‘इजरायली सेना को भारी सैन्य लाभ प्राप्त है. लेकिन युद्ध के नतीजे हमेशा शक्ति संतुलन पर निर्भर नहीं होते हैं. वियतनाम को देखो, अफगानिस्तान को देखो, अल्जीरिया को देखो. देखिए कि ये औपनिवेशिक युद्ध कैसे समाप्त हुए ?’ – हमास ने कहा
फिलिस्तीन की जनता की मुक्ति युद्ध का नेतृत्व कर रहे ‘हमास’ की एक ओर आलोचना की जा रही है तो दूसरी ओर उसके समर्थन में एकजुट होने की बात की जा रही है. हमास की आलोचना का मुख्य कारण इस बात को लेकर है कि हमास हर बार इजरायल पर हमला कर फिलिस्तीनियों की न केवल जिन्दगी बल्कि उसकी जमीन भी इजराइलियों के हवाले कर देता है. इसलिए ऐसे लोग यह मानते हैं कि हमास इजराइलियों का ही बी-टीम है, जो फिलिस्तीनियों के खिलाफ काम कर रही है.
इस संदर्भ में हम भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पूर्व वरिष्ठ नेता तुषार कान्ति भट्टाचार्य के इस बयान का हवाला देना चाहूंगा, जिसमें वह हमास पर ऐसे आरोपों का कड़ा जवाब देते हुए कहते हैं –
‘एक मित्र ने लिखा कि ताकत न थी तो हमास ने 7 अक्तूबर को हमला किया ही क्यों ? मैं : आप तो इस तर्क से भगत सिंह को भी गुनहगार साबित कर देंगे. कमज़ोर कभी आजादी की लड़ाई ही नहीं लड़ सकेगा. हमलावर, कब्जावर तो इजरायल है, हमास तो बाद की फसल है.
‘पचहत्तर सालों से जो जुल्म और अत्याचार जियोनिस्ट इसराइली सरकार करती रही और धीरे-धीरे सारे फलस्तीन सरजमीं को निगलती और नई यहूदी बस्तियां बसाती रही, अमेरिकी और दीगर पश्चिमी ताकतों की शह पर, उस पर आपने एक लफ्ज़ भी न कहा और लगे हमास और फलस्तीन को गरियाने !
‘मैं कोई नस्ली या अंध राष्ट्रवादी कतई नहीं. पर साम्राज्यवादी षडयंत्र को न देख पाना और बाघ एवम बकरी को समान दृष्टि से देखना, दोनों ‘देशों’ की ‘सत्ता’ की बात करना, जब कि फलस्तीन में समझौते के बाद भी सिर्फ ‘अथॉरिटी’ है, कोई सार्वभौमिक सत्ता का अस्तित्व ही नहीं है, समझ से परे है.
‘दूसरे, हमास के बारे में : आपने अपने रौ में उसे फलस्तीन की फ़ौजी इकाई मान लिया, जब कि हमास विभाजित फलस्तीन के गाज़ा हिस्से में निर्वाचित – पॉपुलर – प्रतिनिधि है. वेस्ट बैंक में समझौतापरस्त अल फतह की अथॉरिटी है, जो अमेरिकी साम्राज्यवादी मंसूबों से समझौता कर कायम हुई है.’
इससे आगे बढ़कर यह कहना समीचीन होगा कि माना कि गाजा पर हमास के कारण इजरायल हमला कर रहा है, तो फिर वह फिलिस्तीन के दूसरे हिस्से वेस्ट बैंक पर आये दिन हमला क्यों कर रहा है, उनके नागरिकों की हत्या, गिरफ्तारी क्यों कर रहा है ? आये दिन मिसाइलें क्यों दाग रहा ? जबकि वह तो इजरायल के सामने सष्टांग पड़ा रहता है.
अरब देश हमास के इजरायल के खिलाफ युद्ध में क्यों नहीं उतर रहा ?
अब, हम अपने सवाल के दूसरे पहलू पर आते हैं कि जो लोग हमास के समर्थन में आ रहे हैं, मसलन, लेबनान का हिजबुल्लाह व अन्य अरब जगत वगैरह, उसकी गतिविधि केवल गरमबयानी तक ही क्यों है ? वह अपने कथनी को जमीन पर क्यों नहीं उतारता ? हमास को अकेला क्यों छोड़ रखा है ? इस जवाब काफी हद तक राजनीतिक है.
