पंजाब के एक किसान ने निशान साहिब क्या फहरा दिया कि जो दलाल मीडिया पिछले 60 दिनों से किसान आंदोलन को कवरेज नहीं दे रहा था वो अचानक से देश के सम्मान से जोड़कर किसानों को खालिस्तानी और ना जाने क्या-क्या बोलकर बदनाम करने लग गया है.
अरे मूर्खों, जिस खालसा के झंडे को तुम खालिस्तानी झंडा बताकर प्रोपेगंडा चला रहे हो पहले खालिस्तानी झंडे और ‘निशान साहिब’ में फर्क करना तो सीख लो. और तुम जो कह रहे हो कि तिरंगे का अपमान कर दिया तो काहे का अपमान कर दिया भैया ?
‘निशान साहिब’ को जब सिख रेजीमेंट ने गालवान घाटी में फहराया था तब तो तुम बड़े फुदक-फुदककर जय जयकार कर रहे थे. तो आज खालसा झंडे से इतनी नफरत कैसे हो गई महानुभावों ?
और तुम तो तिरंगे के सम्मान की बात ही मत करो क्योंकि तुम अपनी पार्टी के झंडे को तिरंगे से ऊपर लहराते हो, तुम तिरंगे को पैरों में रौंदते हो और मोदी जी जब तिरंगे से मुंह पोंछते हैं, जब तिरंगे से पसीना पोछते हैं, तब तुम्हारा राष्ट्रवाद और तुम्हारा जमीन मर जाता है क्या ? या अपने आकाओं से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं रखते हो ?
औऱ महत्वपूर्ण बात ये कि जब ट्रैक्टर परेड का मार्ग निर्धारित किया जा चुका था तो निर्धारित रास्ते पर पुलिस द्वारा बेरीकेटस लगाने और आंसू गैस के गोले बरसाकर किसानों को पहले रास्ते से भटकाने और फिर लाठीचार्ज और किसानों पर गोली चलाने का भला क्या औचित्य था ? जबकि पुलिस प्रशासन और किसान संगठनों के बीच आपसी बातचीत होने के बाद तो किसानों की रक्षा करने का दायित्व भी पुलिस का बनता था लेकिन पुलिस ने अपने कर्तव्य के ठीक विपरीत प्रतिक्रिया दी और किसानों को जानबूझकर उकसाया. तब सोचने वाली बात ये है कि पुलिस को ये सब करने का आदेश किसने (और क्यों) दिया क्योंकि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है ?
इसलिए समझा रही हूंं कि अब ये ऊलजुलूल प्रचार करके किसानों को बदनाम करना बंद करो क्योंकि भारत अब संपूर्ण क्रांति की तरफ बढ रहा है. हालांकि मुख्यधारा की मीडिया ये सब नहीं दिखाता लेकिन बता दूंं कि किसान आंदोलन अब बिकाऊ मीडिया का मोहताज नहीं है. बल्कि आज हर किसान खुद में एक पत्रकार है औऱ सेल फोन के रुप में कैमरामैन भी साथ रहता है. और ये इंटरनेट का युग भी है इसलिए तुम्हारा ये झूठ का पुलिंदा ज्यादा दिन तक नहीं ठहरेगा क्योंकि किसान आंदोलन अब जन भावना से जुड़ चुका है और कुछ प्रतिशत लोगों को छोडकर पूरे देश का समर्थन किसानों के साथ है.
किसान आंदोलन में आज जो कुछ भी घटित हुआ है उसके लिए पूरी तरह से पुलिस प्रशासन औऱ केंद्र सरकार परोक्ष रुप से जिम्मेदार है क्योंकि दुनिया जानती है कि किसान पिछले 60 दिनों से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं. आज अगर कुछ अप्रिय घटनायें हुई हैं तो इसके लिए किसान जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं क्योंकि लॉ एंड आर्डर को मेंटेन रखना सरकार औऱ पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी बनती थी. मगर ये सब नहीं हुआ तो सरकार आत्ममंथन करे औऱ काले कानूनों को रद्द करके ही देश में अपना थोडा बहुत सम्मान बचा सकती है.
कुच्छेक घटनाओं को छोडकर किसानों की ट्रैक्टर परेड शांतिपूर्ण रही है और इतिहास में दर्ज हो चुकी है, जिसके लिए तमाम किसान संगठन, हमारे किसान नेता और तमाम किसान बधाई के पात्र हैं और अगर कोई अब भी किसानों को बदनाम करता मिले तो उसे इग्नोर करें क्योंकि हाथी चले बाजार और कुत्ते भौंके हजार.
हमारे शीर्ष किसान नेता बहुत अनुभवी और सुलझे हुए नेता हैं, जिन्हें परामर्श तो मैं नहीं दे सकती लेकिन मेरी निजी राय ये है कि ये ट्रैक्टर परेड महज हमारा शक्ति प्रदर्शन था, जो संपन्न हुआ लेकिन मंजिल अभी भी बहुत दूर है इसलिए ‘जब तक बिल वापसी नहीं, तब तक घर वापसी नहीं’ का संकल्प लेकर अपने आंदोलन स्थलों पर पूर्ववत डटे रहें क्योंकि अभी नहीं तो कभी नहीं. किसान एकता जिंदाबाद.
- बेबाक जाटनी
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