विष्णु नागर
महाबली का महामुंह हमेशा खुला रहता था. इसका कारण था. एक बाबा ने उससे कहा था कि बच्चा महाबली बनने की तेरी इच्छा एक न एक दिन जरूर पूरी होगी, मगर तुझे हर हाल में अपना मुंह हमेशा खुला रखना होगा और कम से कम 12 घंटे बड़बड़ करते रहना होगा, चाहे सुननेवाले तुझे खिसका हुआ मानें या झूठा मानें, बेईमान मानें. तूने ऐसा नहीं किया तो तू समझ ले कि तेरी हालत एक चूहे से भी बदतर हो जाएगी. हां तू 12 घंटे चुप रह सकता है मगर याद रख तुझे नींद में भी अपना मुंह खुला रखना होगा. मुंह बंद की तू बंद.
बोल मंजूर है तुझे ? क्षमता है तुझमें इतनी ? उसने कहा कि बाबा ये तो मेरे बांये हाथ का खेल है. मुंह खुला रखने और बकते रहने का मुझे जन्मजात अभ्यास है. रात में तो वैसे भी मेरा मुंह खुला रहता है. नींद जरा-सी खुली कि दीवार को भाषण देने लगता हू्ं और दीवार ताली बजाती है. मेरे मां-बाप, भाई-बहन मुझे पागल समझते हैं मगर मैं अपनी तपस्या से विचलित नहीं होता !
समस्या यह थी कि वह जिन 12 घंटे चुप रहता था, उस दौरान दुर्घटना का खतरा बना रहता था. इसी दौरान एक दिन एक मच्छर उसके महामुंह में घुस गया. अब मच्छर को क्या पता कि यह महाबली का महामुंह है और यह खुला रहता है. मगर इसके आगे एक सूचनापट्ट लगा है कि इसमें घुसने की सजा मौत है. मच्छर में भी उतनी ही बुद्धि थी, जितनी कि महाबली में थी. खैर महाबली थोड़े से ‘दयालु’ भी थे. उन्होंने मुंह में से मच्छर को बाहर निकाला, उसके बाद उसे कड़ी सजा देते हुए मसल कर मार दिया.
अगले दिन महाबली की ‘दयालुता’ का लाभ उठाते हुए मुंह में मक्खी घुस गई. अब उसे लगा कि उसके खिलाफ षड़यंत्र किया जा रहा है. उसने मच्छर के खिलाफ दयालुता दिखाने की जो ‘गलती’ की थी, उसका मखौल उड़ाया जा रहा है. कल इस तरह तो उसके मुंह में चूहा घुस सकता है. उसकी टोह में फिर बिल्ली आ सकती है. इस सिलसिले को आज और अभी रोका नहीं गया तो आगे कुत्ता घुस सकता है, शेर और हाथी भी घुस सकते हैं.
खानपान के मामले में महाबली पूर्णतया शाकाहारी था, मगर उसने दांतों से पीसकर मक्खी की चटनी बना दी और उसे निगल लिया. घुसो और घुसो. आ गया मजा तुझे ! मेरा शाकाहार तुम सबको निगलने में बाधक नहीं बनेगा. मेरे मुंह में जो भी घुसेगा, उसका हश्र यही होगा.
उसके बाद महाबली ने अपने महामुंह को इतना अधिक खुला रखा कि शेर भी चाहे तो घुस जाए. अगले तीन दिन तक शेर क्या, मच्छर तक की हिम्मत नहीं हुई. महाबली खुश था कि उसका सिक्का जम चुका है. सब थर -थर कांपने लगे हैं. उसने मूंछों पर ताव दिया. तलवार के करतब दिखाए.
इधर काक्रोच के दिन पूरे हो चुके थे. उसकी बुद्धि भी महाबली की तरह उसके पैरों में थी. वह महाबली के महामुंह में घुस गया. महाबली को सबसे ज्यादा नफरत कॉक्रोच से थी. महाबली ने आव देखा न ताव, कॉक्रोच को सीधे निगलने की कोशिश की, मगर निगला नहीं गया ! उसे चबाना भी आसान नहीं था मगर महाबली इतना क्रुद्ध था कि उसे चबा कर ही माना. खयाल आया कि पेट में जाकर यह समस्या पैदा कर सकता है, उसने उसे थूक दिया. उसके बाद कहा – ‘और घुसेगा हरामखोर ? ले तेरा मैंने हमेशा के लिए निबटारा कर दिया.’
उसके बाद महाबली के महामुंह का स्वाद बिगड़ गया, पर उसने इसकी फिक्र नहीं की. उसे जीव-जंतुओं पर अपनी जीत का अहसास हुआ. उसने हा-हा करते हुए चेतावनी दी कि शेर भी अगर इसमें घुसा तो उसे भी कच्चा चबा जाऊंगा. मुझे शाकाहारी समझ कर जिसने भी ऐसी हरकत की, उसकी तो हड्डी भी नहीं छोड़ूंगा.
हाथी और शेर इससे डरे या नहीं, यह तो नहीं मालूम मगर अगले ही दिन महाबली के महामुंह में गिलहरी घुस गई. उधम मचाने लगी. कभी इधर भागे, कभी उधर. उसे महाबली का महामुंह भागने-दौड़ने की सबसे सुरक्षित जगह मालूम हुई.
गिलहरी को मारना महाबली के धर्म में पाप था, इसलिए उसने गिलहरी से निवेदन किया कि देख तू बाहर निकल जा. फिर धमकाया भी कि तू नहीं मानी तो तुझे कच्चा चबा जाऊंगा. नरम सी तो तू है. तू यह मत समझना मैं धरम की परवाह करूंगा. मैं महाबली हूं. धर्म मेरे हिसाब से मेरा मूड देख कर चलता है.
इसके बावजूद बेचारे महाबली की हालत गिलहरी ने पतली कर दी. अचानक महाबली के मुंह से निकला-बचाओ-बचाओ, मार डाला, मार डाला. अंदर कोई था नहीं मगर महाबली की चीख सुनकर एक बंदूकधारी और एक पिस्तौलधारी महाबली के कक्ष में अपने-अपने हथियार लिए घुस गए.
बंदूकधारी समझ गया कि माजरा क्या है. उसने बंदूक नीचे रखी और महाबली के मुंह में अपना हाथ डालकर गिलहरी को बाहर खींचने की पूरी कोशिश की. वह सफल नहीं हुआ. इससे पिस्तौलधारी का पारा चढ़ गया. महाबली के साथ ऐसी बदतमीजी ! उसने निशाना साध कर गिलहरी पर गोली चला दी.
गिलहरी का जो होना था, वह तो हुआ ही मगर गोली महाबली के मुंह म़े लगी. महाबली किसी तरह बच तो गया मगर वह महाबली नहीं रहा. महाबली अपने मुंह, अपनी जबान के कारण ही महाबली था.
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