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माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी क्यों कहा जाता है ?

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माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी क्यों कहा जाता है ?
पल्लू (बीकानेर, राजस्थान) से प्राप्त (1200 ई.)
पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

क्या आप जानते हैं कि माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी क्यों कहा जाता है ? नहीं…न, तो जान लीजिये यथा – हिंदी पंचांग मास में फाल्गुन मास वर्ष का आखिरी महीना होता है और चैत्र नये वर्ष की शुरुआत. असल में बसंत शब्द अपभ्रंशात्मक है. मूल शब्द वसंत है और इसमें मुख्य धातु ‘वस्’ शब्द है जो प्रकृति के बसने/खिलने/रहने के लिये प्रयुक्त होता है.

अर्थात किसी भी प्राकृतिक पदार्थ या जीव में जीवन का बसना/खिलना/रहना इसका भावार्थ है. और वसंत में तो पूरी की पूरी प्रकृति ही बसती है क्योंकि वसंत अर्थात फ़रवरी और मार्च में प्रकृति अपना सबसे उत्कृष्ट सौंदर्य बिखेरती है, हर तरफ प्रकृति के खिलने नूतन जीवन के प्रतीक के रूप में पेड़ों में नये पत्तों की कोंपले आना शुरू हो जाती है, बीज खिल कर अंकुर बन जाते हैं, खेतों में सरसों की फसल के पीले-पीले फूल और आम के पेड़ों में आम पकने शुरू हो जाते हैं. इसलिये ही तो वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात ‘ऋतुराज’ कहा जाता है.

इसमें जो ‘अंत’ का प्रत्यय लगाया गया है वो असल में लोट्लकार की अनुज्ञा का बहु-वचनात्मक है जो वर्ष और सर्दी के अंत का प्रारूप होता है. साथ ही साथ नूतन जीवन के रूप में प्रकृति का आरम्भ अर्थात ‘वसन्तु’ के रूप भी है जो आने वाले नूतन वर्ष, नूतन पत्ते-फल-फूल और मौसम आरम्भ का प्रतीक भी है.

संस्कृत व्याकरण में कर्ता जब अपने कर्म को कारण रूप से क्रियान्वित करती है तो उसे आख्यात कहा जाता है. और जब प्रत्यय मूल धातु से जुड़ते हैं तब इनका व्याकरण रूप विस्तारित हो जाता है और वे तिङन्त रूप हो जाते हैं, जो क्रिया-पदों का ‘पुरुष’, ‘वचन’ और ‘काल’ की दृष्टि से अनेक रूप और अर्थों वाले होते हैं. (व्याकरण की दृष्टी से इसे समझना आम पाठक वर्ग के लिये कठिन है. अतः इसे यही विराम देता हूंं ताकि बोझिल न लगे.)

ज्योतिषीय गणना से सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ वसंत शुरू हो जाता है, जिसके साथ ही रति-काम महोत्सव आरंभ हो जाता है. यह ऐसा समय होता है जिसमें समूचा वातावरण पुष्पों की सुगंध और भौंरों की गूंजन से भरा होता है. मधुमक्खियों की टोली पराग से शहद लेती दिखाई देती है इसलिये इस माह को मधुमास भी कहा जाता है.

अर्थात, नूतन जीवन के विस्तार में पूरी प्रकृति एक तरह से काममय हो जाती है. वसंत के इस मौसम पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान ग्रह ‘शुक्र’ का प्रभाव रहता है और साथ ही चूंंकि शुक्र काम और सौंदर्य का कारक भी हैं इसलिये ही तो रति-काम महोत्सव की यह अवधि अति कामोद्दीपक होती है. अधिकतर महिलायें इन्हीं दिनों गर्भधारण करती हैं.

उपरोक्त में आप पढ़ ही चुके हैं कि बसंत की मूल धातु ‘वस्’ है और जितेन्द्रिय के लिये तो प्राकृतिक सौंदर्य की अपेक्षा आंतरिक सौंदर्य ज्यादा मायने रखता है और आंतरिक सौंदर्य का कारक ज्ञान होता है. इसीलिये तो साधक अपनी साधना की शुरुआत वसंत पंचमी से करता है. इसीलिये तो इस दिन से साधक श्रुत देवी या सरस्वती देवी की आराधना शुरू करते है क्योंकि ज्ञान में आत्मा/मन का बसना, ये तो जीव की पराकाष्ठा होती है !

