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लॉकडाउन : भारत की आर्थिक बर्बादी का न्योता

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लॉकडाउन : भारत की आर्थिक बर्बादी का न्योता

गिरीश मालवीय
आज जो मौतें हो रही है वह कोरोना से अधिक विभिन्न बीमारियों मसलन टीबी, डायरिया, श्वसन समस्या, दिल की बीमारियों, मधुमेह आदि का उचित इलाज नहीं मिल पाने के कारण हो रही है. दीर्घकालिक लॉकडाउन से लोगों की आय समाप्त हो गई है और उन्हें पर्याप्त पोषण नही मिल पा रहा है, यह कोरोना से बड़ी समस्या है.

आज से कुछ दशकों बाद जब मोदी सरकार के कार्यकाल को याद किया जाएगा तो बिना सोचे समझे किये गए लॉकडाउन को भारत की आर्थिक बर्बादी के सबसे महत्वपूर्ण कारक के रूप में याद किया जाएगा. नोटबन्दी भी इसके सामने कुछ नही था. हर तरफ आज निराशा का माहौल है. एक ऐसी बीमारी के लिए जिसकी मृत्यु दर 1 प्रतिशत से भी कम है, हमने दो महीने से अधिक समय के लिए सब कुछ रोक दिया, यह आर्थिक तबाही को न्योता देना था.

ब्रिटेन के जाने-माने महामारी विशेषज्ञ और जनस्वास्थ्य के प्रोफेसर रहे जॉन पी. ए. ने मार्च के मध्य में अपने लेख में कोरोना के संबंध में लॉकडाउन के बारे मे बहुत अच्छा दृष्टांत दिया था. उन्होंने कहा था कि एक ऐसी बीमारी जिसकी मृत्यु दर मौसमी इन्फ्लूएंजा से भी कम है तो संभावित रूप से जबरदस्त सामाजिक और वित्तीय परिणामों के साथ दुनिया को बंद करना पूरी तरह से तर्कहीन है आधारहीन है. यह वैसा ही है जैसा की एक विशालकाय हाथी पर एक बिल्ली हमला कर दे ओर वह हाथी बिल्ली से लड़ने के बजाए रक्षात्मक मुद्रा में बिल्ली के हमले से बचने की कोशिश करे और इस हताशा में वह गलती से एक खाई में गिरकर मर जाए. 

समझने वाले समझ गए होंगे कि अर्थव्यवस्था एक हाथी के समान है और कोविड 19 का खतरा एक बिल्ली के हमले जैसा. अपने इस लेख में महामारी विज्ञानी जॉन पी. ए. ने वैज्ञानिक प्रमाण देकर तार्किक रूप से यह सिद्ध किया कि कोविड 19 को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है. बिल्ली को शेर बताया जा रहा है.

आप कहेंगे कि कुछ 7-8 देशों ने भी लॉकडाउन किया, उनके बारे में आप क्या कहेंगे ! पहली बात तो यह है कि उन देशों की भारत से तुलना नही हो सकती. भारत एक गरीब मुल्क है, जहां औसत आय चीन की औसत आय के पांचवें हिस्से और यूरोप या अमेरिका की औसत आय के 20वें हिस्से के बराबर है. देश के 20 फीसदी परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिता रहे हैं जबकि 20 से 30 प्रतिशत लोगों की हालत उनसे कुछ ही बेहतर है. इसका अर्थ यह है कि करीब आधी आबादी किसी तरह दिन काट रही है. यहां पर दुनिया का सबसे कठोर लॉकडाउन लगा कर आपने स्वंय ही विनाश को न्योता दिया है.

दूसरी बात यह है कि कोरोना के सबसे ज्यादा असर वाले 10 देशों में से 7 ने इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए टोटल (नेशनल लेवल पर) लॉकडाउन लगाया था. इन 7 देशों में भारत ही ऐसा देश था जहां नए कोरोना संक्रमितों की संख्या का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर जाते दिखा, जबकि बाकी 6 देशों में लॉकडाउन हटाने के बाद हर दिन सामने आने वाले नए मामलों की संख्या लगातार कम होती गयी.

आज भी अगर ठीक से देखा जाए तो कोविड-19 के मामलों में मृतकों की संख्या करीब 1.6 फीसदी है. इसका मतलब यह है कि यह हमारे मौसमी इन्फ्लुएंजा से अधिक खतरनाक नहीं है. इसका तेजी से फैलाव ही इसे खतरनाक बनाता है. दरअसल यह हमें एक बड़ी समस्या इसलिए दिखता है कि क्योंकि यह हमारी चरमराती स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर भारी पड़ गया. आज जो मौतें हो रही है वह कोरोना से अधिक विभिन्न बीमारियों मसलन टीबी, डायरिया, श्वसन समस्या, दिल की बीमारियों, मधुमेह आदि का उचित इलाज नहीं मिल पाने के कारण हो रही है. दीर्घकालिक लॉकडाउन से लोगों की आय समाप्त हो गई है और उन्हें पर्याप्त पोषण नही मिल पा रहा है, यह कोरोना से बड़ी समस्या है.

हमे जो लॉकडाउन में जो करना था, वो हमने नही किया. पीएम मोदी ने तीन बार लॉकडाउन को आगे बढ़ाया लेकिन वह उस वक्त टेस्टिंग की संख्या को अधिक गति नही दे पाए. जुलाई से टेस्टिंग बढ़ना शुरू हुई तब तक अनलॉक 2 हो चुका था यानी पूरी कवायद व्यर्थ साबित हुई. हमसे अच्छी तरह से तो पाकिस्तान ने कोरोना से डील किया जिसने नेशन वाइड लॉकडाउन न कर के स्मार्ट लॉकडाउन किया ओर आज वह हमसे बहुत बेहतर स्थिति में है.

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