Home गेस्ट ब्लॉग मंहगाई से जीना हुआ मुहाल

मंहगाई से जीना हुआ मुहाल

2 second read
0
0
621

मंहगाई से जीना हुआ मुहाल

2021 कीमतों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी के लिए जाना जाएगा. पेट्रोल छह प्रमुख शहरों में 100 रुपये प्रति लीटर के ऊपर पहुंच गया है, डीजल भी उसी राह पर है – अधिकांश दालें 100 रुपये प्रति किलो के ऊपर पहुंच गई हैं. खाने के तेल की कीमतें तो आसमान छू रही हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले एक वर्ष में खाद्य तेलों की कीमतें 60% ऊपर गई हैं – सरसों के तेल की औसत कीमत खुदरा बाजार में पिछले साल के 118 रुपये से बढ़कर 181 रुपये किलो हो गई है. चावल जो 80% आबादी का मुख्य भोजन है, वह भी महंगा होता जा रहा है. सब्जी विशेषकर प्याज और टमाटर महंगे होते जा रहे हैं.

बढ़ती महंगाई की वजह से कितने घरों में दो की जगह एक बार ही चूल्हा जलता है. बेरोजगारी चरम पर है. पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष का लॉकडाउन मजदूरों, किसानों और निम्न मध्यम आय के लोगों के लिए अधिक संकटपूर्ण रहा. आय गिरती जा रही है, खर्चे बढ़ते जा रहे हैं. कल कारखाने बंद होने के कारण प्रवासी मजदूरों की सुध लेने वाला कोई नहीं.

स्टेशन के कुल्ली, दिहाड़ी मजदूर, घरों में छोटे-मोटे धंधे चला कर जीविका कमाने वाले कठिन दौर से गुजर रहे हैं. लाखों परिवार हैं, जिन्होंने घर के खर्चे चलाने वाले को कोरोना में खो दिया है. महिलाएं, बच्चे, बूढ़े अनाथ हो गए हैं. आमदनी का कोई जरिया नहीं रह गया है.

पेट्रोल और डीजल की कीमतें पिछले एक महीने में 15 बार बढ़ी है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ. कीमतें सरकारी क्षेत्र की तेल की कंपनियां तय करती है, जिनका आधार अंतरराष्ट्रीय कीमत वैट और स्थानीय कर कंपनियों का मुनाफा और ढुलाई के खर्चे होते हैं.

कई बार अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने पर भी देश में कीमतों पर असर नहीं पड़ता. पेट्रोल-डीजल राज्यों की आय के बड़े साधन हैं, विभिन्न राज्यों में टैक्स की दरें अलग-अलग हैं। राज्य सरकारें टैक्स घटने को राजी नहीं होती और ना ही कंपनियां अपना मुनाफा कम करने की. कीमतें जितनी बढ़ती हैं, राज्य सरकारों और कंपनियों को फर्क नहीं पड़ता, पिसा जाता है आम आदमी.

परिवहन और यातायात के सभी साधन मंहगे होते जाते हैं, जिसका असर सभी चीजों की कीमतों पर पड़ता है. ट्रैक्टर और वाटर पंप, मोटरसाइकिल, स्कूटर, ऑटो रिक्शा, कार, बस, ट्रक, रेलवे, पानी और हवाई जहाज सभी के खर्चे बढ़ जाते हैं, जो सभी चीजों की कीमतें बढ़ाते हैं.

खाने का तेल रसोई की मुख्य चीज है, उस पर होने वाला खर्च तेजी से बढ़ रहा है. पिछले एक वर्ष में खाद्य तेलों की कीमतों में अप्रत्याशित बढोतरी हुई है. सनफ्लावर 56%, सोयाबीन 52%%, सरसों 44%, मूंगफली 21% खाद्य तेलों की मांग और पूर्ति में बड़ा अंतर है. देश में कुल उत्पादन 8 से 11 मिलियन टन प्रति वर्ष होता है जबकि मांग 24 मिलियन टन के आसपास है. कुल जरूरत का लगभग 60% आयात करना पड़ता है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बढ़ने से आयात महंगा हो जाता है, जो यहां भी कीमतों में उछाल ला देता है.

