किया और उसे अपने दुश्प्रचार के साये में रंग कर बकायदा विलुप्त कर दिया. वह तो गनीमत था कि अंग्रेज विद्वानों की नजर जब उनके शिलालेखों पर पड़ी तब जाकर सम्राट अशोक और उनके कार्यों का विस्तृत विवेचना संसार के प्रकाश में आया.
ब्राह्मणवादियों ने शिक्षित हो रहे लोगों को अशिक्षित बनाने के लिए बौद्धों द्वारा बनाये गये विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों को नष्ट करवा दिया. ब्राह्मणवादियों द्वारा नष्ट कर दिये गये इस महान विश्वविद्यालय में नालंदा विश्वविद्यालय को नाम सबसे आगे हैं. इसके अतिरिक्त लाखों की तादाद में बौद्ध भिक्षुओं और बौद्ध विद्वानों की हत्या करवा दिया. यह ठीक उसी तर्ज पर किया गया जिसका नजारा आज हम संघियों द्वारा देश के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया आदि) को नष्ट होते अपनी नजरों के सामने देख रहे हैं, जेलों में तिलतिलकर मरते विद्वानों (वरवर राव, आनंद तेलटुंडले, गौतम नवलखा आदि) को देख रहे हैं तथा गोलियों से भून दिये गये गौरी लंकेश, पनसारे, कलबुर्गी आदि को भी देखे हैं.
नफरतों की आंधी पर सवार इन ब्राह्मणवादियों ने अपने पुराने तौर तरीके इस्तेमाल कर न केवल बाबरी मस्जिद जैसी ऐतिहासिक इमारत को खत्म कर उसकी जगह राम जैसे काल्पनिक पात्रों का मंदिर बनवाने जा रहा है, अपितु इससे पहले भी सैकड़ों की तादाद में मुसलमानों के मस्जिदों को तोड़कर मंदिर बनाने जैसा आपराधिक कुकृत्य किया है. इनके कुछ उदाहरण जफर सैफी अपने सोशल मीडिया पर लिखते हैं –
जब हम भारत के इतिहास के वो पन्ने पलटते है जब इस्लाम धर्म के उदय होने का शुरुआती दौर चल रहा था तो हम भारत के इतिहास में मुस्लिम बादशाहों द्वारा मंदिरों को तोड़ने और लूटने जैसी कहानियों से दो चार होते हैं. मोहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी और मोहम्मद गोरी के शासनकाल में मंदिरों को लूटने और तोड़ने के किस्से भरे पड़े हैं.
उसके बाद दिल्ली सल्तनत और मुग़ल साम्राज्य में भी हमें ऐसे ही किस्से कहानियांं पढ़ने को मिलती है. लेकिन किसी इतिहासकार ने कभी मुसलमानों के पूजा घरों को मंदिर में कन्वर्ट करने के बारे में कुछ नहीं लिखा. तो चलिए आज मैं आपको कुछ उन मस्जिदों के बारे में बताता हूं जिन्हें बहुसंख्यकों ने ताक़त के बल पर मंदिरों में कन्वर्ट किया है.
वैसे तो हरियाणा में बहुत सी मस्जिदें है, जो सालों से बंद पड़ी है, जिनमें मुसलमानों को नमाज़ अदा करने की इजाज़त नहीं है लेकिन यहां सबका ज़िक्र करना संभव नहीं है इसलिए कुछ महत्वपूर्ण मस्जिदों के बारे में वर्णन किया गया है.
1. जामा मस्जिद, फर्रुखनगर (हरियाणा)
गुरुग्राम जिले के फर्रुखनगर शहर की स्थापना मुगल गवर्नर फौजदार खान ने 1732 ई. में की थी. इसका नाम मुगल सम्राट फर्रुखसियर के नाम पर रखा गया था. शहर की स्थापना के तुरंत बाद फौजदार खान को फर्रुखनगर का नवाब घोषित किया गया था और शहर की सीमाओं के भीतर ढांचागत संरचनाएं शुरू हुई थी. इन संरचनाओं में से एक जामा मस्जिद थी.
यह शहर की प्रमुख मस्जिद थी जहां सभी मुस्लिम इकट्ठा होते थे और जुमे की नमाज अदा करते थे. इतिहासकार राणा सफ़वी लिखते हैं कि पाकिस्तान से शरणार्थियों के आने के बाद मस्जिद को मंदिर और गुरुद्वारे में बदल दिया गया. मस्जिद की मीनारों में से एक मीनार आज भी लंबी है, हालांकि एक खराब हालत में है.