बसंत पंचमी का महत्व कुंडलीगत भावों में भी है क्योंकि जन्मकुण्डली का पंचम भाव-विद्या का नैसर्गिक भाव होता है और इसी भाव की ग्रह-स्थितियों पर व्यक्ति का ज्ञान/शिक्षा/अध्ययन निर्भर करता है. अगर यह भाव दूषित या पापाक्रांत हो तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है या ज्ञान बुद्धि अल्प होती है. अतः दूषित पंचम भाव से प्रभावित जातकों को विशेष रूप से माघ शुक्ल पंचमी (वसंतपंचमी) पर श्रुतदेवी (ज्ञान) की आराधना करनी चाहिये. इसके लिये संक्षिप्त विधि का सहारा भी लिया जा सकता है, यथा –

हर राशि के व्यक्ति अपनी राशि के शुभ पुष्पों से ज्ञान की पूजा कर सकते हैं, जैसे – मेष और वृश्चिक राशि के लोग लाल पुष्प विशेषत: जवाकुसुम (गुड़हल), लाल कनेर आदि से, वृष और तुला राशि वाले श्वेत पुष्पों से, मिथुन और कन्या राशि वाले हरी पतियों से, तुलसी की पतियों से या कमल के पुष्पों, कर्क राशि वाले श्वेत कमल या अन्य श्वेत पुष्प से, तथा सिंह राशि के लोग जवाकुसुम (लाल गुड़हल) से और धनु और मीन राशि वाले लोग पीले पुष्प तथा मकर और कुंभ राशि के लोग नीले पुष्पों या किसी भी रंग के गुलाब या नीलकमल से पूजा कर सकते है.
विशेषतः ध्यान रखें कि ज्ञान की आराधना या किसी साधना में अथवा किसी भी सात्विक विधान में गेंदे के (सफ़ेद या पीले) फूल सर्वत्र निषेध होते हैं इसलिये गेंदे के फूलों का प्रयोग न करे.

ज्ञान प्राप्त करने के अभिलाषी लोगो को इन तीनो भावो की शुद्धि के लिए वसंतपंचमी से आराधना साधना शुरू करनी चाहिये. यहांं कोई सवाल करे कि बसंत पंचमी ही क्यों ? तो इसका प्रत्युत्तर है कि – चूंंकि बसंत को ऋतुराज कहा गया है, अतः माघ शुक्ल पंचमी के दिन से प्रकृति के पंचभूत पदार्थ अपने दिव्य रूप में परिलक्षित होने शुरू हो जाते हैं अर्थात भूमि कोमल और सुघड़ हो जाती है, पानी निर्मल और स्वच्छ रहता है, तेज (अग्नि) भी कांतिमय रूप में सुहावना होता है, वायु उन्मुक्त रूप से मादक स्पर्श में रहती है.

अर्थात, न अति उष्ण न अति शीतल, न रुक्ष न शुष्क, न नम न आर्द्र और आकाश भी शून्य का आभास देता है. अर्थात पंचभूतों की मोहकता से आप सभी तरह के पदार्थ ग्रहण कर सकते हैं और वे सभी स्वास्थ्यवर्धक होते हैं. अर्थात शीतल-उष्ण, रुक्ष-स्निग्ध, मधु -कटु, अमलित-लवणीत ये आठों प्रकार के खाद्य स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, जिससे मानसिक शांति और एकाग्रता का अनुभव सभी जीव आसानी से कर सकते ही अतः इसी कारण वसंत- पंचमी को इसके लिये उत्कृष्ट और उपर्युक्त कहा गया है. अर्थात अध्यात्म और ज्ञान पिपासु लोगों के लिये ये दिन न सिर्फ सर्वश्रेष्ठ है बल्कि किसी को भी कोई मुहूर्त देखने की भी जरूरत नहीं होती है.

तो देखा आपने बसंत पंचमी अपने अंदर कितने राज संजोये है जबकि काल्पनिक साहित्य मिथकों और किवदंतियों के हिसाब से अब तक आप वसंतपंचमी के मिथ्या कारणों को ही सच मानते थे जबकि इसका असल और सत्य रूप एकदम विपरीत है, जो झूठी लोककथाओं से बिल्कुल अलग है.

असल में वक़्त के साथ-साथ वसंतपंचमी में मिथक रूप में किवदंतियां जुड़ती रही और कई पाखंडों का भी समावेश होता रहा. आज तो इतना ही कहूंगा कि आप जैसे चाहे वैसे बसंत पंचमी मनाये अथवा जिस देव देवी से जोड़कर पूजा करके मानना चाहे मानिये परन्तु आप ज्ञान प्राप्त करे ये ही शुभेच्छा है.

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