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सबक : आज जो जोशीमठ में हो रहा है…

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सबक : आज जो जोशीमठ में हो रहा है…
अतुल सती जोशीमठ

आज जो जोशीमठ में हो रहा है – धंसाव, भूस्खलन, घरों का टूटना – उजड़ना…, सन 2003 में ऐसी कल्पना नहीं थी. हां आशंका जरूर थी कि अगर यहां ऐसी जल विद्युत परियोजना बनी, जिसमें कि जोशीमठ के नीचे से सुरंग बनेगी तो उसके परिणाम अनिष्टकारी होंगे क्योंकि हम जोशीमठ के सामने चाईं गांव में और ठीक उसके पीछे लामबगड़ में विष्णुप्रयाग जल विद्युत परियोजना के विनाशकारी परिणाम देख चुके थे. वहां उनके साथ लड़े भी थे, जिससे सुरंग आधारित परियोजनाओं के पर्यावरण प्रकृति, पारिस्थितिकी और जनता पर समुदाय पर पड़ने वाले दुष्परिणामों को समझे थे.

इसीलिए जब इस परियोजना के सर्वेक्षण की खबर होते ही हमने अपनी आशंकाएं एक ज्ञापन के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजी थी.
परियोजना की जनसुनवाई में भी हमने अपनी आशंकाओं को रखा और उसके बाद लंबे चले आंदोलन के दरमियान भी. तब भी जब कि 24 दिसम्बर 2009 को तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की मुख्य सुरंग में टनल बोरिंग मशीन पर बोल्डर गिरने से पानी का सोता फूट पड़ा और उससे 700 लीटर पानी प्रति सेकंड बहने लगा, और इसके बाद लंबे चले आंदोलन के बाद एक समझौता हमारा एनटीपीसी के साथ हुआ, जिसकी मध्यस्थता केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने की.

हमने जरूर समझौते में यह हासिल किया कि एनटीपीसी हमारे घर मकानों का बीमा करेगी किन्तु इसको लागू करवा नहीं पाए. क्योंकि ऐसा होगा एक दिन इसकी कल्पना न थी. लगता था यह सुरक्षा कवच ही हमारी रक्षा के लिये काफी होगा और एनटीपीसी भी इस समझौते के दबाब में आगे विस्फोटकों के इस्तेमाल से बचेगी, जिससे शायद खतरा इतना न हो. भले ही हमने सरकार से बार बार 1976 की मिश्रा कमेटी की सिफारिशों पर अमल करते हुए भारी निर्माण को रोकने की गुजारिश की, इस परियोजना की समीक्षा की बात भी समझौते में थी, जो नहीं हुई.

आज जब परिणाम हमारे सामने है तब यह खयाल आता है कि हम तो सिर्फ अनुभवजनित आशंका से प्रेरित हो लड़ रहे थे किंतु जो योजनाकार थे, वैज्ञानिक थे, आस-पास बिखरे तमाम पर्यावरणविद थे, जो इसके दुष्परिणामों को बेहतर जानते समझते थे, वे भी मुखर हो कभी हमारे स्वर में स्वर नहीं मिलाए, जिससे वह दबाब जो शायद जोशीमठ को उसकी जनता को बचा पाता, वह नहीं बना. हमारी कोशिशों से जो हम हासिल कर सकते थे किया, पर वह नाकाफी साबित हुआ. और आज एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक नगर अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है.

हिमालय हम सबकी सारी मानवता की धरोहर हैं. जोशीमठ एक सबक है, जो हिमालय को बचाने की लड़ाई को आगे ले जाने में मददगार हो सकता है. सारे हिमालयी राज्यों के चिंतनशील लोगों को आम जन को इसके लिये आगे आना होगा अन्यथा पर्यावरण प्रकृति विरोधी, लोभ लालच पर केंद्रित पूंजीवादी अनियंत्रित, जनविरोधी विकास का विचार ढांचा मानवता के भविष्य के लिये घातक होगा. मौसमी बदलाव इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने तीव्र करने में योग देंगे यह निश्चित है. पर्यावरण, पारिस्थिकी और प्रकृति के साथ सामंजस्य और बगैर वैकल्पिक नीतियों के हम न सिर्फ हिमालय बल्कि मानवता को भी बचाने की अब जहां पहुंच गए हैं, वहां से कल्पना नहीं कर सकते.

