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‘धर्म संसद’ का पागलपन : एक महान लोकतंत्र को एक कट्टर और निकृष्ट राष्ट्र में बदलने का षडयंत्र

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'धर्म संसद' का पागलपन : एक महान लोकतंत्र को एक कट्टर और निकृष्ट राष्ट्र में बदलने का षडयंत्र

कृष्ण कांत

पूरी दुनिया के मीडिया में हरिद्वार में हुए ‘असंसदीय अधर्म’ की चर्चा है. दुनिया के सारे प्रमुख अखबार दुनिया वालों को बता रहे हैं कि हमारे यहां क्या हो रहा है. हरिद्वार में ‘धर्म संसद’ नाम के एक कार्यक्रम में खुलकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण दिए गए और लोगों को हिंसा के लिए उकसाया गया. ऐसा ही एक कार्यक्रम 19 दिसंबर को राजधानी दिल्ली में ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ ने आयोजित किया. इस कार्यक्रम में मौजूद लोगों को समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ हथियार उठाने की शपथ दिलाई गई.

ऐसी कोई भी घटना या कृत्य भारत के माथे पर कलंक की तरह चिपक जाएगा. इन मामलों में भी यही हुआ है. पूरी दुनिया कह रही है कि भारत में अब न कोई कानून व्यवस्था बची है, न ही धार्मिक स्वतंत्रता बची है, न लोकतंत्र बचा है. नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस की अगुवाई में एक महान लोकतंत्र को एक कट्टर और निकृष्ट राष्ट्र में बदलने का षडयंत्र किया जा रहा है और दुनिया हम पर थूक रही है.

अब तक यह छिटपुट होता था, अब यह सरेआम और पूरे देश में हो रहा है. हरियाणा में पुलिस की परमिशन से होने वाली नमाजों को रोका गया. जिस वक्त प्रधानमंत्री जनता के पैसे से डुबकी कार्यक्रम कर रहे थे, उसी समय हरियाणा के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि खुले में नमाज नहीं होने देंगे. पुलिस की दी जगह पर अगर नमाज होती है तो किसी को क्या दिक्कत है ?

दिल्ली, हरिद्वार, हरियाणा समेत कई जगहों पर ऐसे हिंसक और सांप्रदायिक कार्यक्रम हो रहे हैं, जहां पर हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काया जा रहा है. यह बेवजह है. यह एक समृद्ध देश के लोगों को आपस में लड़ाकर उन्हें बर्बाद करने की साजिश है. यह समाज को तोड़ने और देश को दुनिया भर में बदनाम करेगा. यह हिंदुओं के तालिबानीकरण की साजिश है, जो हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी.

क्या हम ऐसे बनना चाहते हैं ? इससे हमें क्या हासिल होगा ? हमें ऐसा क्यों करना चाहिए ? क्या हिंदू ऐसे नमकहराम बनेंगे कि मौलाना आजाद, अशफाक उल्लाह खान, वीर अब्दुल हमीद जैसे तमाम बलिदानियों के देश में बिना वजह मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलेंगे और मुसलमानों को मारेंगे ? क्या हिंदू अपनी विराट उदारता में महान नहीं बन सकते ? क्या हिंदू नरपिशाच बनकर महान बनेंगे ?

आज नफरत के ​इस कारोबार का पीड़ित भले ही मुस्लिम समाज है, लेकिन कल असली पीड़ित हिंदू होंगे. एक समय बाद आपके हाथ खून से सने होंगे और इसके सिवा आपके हाथ कुछ नहीं होगा. आप एक हत्यारे समाज में बदल जाएंगे लेकिन आपको कुछ नहीं मिलेगा.

हिंदुओं को इस अधर्म, हिंसा, हत्या, नफरत और निकृष्टता में शामिल होने से इनकार करना चाहिए. किसी और के लिए नहीं, अपने जमीन के लिए, अपनी मानवता के लिए, अपने देश के लिए, अपने धर्म के लिए, अपने लिए. आपका सबकुछ दांव पर है.

