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पागलखाना प्रसंग (लघुकथाएं)

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पागलखाना प्रसंग (लघुकथाएं)
पागलखाना प्रसंग (लघुकथाएं)

जब पागल खाने का दरवाजा टूटा तो पागल निकाल कर इधर-उधर भागने लगे और तरह-तरह की बातें और हरकतें करने लगे.

पागलखाना-प्रसंग : एक

पागलखाने से भागे एक पागल ने घोषणा कर दी कि वह अमेरिका का राष्ट्रपति है. दूसरे ने घोषणा कर दी कि वह रूस का राष्ट्रपति है. तब तो पागलों में राष्ट्रपति बनने की होड़ लग गई. हर पागल ने एक-एक देश चुन लिया और अपने को वहां का राष्ट्रपति घोषित करने लगे. पर किसी पागल ने अपने को भारत का राष्ट्रपति घोषित नहीं किया.

पागलखाना-प्रसंग : दो

जब पागलखाने का दरवाजा टूटा तो एक पागल आपे से बाहर हो गया. वह इतना खुश हुआ, इतना खुश हुआ कि उसने एक पुराने जंग लगे ब्लेड से अपनी नाक काट डाली. उसे पागलखाने के दरवाजे पर चिपका दिया और स्वयं राष्ट्रीय गान गाता भाग निकला.

पागलखाना-प्रसंग : तीन

एक पागल ने जब देखा कि पागलखाने का दरवाजा टूट गया है तो वह फूट-फूटकर रोने रोया, इतना रोया कि उसकी हालत बहुत बिगड़ गई.

और यह पूछने पर कि वह इतना क्यों रो रहा है, बोला, ‘इस देश में आदमियों के रहने लायक एक ही तो जगह थी. वह भी बर्बाद हो गई.’

पागलखाना-प्रसंग : चार

पागलखाने का दरवाजा टूटा तो एक पागल ने जोर से जयहिंद का नारा लगाया. दूसरे पागल ने उससे कहा, ‘मूर्ख, ये जयहिंद का नारा क्यों लगा रहा है ?’

पहले पागल ने कहा, ‘यही नारा लगाने पर मुझे पागलखाने में बंद किया गया था.’

पागलखाना-प्रसंग : पांच

पागलखाने का दरवाजा कैसे टूटा ? यह जानने के लिए सरकार ने एक अवकाश प्राप्त जज की ‘वन मैन इनक्वाइरी कमेटी’ बना दी.
अवकाश प्राप्त जज ने छानबीन, खोजबीन, दूरबीन आदि के बाद सरकार को रिपोर्ट दाखिल कर दी, पर हुआ यह कि उस रिपोर्ट को कोई पढ़ता न था. ऐसा भी नहीं कि रिपोर्ट कोई लंबी-चौड़ी थी, केवल एक लाइन की रिपोर्ट थी. पर उसे जो भी पढ़ता था, पागल हो जाता था.

पागलखाना-प्रसंग : छः

वर्षाकालीन अधिवेशन में इस दुर्घटना पर बोलने का समय मांगा गया. सत्ताधारी दल वाले इसका विरोध करने लगे. इस बीच सदन में तू – तू मैं – मैं शुरू हो गई थी. फिर विरोध और विरोध का विरोध शब्दों की सीमा को पार कर गया.

पत्रकारों ने यह दृश्य देखा तो प्रेस क्लब की तरफ निकल गए. उन्हें मालूम था कि ऐसा समाचार अखबारों में न छप सकेगा.

इसी बीच सदन में एक आदमी आया और चीखकर बोला, ‘… मंत्री-मंडल का विस्तार हो गया है. तुम सबकी तनखाह बढ़ गई है. भत्ते दुगुने हो गए हैं. पेंशन ज्यादा मिलेगी.’ ये सुनते ही सभी शांत हो गए.

सदन में यह घोषणा करने वाला एक पागल ही था.

पागलखाना-प्रसंग : सात

जब पागलखाने का दरवाजा टूटा तो एक पागल निकल भागा. वह और अधिक पागल लोगों के बीच पहुंच गया तो यह जरूरत महसूस की गई कि पता चले कि वह हिंदू है या मुसलमान.

जब बड़ी खोजबीन के बाद भी यह पता न चला कि वह कौन है तो हिंदू-मुस्लिम नेताओं ने सोचा कि उसे आधा-आधा बांट लिया जाए. फिर ये सोचा कि इससे तो वह मर जाएगा. न हिंदू रहेगा, न मुसलमान.

इसलिए उन्होंने ये तय किया कि वह एक दिन हिंदू रहेगा और दूसरे दिन मुसलमान. जिस दिन वह हिंदू रहता था उससे मंदिर में झाड़ू लगवाई जाती थी, जिस दिन मुसलमान रहता था उस दिन मस्जिद में झाडू लगवाई जाती थी.

वह अपने घर में कभी झाडू न लगा पाया.

पागलखाना-प्रसंग : आठ

जब पागलखाने का दरवाजा टूटा तो एक पागल भाग निकला. वह सभ्य लोगों के बीच पहुंच गया तो उसकी शादी का मसला दरपेश आया. लोग सोचने लगे, पागल से कौन लड़की शादी करेगी ? लेकिन पागल ने अखबार में इश्तिहार दे दिया. और अगले ही दिन सैकड़ों लड़कियों के खत आ गए कि वे पागल से शादी करने के लिए तैयार हैं. सब बड़े परेशान हुए. पागल से शादी करने की ख्वाहिशमंद एक लड़की से जब ये पूछा गया कि वह पागल से शादी क्यों करना चाहती है ? तो उसने बताया कि पागल ने अगर पेट्रोल डालकर उसे जला डाला तो कम-से-कम ये तो कहा जा सकेगा कि पति पागल था.

पागलखाना-प्रसंग : नौ

जब पागलखाने का दरवाजा टूटा तो पागलों के साथ पागलखाने के कर्मचारी भी निकलकर भागे. पागलों और कर्मचारियों में इतनी दोस्ती थी और वे एक-दूसरे से इतना मिलते-जुलते थे कि यह पता लगाना मुश्किल था कि कौन पागल है और कौन पागलखाने का कर्मचारी.

पागलखाने का एक कर्मचारी जब अपने घर पहुंचा तो उसने देखा कि एक पागल उसके घर की रसोई में बैठा खाना खा रहा है और कर्मचारी की पत्नी उसे गरम-गरम रोटियां खिला रही है. यह देखकर कर्मचारी को गुस्सा आ गया और उसने पागल को पीट डाला.

तब यह हाल खुला कि कौन पागल था और कौन कर्मचारी.

पागलखाना-प्रसंग : दस

जब पागलखाने का दरवाजा टूटा तो एक पागल बाहर निकलकर व्यापारी बन गया. उसने एक क्लीनिक खोली, जिसमें सिखाया जाता था कि आदमी पागल कैसे बन सकता है. पागल की क्लीनिक में कोई पागल बनने न आता था. पागल घाटे में चला गया. बड़ा परेशान हो गया. वह यह पता लगाने निकला कि लोग पागल बनने क्यों नहीं आते ?

खोजबीन के बाद उसे यह पता चला कि ऐसे क्लीनिक तो हर घर, हर दफ्तर में खुले हैं.

  • असगर वजाहत

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