महान मार्क्सवादी शिक्षक कॉमरेड माओ त्से-तुंग की 130वीं जयंती के अवसर पर दुनिया के माओवादी पार्टियों द्वारा 26 दिसम्बर, 2023 को एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया. उन्होंने इस संयुक्त घोषणापत्र के जरिए विश्व के सर्वहारा और उत्पीड़ित लोगों की एकजुटता का आह्वान करते हुए महान मार्क्सवादी शिक्षक कॉमरेड माओ त्से-तुंग को उनकी 130वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित किया. इसके साथ ही दुनिया भर के उत्पीड़ित लोगों की वीर बेटियों और बेटों को जिन्होंने शोषण और उत्पीड़न से मुक्त एक नए समाज और प्रतिक्रियावादियों के साथ वीरतापूर्वक लड़ते हुए समाजवाद-साम्यवाद के लिए क्रांतिकारी संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति दी, को श्रद्धांजलि अर्पित किया.
अन्तर्राष्ट्रीय माओवादियों पार्टियों द्वारा जारी इस संयुक्त घोषणापत्र का उद्देश्य बताते हुए उन्होंने कहा है कि उनका लक्ष्य राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों, व्यापक साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलनों, पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों में सर्वहारा समाजवादी क्रांतियों और नव-जनवादी क्रांतियों को आगे बढ़ाने में मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की प्रतिष्ठा और आवश्यकता को ऊंचा रखना है. साथ ही इस अवसर पर, यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्रांति और समाजवादी निर्माण मार्क्सवाद-लेनिनवाद के विज्ञान के बिना असंभव है जिसे महान मार्क्सवादी शिक्षक कॉमरेड माओ ने संरक्षित, विकसित और समृद्ध किया.
अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग के सबसे प्रतिभाशाली नेताओं, मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्टालिन और माओ त्से-तुंग ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की रूपरेखा तैयार की. उन्होंने माओवाद को मार्क्सवाद-लेनिनवाद के गुणात्मक, नए और तीसरे उच्च चरण के रूप में स्वीकार किया. मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद सबसे उन्नत सिद्धांत बताया. कॉमरेड माओ त्से-तुंग की 130वीं जयंती के अवसर पर, अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग और दुनिया के उत्पीड़ित लोगों के सामने दृढ़ता से घोषणा किया कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद ही वह विचारधारा है जो हमारा मार्गदर्शन करती है.
यह संयुक्त घोषणा पत्र में शामिल जिन माओवादी पार्टियों का नाम है, उसमें भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), भारत; अफगानिस्तान की कम्युनिस्ट (माओवादी) पार्टी, अफ़गानिस्तान; तुर्की की कम्युनिस्ट पार्टी – मार्क्सवादी लेनिनवादी (टीकेपी-एमएल), तुर्की; कम्युनिस्ट वर्कर यूनियन (एमएलएम) कोलंबिया; गैलिशिया की माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी की निर्माण समिति;[1] माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी – इटली;[2] पूर्बो बांग्ला की सर्वहारा पार्टी (पीबीएसपी/बांग्लादेश);[3] नेपाल की क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी, नेपाल शामिल हैं. उनके द्वारा जारी घोषणा-पत्र[4] इस प्रकार है. यह आलेख ‘रेवोल्यूशन ओब्रेरा‘ से लिया गया है, जो यूनियन ओब्रेरा कोमुनिस्टा (एमएलएम), कोलंबिया का मुखपत्र है.
मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद अमर रहे !
मार्क्सवाद एक सक्रिय विज्ञान है, न कि एक बेजान हठधर्मिता. यह व्यवहार के साथ जीवंत संबंध रखता है और उसमें योगदान देता है. यह वर्ग संघर्ष, उत्पादन के लिए संघर्ष और वैज्ञानिक प्रयोग के विकास की प्रक्रिया में लगातार विकसित और समृद्ध होता है. मार्क्सवाद (-लेनिनवाद-माओवाद) की विचारधारा, सिद्धांत या विज्ञान पिछले लगभग 175 वर्षों के सभी देशों और सभी क्षेत्रों के वर्ग संघर्ष के अनुभवों का संश्लेषण है. यह दर्शन, राजनीतिक अर्थशास्त्र और वैज्ञानिक समाजवाद या सर्वहारा वर्ग संघर्षों की एक व्यापक इकाई है.
मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्टालिन और माओ ने इसे वर्ग संघर्ष की भट्टी से और बुर्जुआ विचारधारा, संशोधनवाद और उसके प्रतिबिंबों तथा अन्य विभिन्न विदेशी प्रवृत्तियों के विरुद्ध पिछले 175 वर्षों से सैद्धांतिक संघर्ष में विकसित किया है. एमएलएम अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग और शोषित लोगों के हाथों में एक अजेय हथियार है. यह एक ऐसा हथियार है जो सर्वहारा वर्ग को दुनिया को समझने, क्रांति करने और इसे बदलने में मदद करता है. यह एक जीवंत वैज्ञानिक विचारधारा है जो अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन में क्रांतिकारी अभ्यास की प्रक्रिया में लगातार विकसित और समृद्ध होती है.
‘मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद वह अजेय हथियार है जो सर्वहारा वर्ग को दुनिया को समझने और क्रांति के माध्यम से इसे बदलने में सक्षम बनाता है. यह एक सार्वभौमिक रूप से लागू, जीवंत और वैज्ञानिक विचारधारा है, जो लगातार विकसित हो रही है और क्रांति करने के साथ-साथ आम तौर पर मानव ज्ञान के विकास के माध्यम से इसके अनुप्रयोग के माध्यम से और समृद्ध हो रही है. मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद सभी प्रकार के संशोधनवाद और हठधर्मिता का दुश्मन है. यह सर्वशक्तिमान है क्योंकि यह सत्य है’ – ‘आरआईएम के 1993 के दस्तावेज़’ से.
कार्ल मार्क्स – मार्क्सवाद
कार्ल मार्क्स ने अपने करीबी सहयोगी फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ मिलकर द्वंद्वात्मक भौतिकवादी दर्शन को एक पद्धति और परिप्रेक्ष्य के रूप में विकसित किया. उन्होंने सामाजिक विकास की गति के नियमों को जानने के लिए द्वंद्वात्मक पद्धति को लागू किया. यही द्वंद्वात्मक भौतिकवाद है. मार्क्स ने पूंजीवाद की गति के नियमों को प्रकाश में लाया, जिसमें इसके वर्ग विरोधाभास और शोषण की उत्पत्ति शामिल है,
अधिशेष मूल्य का सिद्धांत दिया जो शोषण का आधार है और राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सिद्धांत विकसित किया. उन्होंने वर्ग संघर्ष के सिद्धांत के आधार पर वैज्ञानिक समाजवाद विकसित किया. उन्होंने सर्वहारा वर्ग संघर्ष की रणनीति और कार्यनीति को निर्देशित करने वाले सिद्धांत तैयार किए. उन्होंने कहा, ‘दार्शनिकों ने दुनिया की केवल विभिन्न तरीकों से व्याख्या की है; मुद्दा इसे बदलना है.’