पहला तो यही कि हमास फिलिस्तीनियों का मुक्ति योद्धा है, जो अनेक मामलों में अरब जगत के मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों से वैचारिक मामले में काफी अलग है, इसलिए वह काफी जुझारू है और अपने से ताकतवर से इजरायल से दो-दो हाथ करने की हिम्मत रखता है, जबकि धार्मिक कट्टरपंथी आम कमजोर लोगों के लिए तो बेहद क्रूर, नृशंस होते हैं, जबकि ताकतवरों के सामने दुम हिलाने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता और वह जो भी गरमबयानी कर रहा है वह केवल फिलिस्तीनी मुक्ति युद्ध की समर्थक जनता के दवाब की वजह से.
वेबसाइट मिडिल ईस्ट आई (MEE) में मुहन्नद अय्याश ने इस तथ्य और गंभीरता से रेखांकित करते हुए दिया है. मुहन्नद अय्याश ‘ए हेर्मेनेयुटिक्स ऑफ वायलेंस’ (यूटीपी, 2019) के लेखक हैं, और फिलिस्तीनी नीति नेटवर्क अल-शबाका में एक नीति विश्लेषक हैं. वे MEE वेबसाइट पर लिखते हैं कि इजराइल के साथ सभी संबंध तोड़ना एक कदम है, जिसे अधिनायकवादी शासनों को इजराइल के खिलाफ खड़े होने और जिन लोगों पर वे शासन करते हैं, उनके साथ वैधता बहाल करने के लिए उठाना चाहिए. शब्द काफी नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर्याप्त नहीं हैं. आधिकारिक निंदा पर्याप्त नहीं है. सहायता की एक छोटी सी धारा पर्याप्त नहीं है. ये सभी खोखले शब्द और निरर्थक कार्य हैं.
चूंकि फ़िलिस्तीनी लोग नरसंहार का सामना कर रहे हैं, इज़राइल उन्हें अंधाधुंध मार रहा है, उन्हें विस्थापित कर रहा है और उनके कस्बों और शहरों को नष्ट कर रहा है, अरब राज्यों को सार्थक तरीके से कार्य करना चाहिए. अब समय आ गया है कि फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण सहित अरब जगत को स्पष्ट रूप से इज़रायली राज्य के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंधों को ख़त्म कर देना चाहिए.
सभी राज्य, अपनी संरचना के अनुसार, केवल स्वार्थ के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं, नैतिक दलीलों के प्रति नहीं. हालांकि मैं हमेशा न्याय पर आधारित मामला बनाने के लिए प्रतिबद्ध रहूंगा, मैं यहां इस बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं कि इज़राइल के साथ तुरंत संबंध तोड़ना अरब राज्यों के स्वार्थ में क्यों है ?
दो मुख्य कारणों से, अरब शासन वर्तमान में अपने स्वार्थ को यथास्थिति से जुड़ा हुआ मानते हैं, जिसमें इज़राइल अपनी उपनिवेशवादी परियोजना के साथ आगे बढ़ता है और अरब राज्य फ़िलिस्तीनी कारण की उपेक्षा करते हैं.
सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, वे इजरायल की सैन्य शक्ति से डरते हैं, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि यह एक परमाणु शक्ति है. अरब राज्य यह नहीं मानते कि इज़राइल के साथ टकराव उनके सर्वोत्तम हित में है, क्योंकि इज़राइल और उसके पश्चिमी सहयोगी अरब सेनाओं को नष्ट कर सकते हैं.
दूसरे, ये शासन पश्चिमी शक्तियों का सामना नहीं करना चाहते. वे सभी समझते हैं कि इज़राइल पश्चिम की शाही चौकी है, और चूंकि उन्होंने गणना की है कि वे अमेरिकी शक्ति का विरोध नहीं कर सकते हैं, इसलिए उन्होंने इन सीमाओं के भीतर काम करने का फैसला किया है, जिससे आर्थिक लाभ भी होता है.
सच तो यह है कि इस दृष्टिकोण से प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभ बड़े पैमाने पर राजनीतिक और आर्थिक अभिजात वर्ग के अल्पसंख्यक वर्ग के हाथों में केंद्रित होते हैं. कुछ लोग मध्य वर्ग में घुस सकते हैं, लेकिन, कुल मिलाकर, क्षेत्र के अधिकांश लोगों को इस व्यवस्था से लाभ नहीं मिलता है, और वे अपने शासक अभिजात वर्ग को भ्रष्ट मानते हैं. 2011 का अरब विद्रोह इसी बारे में था.
