Home गेस्ट ब्लॉग लॉकडाउन – 4.0 : राष्ट्रीय विमर्श – कोरोना संकट का दोषी ?

लॉकडाउन – 4.0 : राष्ट्रीय विमर्श – कोरोना संकट का दोषी ?

10 second read
0
0
434

लॉकडाउन - 4.0 : राष्ट्रीय विमर्श - कोरोना संकट का दोषी ?

Vinay Oswalविनय ओसवाल, बरिष्ठ पत्रकार

अच्छा होता यदि लॉकडाउन के 49 दिनों बाद 12 मई को देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘लोकल के प्रति वोकल’ होने का उपदेश देने के साथ प्रधानमंत्री अपनी सरकार की उन कदमों के प्रति ‘वोकल’ होते, जो भारत में ट्रम्प के नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफल बनाने के लिए उठाए जाने जरूरी थे. और जिन्हें उठाया भी गया. इसके कारण देश में कोरोना को अपने पाँव पसारने से रोकने के लिए जो कदम जल्दी उठाये जाने थे वो बहुत देर से उठाये गए.

वो ‘वोकल’ होते और राष्ट्र को यह बताते की 23 फरवरी को अमदाबाद में ट्रम्प परिवार, सैंकड़ों यूरोपीय देशों के नागरिकों, लाखों भारतीयों, विदेशियों की खचाखच भीड़ से भरे अमदाबाद के मोटेरा में सरदार पटेल स्टेडियम, और आगरा, दिल्ली सहित तीनों शहरों, में डेरा डाले पड़े सैकड़ो अमरीकी अधिकारियों की देश में मौजूदगी के चलते कोरोना संक्रमित अमेरिका के राष्ट्रपति का बेमिसाल और अभूतपूर्व नागरिक अभिनंदन करने के पहाड़ जैसे खतरे को मोल लेकर, ऐसा क्या पाया, जिसके बदले देश में सम्भावित कोरोना संक्रमण फैलने से हुआ आर्थिक, सामाजिक नुकसान चींटी जैसा नजर आए ?

देश में गुमनाम से एक न्यूज चैनल ने 8 जनवरी को यह खबर चला दी थी कि ‘एक अपरिचित वायरस पूरी दुनियां में दस्तक दे चुका है.’ इसी महीने के अंत 30 जनवरी को केरल में एक छात्र के कोरोना संक्रमित मिल चुका था. पूरा देश जान चुका था कि ट्रम्प ने अमेरिका में 31 जनवरी को ‘स्वास्थ आपातकाल’ घोषित कर दिया है.

सरकार से 11 मई को जो जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट को प्राप्त हुई है, के अनुसार देश में 15 जनवरी से 23 मार्च के बीच विदेश से भारत पहुंचने वाले महज 19 फीसदी लोगों की ही स्क्रीनिंग कीगई. इटली से आने वालों की स्क्रीनिंग को भी 26 फरवरी से शुरू हो पाई. तब तक भारत में 322 लोग संकृमित पाए जा चुके थे. फिर भी किसी अन्य यूरोपीय देशों से आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग शुरू नही हो पाई. यूनिवर्सल स्क्रीनिंग 4 मार्च से शुरू की गई. तब तक कोरोना का वैश्विक संक्रमण 93,000 को पार कर गया था. लॉकडाउन-3 तक कि 54 दिनी अवधि जो 17 मई को समाप्त हो रही है, हम भी इस आंकड़े के पास पहुंच रहे होंगे.

फरवरी की 23 तारीख तक हमारे देश में 322 संकृमित सामने आचुके थे. यह तथ्य भी स्पष्ट हो चुका था कि कोरोना विदेश से आने वाले लोगों ही अपने साथ ला रहे हैं. तब तक हमारे यहां कोरोना जांच के न तो समुचित संसाधन ही थे न इसकी तैयारियों को लेकर सरकार ही ‘वोकल’ पाई थी. जिससे देश को पता चलता कि सरकार इसकी रोकथाम को लेकर गम्भीर है.

इन सब जानकारियों के बावजूद मार्च के मध्य में दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित मरकज के जलसे में शामिल होने के लिए पूरे विश्व से इस्लामिक धर्मिक प्रचारकों (जमायतियो) के आने का सिलसिला जलसा शुरू होने से बहुत पहले से शुरू हो चुका था. इन प्रचारकों को सरकार ने हिंदुस्तान में आने से रोका क्यों नही. सरकार आंखे मूँदे क्यों बैठी रही? यह सवाल देश के नागरिक मोदी सरकार से क्यों न पूंछे? क्या इस डर से कि उन्हें देशद्रोही बता पुलिस उन्हें जेलों में ठूंस देगी ? पाठक ही तय करें देश में कोरोना को फैलाने के लिए जमायती कितने कसूरवार हैं, और मोदी सरकार कितनी कसूरवार है.

