‘जैसे हम कम्युनिस्ट पार्टियों की आलोचना करते हैं. अब सत्ता में नहीं हैं वो. कहीं नजर नहीं आते. एक केरल में कोने में बैठे हैं, फिर भी वो विचारधारा खतरनाक है.’ – श्री मोदी.
एक विशद लोकतान्त्रिक देश में, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुन कर आये, सत्ता शिखर पर विराजमान व्यक्ति द्वारा आज़ादी के बाद पहली बार कम्युनिस्टों और उनके सिद्धांतों के बारे में इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं तो यह स्वतः गंभीर विचार का विषय बन जाता है. यह उपर्युक्त कथन के वक्ता की नीयत और इरादों पर भी सवाल खड़े करता है.
हां ! हमारी विचारधारा खतरनाक है क्योंकि एकमात्र यही वह सिद्धांत है जिसके मानने वालों ने आपके द्वारा ओढ़े गए धर्म- संस्कृति और आस्था के चोगे को उघाड़ कर देश, दुनियां और जनता के सामने ला दिया कि आप सिर्फ और सिर्फ शोषक पूंजीवाद, जो आज कारपोरेट राज बन चुका है, उसके दुमछल्ले मात्र हैं. और अपने इस कुरूप पर पर्दा डालने को ही आपने यह धर्म-संप्रदाय-जाति का लबादा ओढा हुआ है.
जब तुम्हारे गिरोह ने बाबरी मस्जिद को ध्वंस कर संविधान और लोकतन्त्र की नींवों को खोखला किया तो हमने ही आगे बढ़ कर बताया था कि देश अब एक फासीवादी निजाम की ओर बढ़ेगा, और वही हुआ भी.
और यह दृष्टि हमें किसी अन्य से नहीं, विश्व के मेहनतकशों के मसीहा और समाजवाद के स्वप्न को हकीकत में ढालने वाले महा मनीषी कार्ल मार्क्स से मिली है. पर आज हम तुम पर नहीं, महान मार्क्स और उनके दर्शन और कृतित्व पर चर्चा करेंगे.
5 मई 1818 को जन्मे कार्ल हेनरिक मार्क्स विश्व की वो महान शख्शियत हैं जिनके अनुयायी आज भी सर्वाधिक हैं. उन्होंने अपने मित्र और सहयोगी फ़्रेडरिक एंगेल्स के साथ मिल कर साम्यवाद की विजय के लिये, सर्वहारा के वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत की विजय के लिये; सर्वहारा वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत तथा कार्यनीति की रचना की थी.
यह दोनों ही व्यक्ति इतिहास में विश्व के मेहनतकश वर्ग के विलक्षण शिक्षकों, उनके हितों के महान पक्षधरों, मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी आंदोलन के सिद्धांतकारों और संगठनकर्ताओं के रूप में सदैव अमर रहेंगे.
वे मार्क्स ही हैं जिन्होंने विश्व को सही ढंग से समझने तथा उसे बदलने के लिये मानव जाति और उसके सबसे ज्यादा क्रांतिकारी वर्ग, सर्वहारा वर्ग को एक महान अस्त्र का काम करने वाले अत्यंत विकसित एवं वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से लैस किया था, जिसका नामकरण बाद में उन्हीं के नाम पर- मार्क्सवाद किया गया.
उसके बाद महान लेनिन ने उसे अपनी सामयिक परिस्थितियों के अनुकूल व्याख्यायित और विकसित कर अपनी पार्टी-बोल्शेविक पार्टी के माध्यम से सर्वहारा के स्वप्नों को अमलीभूत करने वाले राज्य – सोवियत संघ की स्थापना कर इस सिद्धांत को नयी मंजिल प्रदान की.
तदुपरान्त यह सिद्धांत मार्क्सवाद-लेनिनवाद कहलाया. मार्क्स ने ही समाजवाद को काल्पनिकता से निकाल कर वैज्ञानिक रूप प्रदान किया तथा पूंजीवाद के अवश्यंभावी पतन व साम्यवाद की विजय के लिये एक विशद एवं सर्वांगीण सैध्दांतिक विश्लेषण प्रस्तुत किया.
उन्होने ही अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन तथा मजदूर वर्ग की प्रारंभिक क्रांतिकारी पार्टियों के गठन हेतु मार्गदर्शन प्रदान किया था. इन पार्टियों ने वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को स्वीकार किया.
