सौमित्र राय
उधर मणिपुर मामले पर प्रधानमंत्री आज बोले–दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और इधर दिल्ली की राउस एवेन्यू कोर्ट ने बृजभूषण शरण सिंह को जमानत दे दी. विश्वगुरु आज पूरी दुनिया के सामने नंगा खड़ा है, ठीक 2002 की तरह. बीजेपी को आज पटाखे फोड़ना चाहिए. नंगेपन का भी जश्न होता है.
मणिपुर में महिलाओं के साथ अत्याचार के सैंकड़ों एफआईआर दर्ज हैं. बता रहे हैं वहां की डबल इंजन सरकार के मुख्यमंत्री. इसीलिए इंटरनेट बंद किया हुआ है, ताकि सच बाहर न आ सके. आज ही मोदीजी पहली बार बोले हैं–140 करोड़ देशवासियों का सिर शर्म से झुका हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई ने संज्ञान लिया है. मणिपुर में सिविल वॉर छिड़ा है. वीडियो सामने आया तो गोदी मीडिया जागी है.
मणिपुर में सैकड़ों मैतेई पुरुषों के द्वारा सरेआम नग्न कर घुमाई और गैंगरेप का शिकार बनाई गई वे दो कुकी महिलाएं कौन थी ? वे आदिवासी थी. वे इस देश की मूल निवासी थी. आर्यों से भी पहले. फिलहाल, वे विश्वगुरु और जी20 के मुखिया भारत में गृह युद्ध के बीच फंसी हैं.
वन अधिकार कानून को उठाकर देख लीजिए, जिसकी प्रस्तावना में ही तब की कांग्रेस सरकार ने कहा है कि अंग्रेजों से लेकर बाद की सरकारों ने इन आदिवासियों के साथ ऐतिहासिक अन्याय किया है. किस तरह का ऐतिहासिक अन्याय ? हमारे महान विद्वानों ने कभी जानने की कोशिश की है ?
हमारे समाज, सिस्टम और इस देश के लोकतंत्र ने उन्हें जंगलों से इसलिए खदेड़ा क्योंकि हमें उनकी जमीन, पानी और जंगल कब्जाने थे. हम उन्हें अशिक्षित, गंदे, जंगल आधारित खान–पान का आदी मानते हैं. उन्हें इंसान नहीं मानते. हमारे दिमाग में उन राक्षसों की कल्पना भरी है, जो इंसानों को खा जाते हैं.
हम उनकी पेंटिग्स बड़े शान से ड्राइंग रूम में टांगते हैं. उनकी लकड़ियों से बने फर्नीचर पर हम इतराते हुए बैठते हैं. हमने आदिवासियों को सिर्फ शोषक की नजर से ही देखा है. गुलाम, मजदूर, अनपढ़, मांसभक्षी राक्षस. उनका इस्तेमाल कर फेंक देने की पूरी छूट आपको है.
अब नरेंद्र मोदी सरकार ने इन जंगलों को कॉर्पोरेट्स को बेच दिया है. सुप्रीम कोर्ट में हसदेव पर छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार का बेशर्म हलफनामा देखिए, ऐतिहासिक अन्याय समझ आएगा. पिछले दिनों एक बाभन ने एमपी में एक आदिवासी पर मूत दिया. हमारे बेशर्म समाज पर कोई असर नहीं हुआ. हम और बेशर्म हो गए.
असल में हम अपनी गलतियों को ढंकने के लिए बेशर्म, शर्मनाक जैसे छोटे शब्दों का प्रयोग करते हैं. हम कमज़ोरों के साथ खड़े नहीं हो पा रहे हैं. हमारे पैर कांपते हैं. हमने बेशर्मी की भी राजनीतिक, सामाजिक परिभाषा और दायरे सोच लिए हैं.
हमें इस सत्ता की आदिवासियों के प्रति असल मंशा तब भी समझ नहीं आती, जब देश की आदिवासी राष्ट्रपति को मंदिर में गर्भगृह के बाहर खड़ा पाते हैं. नरेंद्र मोदी इस देश को भारत और न्यू इंडिया कहते हैं. इसी भारत में दो आदिवासी महिलाओं को नंगा घुमाया गया है.