महात्मा गांधी को मार पाना अब नामुमकिन है

हिंदुत्ववादियों की सबसे बड़ी मुसीबत है कि जिस अस्थिशेष, कृषकाय, निहत्थे बूढ़े महात्मा को वे 73 साल पहले मार चुके हैं, वह आज​तक मरा ही नही. वे दुनिया में कहीं भी चले जाएं, वह बूढ़ा महात्मा वहीं खड़ा मुस्कराता मिलता है. उसकी लाठी से हिंसक पिस्तौल हर बार हार जाती है और हिंदुत्ववादी हर बार तिलमिलाकर उस पर और हमले करते हैं.

गांधी पर हमला करने वाले सिरफिरों को याद रखना चाहिए कि महात्मा गांधी को दुनिया के 150 देशों ने अपने डाक टिकट पर सजा रखा है. महात्मा गांधी भारत के अकेले ऐसे महापुरुष हैं, जिनकी भारत सहित 84 देशों में मूर्तियां लगी हैं. पाकिस्तान, चीन से लेकर छोटे-मोटे और बड़े-बड़े देशों तक में बापू की मूर्तियां स्थापित हैं. जिस ब्रिटेन के खिलाफ वे जिंदगी भर लड़े, उस ब्रिटेन ने भी उनकी प्रतिमाएं लगा रखी हैं. महात्मा गांधी को मार पाना अब नामुमकिन है.

महात्मा गांधी इस दुनिया के एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनके खिलाफ उनकी मौत के लगभग सात दशक बाद भी घृणा अभियान चल रहा है. लोग वहीं हैं, उसी जहरीली विचारधारा के लोग, जिसके चलते एक कायर ने महात्मा की हत्या की थी. मेरी जानकारी में भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां पर एक नमकहराम पार्टी सरकार में है और उसके संरक्षण में देश के राष्ट्रीय आंदोलन, महापुरुषों और राष्ट्रपिता को गालियां ​दी जा रही हैं.

जब महात्मा गांधी राष्ट्रीय आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे, तब इसी विचारधारा के लोग अंग्रेजों की तरफ से मुखबिरी कर रहे थे और गांधी को मुस्लिम-परस्त बता रहे थे. अब इतने वर्षों बाद पहली बार संघी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में हैं और नंगा नाच रहे हैं. धर्म संसद के बहाने महात्मा गांधी को गाली दी जा रही है, पूर्व प्रधानमंत्री को गोली मारने की बात कही जा रही है, मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान किया जा रहा है और कोई सत्ताधारी नेता इसकी निंदा तक नहीं करता, कार्रवाई करने की बात बड़ी दूर है.

वॉट्सएप विषविद्यालय का प्रभाव

वॉट्सएप विषविद्यालय के प्रभाव में आकर यहां पर आम लोग ऐसा करते हैं तो हम चिढ़कर उन्हें जवाब दे देते हैं, लेकिन इस हालत में हम क्या करें अगर देश में सरकार चलाने वाली पार्टी ही ऐसा करने लगे ?

सत्ता में आते ही उन्होंने देशद्रोही खोजना क्यों शुरू किया था क्योंकि उन्हें वे सारे काम करने हैं, जो देश के खिलाफ हैं और देश की आत्मा पर प्रहार करने जैसे हैं. वे राष्ट्रीय आंदोलन को बार-बार अपमानित करते हैं, वे इस देश के लिए अपने प्राण देने वालों को बार-बार अपमानित करते हैं, वे देश के लिए शहीद हुए जवानों के पोस्टर लगाकर चुनाव में वोट मांगते हैं, वे चुनाव के पहले अंग्रेजों की तरह जनता को हिंदू मुसलमान में बांटने का प्रयास करते हैं. वे वह सब कर रहे हैं जो देशद्रोह की श्रेणी में है.