जोशीमठ में आपदा प्रबंधन का सबसे बड़ा चुटकुला है प्री-फैब – इन्द्रेश मैखुरी

बीते दिनों एक दैनिक समाचार पत्र ने जोशीमठ को लेकर एक खबर छापी, जिसका शीर्षक था : ‘एक भी प्री-फैब्रिकेटेड हट का निर्माण नहीं हुआ पूरा.’ खबर के अनुसार जोशीमठ के नजदीक ढाक गांव में निर्माणाधीन 15 में से 11 प्री-फैब्रिकेटेड भवनों की छत और दीवार का काम चल रहा है, जबकि 3 भवनों के फिनिशिंग का कार्य चल रहा है. अगले दिन शीर्षक थोड़ा बदला ! नया शीर्षक था : ‘ढाक में प्री फेब्रिकेटेड हट का निर्माण कार्य ज़ोरों पर’ ! अंदर तथ्य पहले दिन वाले ही थे कि 15 में से 11 प्री-फैब्रिकेटेड भवनों की छत और दीवार का काम चल रहा है, जबकि 3 भवनों के फिनिशिंग का कार्य चल रहा है !

यह हैडलाइन प्रबंधन ही इस अमृत काल का एकमात्र, एकसूत्रीय प्रबंधन है ! देश, प्रदेश और जिला ऐसे ही हैडलाइन मैनेज करके चल रहा है ! जोशीमठ में प्री-फैब हट के निर्माण की गति और क्रोनोलॉजी यदि देख लें तो राज्य के हैंडसम मुख्यमंत्री और उनकी आंखों के तारे चमोली जिले के जिलाधिकारी की कार्यकुशलता की झलक आप पा सकते हैं. प्री-फैब निर्माण की गति, कथाओं वाली बीरबल की खिचड़ी के पकने की रफ्तार को कब का सैकड़ों किलोमीटर पीछे छोड़ चुकी है.

जनवरी 2023 के शुरू के दिनों में जब जोशीमठ में भीषण दरारों के सामने आने के बाद जब लोग सड़कों पर उतरे तो ‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ और उसके संयोजक कॉमरेड अतुल सती ने ही प्रशासन के सामने यह सुझाव रखा कि लोगों को उनके दरकते घरों से फौरी तौर पर पुनर्वासित करने के लिए तत्काल प्री-फैब भवनों का निर्माण हो. प्री-फैब इसलिए सुझाया गया कि उनको बनाना सरल होता है, तेज गति से हो तो तीन-चार दिन में एक भवन आसानी से बन जाता है.

चमोली जिले के प्रशासन ने तत्काल प्री फैब का आइडिया लपक लिया. लेकिन ऐसा लगता है कि आइडिया में से “तत्काल” शब्द प्रशासन के एंटीना ने कैच नहीं किया. जोशीमठ तहसील में जहां प्रशासन डेरा जमाये हुए था, वहां नेटवर्क की बड़ी दिक्कत रहती है तो हो सकता है कि नेटवर्क ग्लिच में तत्काल शब्द कहीं अटक गया हो !

बहरहाल 05 जनवरी 2023 को जिस दिन जोशीमठ में लोगों ने राहत,पुनर्वास, पुनर्निर्माण के लिए सड़क पर उतर कर चक्काजाम किया तो प्रशासन और पुलिस सांसत में आ गयी. मौके पर पहुंचे अपर जिलाधिकारी ने लिखित पत्र लोगों को सौंपे, जिनमें लिखा था कि दो हजार प्री-फैब भवन बनाने के लिए एनटीपीसी को कहा गया है और दो हजार प्री-फैब भवन बनाने को एचसीसी से कहा गया है.

इस हिसाब से चार हजार प्री-फैब भवन बन जाने चाहिए थे. लेकिन यह चिट्ठी जारी करने के बाद एडीएम, डीएम, सीएम सब भूल गए. इसलिए आज की तारीख तक चार हजार छोड़िए चार प्री-फैब भी नहीं बने !

प्री-फैब का पुनः चर्चा प्रशासन से मुंह से तब हुआ जब जिलाधिकारी, चमोली के आधिकारिक फेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल से एक फोटो जारी की गयी. फोटो में जेसीबी जमीन को खोदती हुई देखी जा सकती है. उसमें लिखा हुआ था कि ‘जोशीमठ में भू धंसाव के कारण आपदा प्रभावितों के लिए जोशीमठ से एक किलोमीटर पहले टीसीपी तिराहे के पास उद्यान विभाग की भूमि पर मॉडल प्री फैब्रिकेटेड भवन बनाया जा रहा है.’ यह पोस्ट 20 जनवरी 2023 को किया गया.

