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सुनो स्त्रियों…

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सुनो स्त्रियों...
सुनो स्त्रियों…

सुनो स्त्रियों…
पुरुषों से डरना
या फिर उन्हें नकारना बंद करो
उनका अपमान करना,
हर पुरुष को वहशी करार देना,
बंद करो
उन्हें तुमसे….
प्रेम चाहिये …
ढेर सारा प्रेम …
ठीक वैसे ही….
जैसे तुम्हें चाहिये.

तुम्हारी ख़ुद को बेचारी,
कमज़ोर
या फिर सर्वगुण संपन्न मानकर और
सबसे मनवाकर
आकर्षण का केंद्र बनने की लालसा
उन्हें निचोड़ रही है…
अकेला कर रही है…
असंतुलित कर रही है…

सुनो स्त्रियों….
तुम…
बलात् को नकारो…
उसका खुलकर विरोध करो…
बलात् की सज़ा मौत से भी बड़ी होनी चाहिये
पर…
तुम्हें ये भी पता होना चाहिये कि
हर पुरुष बलात्कारी नहीं है.
उनमें से बहुत सिर्फ़ प्रेम की तलाश में है…
तुम्हारी ही तरह…
तुम उसकी तलाश बनो…
और हो सके तो ऐसा…
ख़ुद को प्रेम का अथाह सागर और
उन्हें तुच्छ माने बिना…
अपने समान मानकर करो…

सृष्टि का संतुलन बनाये रखना…
किसी एक की ज़िम्मेदारी नहीं है…
विरोध, विकृति का करो, प्रकृति का नहीं

  • भूमिका जैन ‘भूमि’

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