लॉकडाऊन के नाम पर मोदी सरकार देश को नोटबंदी से भी भयावह खाई में धकेल चुकी है. ‘आपदा में राहत की तलाश’ करते सरकारी और गैर-सरकारी गुंडे लोगों की आखिरी सांस तक निचोड़ डालने पर आमादा है. वह हर संंभव तरीके का इस्तेमाल कर लोगों को लूट रहा है. ऐस
ही लूट का एक उदाहरण सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल हुआ है.
मैं दिल्ली में दिहाड़ी का काम करता हूं. फरवरी, 2020 में अपने घर खगड़िया जिला आया. बाहर रहने से अपने परिवार की याद आती रहती थी, सोचा थोड़ा कम ही कमाऊंगा लेकिन अपने परिवार के साथ रहूंगा. सोचा खगड़िया में ही कोई रोजगार करूंगा.
दिल्ली से कमा कर लगभग ₹20,000 लाया. कुछ अपने एक संबंधी से ₹10,000 लेकर के कुल ₹30,000 एक ई-रिक्शा वाले एजेंसी को दिया. उन्होंने ₹130,000 में एक ई-रिक्शा दिया, जिसमें ₹100,000 का किस्त 12 महीने का लगभग ₹8000 प्रतिमाह तय किया. किसी प्रकार एक किस्त जमा कर पाया तो करोना महामारी के चलते पूरे देश में लॉकडाऊन लग गया.
इस 4 महीने में घर के लिए 2 जून की रोटी का भी इंतजाम करना मुश्किल हुआ, लेकिन किसी तरह जी रहा था. ट्रेन और बस चल ही नहीं रही है कि सवारी मिलेंगे कहां से ! कभी-कभी गांव में किसी की तबीयत खराब होती है, गांव से शहर किसी डॉक्टर के यहां दिखाने ले जाता हूं तो एक भाड़ा ₹100 मिल जाता है. घर में खाने के लिए अन्न नहीं है. मेरे साथ बहुत से ई-रिक्शा वाले के परिवार के साथ यही परेशानी है.
आज मैं अपने गांव से खगड़िया शहर एक मरीज को डॉक्टर के यहां ले गया लेकिन हमें क्या मालूम था कि खगड़िया नगर में नगरपालिका के कार्यपालक पदाधिकारी के सरकारी गुंडे यहां हमें तंग करेंगे ! एक आदमी आया और जबरदस्ती मेरे रिक्शा को थाम लिया, बोला ‘नगरपालिका का टैक्स जमा नहीं किए हो. तुम्हारे रिक्शे को हम जब्त करते हैं, अन्यथा ₹850 का अभी चालान जमा करो.’
मेरे पास उस मरीज से मांग कर के किसी तरह से ₹200 का जुगाड़ हो पाया लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं था. मैं रो रहा था वह मुझे गाली दे रहे थे. हमें मारने के लिए हाथ भी उठाएं. मैं डर के मारे समर्पण कर दिया. फिर अपने कुछ परिचित लोगों को फोन किया. वह किसी की बात मानने के लिए तैयार नहीं थे. एक परिचित ने सारे ₹850 रोहित राज के नाम से उसके पेटीएम पर भेजें, तब जाकर के हमें और हमारा रिक्शा छूट पाया.
साहब, हम एक गरीब आदमी इस लॉकडाउन में सारे ₹850 कहां से लाएं ? घर में एक शाम खाना बनता तो किसी शाम खाना बनता भी नहीं है. साहब 4 महीने हो गए पता नहीं यह लॉकडाऊन कितना दिन चलेगा. हम रिक्शावाले कैसे परिवार का जिंदगी बसर करेंगे ? हम लोग के पास तो एक धुर जमीन भी नहीं है, जो खेती करके कुछ अनाज हो सके.
काम धंधा बंद है कुछ समझ में नहीं आ रहा, ऊपर से बिहार सरकार के पोषित गुंडे हमें जान मारने पर उतारू रहते हैं. साहब स्थिति तो यह हो गई है कि रोटी के लिए अपने और अपने परिवार को जिंदा रहने के लिए हम रिक्शा वालों को अपने परिवार से हो सकता है धंधा भी करना पड़ जाए. हम मजबूर हैं. आप राहत नहीं दे सकते हैं तो कम से कम अत्याचार तो बंद करें.
वहीं, दूसरी ओर हजारों की तादाद में ऐसे वीडियो वायरल हुए है, जहां पुलिसिया गुंडे गरीब दुकानदारों के दुकान लूटते, ठेला उलटते और लोगों को पीटते देखे गये हैं. इनमें से एक विडियो हम यहां पेश कर रहे हैं, जिसे छिपाकर रिकॉर्ड किया गया है.
पुलिसिया गुंडे हो या सरकारी गुंडे, इन सबों का एकमात्र उद्देश्य जनता को लूटना और विरोध को किसी भी हद तक जाकर खत्म करना है. इसके लिए पिटाई, वसूली से लेकर फर्जी एफआईआर कर जेल भेजे जाने की कबायद तक शामिल है. यह सभी निश्चित तौर पर सरकारी संरक्षण के वगैर असंभव है, जिसे हम गुंडों की सरकार भी कह सकते हैं अर्थात, गुंडों के द्वारा, गुंडों के लिए, गुंडों की सरकार.
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