मार्क्स ने सदियों से मानव जाति द्वारा अर्जित ज्ञान को संश्लेषित किया. मुख्य रूप से जर्मन पारंपरिक दर्शन, अंग्रेजी पारंपरिक राजनीतिक अर्थव्यवस्था और फ्रांसीसी क्रांतिकारी वर्ग संघर्ष और समाजवादी सिद्धांतों के तर्कसंगत मुद्दों पर निर्भर करते हुए, मार्क्स ने इतिहास से संबंधित द्वंद्वात्मक भौतिकवादी अवधारणा का आविष्कार किया. उन्होंने मानव सार को सामाजिक संबंधों की इकाई के रूप में परिभाषित किया.
अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘पूंजी’ में उन्होंने श्रम के मूल्य के सिद्धांत की व्याख्या की. विरोधाभास के नियम के आधार पर मार्क्स ने पूंजीवाद में मूलभूत विरोधाभास का पता लगाया. उन्होंने पूंजीवादी संकटों को पूंजीवाद में मूलभूत विरोधाभास की एक और अभिव्यक्ति के रूप में समझाया. मार्क्स और एंगेल्स ने महसूस किया कि सर्वहारा वर्ग सबसे क्रांतिकारी सामाजिक वर्ग और सामाजिक विकास की प्रेरक शक्ति के रूप में उभरा. मजदूरी की गुलामी से मुक्ति पाने की प्रक्रिया में, सर्वहारा वर्ग पूरे समाज को सभी प्रकार के वर्ग शोषण और उत्पीड़न से मुक्त करेगा और वर्ग-विहीन समाज की ओर बढ़ेगा. उन्होंने महसूस किया कि इस उद्देश्य के लिए, उसे अपना स्वयं का उन्नत संगठन, यानी सर्वहारा पार्टी स्थापित करने की आवश्यकता है और उसी के लिए काम किया.
उन्होंने बताया कि वर्ग समाज में उत्पादन की शक्तियों और उत्पादन संबंधों के बीच का अंतर्विरोध वर्ग विरोधाभास के रूप में परिलक्षित होता है और वर्ग समाज का इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास है. मार्क्सवाद का जन्म मानव इतिहास में बड़े बदलावों के समय हुआ और जब कुछ पश्चिमी पूंजीवादी राज्य दुनिया पर आधिपत्य स्थापित कर रहे थे. मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट पार्टियों और प्रथम इंटरनेशनल के गठन और उसके मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने कहा, ‘सभी देशों के मजदूर भाईयों, एक हो जाओ !’ और विभिन्न देशों के मजदूरों को अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और भाईचारे की एकजुटता प्रदान की.
मार्क्स और एंगेल्स ने बताया कि गुलाम समाज से लेकर साम्यवाद तक मानव समाज के विकास की प्रक्रिया में राज्य कैसे जन्म लेता है, विकसित होता है और कैसे नष्ट होता है. मार्क्स और एंगेल्स ने सभी निम्न-बुर्जुआ यूटोपियन समाजवादी सिद्धांतों को परास्त किया और वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांतों को मजबूती से स्थापित किया. सामान्य विज्ञान से लेकर क्रांतिकारी रणनीति और कार्यनीति तक लगभग सभी विज्ञानों को समझने और विकसित करने के लिए मार्क्सवादी पद्धति को स्वीकार किया गया था.
मार्क्स द्वारा विकसित क्रांतिकारी परिप्रेक्ष्य, राजनीतिक सिद्धांत और द्वंद्वात्मक पद्धति सर्वहारा वैज्ञानिक विचारधारा के विकास में पहला महान मील के पत्थर का प्रतिनिधित्व करते हैं.
व्लादिमीर लेनिन – लेनिनवाद
लेनिन को साम्राज्यवाद के दौर की ऐतिहासिक परिस्थितियों में समाजवादी क्रांति की लपटों के बीच मार्क्स और एंगेल्स की क्रांतिकारी शिक्षाएं विरासत में मिलीं. उन्होंने उन शिक्षाओं को मजबूती से सहेजा. लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांतियों के दौर से जुड़ा मार्क्सवाद है. कॉमरेड लेनिन ने मार्क्सवाद के तीनों घटकों को समृद्ध बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया. उन्होंने सर्वहारा पार्टी, क्रांतिकारी हिंसा, राज्य, सर्वहारा तानाशाही, साम्राज्यवाद, किसानों का सवाल, महिलाओं का सवाल, राष्ट्रीयता का सवाल, विश्व युद्ध और वर्ग संघर्ष की सर्वहारा रणनीति की समझ को बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंचाया.
लेनिन द्वारा विकसित भौतिकवाद के सिद्धांत और पदार्थ की उनकी परिभाषा ने मार्क्सवादी दार्शनिक भौतिकवाद की नींव को और मजबूत किया. लेनिन के साम्राज्यवाद का शानदार विश्लेषण मार्क्सवाद के लिए एक बढ़िया अतिरिक्त है. उन्होंने पूंजीवाद के एकाधिकार-पूर्व पूंजीवादी चरण से एकाधिकार के चरण में परिवर्तन को वैज्ञानिक रूप से समझाया और बताया कि कैसे पूंजीवाद का यह उच्चतम चरण युद्धों और क्रांतियों की ओर ले जाता है. उन्होंने बताया कि साम्राज्यवादी युद्ध साम्राज्यवादी राजनीति की निरंतरता है, पूंजीवाद का उच्चतम और अंतिम चरण है. इसलिए, उन्होंने कहा कि यह सर्वहारा क्रांति की सुबह है.
कॉमरेड लेनिन की एक और बड़ी बात यह थी कि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सर्वहारा वर्ग को निश्चित रूप से बुर्जुआ राज्य मशीनरी को नष्ट करना होगा और उसके स्थान पर सर्वहारा तानाशाही स्थापित करनी होगी.