हालांकि अरब शासन विद्रोहों को हराने और राज्य हिंसा के माध्यम से अपनी शक्ति बनाए रखने में कामयाब रहे – जिसमें कारावास, यातना, हत्या, सेंसरशिप और पूर्ण निगरानी शामिल है – क्रांतिकारी भावना पराजित नहीं हुई है. यह अनिवार्य रूप से फिर से उठेगा और इन शासनों के पतन की मांग करेगा.
जबकि राजनीतिक और आर्थिक अभिजात वर्ग इसे एक प्रबंधनीय समस्या के रूप में देख सकते हैं, जिसे वे ‘सुरक्षा उपायों’ के माध्यम से निपट सकते हैं, जैसा कि उन्होंने 2010 के दशक में किया था. मैं दीर्घकालिक स्थिरता के साथ अल्पकालिक परिणामों को भ्रमित करने के प्रति आगाह करूंगा – और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि, धन को गरिमा, सच्ची स्वतंत्रता और संप्रभुता के साथ भ्रमित करना.
पूरे क्षेत्र में लोग विभिन्न कारणों से फिलिस्तीन का भारी समर्थन करते हैं , जिसमें यह भी शामिल है कि वे फिलिस्तीनी संघर्ष को अपनी दुर्दशा और सम्मान और स्वतंत्रता की इच्छा के प्रतिबिंब के रूप में देखते हैं. वे फ़िलिस्तीनी लोगों को, जिनके पास कम संसाधन हैं और कोई औपचारिक राज्य नहीं है, अमेरिका और इज़राइल की सभी सैन्य ताकत के सामने खड़े देखकर बहुत प्रसन्न हैं.
ऐसे विचार तुरंत उन शासनों पर पलटवार करते हैं जो उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं. वे पूछना शुरू करते हैं कि मिस्र और जॉर्डन के शासन गाजा में फिलिस्तीनियों की पीड़ा को दूर करने के लिए कार्रवाई करने में क्यों विफल रहे हैं ? या सऊदी अरब ने इजरायल के युद्ध के लिए अपना समर्थन रोकने के लिए अमेरिका पर दबाव बनाने के लिए अपनी तेल आपूर्ति का लाभ क्यों नहीं उठाया है ?
इन शासनों के लिए अपने लोगों के साथ जैविक संबंध विकसित करने का सबसे तेज़ तरीका ठोस कार्रवाई करना होगा, जो इज़राइल और अमेरिका के सामने खड़े हों.
हालांकि ये शासन अपने लोगों को सामूहिक रूप से ऐसे प्रश्नों को व्यक्त करने से रोकने में सक्षम हो सकते हैं जैसे कि शासन पर जमीनी स्तर की मांगें, प्रश्न लोगों के दिल और दिमाग में बने हुए हैं, और अरब दुनिया भर के समुदायों में उन पर चर्चा की जा रही है. तो अब रास्ता बदलने में इन शासनों का क्या स्वार्थ है ? संक्षेप में, उत्तर वैधता है.
अधिनायकवादी शासन उन लोगों के साथ जैविक संबंध का आनंद नहीं लेते हैं जिन पर वे शासन करते हैं, बल्कि भय पर आधारित होते हैं. यद्यपि किसी सत्तारूढ़ शासन की वैधता लंबे समय तक बल के माध्यम से कायम रखी जा सकती है, लेकिन यह वैधता का एक अत्यधिक अक्षम और अस्थिर रूप है.
इन शासनों के लिए अपने लोगों के साथ जैविक संबंध विकसित करने का सबसे तेज़ तरीका इज़राइल और अमेरिका के खिलाफ ठोस कार्रवाई करना होगा. दरअसल, फिलिस्तीनी संघर्ष इन राज्यों को जनता के बीच जैविक वैधता प्रदान कर सकता है. तभी वे वास्तव में स्वतंत्र और संप्रभु बन सकते हैं.
