दुनिया भर के इतिहास में भ्रष्ट, जनविरोधी और शक्तिशाली सत्ता के खिलाफ जंग हमेशा से ही बेहद कष्टकारी प्रक्रिया रही है. शक्तिशाली सत्ता दिन में 18 बार झूठ बोल कर भी टिकी रहती है, वही उसके खिलाफ लड़ रही आम आदमी की सत्ता दिन में 24 बार सफाई देकर भी मुसीबत में रहती है. ऐसे में दुनिया के तमाम राजनीतिक शिक्षकों ने “समझौता” जैसी रणनीति तैयार किए हैं, जिसके माध्यम से जनवादी सत्ता थोड़े समय के लिए ही सही, शक्तिशाली जनविरोधी सत्ता के साथ समझौता कर लेती है और अपनी तैयारी को दुगुनी-चौगुनी रफ्तार से तेज कर देती है.
दुनिया के पटल पर पहली बार अस्तित्व में आई नवजात सोवियत समाजवादी सत्ता को साम्राज्यवादी हमलों द्वारा कुचलने से बचाने के लिए लेनिन किसी भी कीमत पर खूंखार जर्मन साम्राज्यवादी से समझौता करने के लिए तैयार थे और उन्होंने समझौता किया भी. इतिहास ने लेनिन की रणनीति को सही साबित किया. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी सोवियत समाजवादी सरकार ने हिटलर जैसे हत्यारे के साथ भी समझौता किया था. भले ही यह समझौता क्षणिक साबित हुआ, पर सोवियत समाजवादी सत्ता के लिए प्राणवायु साबित हुआ और सोवियत सत्ता को संभलकर सांस लेने का मौका मिल गया. इतिहास गवाह है यह क्षणिक प्राणवायु ही हिटलर के मौत पर एक सफल हस्ताक्षर साबित हुआ.
भारतीय पौराणिक कथाओं में भी राजनीतिक शिक्षक कृष्ण अपनी शक्ति को बचाने के लिए युद्ध के मैदान से न केवल भाग खड़े हुए वरन् अपनी राजधानी को भी स्थानांतरित कर लिए. स्वयं महाराणा प्रताप न जाने कितनी बार युद्ध के मैदान से भाग खड़े हुए और फिर से तैयारी कर आक्रमण किये.
उपरोक्त उदाहरण यह बताने को पर्याप्त है कि खूखांर शक्तिशाली सत्ता के सामने युद्ध करने के दौरान जरूरत के हिसाब से कभी-कभी समझौता कर अपनी शक्ति को बचाना और मिले वक्त का इस्तेमाल कर अपनी शक्ति को मजबूत करना, युद्ध की रणनीति का अनिवार्य अंग है. जो कोई अपनी मूढ़ता का परिचय देते हूए पीछे हटकर अपनी शक्ति बचाने को कायरता समझते हैं, इतिहास उन्हें मिटा देता है.
अरविन्द केजरीवाल भाजपा जैसे झूठे, भ्रष्ट और जनविरोधी सत्ता के सामने लड़ते हुए अपनी शक्ति को बचाने और पर्याप्त तैयारी का वक्त निकालने के लिए भाजपा और कांग्रेस के अपराधकर्मियों के मानहानि जैसे फर्जी मुकदमों के सामने समझौता के रणनीति का इस्तेमाल कर उन्होंने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वे एक योग्य रणनीतिकार हैं, जो युद्ध करना और जीतना जानता है.