हरित क्रांति के तर्ज पर सरकार ने निर्णय लिया है कि तिलहन की उन्नत किस्म के बीज किसानों को मुफ्त दिए जाएंगे. अभी तिलहन की खरीद सरकार बहुत कम मात्रा में करती है, जिसे बढ़ाने की जरूरत है. दालों के बिना भोजन नहीं होता. अरहर, मसूर, मूंग, उड़द सभी दालों की कीमतों में वृद्धि हुई है. पिछले महीने अरहर 118, मूंग 120, मसूर 90, उड़द 96 रुपये किलो के आसपास बिक रही थी.

कोरोना ने दवाइयों और इलाज पर खर्चे बढा दिए हैं. प्राइवेट अस्पतालों में तो 5,00,000 से 25,00,000 रुपये तक का खर्च आ जाता है, जो आम आदमी के बस का नहीं है. सरकारी अस्पतालों में बेड ऑक्सीजन दवाइयों की कमी और अन्य सुविधाओं के अभाव हैं. संकट की घड़ी में दवाओं और ऑक्सीजन सिलिंडर जैसी आवश्यक चीजों की कालाबाजारी लोगों की मुसीबतें और बढ़ा दी है.

पिछले वित्त वर्ष में कोरोना की वजह से लॉकडाउन के कारण जीडीपी विकास दर 7% था जो पिछले 2 दशकों का सबसे कम है. विश्वव्यापी महामारी में अन्य देशों की अपेक्षा भारत में मृत्यु दर कम अवश्य रही है. राहत पैकेज, दवाएं, ऑक्सीजन एवं वैक्सीन उपलब्ध कराने की सरकार की छोटी पहल का लाभ भी मिला किंतु अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा.

वर्तमान वित्त वर्ष में विकास दर 90 के लगभग अनुमानित है किंतु यह इस पर निर्भर करेगा कि कोरोना पर कितना नियंत्रण हो पाएगा और आर्थिक गतिविधियां कितनी तेजी से सामान्य होगी. कोरोना के पहले चरण में शहरों में इसका प्रभाव अधिक था जबकि दूसरे चरण में गांव भी प्रभावित हुए.

शहरों में मई 2021 में बेरोजगारी 18% दर्ज की गई जो एक रिकॉर्ड हो गया. गांव में 10% बेरोजगारी का अनुमान है. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के कारण गांवों में बेरोजगारी शहरों की अपेक्षा कम रही. शहरी बेरोजगारी कुछ महीनों तक रह सकती है क्योंकि आर्थिक गतिविधियों को पूरी तरह से पटरी पर लाने में समय लगेगा.

आईटी व संबंधित उद्योगों को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों के उत्पादन में गिरावट आई है. तेजी से उपभोग में आने वाली वस्तुओं, ऑटोमोबाइल, टूरिज्म, होटल और रेस्टोरेंट एवं अधिकांश सेवाओं और व्यवसायों में स्थिति सामान्य नहीं हुई है. रिटेल बिजनेस बड़ी कॉमर्स कंपनियों के हाथों में जा रहा है, जो छोटे दुकानदारों के लिए खतरे की घंटी है. रोजगार के अवसर इसके कारण भी घट रहे हैं.

लाकडाउन के समय ई कंपनियों के व्यापार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जिसके आगे भी जारी रहने की पूरी संभावना है. इस क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के अलावा देश के बड़े उद्योगपति भी निवेश करने लगे हैं. अर्थव्यवस्था में पूंजीपतियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जो गरीबों और अमीरों की बीच की खाई बढ़ा रहा है.

शेयर बाजार में कीमतें उछाल पर हैं, जिसका सीधा लाभ बड़े निवेशकों को हो रहा है. औद्योगिक उत्पादन की दर नहीं बढ़ रही. कंपनियों का मुनाफा फिर भी बढ़ रहा है, जो विरोधाभास है. कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ी है फिर भी छोटे किसान बड़ी संख्या में गरीबी रेखा के नीचे हैं. गांवों में रोजगार के साधन पहले से भी कम हो गए हैं.

बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर गांवों से शहर नहीं लौट रहे हैं क्योंकि कोरोना के संभावित अगले चरण के कारण अनिश्चितता बनी हुई है. आम आदमी की आमदनी घट रही है, किंतु खर्च बढ़ रहे हैं. इस स्थिति में बदलाव लाना जरूरी है.

  • प्रो. लल्लन प्रसाद

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…