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मरीज एक प्रोडक्ट है

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मरीज एक प्रोडक्ट है

16 दिसम्बर, 2020 को दिन करीब 1 बजे मेरे भाई सुरेंद्र सिंह तमकुहीराज, कुशीनगर में मोटरसाइकिल से गिर पड़े. इस कारण उनकी दाहिनी बांंह केहुनी और कंधें के बीच बुरी तरह फ्रैक्चर हो गयी और उन्हें ब्रेन हैमरेज भी हो गया. तभी से वे अचेतावस्था में हैं.

21वीं सदी में विश्वगुरू बनने को आतुर देश में स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति यह है कि दुर्घटनास्थल से लगभग 100 किलोमीटर दूर ही न्यूरो का हॉस्पिटल मिला. एक मेडिकल कालेज जिसके बजट को लगातार कम करके सरकारों ने और प्राइवेट स्वास्थ्य सेवा उद्योग और सरकारी गठजोड़ ने बदनाम बना दिया है.

तथाकथित स्टेटस को बनाए रखने और अत्यधिक भीड़ के कारण लेटलतीफी से बचने के कारण जिनके पास थोड़ी भी गुंजाइश है प्राइवेट हॉस्पिटल का ही रुख करते हैं. पर इस मुनाफा केंद्रित व्यवस्था में शिक्षा की तरह स्वास्थ्य देखभाल की भी निजी दुकाने खुली हैं, जिनमें रोगी व उसके परिजनों की आमदनी के हिसाब से दुकानें हैं. इस कारण लोग चुनाव को लेकर परेशान रहते हैं. जितने लोग उतने दुकान की बात. बीमार सरकारी मेडिकल कालेज तो बदनाम ही है.

अंततः मेरे भाई दुर्घटना स्थल से 90-100 किलोमीटर की दूरी पर अत्यधिक भीड़ व ट्रैफिक वाले मुख्य रोड पर स्थित राजबंशी न्यूरो अस्पताल में दाखिल किया गया. इलाज शुरू हुआ. बहुत जल्द यह बात डॉक्टर को भी समझ आ गयी कि मरीज बहुत जल्द होश में आने वाला नहीं है, परन्तु दाहिने बांंह की टूट-फुट एक चिंता की कारण बनी रही.

देखते देखते 9 दिन हो गए. अत्यंत धीमी रिकवरी. सिर्फ आंख खुली और थोड़ा रिस्पांस किए. प्रतिदिन 20000 से ज्यादा का खर्च चिंता था. सिर्फ wait and watch ही करना है तो मेडिकल कालेज क्या बुरा है ? परंतु 9 वें दिन मेरे भाई के ब्लड में इन्फेक्शन होने लगा. हमें चिंता हुई. ड्यूटी डॉक्टर से पूछने पर पता चला कि मेरे भाई सेप्टीसीमिया में जा रहे हैं.

हमें अत्यंत चिंता हुई. परन्तु उस दिन मानवीय संवेदनाओं को महसूस करने और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना वाले 3 डॉक्टर दोस्त रात में भाई को देखने आए. उनके दबाव की वजह से वहां हड्डी का डॉक्टर आया और भाई के बांंह को कच्चा प्लास्टर किया.

10वें दिन सुबह न्यूरो के डॉक्टर ने मुझे बुलाकर बोला कि संतोषजनक विकास नहीं हो रहा. आप KGMU ले जाइए, परन्तु मुख्य डॉक्टर ने कहा कि सेप्टीसीमिया में जा रहे हैं इसलिए आप मेदांता, लखनऊ ले जाएं.

हमने मेदांता में सम्पर्क किया और एक आदमी को वहां भेजा तो उन्होंने बताया कि भर्ती हो जाएंगे. 7 हजार रुपया आईसीयू का चार्ज था. उसके बाद डॉक्टर विजिट का 500, नर्स का 250 इत्यादि. कुल मिलाकर 10 हजार रुपया के करीब भर्ती रहने का चार्ज, उसके बाद दवा. हमने सोचा ठीक है. गोरखपुर के बराबर ही चार्ज है. यही बात फोन के माध्यम से जानकारी लेने पर भी बताया गया.

परन्तु जब रात में वहां पहुंचे तो घोर शांति थी. सिर्फ एक एम्बुलेंस और था. वहां डॉक्टर आते ही बोला पहले ‘रेट समझ लीजिए तब भर्ती किया जाएगा.’ रेट बताया कि 50-70 हजार रुपए प्रतिदिन लगेगा. हमने प्रतिवाद किया कि ‘आपने 7000+डॉक्टर विजिट+नर्स खर्च + अन्य लगभग 10000 रुपए प्रतिदिन बताया था.’

इस विवरण को मानते हुए भी मेदांता में यही कहा गया कि 50 से 70 हजार प्रतिदिन लगेगा. हम क्या करते फिर KGMU गए. वहां कोविड जांच की भयंकर भीड़. किसी आपदा प्रभावित लोगों की भीड़ जैसी स्थिति. स्थिति देखकर डर लगने लगा. सभी इमेरजेंसी वाले मरीज.

मरीज को उतारकर ठंड में बाहर रखना घातक लगा. फिर सहारा चले. अब साथ आया अटेंडेंट जोर देने लगा कि फलांं अस्पताल चलिए. पर हमें कुछ सूझ नहीं रहा था. आखिरकार सहारा में लाकर भाई को भर्ती किए हैं. यहां चार्ज नहीं बताया गया है पर बहुत ज्यादा ही होगा. यहांं भी यही कहा गया कि कब होश में आएंगे कोई नहीं कुछ कह सकता.

समस्या यह है कि बिना होश आए बांंह का ऑपरेशन होगा नहीं और ऐसे गम्भीर टूट वाले हाथ से इन्फेक्शन फैलने का खतरा बना रहेगा. क्या किया जाए समझ नहीं आता.
कुछ हमदर्द साथियों ने रात में KGMU में भर्ती कराने का प्रयास किया, पर हम असफल रहे थे.

इन दैत्याकार निजी हॉस्पिटलों के रहते सभी को स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल सकता.

  • कृपा शंकर

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ROHIT SHARMA

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