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लाल बहादुर शास्त्री : जिसने अमेरिका के आगे झुकने से इंकार कर दिया

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लाल बहादुर शास्त्री

कृष्ण कांत

जब मैं हाइस्कूल में था तो एक दिन मुझे इंग्लिश पढ़ाने वाले मास्टर साब ने कहा था कि ‘इस देश में एक ढाई फुट का आदमी प्रधानमंत्री हुआ था. उसने ऐसा कमाल किया, जैसा किसी ने कल्पना नहीं की थी.’

उनका इशारा भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की तरफ था. बाद में हमने जाना कि 1965 में पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिका ने धमकाया था कि हमारे इशारे पर नहीं चलोगे तो खाने को गेहूं नहीं देंगे. ये बात शास्त्री जी के दिल में खंजर की तरह चुभ गई. उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि आज शाम खाना मत बनाओ. मैं देखना चाहता हूं कि क्या मेरे बच्चे एक दिन बिना खाये रह सकते हैं !

उस दिन प्रधानमंत्री शास्त्री के बच्चे बिना खाये रहे. अगले दिन युद्ध, सूखा और गरीबी का सामना कर रहे भारतवासियों से शास्त्री जी ने अपील की कि देशवासी हफ्ते में एक दिन खाना न खाएं. पूरा देश शास्त्री जी के साथ खड़ा हो गया. जनता भूखे पेट रहकर संघर्ष करने को तैयार थी.

देश का संकल्प देखकर एक छोटे कद के महान प्रधानमंत्री ने अमेरिका के आगे झुकने से मना कर दिया था. दो युद्धों और दो अकाल के संकट के बीच शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया और इसे आक्रामकता से आगे बढ़ाया गया.

शास्त्री जी की सरकार ने अनाज की पूर्ति के लिए हरित क्रांति की पहल की. भारत जब आजाद हुआ था तब देश को खाने के लाले पड़ते थे. 1965-66 अकाल पड़ा तो भारत को एक करोड़ टन से ज्यादा अनाज का आयात करना पड़ा था लेकिन 80 के दशक तक भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया.

इतिहासकार बिपिनचंद्र लिखते हैं, हरित क्रांति की सफलता ने भारत की भिखमंगे की छवि समाप्त कर दी. यह चमत्कार कैसे हुआ ? आज कई दशक से भारत के अनाज भंडार भरे रहते हैं. हरित क्रांति की बात आत्मनिर्भर शब्द के बगैर पूरी नहीं होती. खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर कैसे बना ?

नेहरू के पहले कार्यकाल से ही भारत में कृषि को आधुनिक बनाने के उपक्रम शुरू हुए. वैज्ञानिक और तकनीकी आधार मजबूत करने एवं संस्थागत सुधारों पर खास ध्यान दिया गया. सिंचाई परियोजनाएं, उर्जा परियोजनाएं, भाखड़ा जैसे बांध, कई कृषि विश्वविद्यालय, शोध प्रयोगशालाएं, कृषि संस्थान, खाद कारखाने, संयंत्र आदि की स्थापना ​की गई, जिन्हें नेहरू ने ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कहा था.

इसी दौरान भूमि सुधार कार्यक्रम लागू किए गए. तीसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान नई कृषि रणनीति लागू हुई, जिसके लिए 15 जिले चुने गए. जीएस भल्ला के अनुसार, हरित क्रांति नेहरू के काल में नहीं हुई लेकिन इसकी नींव नेहरू के काल में ही रख दी गई थी,
इसे शास्त्री जी ने आगे बढ़ाया.

इंदिरा गांधी के कार्यकाल तक खाद्यान्न के लिए भारत अमेरिका और अन्य देशों पर निर्भर था. अमेरिका की कोशिश थी कि अनाज देने के बदले भूखे भारत को अपने इशारे पर नचाया जाए लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ.

शास्त्री जी ने हरित क्रांति की जी पहल की थी, इंदिरा के कार्यकाल में उसे आगे बढ़ाया गया. उन्नत किस्म के बीज, कीटनाशक, खाद, ट्रैक्टर, इंजन, पंप, दवाएं, कृषि मशीनरी, कृषि शिक्षा कार्यक्रम इत्यादि पर काफी जोर दिया गया. कृषि में सरकारी निवेश तीन साल में ही बढ़ाकर दोगुना कर दिया गया. ये कार्यक्रम इतने तेज थे कि 1960 से लेकर 1971 के बीच पंपसेटों की संख्या 4 लाख से बढ़कर 24 लाख हो गई.

1967 से लेकर 1971 के बीच भारत के अनाज उत्पादन में 35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. 1987-88 अकाल पड़ा, तब भारत ने बिना किसी विदेशी मदद के अकाल का सामना किया. 1967 से लेकर 1990 के बीच भारत में प्रति एकड़ उत्पादन में करीब 80 फीसदी की वृद्धि हुई. तीन से साढ़े तीन दशक में ऐसी स्थिति बन गई कि अब भारत को किसी से अनाज नहीं मांगना था.

यह चमत्कार इसी देश के किसानों ने किया था, लेकिन उसके लिए सरकार ने स्पष्ट नीतियां और कार्यक्रम बनाये थे. आज हम कहां खड़े हैं ? हमारी सरकार ने किसानों को बर्बाद करने का कानून बनाया, किसान अपनी जीविका बचाने के लिए धरना प्रदर्शन करते रहे और 700 किसान मारे गए. सरकार अपनी सनक में मस्त रही.

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक व्यक्ति की मर्जी से ये कानून आए फिर उस व्यक्ति ने हार के डर से इन्हें वापस ले लिया. यह वही शास्त्री जी का देश है जहां एक नेता प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचलवा कर मार देता है और वह देश का गृह राज्यमंत्री है. गौरतलब है कि 11 जनवरी, 1966 शास्त्री जी की पुण्यतिथि है.

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