Home गेस्ट ब्लॉग प्रेम, भाईचारे और समानता vs नल्लों की फ़ौज…

प्रेम, भाईचारे और समानता vs नल्लों की फ़ौज…

11 second read
0
0
216
प्रेम, भाईचारे और समानता vs नल्लों की फ़ौज...
प्रेम, भाईचारे और समानता vs नल्लों की फ़ौज…

एक समय की बात है. दामोदर को राजा बनने का मन हुआ. उसके पास 100 लोगो का झुंड था. सबके पास थी बंदूक. पता चला कि 50 किलोमीटर दूर एक आइलैंड हैं, वहां अभी किसी का राज नहीं. लोकल कबीले ही शासन करते हैं.

दामोदर अपने 100 गनमैन के साथ नाव से वहां पहुंचा. उस आइलैंड में करीब दस हजार लोग थे. छोटे बड़े कबीले में बंटे, पुराने तरीकों, तीर तलवार से लड़ते. दामू की बंदूकची फौज ने एक कबीले को हराया, फिर दूसरे को…फिर तीसरे को. सबको हरा दिया. दामू आइलैंड का एकक्षत्र राजा बन गया. सपना पूरा हुआ.

अब प्रशासन करना था. तो अपने सभी साथी बन्दूकची को जिम्मेदारी दी. उनको मंत्री, कलेक्टर, तहसीलदार, थानेदार बनाया लेकिन अब हालात समझिये. दस हजार लोगों का आइलैंड, महज 100 आउटसाइडर लोगों के सपोर्ट वाला राजा. दस हजार ने एक-एक पत्थर भी फेंका, तो राजा का मकबरा बन जायेगा. ऐसे में क्या, दामू का देश स्थिर होगा ??

दामू ने बुद्धि लगाई. उसे लोकल पॉपुलेशन में समर्थन लेना था. वह भागीदारी दिए बगैर तो मिलता नहीं. तय किया वह आइलैंड के लोकल लोगों को भी अपने शासन में मौका देगा. नौकरी देगा, औऱ कम से कम याने आधे तहसीलदार लोकल लोगो को बनाएगा. 50% आरक्षण फ़ॉर लोकल ट्राइबल पीपुल !!!

नियुक्ति के लिए एक आयोग बनाया. आयोग को परीक्षा लेनी थी. योग्य को चुनना था. अब योग्यता का पैमाना क्या हो ?? राजा को फिलास्फर तो चाहिए नहीं, उसके काम की एक ही योग्यता थी- जो बंदूक से अच्छा निशाना लगाये, वही योग्य है.

तो ‘निशानची कमीशन’ तहसीलदारी के विज्ञापन निकालता, सब अभ्यर्थी बुलाता, उनसे बंदूक के निशाने लगवाता. जिसके निशाने बेहतर, वही है टैलेंटेड. उसका सलेक्शन.

अब जो निशानची, राजा के साथ आये हुए बन्दूकची परिवारों के होते, उनके 90% निशाने अच्छे रहते. लोकल्स ने तो कभी बंदूक देखी भी न थी. निशाना बहकता, लक्ष्य से दूर भागता लेकिन राजा की मजबूरी थी, राज स्थिर करना है, तो लोकल्स को जगह देना है.

उसने तय किया कि लोकल कोटा में 30% भी सही निशाना लगा, तो तहसीलदार बनाया जाए लेकिन जो बन्दूकची परिवारों से हैं, उन्हें 90% सही निशाने लगाने पड़ेंगे. अब तो टैलेंट वालो को सांप लोटने लगा. हमको 90% निशाने लगाने पड़ेंगे, फलाने रंग वालों को 30%… बहुतई बेइंसाफी है. ई राज्य में तो टैलेंट की क़दरे नहीं है.

अगली पीढ़ी तक, लोकल्स की संख्या बढ़कर एक लाख हो गयी. बन्दूकची परिवार भी बढ़कर 3 हजार हो गए. नियम पुराना ही चल रहा था तो दामूपुत्र की मुसीबत बढ़ गयी. 3000 परिवारों को 50% नौकरी, 97000 को 50% .. इसमें भी बन्दूकची परिवारों ने रोना शुरू किया. बोले- हमारे बीच भी तो तो गरीब हैं. उनको 10% नौकरी ‘गरीबी दया’ के आधार पर दिया जाए.

राज दामू का हो, अंग्रेजों का या संविधान का…उसके स्थायित्व, और शांति के लिए प्रतिनिधित्व जरूरी है. ये हिस्सेदारी कितनी होगी, कैसे दी जाएगी, इसकी मैथड पर विवाद, बहस चलती रहनी है. कभी खत्म नहीं होने वाली. मगर यह पोस्ट यह बताने के लिए है कि –

  1. आरक्षण गरीबी उन्मूलन योजना नहीं है. इसका उद्देश्य प्रशासन में सबका प्रतिनिधित्व है ताकि स्टेट-नेशन स्थिर हो.
  2. टैलेंट के बहुत से पैमाने हैं. बंदूक से 98% सही निशाने लगाने वाला भी महामूर्ख हो सकता है. दूसरी तरफ चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को π का मान दशमलव के बाद 20 अंक तक परिशुद्ध याद था, मुझे संदेह है. सुन्दर पिचाई, रघुराम राजन, या मून मिशन के वैज्ञानिकों ने UPSC टॉप नहीं की, पर किसी IAS से अधिक टैलेंटेड हैं.
  3. प्रतिनिधित्व का बंटवारा कैसे हो, इसका स्थायी नियम नहीं हो सकता. मगर आम तौर पर समाज खुद जिस आधार पर बंटा हो, शांति सुव्यवस्था बनाये रखने के लिए उसी आधार पर शासन भी प्रतिनिधित्व देता है. तो अगर आपने जाति के आधार पर समाज बनाया है, तो जाति ही प्रतिनिधित्व का भी आधार बनेगी..इसमें बहस करना, धूर्तता है. स्वार्थ है.