चूंकि पूंजीवाद विभिन्न देशों में असमान रूप से विकसित है, इसलिए समाजवाद सबसे पहले एक या कुछ देशों में साम्राज्यवादी श्रृंखला की कमज़ोर कड़ी पर हासिल किया जाता है. पूंजीवादी देश अभी भी मौजूद रहेंगे. ये साम्राज्यवादियों को नए विकसित समाजवादी राज्यों के खिलाफ़ कार्रवाई करने में मदद करेंगे. समाजवादी राज्यों को संरक्षित किया जाना चाहिए और विश्व समाजवादी क्रांति हासिल की जानी चाहिए. इसलिए, संघर्ष लंबा चलेगा. कॉमरेड लेनिन ने यह समझ प्रदान की.
पार्टी संगठन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी के पास बहुत व्यापक सदस्यता नेटवर्क और पेशेवर क्रांतिकारियों का एक केंद्र होना चाहिए. ऐसी राजनीतिक पार्टी को निश्चित रूप से लोगों के साथ घुलना-मिलना चाहिए और इतिहास के निर्माण में लोगों की रचनात्मक पहल को बहुत महत्व देना चाहिए.
राष्ट्रीयता के प्रश्न पर लेनिनवादी समझ गुणात्मक रूप से उच्चतर स्तर की है. कॉमरेड लेनिन ने स्पष्ट किया कि सभी राष्ट्रीयताओं को पूर्ण समानता, आत्मनिर्णय का अधिकार जिसमें अलगाव का अधिकार भी शामिल है और अंततः सभी राष्ट्रीयताओं का एक संघ स्थापित करने का अधिकार है. उन्होंने बताया कि कैसे राष्ट्रीय और औपनिवेशिक प्रश्न विश्व सर्वहारा क्रांति में सामान्य प्रश्न का अभिन्न अंग है.
कॉमरेड लेनिन की राष्ट्रीय, औपनिवेशिक थीसिस के अनुसार, पूंजीवादी देशों के सर्वहारा क्रांतिकारी आंदोलनों और उपनिवेशों को राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों के साथ गठबंधन करना चाहिए. यह गठबंधन उपनिवेशों और साथ ही आश्रित देशों में साम्राज्यवादी, सामंती और दलाल बुर्जुआ प्रतिक्रियावादी ताकतों के गठबंधन को नष्ट कर सकता है. इसलिए, यह अंततः अनिवार्य रूप से पूरी दुनिया में साम्राज्यवादी व्यवस्था को समाप्त कर देगा.
कॉमरेड लेनिन ने युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद तीसरे इंटरनेशनल का गठन किया. उन्होंने इसे साम्राज्यवाद के खिलाफ़ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग के एक शक्तिशाली हथियार के रूप में ढाला. मार्क्सवाद उस युग का सिद्धांत है जहां पूंजीवाद अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण ढंग से विकसित हुआ, लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांतियों के युग से संबंधित सिद्धांत है.
लेनिन के करीबी सहयोगी कॉमरेड स्टालिन ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद को रचनात्मक रूप से लागू, संरक्षित और विकसित किया. कॉमरेड लेनिन के निधन के बाद तीन दशकों तक उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन का नेतृत्व किया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के फासीवाद पर मिली जीत में उन्होंने शानदार भूमिका निभाई.
स्टालिन ने ट्रॉट्स्कीवादियों, ज़िनोविएववादियों, बुखारिनवादियों और अन्य बुर्जुआ एजेंटों और विभिन्न प्रकार के अवसरवाद जैसे लेनिनवाद के दुश्मनों के खिलाफ संघर्ष में मार्क्सवाद-लेनिनवाद को संरक्षित और विकसित किया. उन्होंने अपने विभिन्न सैद्धांतिक लेखन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन में एक स्थायी योगदान दिया.
माओ त्से-तुंग – माओवाद
कॉमरेड माओ ने चीन की क्रांति और अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा क्रांति को मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सार्वभौमिक सत्य के साथ जोड़ा. उन्होंने मार्क्सवाद-लेनिनवाद को विरासत में प्राप्त किया, संरक्षित किया और विकसित किया. उन्होंने मार्क्सवाद-लेनिनवाद को दर्शन, राजनीतिक अर्थव्यवस्था, सैन्य विज्ञान और वैज्ञानिक समाजवाद के क्षेत्रों में एक नए और उच्च स्तर पर विकसित किया. कॉमरेड माओ ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी रणनीति को और विकसित किया. उन्होंने औपनिवेशिक, अर्ध-औपनिवेशिक, अर्ध-सामंती चीन में 28 साल के क्रांतिकारी संघर्ष की प्रक्रिया में और पूंजीवादी यूरोप की तुलना में पूरी तरह से अलग स्थिति में चीन के अनुभव के साथ दीर्घकालिक जनयुद्ध की अवधारणा विकसित की. नए लोकतंत्र का सिद्धांत मार्क्सवाद-लेनिनवाद के शस्त्रागार में एक अलग जोड़ है.
1949 में चीन की क्रांति सफल रही. बाद में ख्रुश्चेव के संशोधनवाद और आधुनिक संशोधनवाद के खिलाफ़ दुनिया भर में संघर्ष करने की प्रक्रिया में, उन्होंने मार्क्सवाद में कुछ बहुत बड़ी चीज़ें जोड़ीं. यह सैद्धांतिक संघर्ष अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन में ‘महान बहस’ के रूप में प्रमुखता से जाना गया. तब से उन्होंने मार्क्सवाद-लेनिनवाद के शस्त्रागार में कुछ और चीज़ें जोड़ीं. उन्होंने महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति (GPCR) की शुरुआत की और उसका नेतृत्व किया, जिसने दुनिया को हिलाकर रख दिया.
सांस्कृतिक क्रांति अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन में एक ऐतिहासिक मोड़ का संकेत देती है. इस अवधि के दौरान, उन्होंने समाजवादी देश में पूंजीवादी पुनर्स्थापना को रोकने, समाजवादी व्यवस्था और सर्वहारा तानाशाही को मजबूत करने और दुनिया भर में साम्यवाद की ओर बढ़ने के उद्देश्य से सर्वहारा वर्ग की तानाशाही में निरंतर क्रांति का सिद्धांत विकसित किया. कुल मिलाकर, कॉमरेड माओ ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद के विज्ञान को उसके तीसरे, उच्चतर और गुणात्मक रूप से नए चरण तक विकसित किया.