उन्होने ही पूंजीवाद को नेस्तनाबूद करने और समाजवादी ढंग पर समाज के क्रांतिकारी रूपान्तरण के लिये पूंजीवादी उत्पीड़न के विरुद्ध उठने वाले मजदूरों के स्वतःस्फूर्त आंदोलनों को सचेत वर्ग- संघर्ष का रूप बताया.
मार्क्स प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सामाजिक विकास का नियंत्रण करने वाले नियमों की खोज के बल पर मानव कल्याण और प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति के सर्वांगीण विकास तथा सामाजिक उत्पीड़न को समाप्त करके सम्मानजनक जीवन- पद्धति के अनुरूप आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करने के लिये मेहनतकशों को सही रास्ता और उपाय समझाया था.
मार्क्स के पहले के सामाजिक सिद्धांत नियमतः धनिक वर्ग का पक्ष- पोषण करते थे. उनसे गरीबों की बेहतरी की कोई आशा नहीं की जा सकती थी. वर्गीय समाज के संपूर्ण इतिहास में शासक और शोषक वर्ग शिक्षा, वैज्ञानिक उपलब्धियों, कलाओं और राजनीति पर एकाधिकार जमाये हुये थे, जबकि मेहनतकश लोगों को सिर्फ अपने मालिकों के फायदे के लिये मेहनत करते हुये अपना पसीना बहाना पड़ता था.
यद्यपि समय-समय पर दलितों के प्रवक्ताओं ने अपने सामाजिक विचारों को परिभाषित किया था, पर वे विचार वैज्ञानिक नहीं थे. उनमें अधिक से अधिक चमक मात्र थी, पर समग्र रूप से ऐतिहासिक विकास के नियमों की समझदारी का उनमें अभाव था. वे स्वाभाविक विरोध और स्वतःस्फूर्त आंदोलन की एक अभिव्यक्ति ही कहे जा सकते थे.
इसी दौर में आगे बढ़ रहे अनेक मुक्ति आंदोलनों को वैज्ञानिक विचारधारा की नितांत आवश्यकता थी, जिसकी भौतिक और सैद्धांतिक पूर्व शर्तें कालक्रम से परिपक्व हो चुकी थी.
औद्योगिक क्रान्ति के दौरान उत्पादक शक्तियों के तीव्र गति से होने वाले विकास ने मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण की समाप्ति और मजदूर वर्ग की मुक्ति के ऐतिहासिक कार्य के प्रतिपादन के लिये वास्तविक आधार तैयार कर दिया था. पूंजीवाद के विकास के साथ ही एक ऐसी सक्षम सामाजिक शक्ति का उदय होगया था जो इस कार्य को पूरा कर सकती थी. उस शक्ति का नाम था- मजदूर वर्ग.
मजदूर वर्ग के हितों की वैज्ञानिक अभिव्यक्ति के रूप में मार्क्सवाद सर्वहारा के वर्ग संघर्ष के साथ निखरा और विकसित हुआ. पूंजीवाद के आंतरिक अंतर्विरोधों के प्रकाश में आने से यह निष्कर्ष सामने आया कि पूंजीवादी समाज का विध्वंस अवश्यंभावी है. साथ ही मजदूर वर्ग के आंदोलन के विकास से यह तथ्य उजागर हुआ कि सर्वहारा ही आगे चल कर अपने अन्य सहयोगियों को साथ लेकर पूंजीवादी पद्धति की कब्र खोदेगा तथा नए समाजवादी समाज का निर्माण करेगा.
इस सम्बन्ध में लेनिन ने एक बहुत ही सुस्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत की. उन्होने लिखा, ‘एकमात्र, मार्क्स के दार्शनिक भौतिकवाद ने ही सर्वहारा को ऐसी आध्यात्मिक गुलामी से निकालने का रास्ता सुझाया, जिसमें संपूर्ण दलित वर्ग अभी तक पीसे जा रहे थे. एकमात्र, मार्क्स के आर्थिक सिद्धांत ने ही पूंजीवादी व्यवस्था के दौरान सर्वहारा वर्ग की सही नीति की व्याख्या की थी.’
सामाजिक संबंधों के विकास संबंधी विशद विश्लेषण से मार्क्स और एंगेल्स की यह समझदारी पक्की हुई कि इन संबंधों में क्रान्तिकारी परिवर्तन करने, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त करने और समाजवादी समाज के निर्माण के लिये एक सक्षम शक्ति के रूप में सर्वहारा को महान ऐतिहासिक भूमिका निभानी होगी. सर्वहारा वर्ग की वर्तमान स्थिति से ही उसकी युग परिवर्तनकारी भूमिका निःस्रत होगी.