इतिहास में एक विशेष स्थान है जिसके भरे जाने की प्रतीक्षा है; सच्चे नेताओं के उभरने और फ़िलिस्तीनी मुक्ति की मशाल उठाने के लिए. अरब राज्यों का वर्तमान दृष्टिकोण उन्हें इतिहास में मात्र फ़ुटनोट बना देगा; एक बाद का विचार, क्योंकि उनके शब्द और कार्य अमेरिकी साम्राज्य की शाही मांगों का विरोध करने में उनकी असमर्थता की अभिव्यक्ति मात्र हैं. मुख्य पाठ में प्रवेश करने के लिए, उन्हें अपनी सोच को मौलिक रूप से बदलना होगा और इज़राइल और अमेरिकी शाही शक्ति के खिलाफ एक साहसी रुख अपनाना होगा.
इसका मतलब जरूरी नहीं कि अमेरिका या इजराइल के साथ युद्ध हो. आर्थिक और राजनीतिक दबाव बहुत प्रभावी ढंग से काम कर सकता है, शायद अब पहले से कहीं अधिक. अरब राज्यों के पास महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ है, और हालांकि यह रास्ता लंबा और कठिन होगा, वे अकेले इस पर नहीं चलेंगे. बहरीन और बोलीविया ने पहले ही इज़राइल के साथ आधिकारिक संबंध तोड़ दिए हैं, जबकि चिली और कोलंबिया ने अपने राजदूत वापस ले लिए हैं. कई अन्य देश अमेरिका और इज़राइल पर राजनीतिक और आर्थिक दबाव बढ़ाने के इस दृष्टिकोण का समर्थन करेंगे.
राष्ट्रों का एक वैश्विक गठबंधन एक शक्तिशाली ताकत बन सकता है यदि वे सामूहिक रूप से, खुले तौर पर और सीधे तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवादी शक्ति का सामना करते हैं, जिसका लक्ष्य उसे उस क्षेत्र से बाहर करना है. उसी तरह, इज़राइल को अपनी आबादकार-औपनिवेशिक परियोजना को छोड़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.
यदि ऐसी कार्रवाई की जाती है, तो अरब राज्य इतिहास के फ़ुटनोट्स में एक पंक्ति बनने से लेकर एक पूरी तरह से नई किताब लिखने की ओर बढ़ सकते हैं. स्थितियां पहले से ही मौजूद हैं, दुनिया भर के लोग – विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, बल्कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप में भी – यूरो-अमेरिकी साम्राज्यवाद से तेजी से तंग आ रहे हैं.
क्या अरब जगत के नेता आगे आकर सच्चे उपनिवेशवाद को ख़त्म करने के वादे को पूरा करने के लिए तैयार हैं ? जनता तैयार है. उन्हें बस अपने चुने हुए नेताओं की ज़रूरत है, जो उनके रास्ते में खड़े नहीं होंगे, बल्कि फ़िलिस्तीनी लोगों के मुक्ति संघर्ष में मदद करेंगे. अब समय आ गया है, और इसकी शुरुआत सभी अरब राज्यों द्वारा इज़राइल के साथ संबंध तोड़ने से हो सकती है.
यहां मुहन्नद अय्याश का आलेख समाप्त हो जाता है लेकिन वह बेहतरीन तरीकों से अरब शासकों और अरब की जनता के बीच के अंतरविरोध को रख जाते हैं, कि किस तरह अरब की जनता का समर्थन फिलस्तीन की जनता और उसके मुक्ति योद्धा संगठन हमास के पक्ष में है, लेकिन डरपोक कट्टरपंथी दलाल शासक इजरायल और अमेरिकी आतंक से बेपनाह थर्राता है और केवल अपनी अपनी जनता के डर से गरम बयानबाजी कर देता है.
हमास क्या इजरायल-अमेरिका से जीत पाएगा ?
यह जानने के लिए कि हमास क्या सोचता है, मिडिल ईस्ट आई (एमईई) वेबसाइट ने हमास के राजनीतिक नेतृत्व के संपर्क में एक वरिष्ठ फिलिस्तीनी स्रोत से बात की. एमईई ने उनसे तीन मुख्य प्रश्न पूछे. जब हमला हुआ तो क्यों हुआ ? क्या इज़राइल के युद्ध लक्ष्य प्राप्त करने योग्य हैं ? जब यह युद्ध ख़त्म हो जाएगा तो हमास क्या सोचेगा कि उसने क्या हासिल किया है ?