माओ ने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, सर्वहारा दर्शन, ज्ञान के सिद्धांत सहित, के विकास में बहुमूल्य सेवाएं प्रदान की. उन्होंने विरोधाभासों के सिद्धांत को विकसित किया और एक वैचारिक छलांग लगाई. उन्होंने सुझाव दिया कि विरोधाभासों का सिद्धांत, एकता और विरोधियों का संघर्ष गति का मूलभूत नियम है जो समाज सहित मनुष्य के स्वभाव और विचारों को नियंत्रित करता है. उन्होंने कहा, ‘…वैज्ञानिक समाजवाद, दर्शन और राजनीतिक अर्थव्यवस्था मार्क्सवाद के तीन मूलभूत घटक हैं. वर्ग संघर्ष सामाजिक विज्ञान का आधार है…’.
उन्होंने उत्पादन की शक्तियों, उत्पादन के संबंधों, सिद्धांत और व्यवहार के बीच, आर्थिक आधार और अधिरचना के बीच, पदार्थ और चेतना और अन्य घटनाओं के बीच एक द्वंद्वात्मक समझ भी विकसित की. ‘लोगों की सेवा करें’ और ‘मास लाइन’ की अवधारणाएं माओ के संपूर्ण कार्यों के व्यवहार में समझ से संबंधित मुख्य घटक हैं. पार्टी और पूरे समाज को सामंती और बुर्जुआ मूल्यों के खिलाफ लड़ने और पार्टी के अंदर बुर्जुआ केंद्रों को लक्षित करने के लिए हुई महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति ने जांच की इस पद्धति को समृद्ध किया.
उन्होंने सोवियत अर्थव्यवस्था का गहन आलोचनात्मक विश्लेषण किया, सोवियत रूस में समाजवादी निर्माण के सकारात्मक और नकारात्मक अनुभवों से सबक लिए और समाजवादी निर्माण को नियंत्रित करने वाले गति के विशिष्ट नियमों का विश्लेषण किया. उन्होंने कहा कि ‘दो पैरों पर चलना’ के नारे के माध्यम से उत्पादन की शक्तियों के विकास और उत्पादन के संबंधों में इसी तरह के बदलाव के बीच उचित संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए.
उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अधिरचना और चेतना आधार को बदल सकती है और उत्पादन के संबंधों को लगातार विकसित करने के लिए सभी क्षेत्रों में राजनीति का नियंत्रण होना चाहिए. माओ का एक और बड़ा योगदान यह है कि नौकरशाही पूंजी साम्राज्यवाद और सामंतवाद से जुड़ी हुई है और इसमें एक दलाल चरित्र है.
माओ ने वैज्ञानिक समाजवाद के क्षेत्र में न केवल ‘दो चरणों में क्रांति’ की लेनिनवादी अवधारणा विकसित की, बल्कि समाजवादी परिवर्तन के सिद्धांतों को भी विकसित किया. नए लोकतंत्र ने न केवल सामंती व्यवस्था को बल्कि साम्राज्यवाद को भी निशाना बनाया. इसने पुष्टि की कि बुर्जुआ लोकतांत्रिक कार्य वर्तमान चरण में विश्व समाजवादी क्रांति के एक भाग के रूप में सर्वहारा वर्ग के नेतृत्व में ही पूरे किए जाएंगे.
पहली बार माओ ने समाजवादी परिवर्तन के साथ राज्य की अवधारणा स्थापित की, जिसमें सर्वहारा तानाशाही में परिवर्तन के पहले चरण के रूप में चार वर्गों की जनता की लोकतांत्रिक तानाशाही शामिल थी. बाद में माओ ने लोकतांत्रिक क्रांतिकारी चरण से समाजवादी चरण में परिवर्तन के लिए सैद्धांतिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आधार भी स्थापित किए. माओ ने क्रांतिकारी समझ को बहुत अच्छी तरह से समझाया कि समाजवाद को उसके प्राथमिक चरण से उसके उच्च चरण, साम्यवाद तक कैसे विकसित किया जाए.
सर्वहारा रणनीति की बात करें तो उन्होंने क्रांति के शस्त्रागार में ‘दीर्घकालिक जनयुद्ध’ को भी शामिल किया. क्रांतिकारी रणनीति-रणनीति में यह एक महत्वपूर्ण योगदान है. यह गुणात्मक रूप से नया है. उन्होंने न केवल सर्वहारा पार्टी की लेनिनवादी समझ को और विकसित किया और लोकतांत्रिक केंद्रीयवाद के आधार पर एक नए तरह की पार्टी का निर्माण किया, बल्कि एक नई तरह की पार्टी भी बनाई जो आलोचना-आत्मआलोचना, सुधार अभियान चला सकती है और दो पंक्तियों के संघर्ष के जरिए विकास कर सकती है.
उन्होंने संयुक्त मोर्चे और उसके सिद्धांतों से संबंधित एक व्यापक सिद्धांत विकसित किया. माओ ने सैन्य सिद्धांत को अंतरराष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग को सौंप दिया. वे जनयुद्ध की अवधारणा के साथ क्रांति के सिद्धांत और व्यवहार को एक नए और उच्च स्तर पर ले गए. उन्होंने साबित कर दिया कि हम गुरिल्ला युद्ध के नियमों जैसे ‘जब दुश्मन हमला करना शुरू करे तो पीछे हट जाओ, जब दुश्मन थक जाए तो परेशान करो, दुश्मन जब पीछे हटे तब खदेड़ दो’ के साथ एक मजबूत ताकत का कुशलता से सामना कर सकते हैं.
क्रांति चाहे संघर्ष के दीर्घकालीन मार्ग पर चले या आम विद्रोह पर, जनयुद्ध की मूल अवधारणाएं पूरी दुनिया में लागू होंगी. सशस्त्र शक्ति के माध्यम से सत्ता पर कब्ज़ा करना, मौजूदा राज्य तंत्र को नष्ट करना किसी भी क्रांति का केंद्रीय कार्य होगा. पूरी प्रक्रिया सशस्त्र संघर्ष के केंद्र में होनी चाहिए, अन्यथा आम विद्रोह की तैयारी की कार्रवाई तेज़ होनी चाहिए. आज भी, दुश्मन को हराने के लिए जनयुद्ध सबसे व्यापक तरीका है.
चीन की क्रांति के ठोस क्रांतिकारी अभ्यास से जनयुद्ध औपनिवेशिक, अर्ध-औपनिवेशिक, अर्ध-सामंती देशों के लिए एक सार्वभौमिक सिद्धांत के रूप में विकसित हुआ. यह साम्राज्यवाद, सामंतवाद और पूंजीपति वर्ग को खत्म करने के लिए सर्वहारा वर्ग के हाथों में वैज्ञानिक रूप से विकसित युद्ध का सिद्धांत है. यह पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद के खिलाफ युद्ध का एक मुख्य हथियार है.
