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लाशें, ईद और रथयात्रा

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तुम ईद मनाओ, जगन्नाथ के रथ को हांको
बड़े मोलवियों और पुजारियों की बधाई ले लो
मैं तुम्हारे बिखेरे रक्त-धब्बों को
अपने आंंसुओं से साफ़ करता रहूंगा

तुम ईद-निमाज़ पढ़ो, अल्लाह का गुणगान करो
जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की जय-जयकार करो
पत्थरों में ढलते क्रोध को अपने हाथों से उछालो
यह सोचे बिना कि
हाथ भी तुम्हारे ही हैं और सिर भी तुम्हारे
मिठाइयां बांटो, प्रसाद बांटो और ज़हरीली नफ़रतें भी
मैं तो हर हाल में प्यार ही बांटा करूंंगा

तुम्हारे पास एक दूसरे को काट कर
एक दूसरे को पीट-पीट के मार कर भी
खुशियां मनाने के हज़ारों बहाने हो सकते हैं
लेकिन मेरे लिए तुमने इस क्रूर पाखण्डी युग में
ख़ुश रहने का एक बहाना तक भी नहीं छोड़ा है

तुम ईद मनाओ,जगन्नाथ के रथ को हांको
पटाख़े फोड़ो और तसबी के दाने गिन लो
मेरे गिनने के लिए तुम सब ने
चारों तरफ़ बहुत सी लाशें बिछा रखी हैं

काश तुम जान पाते कि तुम केवल कठपुतलियां हो
तुम्हारी डोर मस्जिद के कठमुल्लाह
और मन्दिर के संघी के हाथ में है
उनके सारे डोर सयासी-दलालों के हाथों में हैं
जिनके पीछे पूरा कारपुरेट जगत है
वे तुम्हें पाप-पुण्य,स्वर्ग-नरक के हथकंडों से
केवल नचवाते रहते हैं,लड़वाते रहते हैं

मैं इन सड़े, सूखे चिनार और
पीपल के पेड़ों के नीचे पड़ी
इन लाशों को पहचानने का प्रयत्न कर रहा हूंं
लेकिन इन सब लाशों में मुझे
हर जगह अपनी ही लाश दिखाई दे रही है

फिर आप ही बताओ कि मैं कौन सी ईद मनाऊं
किस जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की जय-जयकार करूंं
तुम्हें क्या…?

तुम ईद मनाओ, जगन्नाथ के रथ को हांको.

  • निदा नवाज़ / 25.06.2017

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