अब जवाब सुनिए : 7 अक्टूबर के हमले का कारण हमास की चिंता थी कि दूर-दराज़ यहूदी अल-अक्सा मस्जिद की जगह पर एक जानवर की बलि देने का इरादा रखते थे, इस प्रकार रॉक मंदिर पर गुंबद के विध्वंस और तीसरे मंदिर के निर्माण के लिए जमीन तैयार की गई थी. हमास अल-अक्सा परिसर के भीतर स्थायी यहूदी उपस्थिति स्थापित करने की इजरायली योजनाओं का बारीकी से पालन कर रहा था. अल-अक्सा को इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल और फिलिस्तीनी पहचान का प्रतीक माना जाता है. इसे इज़राइल में टेम्पल माउंट के नाम से जाना जाता है.
अल-अक्सा में दूर-दराज़ यहूदियों की दैनिक उपस्थिति पहले ही हासिल कर ली गई थी, भारी सशस्त्र पुलिस द्वारा संरक्षित दौरों में सुबह और दोपहर में दो दैनिक घुसपैठ और 30 मिनट से एक घंटे तक चलने के साथ. टेंपल इंस्टीट्यूट जैसे कुछ मसीहाई धार्मिक संप्रदायों के अनुसार, तीसरे मंदिर के पुनर्निर्माण से पहले जमीन को शुद्ध करने के लिए बिना दाग वाली लाल बछिया की बलि दी जानी चाहिए.
इस उद्देश्य के लिए लाल एंगस गायों को अमेरिका से आयात किया गया है. वन थर्ड टेंपल ग्रुप ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि उसे अगले साल के फसह की छुट्टियों के दौरान पांच आयातित बछड़ियों का वध करने की उम्मीद है, जो अप्रैल 2024 में आती है.
एमईई के सूत्र ने कहा कि अल-अक्सा पहले ही समय में विभाजित हो चुका था और ध्यान दिया कि बसने वालों ने साइट पर ‘सब्जियों की बलि’ दी थी. ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक महीने पहले सुखोत के यहूदी अवकाश को चिह्नित करने के लिए ताड़ के पत्ते ले जाने वाले दर्जनों बाशिंदों द्वारा की गई घुसपैठ का संदर्भ है.
केवल एक चीज बची है वह है लाल बछड़ियों का वध, जो वे अमेरिका से आयात करते थे. अगर उन्होंने ऐसा किया, तो यह तीसरे मंदिर के पुनर्निर्माण का संकेत है.
हमास ने पहले ही इज़राइल को चेतावनी दी थी कि वह हेब्रोन में इब्राहिमी मस्जिद के समान अल-अक्सा में व्यवस्था करने का प्रयास करके आग से खेल रहा है, जिसे मुस्लिम और यहूदी समान रूप से साझा करते हैं. फिलिस्तीनी प्राधिकरण सहित अन्य फिलिस्तीनी समूहों ने भी मस्जिद में यथास्थिति बदलने के बारे में इज़राइल को चेतावनी दी है.
छापे से पहले के तीन हफ्तों में, तीन यहूदी त्यौहार थे, जो सुखोत के साथ समाप्त हुए. गाजा में हमास की भावना यह थी कि अल-अक्सा आसन्न खतरे में है. हमला शुरू करने के निर्णय में दीर्घकालिक कारक भी शामिल थे.
सूत्र ने कहा कि इजरायली हिरासत में 5,200 फिलिस्तीनी कैदियों का भाग्य हमास के नेतृत्व पर एक ‘भारी जिम्मेदारी’ थी. ‘हमास के दिमाग में हर दिन यह चलता रहता था कि उन्हें कैसे रिहा किया जा सकता है.’
हमले के पीछे तीसरा मकसद 18 साल की घेराबंदी के बाद गाजा पर हमला करना था क्योंकि इजराइल ने पट्टी से अपने निवासियों को हटा लिया था. अमेरिका और क्षेत्रीय शक्तियों ने गाजा को बिना किसी जीवन के लेकिन बिना किसी मृत्यु के छोड़ दिया, जैसे कि गाजा जीवन समर्थन पर एक कोने में पड़ा हुआ था, भोजन, धन या जनरेटर के लिए संघर्ष कर रहा था. 7 अक्टूबर को हुआ ब्रेकआउट एक बड़ा संदेश था कि गाजावासी घेराबंदी तोड़ सकते हैं,
क्या हमास का सफाया हो सकता है ? उन्होंने कहा, यह पहली बार नहीं था जब इजरायली नेताओं ने हमास को खत्म करने की कसम खाई थी, और हर पिछला युद्ध इजरायली वापसी के साथ समाप्त हुआ था. उन्होंने कहा, हमास नेता स्वीकार करते हैं कि तबाही का पैमाना अलग है, लेकिन उनका अब भी मानना है कि इजरायल की एक और वापसी अंतिम परिणाम होगी.