माओ ने एक और नया सिद्धांत विकसित किया कि पार्टी, सेना और संयुक्त मोर्चा ‘तीन शानदार हथियार’ हैं. उन्होंने कहा, ‘हमारे 18 साल के अनुभव से पता चलता है कि दुश्मन को हराने के लिए संयुक्त मोर्चा और सशस्त्र संघर्ष दो बुनियादी हथियार हैं. संयुक्त मोर्चा सशस्त्र संघर्ष जारी रखने के लिए है. पार्टी एक साहसी योद्धा है जो संयुक्त मोर्चा और सशस्त्र संघर्ष के इन दो हथियारों को उठाता है और दुश्मन के ठिकानों को नष्ट कर देता है. इस तरह ये तीनों परस्पर जुड़े हुए हैं.’ लोकतांत्रिक केंद्रीयवाद सर्वहारा पार्टी के निर्माण के नियमों के सिद्धांत से संबंधित एक महत्वपूर्ण योगदान है.
माओ ने नारी के प्रश्न, कला और संस्कृति तथा साम्राज्यवाद और राष्ट्रीय प्रश्न के बारे में समझ को स्पष्ट किया. रूस में सामने आए ख्रुश्चेव के आधुनिक संशोधनवाद के खिलाफ माओ के नेतृत्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किया गया सैद्धांतिक संघर्ष ‘महान बहस’ के रूप में जाना जाता है.
माओ ने सर्वहारा तानाशाही को बनाए रखने और लागू करने में एक गुणात्मक छलांग के रूप में जीपीसीआर का नेतृत्व किया. उन्होंने ‘मुख्यालय पर बमबारी’ के नारे के साथ ‘अधिरचना में वर्ग संघर्ष’ को उठाया. इस प्रकार उन्होंने इस विज्ञान को मार्क्सवाद-लेनिनवाद की सच्चाई को चीन की क्रांति के ठोस अभ्यास के साथ जोड़ने की प्रक्रिया में एक नए, गुणात्मक और उच्चतर चरण में विकसित किया.
आज के दृष्टिकोण से, माओवाद ‘समाजवाद से पीछे हटने’ को समझने के लिए विशेष रूप से आवश्यक है. मार्क्सवाद लेनिनवाद माओवाद की बदौलत ही हम समाजवादी समाज से पीछे हटने की व्याख्या कर सकते हैं और इसके अलावा, हम पीछे हटने के खतरे के खिलाफ कॉमरेड माओ के नेतृत्व में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति की तरह ‘हजारों सांस्कृतिक क्रांतियों को अंजाम देने’ की आवश्यकता के हथियार से लैस हो सकते हैं.
मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद मार्क्सवाद का नया, तीसरा और उच्चतर चरण है
‘मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद, मुख्य रूप से माओवाद’ की अवधारणा मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की व्यापकता को महसूस नहीं करती है. यह इस समझ के खिलाफ है कि सर्वहारा सिद्धांत एक विभाजनकारी, जीवंत इकाई है और सर्वहारा क्रांतिकारी व्यवहार से अब तक जो कुछ भी सार्वभौमिक रूप से हासिल किया गया है, वह इसी में निहित है. यह अतीत के वैज्ञानिक समाजवाद को नकारने और इसे माओ त्से-तुंग के योगदान पर लागू करने के बराबर है. यह सबसे शक्तिशाली हथियार है. इस हथियार से हम बुर्जुआ वर्ग की विचारधारा और माओवाद के आवरण में मौजूद सभी तरह के संशोधनवाद का मुकाबला कर सकते हैं और उसे हरा सकते हैं.
मार्क्सवाद प्रकृति, समाज और मानवीय विचारों की प्रक्रिया के विज्ञान और एक क्रांतिकारी विज्ञान के रूप में उभरा. इसका जन्म उस समय हुआ जब सर्वहारा वर्ग एक क्रांतिकारी वर्ग के रूप में उभरा जो अपने भविष्य के साथ-साथ समाज के भविष्य को भी आकार देने में सक्षम था. यह मार्क्सवाद-लेनिनवाद के रूप में एक नए और उच्चतर चरण में विकसित हुआ. बाद में यह मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के रूप में विकसित हुआ. यह एक व्यापक दार्शनिक प्रणाली, राजनीतिक अर्थशास्त्र, वैज्ञानिक समाजवाद और दुनिया को समझने और क्रांति के माध्यम से इसे बदलने की रणनीति और कार्यनीति है.
1969 में कॉमरेड माओ के नेतृत्व में आयोजित सी.पी.सी. की नौवीं कांग्रेस ने माओ विचार (अब माओवाद) के बारे में ऐतिहासिक और व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया. इसके अनुसार, माओ विचार ने महान बहस के समय से ही दुनिया के मार्क्सवादी-लेनिनवादियों की मान्यता प्राप्त कर ली थी, ऐतिहासिक महत्व प्राप्त कर लिया था और सी.पी.सी. की नौवीं कांग्रेस के समय तक सर्वहारा विचारधारा के विकास में गुणात्मक, नवीन और उच्चतर चरण बन गया था.
मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद एक व्यापक इकाई है. माओवाद वर्तमान समय का मार्क्सवाद-लेनिनवाद है. माओवाद को नकारना मार्क्सवाद-लेनिनवाद को नकारना है. माओवाद ने दर्शन, राजनीतिक अर्थव्यवस्था, सामाजिक विज्ञान, पार्टी निर्माण, जनयुद्ध के माध्यम से नई लोकतांत्रिक क्रांति, समाजवादी क्रांति, संगठन और सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति जैसे कई अन्य मुद्दों के संबंध में विशिष्ट योगदान दिया.
आधुनिक संशोधनवाद को हराना मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के विकास का हिस्सा है
सोवियत सामाजिक-साम्राज्यवाद के महाशक्ति न रह जाने के बाद, अवाकियन के नव-संशोधनवादी सिद्धांत कि ‘अमेरिका एकमात्र वर्चस्वशाली महाशक्ति है’ और प्रचंड के नव-संशोधनवादी सिद्धांत कि ‘अमेरिका एक वैश्विक साम्राज्यवादी राज्य है’ सामने आए. काउत्स्की का ‘अति-साम्राज्यवादी’ सिद्धांत इन सभी अवसरवादी ‘आधुनिक’ सिद्धांतों का आधार है. इस सिद्धांत के अनुसार, साम्राज्यवाद पर विजय प्राप्त करना असंभव है. इसी के आधार पर नेपाल माओवादी पार्टी ने दलाल शासक वर्गों के साथ हाथ मिलाया और नेपाल क्रांति, जनयुद्ध, विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन, विशेष रूप से दक्षिण एशिया क्रांतिकारी आंदोलन के साथ घोर विश्वासघात किया. मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के सिद्धांत को एक इकाई के रूप में समझना, ऐसे नव-संशोधनवादी गलत सिद्धांतों को हराने के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू होगा.
