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महामारी भाग – 1

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महामारी भाग - 1

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

हमारे देश की वर्तमान जनसंख्या लगभग 133 करोड़ है, जिसमें से 33 करोड़ की जनसंख्या 16 साल से कम उम्र की है. और अगर हालिया कोरोना महामारी के हालात पर नजर डाले तो स्पष्ट प्रतीत होता है कि 12 मई तक लगभग 30 करोड़ लोग (गैर सरकारी आंकड़ों के हिसाब से) संक्रमित हो चुके हैं. सरकारी आंकड़ों में ये संख्या ढाई करोड़ बतायी जाती है लेकिन असल स्थितियां बहुत भयावह हो चुकी है और सरकार या तो असली आंकड़े छुपा रही है या फिर सरकार के पास सही आंकड़े उपलब्ध ही नहीं है. (न्यूज चैनलों में डेली आंकड़े कम करके दिखाने शुरू हो चुके हैं, मगर असल में ये आंकड़े कम टेस्ट होने और लॉक-डाउन लगने की वजह से कम आ रहे हैं. अगर टेस्टिंग बढ़ाई जाये तो ये आंकड़े मेरे अंदेशे से मैच हो जायेंगे.)

इसका गणित ऐसे समझिये कि 133 करोड़ की आबादी में 100 करोड़ की जनसंख्या 16 वर्ष से ऊपर की है और सारे लोग तो काम करते ही नहीं होंगे अर्थात इसमें बुजुर्ग, अपाहिज और घरेलु महिलायें भी शामिल हैं, जो किसी भी प्रकार से वर्किंग लेबल पर नहीं है. इन सबकी आबादी मिलाकर कम से कम 20 करोड़ तो होगी ही. तो बचे 80 करोड़. अब इन 80 करोड़ में 20 करोड़ की वो आबादी भी घटाइये जो 16 से 25 वर्षायु की है और छात्र है अर्थात वो भी कोई काम नहीं करते (हालांकि छात्र आंकड़ा इससे ज्यादा भी हो सकता है) और स्कूल कॉलेज बंद होने की वजह से घर पर ही हैं.

अब बचे 60 करोड़ लोग, तो इनमें से 30 करोड़ लोग ऐसे है जो निम्न और मध्यम-निम्न वर्गीय हैं और ऐसे रोजगारों में है जो हमेशा भीड़भाड़ युक्त ही रहते हैं, जैसे कल-कारखानों में, फैक्ट्रियों में, थडियों में, रेहड़ियों में, किराणा-परचून में और ऐसे कार्यों में सलंग्न रहते हैं. बाकी के 30 करोड़ में 25 करोड़ किसान-कृषि से जुड़े लोग है और शेष बचे सिर्फ 5 करोड़ लोग वो हैं, जो धनवान, शासन-प्रशासन, नेता या बड़े कारोबारों से जुड़े हैं. तो इन 60 करोड़ में 5 करोड़ और घटा देते हैं. बचे 55 करोड़ लोग.

सरकारी आंकड़ों में भले ही पेंच डालकर आंकड़े कम दिखाये जा रहे हो लेकिन मुझे स्पष्ट रूप से ये लगता है कि संक्रमण इसी 55 करोड़ लोगों की वजह से फ़ैला है और वर्तमान में कम से कम 25% लोग तो इनमें जरूर संक्रमित हो ही चुके होंगे. और अगर हरेक ने कम से कम एक और व्यक्ति को संक्रमित किया होगा तो भी ये संख्या लगभग 28 करोड़ होती है, जो मेरे अंदेशे के बहुत करीब है. सरकार आंकड़े छुपाकर भी अपना भय नहीं छुपा पा रही है और लॉक-डाउन के माध्यम से ये उजागर भी हो रहा है जो मेरे अंदेशे को बल देता है.

