पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग चूका है और 4 जगह जोड़-तोड़ करके (एक जगह तो मात्र 2 सीट आने पर भी) सरकार बना चुकी बीजेपी महाराष्ट्र में जनमत की दुहाई दे रही है ! शिवसेना के ठाकरे परिवार की महत्वाकांक्षा के कारण बीजेपी- शिवसेना का गठ बंधन टूट गया लेकिन असल में तो बीजेपी से जुड़कर शिवसेना हमेशा नुकसान में ही रही. लोकमत न्यूज़ के आंकड़ों के हिसाब से देखे तो शिवसेना बीजेपी से जुड़कर हमेशा अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारती रही.
1990 में जब सांप्रदायिकता को मुद्दा बनाकर बीजेपी (तब शिवसेना के साथ उसका गठबंधन नहीं था) तब के चुनाव में 42 सीट ही हासिल कर पायी थी, जबकि शिवसेना को तब 52 सीट मिली थी.
1995 में जब सांप्रदायिकता चरम पर पहुँच चुकी थी और राममंदिर मुद्दा उछालकर आडवाणी बीजेपी को मेंन फ्रंट में स्थापित कर चुके थे तब भी महाराष्ट्र में बीजेपी 65 सीट ही निकाल पायी जबकि शिवसेना ने उस समय 73 सीटों पर अपना वर्चस्व बनाया.
1999 के चुनाव में जब सांप्रदायिकता का दौर थोड़ा थम चूका था तब बीजेपी ने 56 और शिवसेना ने 69 सीट पर विजय पताका फहराई.
2004 के महाराष्ट्र चुनाव में भी बीजेपी 54 तथा शिवसेना 62 सीट पर थी.
2009 के चुनाव जब मनमोहन सिंह द्वारा नव उदारवाद स्थापित हो चूका था और लोग सांप्रदायिकता की जगह अपनी कमाई पर फोकस कर रहे थे, तब दोनों ही पार्टियों की अवनति हुई और गठजोड़ में नुकसान शिवसेना को ज्यादा हुआ क्योंकि बीजेपी 46 पर और शिवसेना 44 पर आ गयी.
2014 में मोदीवाद अपने चरम पर पहुँच चूका था और मोदी को एक राष्ट्रिय नेता के रूप में प्रचारित कर देश पर थोपा जा चूका था और इसके लिये वोट नहीं, मशीने खरीदी गयी थी और इसका नतीजा महाराष्ट्र में भी देखने को मिला, जिसमे बीजेपी 46 से सीधी 122 पर आ गयी अर्थात जो पार्टी हमेशा 50 के आसपास रही (आयोध्या कांड करवाने के बाद भी), वो मोदी काल में सीधा 150% तक उछाल मारकर 122 पर पहुँच गयी जबकि जिस शिवसेना का वर्चस्व ही ठाकरे परिवार की वजह से था, वो नीचे गिरकर 63 पर ही सिमट गयी जबकि आयोध्या कांड के बाद जब बीजेपी का वर्चस्व पुरे देश में सांप्रदायिक तौर पर स्थापित हो चूका था, उस समय भी शिवसेना ने 73 सीट निकाली थी.
अब 2019 में भी बीजेपी ने लगभग वही आंकड़ा मशीनों में सेट किया लेकिन पिछले चुनावो में मशीन का बवाल मच चूका था इसलिये जान सांसत में न आये उस हिसाब से आंकड़े को थोड़ा कम कर दिया गया क्योंकि बीजेपी शिवसेना को कम करके आंक रही थी और सोच रही थी कि आज के मोदियुग में सब उसके सामने झुकने को मजबूर होंगे. और इस तरह मिल-जुलकर सरकार बनाने से कोई बवाल भी नहीं मचेगा. लेकिन बीजेपी का ये गणित शिवसेना की महत्वकांक्षा के आगे धराशायी हो गया और शिवसेना 56 पर सिमटने के बावजूद कहीं न कहीं ये समझ चुकी है कि बीजेपी के साथ मिलकर उसने खुद के पैरो में कुल्हाड़ी मारी और स्वयं की वोट बैंक का नुकसान किया.
इसलिये अपने वर्चस्व की लड़ाई में उसकी महत्वकांक्षा स्वयं शासन में आने की हुई और मुखौटा बनाया गया आदित्य ठाकरे को. जबकि शिवसेना अच्छे से जानती थी कि कोई भी उसे स्वीकार नहीं करेगा मगर बीजेपी को गफलत में रखने के लिये ये मुखौटा जरूरी था. असल लक्ष्य तो उद्धव ठाकरे को ही भेदना था, मगर बीजेपी उसकी सीटों में कोई गड़बड़ी न करे इसलिये उसे परदे के पीछे तुरुप कार्ड बनाकर रखा गया ताकि बाद में सरप्राइज के तौर पर उसे खेला जा सके और यही हुआ भी. और इस तरह बीजेपी का सपना टूट गया और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा लेकिन बीजेपी अब भी अपना मायाजाल रच रही है और किसी ऐसे जुगाड़ में लगी है, जिससे वो सरकार बना सके.
महाराष्ट्र की महाभारत का मजा लेने के लिये आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. मगर जितना मैंने समझा है उस हिसाब से आपको बता रहा हूँ कि महाराष्ट्र में शिवसेना का सपना सपना रहेगा और बीजेपी अपना जोड़-तोड़ बिठकार सरकार बनायेगी. दुबारा चुनाव नहीं होगा (अगर दुबारा चुनाव होता है इसका मतलब ये होगा कि बीजेपी से मोदि-शाह युग समाप्ति की ओर जा रहा है).
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