मार्क्सवाद और अवसरवाद के बीच सीमा रेखा यह है कि सर्वहारा वर्ग की तानाशाही में वर्ग संघर्ष विस्तृत हो जाता है तथा और भी जटिल हो जाता है.
आज, जो लोग इसका विस्तार करते हैं – समाजवाद से लेकर साम्यवाद तक वर्गों और विरोधी वर्ग अन्तर्विरोधों के अस्तित्व को समझते हैं; पार्टी में बुर्जुआ वर्ग के अस्तित्व को समझते हैं; तथा सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व के अन्तर्गत क्रान्ति को समझते हैं, वही असली मार्क्सवादी-लेनिनवादी-माओवादी हैं.
इस प्रकार, हम देखते हैं कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के इस सर्वहारा विज्ञान को हम केवल इसके रचनात्मक अनुप्रयोग की प्रक्रिया में तथा इसे अपने क्रांतिकारी अनुभवों से संश्लेषित करने की प्रक्रिया में ही समृद्ध कर सकते हैं.
अंतर्राष्ट्रीय स्थिति
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तीन बुनियादी अंतर्विरोध दिन-प्रतिदिन तीव्र होते जा रहे हैं. पूरी दुनिया में फैला आर्थिक संकट उत्पीड़ित जनता को और अधिक गरीबी में धकेल रहा है. शोषक वर्गों के पास बड़े पैमाने पर धन-संपत्ति जमा हो रही है. बेरोजगारी, महंगाई, बीमारियां, पर्यावरण, खाद्यान्न और ऐसे अन्य संकट दुनिया के उत्पीड़ित लोगों को अवर्णनीय कठिनाइयों में डाल रहे हैं. जनता की बुनियादी समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं.
यह स्थिति हम केवल उत्पीड़ित देशों में ही नहीं, बल्कि पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों में भी देखते हैं. साम्राज्यवाद अपने संकट से उबरने के लिए दुनिया भर में उत्पीड़ित जनता और राष्ट्रीयताओं पर और अधिक दमन कर रहा है. विश्व आर्थिक संकट सभी अंतर्विरोधों को तीव्र कर रहा है और क्रांतियों की एक नई लहर के लिए वस्तुगत अनुकूल परिस्थितियां पैदा कर रहा है. क्रांतिकारी विकल्प अभूतपूर्व तरीके से तत्काल आवश्यकता के रूप में सामने आ रहा है. इसे पूरा करने की जिम्मेदारी मार्क्सवादी-लेनिनवादी-माओवादी पार्टियों पर है.
विश्व बाज़ारों और संसाधनों के लिए साम्राज्यवादियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है. इसका ताजा उदाहरण अमेरिकी साम्राज्यवाद के समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन पर किया गया आक्रामक हमला है. फिलिस्तीन के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष संगठन ‘हमास’ द्वारा इजरायल के कब्जे वाले क्षेत्र में इजरायल के सैन्य ठिकानों पर किया गया हमला, इस संघर्ष में एक नया मोड़ है. प्रतिक्रियावादी इजरायल ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ के नाम पर फिलिस्तीन की जनता पर बमबारी कर इसका जवाब दे रहा है.
फिलिस्तीन के न्यायपूर्ण राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष को साम्राज्यवादी देशों सहित दुनिया भर के लोगों से पहले से कहीं अधिक समर्थन मिल रहा है. अमेरिका से शुरू होकर कनाडा तक फैली ऑटो-मजदूरों की हड़ताल पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों में सर्वहारा वर्ग और पूंजीपति वर्ग के बीच बढ़ते अंतर्विरोध को उजागर करती है. जर्मनी और ब्रिटेन जैसे अन्य देशों में भी मजदूरों के संघर्ष चल रहे हैं. एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के लोग साम्राज्यवादियों और उनके अधीन शासक वर्गों के खिलाफ विभिन्न तरीकों और तरीकों से लड़ रहे हैं. ये सभी परिस्थितियां क्रांति के अनुकूल होती जा रही हैं.
अमेरिका और रूस के बीच साम्राज्यवादी विवाद और अमेरिकी साम्राज्यवादी आधिपत्य के परिणामस्वरूप रूस ने यूक्रेन पर आक्रामक युद्ध शुरू किया. यह छद्म युद्ध पिछले 20 (अभी तकरीबन 33 महीने हो चले-सं.) महीनों से चल रहा है. ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ रहा है. दूसरी ओर, पश्चिम एशिया में इन सबके बीच सहयोग-विवाद, मुख्य रूप से विवाद तेज हो रहा है. देश को फिर से विभाजित करने के लिए युद्ध के लिए साम्राज्यवादी देशों की तैयारी तीसरे विश्व युद्ध के खतरे को बढ़ा रही है. संयुक्त राज्य अमेरिका एक आधिपत्य वाली महाशक्ति के रूप में अपनी स्थिति और एक बहुध्रुवीय विश्व के आगमन को खतरे में देख रहा है और अन्य प्रतिस्पर्धी साम्राज्यवादी देशों, मुख्य रूप से चीन और रूस के साथ गंभीर संघर्ष में है.
इस बीच चीन और रूस बहुपक्षवाद के नाम पर बहुध्रुवीय दुनिया को मजबूत करने की होड़ में लगे हैं. अमेरिका-नाटो की खतरनाक रणनीति दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तनाव बढ़ा रही है. इससे हालात और भी गंभीर हो रहे हैं, जिससे तीसरे विश्व युद्ध की आशंका है.