इस तरह देखें तो प्री फैब भवनों का जिक्र 05 जनवरी 2023 के बाद सीधे 20 जनवरी को हुआ. उसके बाद अगले कई दिनों तक जिलाधिकारी के पेज से प्री-फैब भवन निर्माण स्थल के निरीक्षण आदि की तस्वीरें आती रही. यहां कुल तीन भवन बनने थे, जिनके बनने की चर्चा और गति से ऐसा लगा कि जैसा कौन शाहकार रचा जा रहा हो ! फिर अचानक हैंडसम धामी की आंखों के तारे, राजदुलारे जिलाधिकारी ने 21 जनवरी 2023 को घोषित कर दिया कि जोशीमठ से कुछ किलोमीटर दूर ढाक में भी पंद्रह प्री-फैब्रिकेटेड भवन बनाए जाएंगे.

इस तरह देखें तो प्री फैब भवनों का जिक्र 05 जनवरी 2023 के बाद सीधे 20 जनवरी को हुआ. उसके बाद अगले कई दिनों तक जिलाधिकारी के पेज से प्री-फैब भवन निर्माण स्थल के निरीक्षण आदि की तस्वीरें आती रही. यहां कुल तीन भवन बनने थे, जिनके बनने की चर्चा और गति से ऐसा लगा कि जैसा कौन शाहकार रचा जा रहा हो ! इन प्री-फैब भवनों के निरीक्षण करने जिलाधिकारी कब-कब गए, इसका ब्यौरा देने के लिए एक अलग लेख की जरूरत पड़ेगी.

यह अलग बात है कि वे निरीक्षण करने में ही सारी तेजी दिखाते रहे और निर्माण कार्य कछुआ गति से चलता रहा ! प्री-फैब भवनों के निरीक्षण का उनका शगल ऐसा है कि पूर्व नोटिस दे कर जनजाति के लोग, सैकड़ों की तादाद में 04 मार्च को प्रदर्शन करने कलेक्ट्रेट में उनके दफ्तर आए तो पता चला कि जिलाधिकारी तो हैं ही नहीं ! कहां गए हैं तो ज्ञात हुआ- प्री फैब का निरीक्षण करने जोशीमठ चले गए हैं ! जोशीमठ की नीति-माणा घाटी के जनजाति के लोग जिलाधिकारी दफ्तर आए और जिलाधिकारी जोशीमठ चले गए, उन प्री-फैब भवनों का निरीक्षण करने जो आज तक पूरे न हो सके !

बहरहाल 04 मार्च को ही जिलाधिकारी के फेसबुक पेज पर ऐलान हुआ कि उद्यान विभाग की भूमि पर प्री फैब्रिकेटेड भवनों का निर्माण पूरा हुआ ! इन भवनों में क्या कोई बसाया जाएगा- जी नहीं, ये तो मॉडल हैं ! कितने भवन हैं- तीन ! 20 जनवरी 2023 को बनाना शुरू हुए और 04 मार्च को जा कर पूरे हो पाये ! नमूने के तौर पर बने ये भवन आपदा प्रबंधन के नाम पर की जा रही नमूनेपंती के जिंदा मिसाल हैं !

21 जनवरी से ढाक में जिन 15 प्री-फैब भवनों के निर्माण की घोषणा हुई थी, उनके मामले में तो इस लेख के शुरू में उल्लिखित हैडलाइन मैनेजमेंट के अलावा नतीजा ढाक के तीन पात है ! जिन भवनों के निर्माण में आम तौर पर तीन-चार दिन से ज्यादा नहीं लगते हैं, उनके निर्माण में महीनों लग रहे हैं तो यह मज़ाक नहीं तो क्या है ! अफसोस कि यह क्रूर मज़ाक उनके साथ किया जा रहा है, जो अपने जीवन भर की जमापूंजी, मकान, दुकान सब कुछ गंवाने के कगार पर खड़े हैं !

चमोली जिले के आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार जोशीमठ में 868 भवन दरारों वाले चिन्हित किए गए हैं और असुरक्षित जोन में चिन्हित भवनों की संख्या है- 181. और ऐसे में पंद्रह प्री-फैब्रिकेटेड भवन बनाने में जब महीनों लग रहे हैं तो सोचिए कि इस दर से पूरे नगर का विस्थापन और पुनर्वास कितने सालों तक हो पाएगा ? इसी से प्रदेश के हैंडसम मुख्यमंत्री और उनकी आंखों के तारे, जिगर के प्यारे अफसरों की कार्यकुशलता और दक्षता का अनुमान लगाया जा सकता है !

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