कुछ दूसरे देशों में भाषा, या रंग के आधार पर प्रतिनिधित्व होता है क्योंकि समुदायीकरण उसी आधार पर है. सृष्टि में परपेचुअल कुछ भी नहीं. इतिहास में उसके पहले, राज्य बनते मिटते रहते थे. पिछले 100 साल में भी कई देश मिटे बने हैं और आगे भी बनेंगे, मिटेंगे.

जम्बूद्वीप, मौर्यस्तान, हिंदुस्तान, रिपब्लिक ऑफ भारत भी (डोंट माइंड) अनादि नहीं, अनंत नही. अगर आप भारत की लम्बी आयु चाहते हैं, भारत माता के सच्चे पुत्र हैं..तो इस धरती पे न्याय की स्थापना का समर्थन करें. प्रेम, भाईचारे और समानता के हर कदम का समर्थन करें. सबको प्रतिनिधित्व दे, भारत माता की आयु बढ़ाएं. सेल्फ इंटरेस्ट, घमंड, हकमारी, हठेली और दादागिरी करने वाले लठबाजों के टैलेंटवाद बहकावे में न आयें. नल्लों की ये फ़ौज बनने से बचे.

  • नल्लों की यह फ़ौज, जिसके बीज ने उगने के लिए भारत के गौरवशाली इतिहास का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने संगठनीकरण के लिए आयातित फासिज्म सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज, जिसने सत्ता पाने को मुस्लिम लीग का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने भारत की धर्मनिरपेक्ष पहचान मिटाने के लिए गांधी के रक्त का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने रक्त के उन छींटों को धोने के लिए जेपी का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने अथाह नफरत के दौर में जिंदा रहने के लिए समाजसेवा, संस्कृति और गांधीवादी समाजवाद का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने देश के राजनैतिक आकाश पर छाने के लिए धर्म और भगवान का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने चुनाव जीतने के लिए फौजियों के रक्त का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने अपने मालिकों को खुश करने के लिए ध्वनिमत, तोड़ मरोड़, मीडिया और झूठ का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने अपने खिलाफ हर आंदोलन कुचलने पुलिस का, जेलों का, एजेंसियों का सहारा लिया.
  • नल्लों की यह फ़ौज जिसने फेक आईडी से, फेक ट्वीट और नकबपोशों के बीच लठैतों की इस टोली ने ‘मेरी पुलिस, लट्ठ बजाओ’ का सहारा लिया.

– 100 साल में खुद के बूते क्या किया ??
–  राष्ट्र के लिए क्या किया ??
–  सत्ता के भीतर, सत्ता के बाहर क्या किया ??

इन नल्लों ने कभी भी कोई लड़ाई नहीं लड़ी. न राजनैतिक, न सामाजिक, न मजदूर, न किसान, न छात्र, न व्यापारी हित का कोई आंदोलन किया. सिर्फ मौके बेमौके उपजी हर आग में घी डालकर आग बढ़ाई है. अशांति, विदेशी आक्रमण, सामाजिक उथल पुथल के अवसरों को भुनाया है.

हमेशा हमारी गर्दन और अपना नाखून कटाया है. हमेशा कहीं दूर किनारे खड़े होकर, इशारे कर-कर के ‘हमें लड़ाया है.’ साधुओं को संविधान से, हिन्दू को मुसलमान से, किसान को जवान से, इंसान को इंसान से.

लेकिनिस्ट बनकर, तटस्थ बनकर, देशभक्त बनकर, गैर राजनीतिक बनकर, धार्मिक बनकर, राम-कृष्ण-गांधी-सरदार-सुभाष- विवेकानंद की डीपी लगाकर आपको भरमा रहे हैं. सत्ता सरकारे और सीटें गिना रहे हैं, मगर सत्ता और सरकार की कौन सी जिम्मेदारी उठा रहे हैं ??

चोला बदलने में माहिर ये लोग, पैसे और सत्ता का लाभ लेकर, क्लोन बनाकर,अलग अलग रूप में आपके हमारे शहर, मोहल्लों इंसिटीट्यूशन में घुस गए हैं, और हर सामाजिक संरचना को अंदर से तोड़ फोड़ रहे हैं.

हमारे लोकतंत्र, हमारे आंदोलन, हमारे प्रशासन, हमारी राजव्यवस्था को दूषित कर उसकी गुणवत्ता, उसकी सस्टेनिबिलिटी को खत्म कर रहे हैं. आपको लगता है कि इस विध्वंस के बाद नव सृजन होगा, तो जरा इनका इतिहास देखिये.

इन्होंने सिर्फ खत्म किया है, सृजन कभी नहीं किया. सृजन इनकी तासीर नहींं. सृजन की समझ नहीं, सृजन का माद्दा नहीं, सृजन का इरादा नहीं. इन्हें पहचानिए. इनसे बचिए. इनका साथ छोड़िए. इनके सर से हाथ हटाइये. जरा तो सोचिये.

इनका कुछ भी ओरिजिनल नहीं. कोई जांबाजी नहीं. नक्कालों की फौज है, डरपोकों की फौज है. ये हिंदुस्तान को बर्बाद करने निकले मूढमतियों की, क्लीव मगर शातिर लोगों द्वारा संचालित फ़ौज है. सावरकर ने हमेशा की तरह गलत कहा था- ‘वो जन्मेंगे, शाखा में जाएंगे, बगैर कुछ किये धरे मर जायेंगे.’ दरअसल ये हर चीज दूषित, खत्म, बर्बाद कर जाएंगे.

  • मनीष सिंह

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…