पहले 21 दिनी लॉकडाउन की घोषणा के साथ मोदी जी ने आश्वस्त किया था कि कामगारों को उनके मालिक से पूरी पगार मिलेगी, मकान मालिक किराया नही मांगेंगे वगैरह वगैरह. सब झूठ का पुलिंदा ही साबित हुआ. कामगारों को न कारखाना मालिकों से पूरी पगार ही मिली न मकान मालिक ने किराया वसूलने में कोई रियात की. इसके साथ ही कामगारों का धैर्य जबाब दे गया. और जगह जगह वे अपने आश्रय स्थलों से बाहर निकल सड़कों पर आने लगे. कुछ पुलिस की लाठियां खाकर इधर-उधर छुप गए तो कुछ पैदल ही निकल पड़े सैकड़ों मील दूर अपने गाँव के सफर पर.

रोजगार गवां चुके लाखों कामगार निराश, बेबस, लाचार, दीन-हीन, अपने परिजनों से दूर परदेस में घनी बस्तियों में सीलन भरे आश्रय स्थलों में रहकर अपना और सुदूर बैठे बूढ़े माँ-बाप बीबी बच्चों का पेट भरने के बोझ तले दबे महीनों से बेरोजगारी की मार झेलते मजदूरों के जीवन में मोदी जी की घोषणाओं के खोखलेपन ने भूचाल ला दिया है. वो समझगये हैं कि मोदी जी की झोली में उनके लिए कुछ नहीं है. उनके मुंह में राहत देने वाले दो शब्द भी नही हैं. बेरोजगारी, अंधेरे से घिरा भविष्य, और पैदल भूखे-प्यासे, पुलिस की लाठियां खाते, ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ की रफ्तार से तपती धूप में पैदल ही बीबी बच्चों के साथ सिर पर जरूरी सामान लादे सड़कों पर वे आगे तो बढ़े जा रहे हैं पर यह आशंका उन्हें घेरे हुए है कि क्या वो इस सफर में जिंदा भी बचेंगे ?

पुलिस के डण्डों की मार झेलते, लापरवाह वाहनों की चपेट में आ कर मरते, घायल होते, इन लोगो पर बस एक ही जनून सवार है – मर जाये तो मर जाने दो हमे अपने घर जाने दो. पुलिस वाले जो मजदूरों को उन्ही सड़कों पर आगे बढ़ने से रोकते हैं जिन पर फर्राटा भरती कारें गुजर रही है ! कारों की ओर इशारा कर सवाल पूंछते मजदूरों को पुलिस वालों का जबाब सुन आप स्तब्ध रह जाएंगे – वो पैदल नही जा रहे, पाबंदी पैदल जाने पर है. यानी मजदूर भी कारो में सवार होते तो … कितनी सम्वेदनहीन है यह व्यवस्था ? अब तक लगभग 600 प्रवासी मजदूरों की जान जा चुकी है. इनकी मौत का जिम्मेदार कौन है मोदी जी ?

निश्चित रूप से यह निष्कर्ष निकालना गलत नही होगा कि यदि ट्रम्प के नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम को टाल दिया गया होता तो आज त्रासदी की शकल इतनी भयावह नही होती जितनी वह आज बन गई है. मोदी सरकार, ट्रम्प के नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम को टाल कर यदि निम्न बिंदुओं पर ध्यान देती –

  1. विदेशों से आने वाली उड़ानों पर एक फरवरी से रोक
  2. कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए क्या व्यवस्थाएं करना जरूरी है पर गहन विचार, उनकी लिस्ट बनाना तथा राज्यों को सूचित करना की वे एक निश्चित तय तिथि तक उन्हें पूरी कर लें. जैसे – (i) जिला मुख्यालय पर एकांतवास स्थलों का चयन (ii) वहां संक्रमित मरीजों को रखने के लिए समुचित प्रबन्ध. (Iii) अस्पतालों का चयन. (iv) आवश्यक जांच उपकरणों, कर्मियों की उपलब्धता की जानकारी लेना. आदि
  3. उपरोक्तानुसार तैयारियों में जो कमियां सामने आती उन्हें दूर कराना.
  4. प्रवासी मजदूरों को वापस उनके घर भेजे जाने की एक तिथि निश्चित करना.
  5. सभी नियोक्ताओं से उनके संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों का विवरण लेकर राज्य जिलावार तालिका बनाना.
  6. तालिका के अनुसार सभी राज्य सरकारों से जिला मुख्यालय पर प्रवासी कर्मियों के रुकने और स्वास्थ्य जांच करने के इंतजाम कराना, आवश्यकता पड़ने पर उनको एकांतवास में अथवा इस हेतु निश्चित किये गए अस्पतालों में रखना.
    स्वस्थ पायेगये कर्मियों को उनके घरों तक पहुंचाना
  7. जो संक्रमित पाए जाते उन्हें एकांतवास/ अस्पताल में रखना.
  8. सभी नियोक्ताओं से उनके संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों को पारिश्रमिक का भुगतान एक निश्चिततिथि तक करने और भविष्य के लिए वैकल्पिक व्यवस्था बनाने के निर्देश देना.
  9. देश के भीतर सभी प्रकार के सार्वजनिक परिवहन के सीमित संचालन की तिथि की घोषणा करना.
  10. प्रवासी मजदूरों को उनके परिजनों के साथ गृह जिले तक सुरक्षित पहुंचाना.
  11. इतने कदम उठाने के बाद उनका निश्चित अंतराल पर पुनरीक्षण करते रहना
  12. आवश्यक हो तो जगह जगह लॉकडाउन घोषित करना

यह सिर्फ मेरी एक परिकल्पना है सरकार के पास विशेषज्ञों की कमी नही. मैंने सरकार को सलाह देने के लिए नही पाठकों के दिमाग में तैयारीयों की तस्वीर स्पष्ट करने के लिए ही उल्लेख किया है.

