Home कविताएं चमत्कारों से घिरा पुरूष

चमत्कारों से घिरा पुरूष

0 second read
0
1
143
चमत्कारों से घिरा पुरूष
चमत्कारों से घिरा पुरूष

चमत्कारों से घिरा पुरूष
उन दिनों पुरूष नहीं था
महज एक इंसान था
बाढ़, तूफान उसे डराते थे,
तो गुनगुनी धूप और जंगलों में उलझी हवा उसे सहलाती थी
आसमान के बदलते रंग उसे आश्चर्य से भर देते
कभी खौफ से तो कभी खुशी से

उन दिनों भी पुरूष रंगों से परिचित था
लाल रंग से भी
उसे पता था लाल रंग का महत्व
जो शरीर से ज्यादा निकल जाए तो आदमी सो जाता था
हमेशा के लिए

लेकिन वह इस बात से चमत्कृत था कि
औरत नियमित अंतराल पर निकालती है गाढ़ा लाल रक्त
और उसके बाद भी कुलांचे भरती है जंगलों में
किसी हिरनी की तरह

न जाने कौन सी आदिम आग उसे औरत के करीब लाती
जिसे समझना नामुमकिन था उन दिनों

लेकिन औरत का किसी बारिश की मछली सा फूल जाना
और फिर उसके शरीर को चीरकर
एक नन्हे शरीर का बाहर आना
पुरुष के लिए किसी जादू से कम नहीं था
यह जादू औरत ने कहां से सीखा ?
यह चमत्कारी ताकत औरत में कहां से आयी?

क्या जंगल के लाल फूल रात में औरतों के अंदर समा जाते हैं ?
या औरत के रक्त से ही ये लाल फूल खिलते हैं ?

पुरुष नतमस्तक था, औरत का सहचर था

समय बदला
सभ्यता की शुरुआत हुई

औरत इस सभ्यता की पहली कैदी बनी
औरत का लाल रक्त अब लाल फूल नहीं था
बल्कि उसके ‘पहले पाप’ की स्वीकारोक्ति थी
जिसे छिपाना जरूरी था
बच्चे अब औरत के शरीर का हिस्सा नहीं थे
बल्कि वीर्य की उपज थे
जिसे बंधुआ कोख में बोया जाता था
औरत अब जंगल में कुलांचे भरने वाली हिरनी नहीं थी
बल्कि प्रकाश के इंतजार में एक अंधेरी गुफा थी

समय फिर बदला….
अचानक कुछ स्त्री-पुरुषों के स्वप्न में लाल फूल दिखने लगा
लाल फूल, लाल रक्त में और लाल रक्त, लाल फूल में बदलने लगा
पुरुष में इंसान बनने की तड़प तेज़ हो गयी
वह फिर से लाल फूलों की खुशबू, अपने फेफड़ों में भरना चाहता था
औरत फिर से कुलांचे भरना चाहती थी
अपनी गुफा में सूरज बुलाना चाहती थी
टूट कर प्यार करना चाहती थी

लेकिन अब यह किसी जादू पर निर्भर नहीं था
बल्कि सांझे सपने और सांझी बगावत पर निर्भर था
सांझी बगावत उस जादू के खिलाफ

जिसने औरत से उसका इतिहास और
पुरुष से उसका भविष्य छीना था.

  • मनीष आजाद

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
  • प्रहसन

    प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे किसी ने राजा में विदूषक देखा था किसी ने विदूषक में हत्य…
  • पार्वती योनि

    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ? रची थी कौन-सी लीला ? ? ? जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…