‘इज़राइल गाजा के आधे हिस्से को नष्ट कर सकता है, लेकिन मुझे लगता है कि अंत में परिणाम वही होगा. इज़राइली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए समस्या यह होगी कि लोगों के सामने अच्छी छवि बनाकर लड़ाई कैसे ख़त्म की जाए. लेकिन उसके पास एक बड़ी समस्या है. भले ही वह गाजा में हमास के नेतृत्व को खत्म करने के अपने युद्ध उद्देश्य में सफल हो जाए, फिर भी उसे 7 अक्टूबर के हमले के लिए अपनी जिम्मेदारी के बारे में सवालों का सामना करना पड़ेगा.
सूत्र ने इस्राइल द्वारा अपना मुख्य लक्ष्य हासिल करने की संभावना को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि गाजा में समूह और उसके आश्रितों के आकार के कारण हमास को खत्म करना शारीरिक रूप से असंभव था. हमास समाज के ताने-बाने का हिस्सा है. आपके पास लड़ाके और उनके परिवार हैं. आपके पास दान और उनके परिवार हैं. आपके पास सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार हैं. इसे एक साथ रखें और यह लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा है.
जबकि हमास ने इस पैमाने पर इजरायली प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी, उसके पास सुरंगों का एक व्यापक नेटवर्क है, जो ‘कई सैकड़ों किलोमीटर’ तक चलता है, एमईई को एक अन्य स्रोत द्वारा बताया गया था. इसलिए यह विचार कि अगर हमास ने गाजा शहर खो दिया, जिसे इजरायली सेना घेरने की कोशिश कर रही है, काम करना बंद कर देगी, तो इसकी संभावना कम है.
इसी तरह, हमास, युद्ध में शामिल होने वाले हिजबुल्लाह पर निर्भर नहीं है, लेकिन आंदोलन के अंदर कई लोग इसकी भागीदारी को अपरिहार्य मानते हैं. उनका कहना है कि अगर हिज़्बुल्लाह हमास को ख़त्म करने की इजाज़त देता है, तो इज़राइल के लेबनानी समूह पर हमला करने में कुछ ही समय लगेगा.
इस लड़ाई के ख़त्म होने के बाद हमास को क्या हासिल होगा ?उन्होंने कहा, हमास को नहीं लगता कि युद्ध समाप्त होने पर 6 अक्टूबर को वापस लाया जा सकता है, जब गाजा में फिर से युद्ध शुरू हो जाएगा. ‘7 अक्टूबर के हमले ने सीधा और सटीक संदेश दिया कि फिलिस्तीनियों के पास इज़राइल को हराने और कब्जे से छुटकारा पाने की क्षमता है. हमास के लिए यह अब एक सच्चाई है,’ उन्होंने कहा.
हमास का मानना है कि इस हमले ने 1948 में राज्य की घोषणा के बाद से इजरायली सेना और लोगों के बीच मौजूद समझौते को तोड़ दिया है. अनकहा समझौता यह था कि लोग अपने बेटों और बेटियों को सेना में भेजेंगे और सेना बदले में देश की रक्षा करेगी. सूत्र के अनुसार, हमास का मानना है कि मौजूदा संघर्ष ने ‘फिलिस्तीनी लोगों और फिलिस्तीनी प्रतिरोध को जीत और मुक्ति की ओर प्रेरित किया है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे लगता है कि इज़राइल ने भविष्य में बहुत अधिक आत्मविश्वास खो दिया है.’
उन्होंने कहा, ‘हमास ने गाजा में लोगों द्वारा चुकाई जा रही भारी कीमत को स्वीकार किया है. लेकिन इसका मानना था कि ज्यादातर लोग दूसरे नकबा से भागने के बजाय वहीं रहना पसंद करेंगे, जो 1948 में 7,50,000 फिलीस्तीनियों को उनकी पैतृक मातृभूमि से विस्थापित करने का संदर्भ है. अधिकांश लोगों के लिए कोई विकल्प नहीं है: मिस्र के साथ गाजा की सीमा और इज़राइल के साथ इसकी सीमा बंद है और बमबारी से कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘हर फ़िलिस्तीनी जानता है कि उन्हें अपनी ज़मीन पर रहना है, भले ही वह मलबे में बदल गई हो और वे तंबू में रह रहे हों.’ हमास का मानना है कि इज़राइल ने कई अरब शांति पहलों को अस्वीकार करके एक बड़ी रणनीतिक गलती की है, जिसके कारण संघर्ष समाप्त हो सकता था. ‘उनकी रणनीति सब कुछ हासिल करने की थी, इस कारण वे सब कुछ खो देंगे. वे फ़िलिस्तीनियों को कमतर आंकते हैं.’ सूत्र ने कहा.