जनयुद्ध की प्रयोज्यता
सशस्त्र शक्ति के माध्यम से सत्ता पर कब्ज़ा करना और युद्ध के माध्यम से प्रश्न का समाधान करना’ का सिद्धांत दुनिया में विभिन्न रूपों में विभिन्न स्थितियों में लागू किया जा रहा है. एमएलएम की समझ के अनुसार, पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों के लोगों के लिए रास्ता सामान्य सशस्त्र विद्रोह है और अर्ध-औपनिवेशिक, अर्ध-सामंती देशों के लोगों के लिए रास्ता दीर्घकालीन जनयुद्ध (पीपीडब्ल्यू) है. जनयुद्ध की धारणा में कॉमरेड माओ द्वारा वर्णित सिद्धांत पूरी दुनिया में इन दोनों रास्तों पर लागू होते हैं. इन्हें लागू किया जाना चाहिए. इस सार्वभौमिक महत्व के कारण, पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों में वर्ग संघर्ष और अर्ध-औपनिवेशिक, अर्ध-सामंती देशों में दीर्घकालीन जनयुद्ध द्वंद्वात्मक रूप से परस्पर जुड़े हुए हैं.
जनयुद्ध की रणनीति की जीवनरेखा पूरी तरह से व्यापक जनता पर निर्भर करती है जो किसी भी देश में बहुमत का गठन करती है ताकि सरकारी भाड़े के सशस्त्र बलों के एक बहुत छोटे से अल्पसंख्यक द्वारा संरक्षित वर्ग दुश्मनों को हराया जा सके. चेयरमैन माओ ने जनयुद्ध में कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व और जनमार्ग पर इन शब्दों के साथ जोर दिया, जब तक पार्टी और जनता मौजूद है, तब तक सभी प्रकार के चमत्कार किए जा सकते हैं. कम्युनिस्ट पार्टी और जनता जनयुद्ध की जीवनरेखा है. जैसा कि कॉमरेड लेनिन ने ‘राज्य और क्रांति’ में कहा था, ‘जनता को हिंसक क्रांति के इस और ठीक इसी दृष्टिकोण से व्यवस्थित रूप से भरने की आवश्यकता मार्क्स और एंगेल्स के पूरे सिद्धांत के मूल में है.’
जनता पर निर्भर होकर, दुश्मन से लड़ने के लिए लोगों को हथियार देकर हम दुश्मन को ऐसी मुश्किल में डाल सकते हैं जैसे वे अपने क्षेत्र में लगातार काम करते रहते हैं. हम जवाबी युद्ध में बहुत बड़ी ताकतों को केंद्रीकृत करके और दुश्मन को जनता से अलग करके दुश्मन को टुकड़ों में खत्म कर सकते हैं. यदि हम माओ द्वारा बताए गए गुरिल्ला युद्ध के नियमों को लागू करें, जैसे कि ‘जब दुश्मन आगे बढ़े तो पीछे हट जाएं, जब दुश्मन थक जाए तो उसे परेशान करें और उसे पीछे हटने पर मजबूर करें’, तो हम एक मजबूत सेना का कुशलतापूर्वक सामना कर सकते हैं.
कॉमरेड माओ द्वारा तैयार किया गया दीर्घकालीन जनयुद्ध तीन रणनीतिक चरणों से होकर गुजरता है – रणनीतिक आत्मरक्षा, रणनीतिक ठहराव, रणनीतिक जवाबी हमला. माओ ने गुरिल्ला, गतिशील और स्थितिगत युद्ध के नियमों और इनके बीच के संबंधों को विस्तृत तरीके से विकसित किया. हालांकि जनयुद्ध दीर्घकालीन है, लेकिन उन्होंने कहा कि अभियानों और युद्धों में तत्काल निर्णय वाली कार्रवाइयां मुख्य सिद्धांत होनी चाहिए.
उन्होंने केंद्रीकृत रणनीतिक कमान और विकेन्द्रित कमान से बनी एक नई तरह की नेतृत्व प्रणाली विकसित की. माओ ने जनयुद्ध की अपनी अवधारणा, रणनीतिक जवाबी हमले – आत्मरक्षा, दुश्मन का खात्मा, युद्ध के कार्य, बलों का केंद्रीकरण और विकेन्द्रीकरण, लोगों की राजनीतिक लामबंदी और अधिकारियों और सैनिकों, जनसेना और लोगों के बीच जैसी समस्याओं को ध्यान में रखा. प्राथमिक शर्त जनसेना को मुख्य संस्थागत रूप के रूप में बनाना होगा. गुरिल्ला युद्ध एक अपेक्षाकृत कमजोर बल के लिए सरकारी सशस्त्र बलों के खिलाफ लड़ने के लिए प्राथमिक है.
शहरी और ग्रामीण गुरिल्ला युद्ध का उपयोग किया जा रहा था और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और फासीवाद के शुरुआती दौर में ही सशस्त्र जन प्रतिरोध शुरू हो गया था. पूरे यूरोप में और खास तौर पर इटली, फ्रांस और स्पेन में गुरिल्लाओं ने गुरिल्ला तरीकों से फासीवादी ताकतों का कुशलतापूर्वक मुकाबला किया. कम्युनिस्टों के अलावा देशभक्तों ने भी इस तरह के संघर्ष में हिस्सा लिया. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी, राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष गुरिल्ला तरीकों को अपनाकर और जनयुद्ध की रणनीति के आधार पर अपने संघर्ष को मजबूती से जारी रख सकते थे. वे गुरिल्ला रणनीति को लागू करके लोगों को हथियारबंद करके अपने संघर्ष को जारी रख सकते थे.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवादियों, खासकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों को चीन, वियतनाम, उत्तरी कोरिया, क्यूबा और हिंद-चीन में हुए जनयुद्धों से भारी झटका मिला. इन जनयुद्धों ने स्थायी भय पैदा कर दिया. हाल ही में इराक, अफगानिस्तान और अन्य देशों के लोगों ने अमेरिकी और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के खिलाफ़ अपनी लड़ाई में गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल किया. वे दशकों तक साम्राज्यवादियों को लगातार रोके रख पाए.
साम्राज्यवाद में बढ़ते संकट के साथ ही एक बार फिर से पूरी दुनिया में फासीवाद उभर रहा है. एक तरफ जहां फासीवादी गुट और पार्टियां बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ राज्य और सरकारें और भी फासीवादी चरित्र प्राप्त कर रही हैं. दमनकारी तंत्र, हाईटेक तरीकों से खुफिया तंत्र कई देशों को पुलिस राज्य में बदल रहे हैं. नस्लीय अंधभक्ति, राष्ट्रवादी वर्चस्व, जातिवाद, धार्मिक उन्माद और ऐसी ही अन्य चीजें फासीवादी शासन के लिए मंच बन रही हैं.