2. खिलजी जामा मस्जिद, दौलताबाद (औरंगाबाद) महाराष्ट्र
अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी ने 14 वीं शताब्दी की शुरुआत में दौलताबाद के राजसी किले में एक विशाल मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया. यह आकार में इतना बड़ी थी कि कभी खिलजी वंश के विशाल साम्राज्य के दायरे में सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक थी. इसके निर्माण के बाद सदियों तक मस्जिद का उपयोग जारी रहा. वास्तव में कब, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन मस्जिद के मेहराब में एक मूर्ति स्थापित की गई थी. तत्पश्चात स्थानीय लोग वहांं पूजा करने लगे और भव्य मस्जिद को भारत माता मंदिर कहा जाने लगा.
3. दाना शिर मस्जिद, हिसार (हरियाणा)
एक समय हिसार एक बड़ी मुस्लिम आबादी का दावा करता था. यह शहर कई इस्लामी स्मारकों का घर है, जिनमें से कुछ फिरोज शाह तुगलक (1351 से 1388 ईस्वी) के शासन के दौरान बनी हैं. जैसा कि संतों की कब्रों के लिए प्रथा है, मस्जिदों को उनके कब्रों के बगल में खड़ा किया जाता है.
दाना शिर मस्जिद अलग नहीं है क्योंकि इसे दाना शिर बाहुल शाह की कब्र के बगल में बनाया गया था. विभाजन के ठीक बाद से मंदिर के रूप में उपयोग किए जाने के बावजूद इस मस्जिद की संरचना अभी भी एक मस्जिद की तरह दिखती है, जिसके तीन बड़े गुंबद क्षितिज पर हावी है.
4. जामा मस्जिद, सोनीपत (हरियाणा)
सोनीपत में सबसे प्रमुख पर्यटक स्थल इसके मुगल और पूर्व-मुगल युग के इस्लामिक स्मारक हैं, जिनमें ख्वाजा खिज्र की कब्र, एक पुराने किले के खंडहर और जामा मस्जिद शामिल हैं, जिसे अब दुर्गा मंदिर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इस तथ्य के बावजूद कि वर्तमान में इसे मंदिर के रूप में उपयोग किया जा रहा है, स्थानीय लोग अभी भी इसे बदी मस्जिद (बड़ी मस्जिद) के रूप में संदर्भित करते हैं.
संरचना के बाहरी हिस्से को शायद ही बदला गया है क्योंकि यह दो मीनारों द्वारा अभी भी वैसा ही दिखता है. हालांंकि, मस्जिद के अंदरूनी हिस्से में कई संशोधन हुए हैं, लेकिन मुख्य केंद्रीय गुंबद पर जटिल डिजाइन जो मस्जिद के अवशेषों के लिए प्रसिद्ध थे आज भी वैसे ही है. माना जाता है कि मस्जिद का निर्माण 19 वीं सदी के शुरुआती दौर में हुआ था.
अब यह कोई ढंकी-छुपी बात नहीं रह गई है कि पहले बौद्धों के विहारों को मंदिर में तब्दिल किया गया और अब झूठी आस्था का सहारा लेकर बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाया जा रहा है, जबकि यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि बाबरी मस्जिद का राम मंदिर से कोई लेना-देना नहीं था. बाबरी मस्जिद असल में बाबर की सेना के एक जनरल मीर बाकी ताशकंदी ने बनवाई थी जो ताशकंद का रहने वाला था और बाबर ने उसे अवध प्रांत का गवर्नर बना के भेजा था.
अयोध्या में राम मंदिर बनने के गहरे निहितार्थ यह भी है कि धीरे-धीरे ये कायर, नकारे और दूसरों की प्रसिद्धि को अपने सर पर ओढ़ लेने वाले झूठे ब्राह्मणवादी देश के अन्य प्रसिद्ध इमारतों पर अपना दावा जतायेगा और इस देश की सड़ांध ब्राह्मणवादी संघी सरकार उसे दान में दे देगा ताकि देश की जनता मनुवादियों के शोषण की अमानवीय चंगुल से कभी आजाद न हो सके. इस कार्य में सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था का सहारा लिया जा रहा है, जो इन दिनों सामंतवाद और ब्राह्मणवाद का सबसे मजबूत किला बनकर उभरा है.
पहले बौद्धों और अब मुसलमानों के ऐतिहासिक इमारतों को हथियाकर इस ब्राह्मणवादी ताकतों ने यह साबित कर दिया है कि ये ब्राह्मणवादी ताकतों के अंदर नये निर्माण की क्षमता बिल्कुल ही नहीं है और ये समाज के सबसे गलीज प्रतिक्रियावादी ताकतें हैं, जिसका मौजूदा वक्त में किसी को जरूरत नहीं है. इसे जितनी जल्दी हो ध्वस्त कर देना ही मौजूदा वक्त की जरूरत है और यही प्रगतिशीलता का पैमाना भी होगा.
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