वे बेहद शातिर लोग हैं, जो लोग यह सवाल उठाते, उन्हें पहले से ही देशद्रोही की श्रेणी में डाल दिया गया है. ज्यादातर लोग चुप हैं. हम भी चुप हैं. आप भी चुप हैं. देश का विपक्ष भी लगभग चुप है. वे निर्बाध होकर इस देश के संविधान और भारत के विचार पर ताबड़तोड़ हमला कर रहे है. जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उन्होंने खुद को देश और धर्म का ठेकेदार भी घोषित किया हुआ है. धर्म, संस्कृति और राष्ट्रवाद का चोला ओढ़कर वे राष्ट्रीय अस्मिता पर बार-बार गंभीर चोट पहुंचा रहे हैं.

आप सोचेंगे कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं ? क्योंकि उन्हें देश पर कब्जा चाहिए क्योंकि उन्हें इस देश की ताकत को, एकता को, अखंडता को खंडित करना है. उन्हें इस देश को कमजोर करना है ताकि जनता उनके कुकृत्यों का विरोध न कर सके.

वे हिंदू राष्ट्र का राग अलाप रहे हैं जिसे कभी सरदार पटेल ने ‘पागलपन’ बताया था. अब यह आपको तय करना है कि 70 साल पहले लाखों लोगों के ​बलिदान से विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का जो गौरव आपने हासिल किया था, क्या उसे हिंदू राष्ट्र के ‘पागलपन’ के लिए गवां देना है या अपना लोकतंत्र बचाना है ?

वॉट्सएप विष-विद्यालय में गांधी को भगत सिंह के खिलाफ, नेहरू को पटेल के खिलाफ क्यों खड़ा किया जाता है ? इसलिए कि आप किसी के समर्थक बनें और किसी के विरोधी. जब आप अपनी आजादी की विरासत पर उलझ जाएंगे, अपने महापुरुषों को लेकर बंट जाएंगे, तब आपसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत आसानी से छीनी जा सकेगी. इसका असली मकसद वह है जो हरिद्वार, हरियाणा और दिल्ली में किया जा रहा है.

अपनी विरासत से कृतघ्नता और गद्दारी बहुत महंगी पड़ेगी

सरदार पटेल ने कहा था, ‘हमारा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है. यहां हर एक मुसलमान को यह महसूस करना चाहिए कि वह भारत का नागरिक है और भारतीय होने के नाते उसका समान अधिकार है. यदि हम उसे ऐसा महसूस नहीं करा सकते तो हम अपनी विरासत और अपने देश के लायक नहीं हैं.’ यह बात उन्होंने 1950 में एक सभा को संबोधित करते हुए कही थी. आज सरदार पटेल की एक बहुत बड़ी मूर्ति बनवा कर उनके इस सपने की हत्या कर दी गई है.

आज खुलेआम मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाई जा रही है और कानून व्यवस्था को पंगु बना दिया गया है. क्या यह देश गांधी, नेहरू और पटेल के सपनों से गद्दारी करके महान बनने का सपना देख रहा है ?

आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरू बार-बार दोहरा रहे थे कि ‘सांप्रदायिकता को यदि खुलकर खेलने दिया गया, तो यह भारत को तोड़ डालेगी.’ वे ऐसा क्यों कह रहे थे ? क्योंकि वे जानते थे कि सांप्रदायिकता एक बार भारत को तोड़ चुकी है. यह ऐसा जहर है जो मनुष्य को पागल बना देता है. वह मनुष्य को भीड़ में बदल देता है. सांप्रदायिकता मनुष्य को एक हिंसक पशु से भी बुरा जंतु बना देती है. हमारे नेताओं ने इसे देखा था इसीलिए नेहरू किसी भी कीमत पर सांप्रदायिकता को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थे.