उन्होंने कहा कि जबकि पश्चिमी राजधानियां हमास के बाद एक युग की प्रतीक्षा कर रही थीं, फिलिस्तीनी प्रतिरोध उस युग की प्रतीक्षा कर रहा था जब वे अपने स्वयं के राज्य में रह सकते थे. उन्होंने स्वीकार किया कि इजरायली सेना को भारी सैन्य लाभ प्राप्त है. लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि युद्ध के नतीजे हमेशा शक्ति संतुलन पर निर्भर नहीं होते हैं. वियतनाम को देखो, अफगानिस्तान को देखो, अल्जीरिया को देखो। देखिए कि ये औपनिवेशिक युद्ध कैसे समाप्त हुए ?’
हमास का मुक्ति युद्ध और इस्राइल का अंत
हमास एक ओर जहां अमेरिका-इजरायल के परमाणु हमले के धमकी की रत्ती भर भी परवाह किए वगैर युद्ध संचालन कर रहा है, वहीं, विश्व के रंगमंच पर एक नई शक्ति पूरी ताकत से अमेरिका के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है. पत्रकार ऐ. के. ब्राईट लिखते हैं कि रूस, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान, बेलारूस एक साथ अमरीका पर परमाणु हमला करने के लिए हाइ अलर्ट मोड पर हैं.
अमरीका पर हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु हमले का दाग है, लेकिन इस दौर में जो भी देश अमरीका पर परमाणु हमला करेंगे सब बेदाग साबित होंगे. रूस यूक्रेन युद्ध खत्म नहीं होगा और न ही इस्राइल हमास युद्ध खत्म होगा. ये युद्ध न केवल जारी रहेंगे बल्कि दुनिया के कुछ और हिस्सों में युद्धोन्माद पनप रहा है. पुतिन की साफ घोषणा है रूस को विजय से अलावा कोई नतीजा स्वीकार्य नहीं होगा, इसका मतलब…?
बहरहाल, दुनिया में युद्ध के मामले में सबसे बड़ा रणनीतिकार देश रूस साबित हुआ है. नतीजा ये है कि इस्राएल हमास युद्ध में रूस की सीधी इन्ट्री ने अमरीका को इस्राइल पर अपना वरदहस्त अब जानलेवा नजर आ रहा है. यूक्रेन क्रीमिया मामले में पुतिन का युद्ध इतिहास गवाह है वो जब पूरे लाव-लश्कर के साथ उतरते हैं तो सारे नतीजे फिर पुतिन के आगे दंडवत हो जाते हैं. लेबनान, सीरिया, तुर्की, हिजबुल्ला, हूती निश्चित तौर पर विजय हासिल करेंगे. इस्राइली नागरिकों को बहुत देर बाद होश आने की कीमत चुकानी ही होगी.
गजा की मिट्टी हजारों मासूम बच्चों, स्त्रियों व बेकुसूर अवाम के खून से सन चुकी है. पृथ्वी की ‘खुली जेल’ कहा जाने वाला गजा पट्टी के सीखचों में अभी बहुत जान है. इस जेल के ताले इस्राएल-अमरीका को नेस्तनाबूद करके ही खुलेंगे. पूरी दुनिया में अपनी तरक्की का जो हव्वा इस्राइल ने खड़ा किया था, उसे फिलिस्तीनी अवाम ने फुस्स कर दिया है. इस्राएल का इतना भयावह अंत की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी लेकिन पुतिन ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले ही साफ कह दिया था कि –
‘नाटो, अमरीकी श्रेष्ठता सनक का महज एक चप्पू है. यह नव नाजीवादी विचार है. हम इसे सहन नहीं कर सकते. इसे पूरी तरह खत्म करना ही हमारा उद्देश्य है. दुनिया के शांति अमन पसंद देशों को रूस शामिल होने का न्यौता देता है.’
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इस्रायल की हिटलरवादी बर्बरता के खिलाफ खड़े हों !
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