कनक तिवारी
फिलवक्त मूल कांग्रेस की तेजतर्रार सांसद महुआ मोइत्रा पर भाजपा के निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि उन्होंने संसद में सवाल पूछने के लिए हीरानंदानी ग्रुप के बिल्डर दरशन हीरानंदानी से भेंट और रिश्वत तोहफे में स्वीकार की है. महुआ मोइत्रा इस पर कानूनी कार्यवाही कर रही हैं लेकिन मेरा मकसद उस मामले में पड़ना नहीं है. मैं महुआ से उस वक्त प्रभावित हो गया था. जब लोकसभा में उन्होंने अपना पहला भाषण देकर भारी भरकम सरकारी ताकत की जगहंसाई करा दी थी और उनके मुंह बंद हो गए थे. तब मैंने सांसद महुआ मोइत्रा पर एक लेख लिखा था, जब उन्होंने लोकसभा में पहली बार अपना तेजतर्रार भाषण दिया था. महुआ के तेवर जस के तस हैं, जो अभी लोकसभा में फिर उनकी तकरीर में देखने मिला.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शेरनी की तरह दहाड़ती हैं. उन्होंने पार्टी का एक नुमाइंदा लोकसभा में महुआ मोइत्रा के नाम से निर्वाचित कराया है. अपने पहले भाषण में महुआ ने दो तिहाई बहुमत की संसदीय हेकड़ी के तैश को समझा दिया कि कपड़ा धोबी के यहां कितना भी साफ सांप्रदायिक भावनाएं भड़काकर धो लिया गया हो, उस पर लोकतंत्रीय इस्तरी चलाने से ही संसद की व्यापक समझ का मानक पाठ तैयार किया जा सकता है. अपने पहले क्रिकेट मैच में महुआ ने लोकसभा की पिच पर छक्का लगा दिया. बीच बीच में दो तिहाई वाले भारी भरकम सत्ता पक्ष की व्यवधानी हुल्लड़ सुनने में बेहूदी लगी.
लोकसभा में दिया जा रहा महुआ का भाषण जैसे हिन्दुस्तान का जख्मी और कराहता हुआ मौजूदा इतिहास इंसानी प्रतिनिधि बनकर देश के नागरिकों की चेतना को झिंझोड़ रहा है. महुआ मोइत्रा की तरह यदि छह सांसद भी संसद की तकरीरों में इसी तरह सजग रहे, तो भारी भरकम सत्तामूलक धड़े का हुल्लड़बाज हिस्सा अपने उस लक्ष्य तक तो पहुंचने में कठिनाई महसूस करेगा, जो एक बरसाती नदी के मजहबी, उद्दाम उफान की तरह हिन्दुस्तानियत की सदियों पुरानी उगी फसल को बेखौफ होकर काफी कुछ बहा ले गया.
अवाम की दौलत का केवल एक पार्टी और एक नेता के लिए दुरुपयोग हो रहा है. देश के चुनिंदा काॅरपोरेटी ही मीडियामुगल हैं. सत्ता और संपत्ति के गठजोड़ का खुला खेल चल रहा है. उसकी परत परत नोचकर महुआ ने संसद को अभियुक्त भाव से आंज भी दिया. मार्मिक सवाल पूछा कि देश की सेना तो देश की सेना है, वह एक व्यक्ति की सेवा में चुनाव प्रचार का एजेंडा कैसे बन सकती है. यह वह भाषण था जिसने मार्क एंटोनी भले न हो, मधु लिमये, हीरेन मुखर्जी, नाथ पई, हेम बरुआ, सोमनाथ चटर्जी और राममनोहर लोहिया की एक साथ याद दिला दी.
सरकार के मुख्य घटक भाजपा की पूरी नीयत और ताकत जवाहरलाल नेहरू के रचे लोकशाही के एक-एक अवयव पर निजी हमला करने की है. महुआ ने राजस्थान के पहलू खान और झारखंड के तबरेज अंसारी का नाम लेकर माॅब लिंचिंग की ओर अपनी आवेशित करुणा के जुमले में हमला किया. महुआ मोइत्रा के संदेश में भारतीय नवोदय के अशेष हस्ताक्षरों राजा राममोहन राय, रवींद्रनाथ टैगोर, काज़ी नजरुल इस्लाम, विवेकानन्द और सुभाष चन्द्र बोस आदि की सामूहिक संकेतित अनुगूंज थी.
लगभग कारुणिक तैश में इस महिला सांसद ने कहा आज भारत में एकल तरह की राष्ट्रीयता या संस्कृति अमल में लगभग हत्यारिणी है. लोगों को घरों से निकालकर सड़कों पर कत्ल किया जा रहा है. असम का उल्लेख करते कहा राष्ट्रीय नागरिकता, रजिस्टर जैसे मुद्दे की आड़ में इस देश के गरीब, मजलूम और अशिक्षित लोगों से पूछा जा रहा है कि वे दस्तावेजी सबूत दें कि कब से भारत के नागरिक हैं.
व्यंग्य की भृकुटि में महुआ ने चेहरे पर कसैलापन लाते सरकारी बेंच की तरफ तीखा सवाल किया. इस देश में तो मंत्री तक अपनी पढ़ाई की डिग्री बताने में नाकाबिल रहे हैं. 2014 से 2019 के बीच देश में मानव अधिकारों का उल्लंघन कम से कम दस गुना बढ़ गया है. संसद घमंड नहीं करे कि सरकार के पास जरूरत से ज्यादा बहुमत है. उससे कमतर संख्या के विपक्ष को ज्यादा जवाबदारी के साथ जम्हूरियत की हिफाजत करनी होगी.
अपने भाषण के संयत आचरण के लिए महुआ ने बहुत अदब और सम्मान के साथ देश के महान नेता मौलाना आजाद की याद की और उनके कहे उद्धरण का पाठ किया. सच है, लोगों को भले अन्यथा समझाया जाता हो लेकिन 70 बरस पुराना लोकतंत्र और संविधान कहीं न कहीं दरक तो जरूर रहे हैं. उनके भाषण में एक देशभक्त की पीड़ा एक बुद्धिजीवी के कथन की भविष्यमूलकता और एक आम नागरिक से सरोकार रखने की सैद्धांतिक और प्रतिनिधिक कशिश ने एक साथ तृणमूल कांग्रेस की. इस युवा सांसद के भाषण को संसद के अभिलेखागार में अपनी सम्मानित जगह पर रखने का वचन तो वक्त ने दिया होगा.
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