मणिपुर में इंटरनेट बंद है. वहां क्या हो रहा है, किसने क्या किया, कमज़ोरों पर क्या अत्याचार हुए–दुनिया को नहीं पता. वास्तव में, इस देश को पूरी तरह कॉर्पोरेट्स को बेचने की हवस में मौजूदा सत्ता की चादर इतनी मैली हो चुकी है कि उसकी सड़ांध यूरोप तक जा पहुंची है.
फिर भी सत्ता इसे भारत का आंतरिक मामला बताती है. उसे मालूम है कि उसकी मैली चादर नहीं धुल सकती. और न ही इस समाज की, जो औरत को प्लॉट मानने वाले एक फर्जी बाबा के आगे सिर झुकाता है. उम्मीद है कि आगे भी हम सब मिलकर आदिवासियों के प्रति ऐतिहासिक अन्याय करते रहेंगे. कभी गैंगरेप, कभी मूतकर तो कभी उन्हें बदबूदार गटर में उतारकर.
हमें अपनी बदबूदार मैली चादर में चरमसुख मिल रहा है. हम उसी चादर को ओढ़े अंग्रेजों से लड़ने वाले आदिवासी वीरों के बुतों पर मालाएं चढ़ाने का पाखंड करते रहेंगे. डॉ. मेडुसा की यह अपील बेअसर रहेगी. राष्ट्रपति एक औरत, एक आदिवासी जरूर हैं लेकिन वह सत्ता से बंधी हैं. उनके हाथ बंधे हैं, इस देश के 15% मिडिल क्लास की तरह.
डॉ. मेडुसा की अपील
चलिए, मणिपुर की असल कहानी सुनाता हूं. यह सिर्फ मणिपुर ही नहीं, देश के उन सभी राज्यों की कहानी है, जहां आदिवासी इलाकों में खनिज संपदा है. नीचे जीएसआई का एक सर्वे मानचित्र है. इस मैप में दिखाया गया है कि मणिपुर के जंगलों में निकल, तांबा और प्लेटिनम समूह की धातुएं हैं.
मणिपुर के जंगलों में कुकी आदिवासी रहते हैं. मणिपुर की 80% जमीन पहाड़ी, यानी कुकी की है. बीजेपी ने क्या किया ? उसने मैदानों में मैतेई को एसटी का दर्जा दे दिया ताकि वे पहाड़ों पर कब्जा कर सकें.
4 मई को दंगा भड़काने के लिए एक फर्जी वीडियो शेयर किया गया, जिसमें प्लास्टिक के बॉडी बैग में लिपटी दिल्ली की एक लड़की को मैतेई महिला बताकर झूठी कहानी गढ़ी गई. नतीजतन सैकड़ों मैतेई मर्दों ने 2 कुकी महिलाओं को सरेआम नंगा कर उनके साथ गैंगरेप किया. सोचिए कि ऐसे फेक वीडियो भला किस फैक्ट्री में बनते होंगे ? ठीक समझे.
असल में पीएम मोदी की मणिपुर पर चुप्पी इसलिए भी है, क्योंकि उन्होंने राज्य के पहाड़ों को अपने दोस्त कॉर्पोरेट्स को बेच दिया है. जी हां, मणिपुर बिक चुका है. उसकी जमीन पर कीमती खजाना नीलाम हो चुका है. कुकी आदिवासियों के रहते पहाड़ों को खोदना मुश्किल है, सो जातीय नरसंहार जारी है.
मोदी सरकार की चाल है कि मैती उन पहाड़ों पर कब्जा कर कुकी को खदेड़ दें, फिर वे जंगलों को मोदी के दोस्तों को बेच दें. मैंने जिस ऐतिहासिक अन्याय की बात लिखी थी, वह हो रहा है, क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री मोदी यही चाहते हैं. बाकी आज सुबह उन्होंने जो कहा उसे बकवास साबित करने को आज की ये दो खबरें काफी हैं. देश लुट चुका है दोस्तो. अब मुर्दे की चीड़–फाड़ चल रही है.
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