मानहानि केस में अरविंद केजरीवाल द्वारा माफी मांगने पर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिलीप पाण्डेय ने अपने रुख को स्पष्ट करते हुए बताया है कि ”मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी पर दिल्ली में मानहानि, चुनाव के दौरान होर्डिंग बैनर लगाने संबंधित, धारा 144 तोड़ने, दिल्ली में धरना-प्रदर्शन संबंधित दर्ज़नों सिविल और आपराधिक मामले चल रहे हैं. और इसी तरह के कई मामले देश के अन्य राज्यों जैसे बनारस, अमेठी, पंजाब, असम, महाराष्ट्र, गोआ में चल रहे हैं. अधिकतर मामलों में उनके व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में मौजूद होने की ज़रूरत है.” जबकि हत्या जैसे संगीन मुकदमे में भी भाजपा के अमित शाह को सीबीआई कोर्ट में भी व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में मौजूद होने से छूट मिलती रही. जब सीबीआई जजों ने व्यक्तिगत तौर पर पेश होने की मांग की तो उस जज का या तो ट्रांसफर करा दिया गया अथवा उनकी (जस्टिस लोया की) हत्या ही कर दी गई. ”हम सब जानते हैं कि ये सभी मामले हमारे राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा हमें हताश करने और लीडरशिप को कानूनी मुद्दों में फंसा कर रखने के लिए थोपे गए हैं.
”ग़ौरतलब है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर थोपे गए तमाम राजनीतिक मामलों को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में डालकर विधायक और मंत्रियों को व्यक्तिगत तौर पर, रोज़-रोज़ अदालत में पेश होने के लिए बाध्य किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में कोर्ट में रोज़ लड़ी जाने वाली कानूनी लड़ाई, सीमित संसाधन वाली पार्टी पर और पार्टी के नेताओं, जनप्रतिनिधियों पर एक बहुत बड़ा बोझ है, जो उन्हें जनता के लिए ठीक से काम भी नहीं करने दे रहा. विकल्प दो ही हैं – या तो सब छोड़कर, कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते रहिये या इन मामलों को सुलझाने के वैकल्पिक रास्ते निकालिये. इसीलिए ये चिठ्ठी (मजीठिया मामले में) लिखने की पहल की गई. इस तरह के सभी कानूनी मामलों को बातचीत और समझौते से सुलझाने का निर्णय, हमारे वरिष्ठ वकीलों द्वारा तय की गई रणनीति के तहत लिया गया है.”
यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि भारतीय न्यायपालिका दुनिया की सर्वाधिक भ्रष्ट, अन्यायकारी और सामंती संस्था है, जिसका उद्देश्य गरीब और ईमानदार लोगोंं को न्याय दिलाना नहीं है. देश के करोड़ों लोगों का वक्त और मेहनत की कमाई हर रोज कोर्ट में बर्बाद होता है, पर इंसाफ नहीं मिलता. एक मुकदमा लड़ने में कई पीढ़ियां खत्म हो जाती है.
यही कारण है कि एक कहावत चल निकली है कि अगर किसी को बर्बाद करना है तो सबसे सहज तरीका है उस पर मुकदमा कर दो. वह पूरी जिंदगी कोर्ट का चक्कर काटता रहेगा. भारतीय न्यायपालिका केवल धनी लोगों के लिए बनाया गया है, जिसका उद्देश्य मेहनतकश जनता और ईमानदार लोगों को तबाह करना है ताकि अमीर और बेईमान लोगों की हिफाजत की जा सके. यही कारण है कि बड़े से बड़े अपराधी बच निकलते हैं पर गरीब और ईमानदार वर्षों जेलों में सड़ते रहते हैं. केजरीवाल के माफीनामे ने भ्रष्ट, जनविरोधी सत्ता, बिका हुआ मीडिया और भ्रष्ट न्यायपालिका के सड़ांध विकृत चेहरा को बुरी तरह उघाड़ दिया है.
अपनी ताकत और समय को व्यर्थ नष्ट होने से बचाने और जनता के लिए काम को सुनिश्चित करने के लिए मजीठिया जैसे तस्करों और भाजपा जैसे भ्रष्ट, झूठे और मक्कारों के लिए तैयार किये गये माफीनामे की यह चिट्ठी केजरीवाल को एक बेहतरीन रणनीतिकार की श्रेणी में ला खड़ा करती है क्योंकि केजरीवाल इस एक समझौते मात्र से व्यर्थ खर्च हो रही अपनी शक्ति को बचा लिये ताकि इन मक्कारों पर और ज्यादा कारगर तरीके से हमले करने के लिए अपनी शक्ति को पुनर्गठित किया जा सके.
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S. Chatterjee
March 17, 2018 at 2:29 am
One step backwards and two steps forward