स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अपनी मौत तक नेहरू ने बार-बार दोहराया कि ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य के अतिरिक्त अन्य कोई राज्य सभ्य नहीं हो सकता.’ उन्होंने कहा, ‘यदि कोई भी व्यक्ति धर्म के नाम पर किसी अन्य व्यक्ति पर प्रहार करने के लिए हाथ उठाने की कोशिश भी करेगा, तो मैं उससे अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक सरकार के प्रमुख और उससे बाहर दोनों ही हैसियतों से लडूंगा.’

जब कांग्रेस के अंदर कुछ हिंदूवादी तत्व सिर उठाने लगे तो यह कहने साहस नेहरू में था कि ‘यदि आप बिना शर्त मेरे पीछे चलने को तैयार हैं तो चलिए, वरना साफ कह दीजिए. मैं प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा लेकिन कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों से समझौता नहीं करूंगा. मैं अपनी हैसियत से इसके लिए लड़ूंगा.’

ऐसा कहने वाले नेहरू अकेले नहीं थे. हिंदू राष्ट्र का नारा लगाने वालों को आड़े हाथ लेते हुए सरदार पटेल ने कहा था, ‘हिंदू राज की बात करना पागलपन है.’ यह पागलपन आज अपनी सीमा पार कर रहा है और इसे सरकारी संरक्षण हासिल है.

सांप्रदायिकता कितनी खतरनाक है, इसकी झलक आप गांधी की बेबसी में, स्वतंत्रता आंदोलन के बंटवारे की असफलता में, मंटो, भीष्म साहनी जैसे लेखकों की किताबों में देख सकते हैं. जो लोग गांधी, नेहरू, भगत सिंह, आज़ाद, बिस्मिल, अशफाक और लाखों कुर्बानियों के कर्जदार हैं और उस बलिदान का अर्थ समझते हैं, उन्हें यह ज़रूर समझना चाहिए कि अपनी विरासत से कृतघ्नता और गद्दारी बहुत महंगी पड़ेगी.

भारतीय संविधान का आदर्श दुनिया की सबसे खतरनाक कीमत चुका कर हासिल किया गया है. इसका अपमान आपको कहीं का नहीं छोड़ेगा. हमारे युवाओं को आज अपने इतिहास के प्रति ईमानदार होने की जरूरत है. इतिहास का सबसे बड़ा काम है भविष्य के लिए सबक सीखना. हमें अपने स्वतंत्रता आंदोलन, उसके आदर्शों और अपने शहीदों के आदर्शों के साथ गद्दारी नहीं करनी चाहिए.

हमें नेहरू और पटेल की उस वचनबद्धता का साथ देना चाहिए कि ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य के अतिरिक्त अन्य कोई राज्य सभ्य नहीं हो सकता.’ उन्होंने इस देश से वादा किया था कि यहां पर रहने वाला हर व्यक्ति सुरक्षित है. क्या हम इस वादे से गद्दारी करेंगे ?

हमारी आज़ादी और लोकतंत्र की विरासत बहुत कीमती है, आज जिस पर संगठित हमले हो रहे हैं. यह लोकतंत्र आपका है. इसे बचाना आपकी जिम्मेदारी, आपका फर्ज है. यह आपको तय करना है कि आप इसे बर्बाद होने देंगे या फिर आप एक ऐसा हिंदू बनेंगे जो नेहरू की तरह खुलकर कहे कि यदि किसी मुसलमान पर कोई हाथ उठेगा तो मैं उससे अपनी अंतिम सांस तक लडूंगा.

गांधी, नेहरू और पटेल ने यह मुसलमानों के लिए नहीं किया था. उन्होंने एक सभ्य धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के लिए किया था. हमें या आपको भी यह मुसलमानों, सिखों, इसाइयों या किसी अन्य के लिए नहीं करना है. हमें यह अपने लिए करना है कि हम एक निकृष्ट देश नहीं चाहते, हम एक सभ्य और उदार लोकतंत्र चाहते हैं. फैसला आपका है. जय हिंद !

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