उक्त इंतजाम यदि कर लिए गए होते तो देश के लोगों को रात आठ बजे अचानक घरों क़े बाहर लक्ष्मण रेखा खींच भीतर बन्द हो जाने के मानसिक संघात (शॉक) से बचाया जा सकता था. करोड़ों अप्रवासी मजदूरों को दूर परदेश से निकाल कर उनके घरों तक पहुंचाने की ठोस योजना बनाई जा सकती थी. इंतजार करने की इस अवधि में उनके खाने-पीने, स्वास्थ परीक्षण की योजना बना ली गई होती तो आज जिन घोर अमानीय परिस्थितियों में वे लुटते-पिटते, जीते-मरते, भूखे प्यासे, जानवरों से भी बदतर परिस्थितियों का सामना करने के लिए विवश है, उन्हें उन परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता. उद्द्योग-व्यापार आज अपने भविष्य के प्रति निराशा के जिस भंवरजाल में फंस गया है, वो फंसा न होता. सबसे बड़ा लाभ, पूरे देश के लोगों को मानसिक आघात से बचाया जा सकता था.

कोरोना से भयंकर संकृमित देश के राष्ट्रपति को गले लागाने के एक माह बाद कोरोना त्रासदी में बुरी तरह जकड़ चुके देश का नेता, 24 मार्च की रात्रि आठ बजे अपने ही नागरिकों को लॉकडाउन के अंधेरे में कैद कर देता है. अंधेरे में कैद करने के 49 दिन बाद उन्हें यह बताने कि 17 मई को लॉकडाउन 3 की 54 दिनों की अवधि पूरी होने के बाद देश लॉकडाउन 4 में प्रवेश करने को मजबूर है. बेहयाई की इंतहा है.

ऐसे बेबस लोगो को बहलाने के लिए अपनी घोर लापरवाहियों पर पर्दा के लिए उनके सामने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज जो पूरी तरह भृम जाल में कस कर लिपटा हुआ है किकी घोषणा, क्या सरकार की मजबूरी नही बन चुकी थी ?

12 मई को प्रधानमन्त्री जी द्वारा 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई है. हर वर्ग को इस बात का भरोसा दिया गया कि घोषणा के जंगल में उनके लिए भी एक कल्पवृक्ष है, परन्तु इसकी तफसील उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी, प्रधानमन्त्री जी ने अपनी काबिल वित्तमन्त्री के कंधों पर डाल कर अपने सम्बोधन को 33 मिनट में पूरा कर दिया.

13 से 15 मई तीन दिनों में वित्तमन्त्री ने जिन आर्थिक पैकेजों की घोषणा की है सतही तौर पर व्यापारी उसका स्वागत करते दिख रहे हैं. तारीफ करने भी शायद उनकी मजबूरी है. सारा दारोमदार राज्यों पर निर्भर करता है,वे कितने प्रभावशाली, पारदर्शी तरीके से इन घोषणाओं का क्रियान्वयन करते है. बहुत से आर्थिक विश्लेषक इसे भ्रमजाल बता रहे हैं.

इसी दौरान मध्यप्रदेश सरकार ने मंदिरों के पुजारियों के लिए आठ करोड़ रूपयों की घोषणा की है, यह जानकारी ब्राह्मण एकता सहयोग मंच के अध्यक्ष पंडित राकेश चतुर्वेदी ने पत्रिका न्यूज नेटवर्क को दी है. उन्होंने यह भी बताया कि राज्य के 25000 हजार पुजारियों को इससे राहत मिलेगी.

ऐसी तमाम विसंगतियों के बीच प्रधानमन्त्री जी की लोक लुभावन भाषा – ‘थकना, हारना, टूटना, बिखरना मानव को मंजूर नहीं. सतर्क रहते हुए सारे नियमों का पालन करते हुये, कोरोना के साथ रहते हुये, बचना भी है और आगे बढ़ना भी है.’ महज जुमला बन कर रह गया है. अब विचार करिये कोरोना को भारत में लाने के लिए मोदी जिम्मेदार हैं या नही ?

Read Also –

मोदी सरकार ने देश को मौत के मुंंह में धकेल दिया है
पीएम केयर फंड : भ्रष्टाचार की नई ऊंचाई
‘नमस्ते ट्रम्प’ का कहर और मोदी का दिवालियापन
कोरोना वायरस बनाम लॉकडाऊन

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…