पूंजीवादी शोषण के जुए से समस्त मेहनतकशों को मुक्त कराये बिना वह खुद भी मुक्त नहीं हो सकता. मार्क्स ने इस काम को सर्वहारा के वर्ग-संघर्ष का उच्च मानवीय उद्देश्य माना था, जिसका लक्ष्य मेहनतकश इंसान को पूंजीवादी समाज की अमानवीय स्थिति से मुक्ति दिलाना था.
मार्क्सवाद हमें यह भी सिखाता है कि विशुद्ध वैज्ञानिक क्रान्तिकारी सिद्धांत और क्रांतिकारी व्यवहार की एकता कम्युनिज़्म की मुख्यधारा है. क्रान्तिकारी व्यवहार के बिना, और मार्क्सवादी विचारधारा को जीवन में अपनाए वगैर, यह सिद्धान्त महज ऊपरी लफ्फाजी तथा सुधारवाद व अवसरवाद के लिये एक आवरण मात्र बन कर रह जाता है. विज्ञान और सामाजिक विकास के बारे में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण के बिना क्रान्तिकारी कार्यवाही का पतन दुस्साहसवाद के रूप में हो जाता है, जो अराजकता की ओर ले जाता है.
मजदूर वर्ग के हितों का वाहक कौन बनेगा, इस पर भी मार्क्स का सुस्पष्ट दृष्टिकोण है. अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग के आंदोलनों के संपूर्ण इतिहास, विश्व की क्रांतिकारी प्रक्रिया तथा विभिन्न देशों में होने वाले क्रान्तिकारी संघर्षों के उतार-चढ़ाव ने अकाट्य रूप से यह साबित कर दिया है कि केवल मार्क्सवाद-लेनिनवाद के क्रान्तिकारी सिद्धांतों से निर्देशित पार्टी ही एक लड़ाकू अगुवा दस्ते का काम कर सकती है. इस सिद्धांत को लेकर ही दुनियां के विभिन्न भागों में कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थापना हुई.
लेनिन ने रूस के मजदूर वर्ग के आंदोलन के शुरू में ही मार्क्स के सिद्धांतों का क्रान्तिकारी निचोड़ प्रस्तुत करते हुये लिखा था, ‘इस सिद्धांत का, जिसको समस्त देशों के समाजवादियों ने अपनाया है, अपरिहार्य आकर्षण इस तथ्य में निहित है कि इससे सही अर्थों में, सर्वोपरि रूप से वैज्ञानिकता और क्रान्तिकारिता का अपूर्व सामंजस्य है. इसमें उन गुणों का आकस्मिक सामंजस्य केवल इसलिए नहीं है कि उस सिद्धांत के प्रणेता के व्यक्तित्व में एक वैज्ञानिक और क्रान्तिकारी के गुणों का समावेश है, अपितु उनमें एक स्वाभाविक और अटूट सामंजस्य है.’
आज पूंजी के कम से कम हाथों में सिमटते जाने से आर्थिक मंदी-तंगी, बेरोजगारी, महंगाई, बाज़ारों के बंटवारे, हथियारों की होड़ और अंततः क्षेत्रीय युद्धों ने विश्व पूंजीवादी व्यवस्था की निरीहता की कलई खोल के रख दी है. पूंजीवाद ने बड़ी ही चालाकी से संकट का भार आमजन के कंधों पर लाद दिया है. हम मार्क्सवादी उनकी इन करतूतों को पहचानते हैं, अतएव उनके लिए निश्चय ही हम खतरनाक हैं.
मेहनतकश अवाम को इस लुटेरी व्यवस्था से मुक्ति हासिल करनी ही होगी. उनके इस मुक्तियुद्ध में मार्क्सवाद ही पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभा सकता है. यह भूमिका वह पहले भी निभाता आया है. अब यह संगठित-असंगठित मार्क्सवादियों का दायित्व है कि वे मेहनतकश अवाम की मुक्ति के काम को तेजी से आगे बढ़ाएं. मार्ग कठिन भी है और मौजूदा दौर में खतरनाक भी.
घबराइए नहीं, मार्क्स यहां भी आपका मार्गदर्शन करते नजर आते हैं. वे कहते हैं- ‘यदि हमने अपने जीवन में वह रास्ता अख़्तियार किया है जिसमें हम मानव जाति के लिये अधिकाधिक कार्य कर सकते हैं तो कोई भी ताकत हमें झुका नहीं सकती.’
- डॉ. गिरीश
सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
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