हमारी स्वास्थ्य सेवायें लचर है और प्रतिव्यक्ति के हिसाब से उपलब्ध भी नहीं है. अगर ऐसे में कम्युनिटी स्प्रेड होता है तो ये भीड़-भाड़ में रहने वाली 55 करोड़ की आबादी पूरी तरह ख़त्म हो जायेगी और साथ में इनकी ट्रीट से लेकर अंतिम संस्कार की व्यवस्था में लगे कम से कम 10 करोड़ लोग और इनकी वजह से ख़त्म हो जायेंगे, जो मेडिकल से लेकर प्रसाशन तक और पारिवारिक से लेकर श्मशान-कब्रिस्तान तक के लोग होंगे. (मैंने पूर्व में लिखा ही था कि अगर कम्युनिटी स्प्रेड हुआ तो भारत की लगभग आधी आबादी ख़त्म हो जायेगी).

जरा सोचकर देखिये कि इस आधी से ज्यादा आबादी को बचाने की जिम्मेदारी किसकी है ? सरकार की न ? तो सरकार कोरोना महामारी से इतनी बड़ी आबादी को बचाने के लिये संपूर्ण लॉक-डाउन की घोषणा कर उन्हें बचाने का आगाज क्यों नहीं कर रही है ? क्या देश की सत्ता के लिये ये आधे से ज्यादा कमाऊ आबादी कोई महत्त्व नहीं रखती ?

सरकार ये क्यों भूल रही है कि यही वो 55 करोड़ की आबादी है जो सबसे ज्यादा छोटे धन का रोटेशन करती है और सबसे ज्यादा चीज़ें खरीदती है, जिससे सरकार को टैक्स मिलता है. यही वो 55 करोड़ की आबादी है जो अनेकानेक कारणों से किराये के घरों में रहती है और इन लोगों के मकान किराये का गणित लगाया जाये तो तक़रीबन 30 खरब रूपये सिर्फ किराये के रूप में हर महीने खर्च करते हैं (लगभग 5000 रुपया महीना के हिसाब से). और इसी कारण वे अपने स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च नहीं कर पाते.

यही वो आबादी है जो हर महीने बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के नाम पर लगभग 10 खरब रूपये भी खर्च करती है लेकिन अपने संसाधनों और सुविधाओं के लिये धन नहीं जुटा पाती. यही वो आबादी है जो हर महीने ईएमआई की किस्त चुकाने के लिये बिना सुरक्षा उपकरणों के अत्यधिक रिस्क वाले काम भी ओवरटाइम तक करती है और जो मिले, जैसा मिले उसे खाकर चुपचाप बिना किसी से शिकायत किये सो जाती है ताकि दूसरे दिन फिर से वही रूटीन दोहरा सके.

इस आबादी में 50% अपनी झल्लाहट मिटाने और खीज निकालने के लिये शराब, गुटखों, अन्य नाशकारक वस्तुओं और स्मोक (बीड़ी-सिगरेट इत्यादि) में भी लगभग 10 खरब हर महीने खर्च करते हैं और सरकार इसी आबादी को सामूहिक रूप से मरने की कगार पर पहुंचा चुकी है. और ये भी भूल गयी कि देश की पूरी अर्थव्यवस्था इन्हीं 55 करोड़ लोगों पर टिकी है. इन्हीं 55 करोड़ लोगों पर सकल घरेलु उत्पाद और दूसरी सारी व्यवस्था भी टिकी हुई है. अर्थात देश की अर्थव्यवस्था का संपूर्ण आधार ही यही आबादी है.

अगर कम्युनिटी ट्रांसमिशन हुआ तो पिछले दो हजार सालों में होने वाली सामूहिक मौतों का ये सबसे बड़ा आंकड़ा होगा और देश की अर्थव्यवस्था तो छोड़िये पूरा देश फिर से ऐसे हालात में पहुंच जायेगा जिससे उबरने के लिये कई शताब्दियां लग जायेगी. (अति धनवान तो अपने धन के साथ देश छोड़कर अन्य देशों में जाकर बस जायेंगे लेकिन जो बचेंगे उन्हें खाने तक के वांदे हो जायेंगे. कृषि-उधोग-व्यापार सब ख़त्म हो जायेगा. देश इतने बड़े स्लो-डाउन का शिकार हो जायेगा कि बचे इंसान जंगलियों और आदिवासियों की तरह अराजक बिहेव करेंगे अर्थात सामाजिक व्यवस्था ख़त्म जायेगी इसीलिये मामले की भयानकता को समझिये.

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ROHIT SHARMA

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