ऐसी परिस्थितियों में, हम केवल जनयुद्ध के माध्यम से ही अत्यंत केंद्रीकृत राज्य, अत्याधुनिक हथियारों (जैसे हाईटेक मिसाइल, ड्रोन के माध्यम से बमबारी), सूचना प्रौद्योगिकी (जैसे 4जी और 5जी), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करने वाले शोषक शासकों का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकते हैं. फिलीपींस, तुर्की, भारत और पेरू जैसे देशों में माओवादी दलों द्वारा किए जा रहे जनयुद्ध एक मजबूत राज्य तंत्र के खिलाफ लड़ रहे हैं, इसे नष्ट करने के लिए गुरिल्ला तरीकों का उपयोग कर रहे हैं और जनयुद्ध के माध्यम से लोगों को लामबंद करने के नए अनुभव प्रदान कर रहे हैं.
निष्कर्ष
ऐसी स्थिति में सर्वहारा वर्ग को साम्राज्यवादी युद्धों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा. ऐसी स्थिति में जब समाजवादी आधार न हो, अगर युद्ध होता है, जैसा कि महान मार्क्सवादी शिक्षक लेनिन ने रूसी क्रांति में दिखाया था, तो हमें ‘युद्ध को गृहयुद्ध में बदलने’ की रणनीति अपनानी होगी. दुनिया के सामने आने वाले विभिन्न संकटों का अंतिम समाधान कम्युनिस्ट समाज में ही प्राप्त होगा.
अर्द्ध-औपनिवेशिक, अर्द्ध-सामंती देशों में दीर्घकालीन जनयुद्ध की राह पर नई जनवादी क्रांतियां चल रही हैं. फिलीपींस, तुर्की, भारत, पेरू और ऐसे ही अन्य देशों में जनयुद्ध चल रहे हैं, जो अपने साम्राज्यवादी आकाओं के समर्थन से देश के शोषक शासक वर्गों के दमनकारी अभियानों का सामना कर रहे हैं. कुछ अन्य देशों में तैयारियां चल रही हैं. वर्तमान स्थिति में दुनिया के सर्वहारा वर्ग के सामने यह काम है कि वह अर्द्ध-औपनिवेशिक, अर्द्ध-सामंती देशों और पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों में वर्ग संघर्षों को विकसित करे और सर्वहारा दलों को मजबूत करे.
आज हमें साम्यवाद, एमएलएम और क्रांतिकारी आंदोलनों पर विभिन्न प्रकार के संशोधनवादियों, नव-संशोधनवादियों, प्रतिक्रियावादियों के सैद्धांतिक हमले का सामना करने की जरूरत है. हमें माओवादी समझ के साथ अवसरवादी सिद्धांतों और नकली क्रांतिकारियों के विभिन्न प्रकार के निम्न-बुर्जुआ परिसमापनवादी सिद्धांतों का मुकाबला करना होगा, जो लोगों के दिमाग को दूषित करते हैं, जिसका उद्देश्य उन्हें युद्ध और क्रांति के मार्ग से हटाना और पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के सैद्धांतिक परिसमापन करना है. हमें दृढ़निश्चयी बोल्शेविक पार्टियों का निर्माण करना चाहिए, जो सर्वहारा सेना, वर्ग युद्ध, क्रांतिकारी युद्ध, दीर्घकालीन जनयुद्ध और क्रांतिकारी संयुक्त मोर्चा बनाने में सक्षम हों. हमें क्रांतिकारी आंदोलनों को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाना चाहिए.
इन कार्यों को पूरा करने के लिए, साम्राज्यवाद, संपूर्ण प्रतिक्रियावादी वर्गों और संपूर्ण दमन-उत्पीड़न से जनता को मुक्त करने के लिए; ताकि एक नई दुनिया, समाजवाद-साम्यवाद की स्थापना हो सके; आइए हम माओ त्से-तुंग के उस सिद्धांत को दोहराएं कि जनयुद्ध ही मुख्य हथियार है जो लंबे समय तक चलता रहेगा. यही कॉमरेड माओ को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
माओ ने कहा – ‘…विभिन्न देशों में लोग लगातार आक्रामकों को हराने के लिए क्रांतिकारी युद्ध लड़ रहे हैं. एक नए विश्व युद्ध का खतरा अभी भी बना हुआ है, और सभी देशों के लोगों को तैयार रहना चाहिए. लेकिन आज दुनिया में क्रांति ही मुख्य प्रवृत्ति है’ – ‘दुनिया के लोगों, एकजुट हो जाओ और अमेरिकी आक्रामकों और उनके सभी भागते कुत्तों को हराओ’, 23 मई, 1970.
फुटनोट :
- सीसीपीसीएमजी इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करता है तथा इसकी अधिकांश विषय-वस्तु से सहमत होता है, लेकिन दीर्घकालीन जनयुद्ध की सार्वभौमिकता का बचाव करता है.
- सीपी माओवादी इटली का मानना है कि जनयुद्ध पर माओ त्सेतुंग की शिक्षाएं सार्वभौमिक हैं, हालांकि उन्हें पूंजीवादी/साम्राज्यवादी देशों और साम्राज्यवाद द्वारा उत्पीड़ित देशों में विशिष्ट और विभिन्न रूपों में लागू किया जाना चाहिए.
- पीबीएसपी/बांग्लादेश ने रिजर्व के साथ हस्ताक्षर किए
- अन्य एमएलएम पार्टियां और संगठन इस संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर सकते हैं – csgpindia@gmail.com
Read Also –
माओ त्से-तुंग : जनता की लोकतांत्रिक तानाशाही पर, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की अट्ठाईसवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में
माओवादी कौन हैं और वह क्यों लड़ रहे हैं ? क्या है उनकी जीत की गारंटी ?
भारत की क्रांति के आदर्श नेता व भाकपा (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य कॉ. अक्किराजू हरगोपाल (साकेत) एवं उनके एकमात्र पुत्र ‘मुन्ना’ की शहादत
दस्तावेज : भारत में सीपीआई (माओवादी) का उद्भव और विकास
कार्ल मार्क्स : ‘विद्रोह न्यायसंगत है’ – माओ त्से-तुंग
अक्टूबर (नवम्बर) क्रांति पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का दृष्टिकोण
‘भारत में वसंत का वज़नाद’ : माओ त्से-तुंग नेतृत्वाधीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के मुखपत्र पीपुल्स डेली (5 जुलाई, 1967)
परिष्कृत दस्तावेज : चीन एक नई सामाजिक-साम्राज्यवादी शक्ति है और वह विश्व पूंजीवाद-साम्राज्यवादी व्यवस्था का अभिन्न अंग है – भाकपा (माओवादी)
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]