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लखानी के मज़दूरों ने भविष्य निधि विभाग को जगा दिया है

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लखानी के मज़दूरों ने भविष्य निधि विभाग को जगा दिया है
लखानी के मज़दूरों ने भविष्य निधि विभाग को जगा दिया है

छोटी-बड़ी 28,000 से अधिक उद्योग वाली, उद्योग नगरी फ़रीदाबाद के हज़ारों मालिक जुलाई महीने में हैरान हो गए, जब उन्हें सेक्टर 15-ए स्थित कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय (ईपीएफओ) से ऐसे नोटिस प्राप्त हुए, जिन्हें वे भूल चुके थे. विभाग ने कुल 1023 कंपनियों को नोटिस भेजकर पूछा है कि उन्होंने अपने मज़दूरों का भविष्य निधि अंश सरकारी ख़जाने में क्यों जमा नहीं किया है ?

नोटिस मिलने के 15 दिन के अंदर अगर उन्होंने पीएफ का बक़ाया पैसा जमा नहीं किया तो उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाएगी. विभाग से मिली ताज़ा जानकारी के अनुसार इनमें से 80 कंपनियों ने पूरी बक़ाया राशि जमा कर दी है. अन्य ने अनुपालन करने के लिए वक़्त मांगा है. मोदी-पूर्व काल में इसे दैनंदिन की स्वाभाविक कार्यवाही माना जाता, लेकिन मोदी के ‘अमृत काल’ में ये इतनी बड़ी ख़बर है कि अमर उजाला अख़बार ने इसे प्रमुखता से कवर किया और ये ख़बर महानगर के मज़दूरों में चर्चा का विषय बनी हुई है.

राजनीतिक रूप से सचेत मज़दूर इस ‘उपलब्धि’ के लिए ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ के कार्यकर्ताओं को बधाई दे रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि ये आसान काम नहीं था. पिछले साल, 21 अक्टूबर को ‘लखानी फुटवेयर प्रा. लि., 266, सेक्टर 24’ के गेट पर दो साल से हर महीने नियमित चिल्लाने वाले 19 मज़दूरों ने तय किया कि इस तरह चिल्लाते रहने और फिर मायूस होकर हाय सी मारकर, अपने खून-पसीने की कमाई को इस शातिर मालिक के लिए छोड़ बैठने का रास्ता वे नहीं अपनाएंगे. उन्होंने, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ से संपर्क किया और कहा, बताइए, हम क्या करें ?

टाउन पार्क, सेक्टर 12 में हुई मीटिंग के बाद ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ नाम के मज़दूरों के संघर्ष के अपने औज़ार का निर्माण हुआ. मीटिंग के तुरंत बाद पूरी टीम पास ही स्थित, ‘श्रम-उपायुक्त एवं निदेशक कार्यालय’ पहुंची. श्रम अधिकारियों ने हमदर्दी दिखाई लेकिन ‘लखानी का मामला है, वह तो हमारे बुलावे पर भी नहीं आता’, कुछ ऐसी लम्बी सांस लेते हुए बोला कि कई मज़दूरों को उम्मीद की किरण नज़र आनी भी बंद हो गई. वे समझ गए कि कुछ नहीं होने वाला और फिर किसी मीटिंग में नज़र नहीं आए.

पिछली दिवाली के बाद 26 अक्टूबर को पीएफ़ विभाग पर हुई मीटिंग में पहली मीटिंग वाले कई मज़दूर नहीं आए लेकिन पीएफ पाने के लिए संघर्ष शुरू हो गया है, यह मालूम पड़ जाने पर उनसे भी ज्यादा नए मज़दूर शामिल हो गए. भविष्य निधि विभाग के कार्यकारी उप-आयुक्त ने संदेश भिजवाया कि ज्ञापन देने और चर्चा करने 2 लोग चैम्बर में आ जाओ.

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा ने तय किया था कि सभी लोग एक साथ अंदर जाएंगे, क्योंकि तब तक लखानी के मज़दूरों का भरोसा वह पूरी तरह नहीं जीत पाया था. ‘साहब’ ने भी दफ़्तर में हो रहे मज़दूरों के ‘न्यूसेंस’ से मुक्ति पाने के लिए सभी को अंदर बुला लिया. ‘सर, ये लखानी के वे मज़दूर हैं, जिनके वेतन से नियमानुसार 12% रक़म भविष्य निधि के नाम पर काटी गई है, लेकिन मालिक ने उतना ही अपना अंश मिलाकर पिछले दो साल से जमा नहीं किया है..’.

बात पूरी भी नहीं हुई थी कि उपायुक्त बोल पड़े, ‘अरे तुम लोग 2 साल की बात कर रहे हो, लखानी तो 2012 से पीएफ का पैसा जमा नहीं कर रहा !!’ कई मज़दूर एक स्वर में बोल पड़े, ‘सर हम ‘पीडी’ की बात नहीं कर रहे, बड़े भाई के सी लखानी की बात कर रहे हैं’. ‘अच्छा, तो छोटे भाई को देखकर बड़ा का भी रंग बदल गया !!’ उपायुक्त की इस, स्वीकारोक्ती से पीएफ विभाग के निकम्मेपन की तीव्रता का अहसास हुआ.

मीटिंग के बाद एक बार फिर ढुलमुल यकीन मज़दूर मायूसी की गहराई में उतर कर किनारा कर गए. ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ को भी अहसास हुआ कि ये लड़ाई उतनी आसान नहीं, जितनी नज़र आती है. लड़ने में मज़ा भी तब ही आता है जब हिम्मत और ताक़त पूरी तरह इस्तेमाल करने का अवसर मिले. ये तो तय था ही कि संघर्ष, क़ामयाबी मिले बगैर रुकने वाला नहीं. दूसरी अच्छी बात इस स्टेज में यह हुई कि जैसे थ्रेशर में पड़ने से गेहूं से भूसा अलग हो जाता है, ठीक उसी तरह लखानी के जो मज़दूर उसके बाद ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ के साथ बचे, वे सब स्टील की तरह मज़बूत थे.

भविष्यनिधि विभाग की ओर से हमें एक पत्र दिनांक 03.11.22, डायरी नं. 6741 प्राप्त हुआ, जिसमें हमसे पिछले 10 साल के दौरान लखानी के मज़दूरों से हुई पीएफ कटौती के सबूत मांगे गए थे. बात तो ये गुस्सा दिलाने वाली थी, क्योंकि जिस काम को करने की पीएफ विभाग के अधिकारी मोटी-मोटी तनख्वाएं लेते हैं, गाड़ी बंगले का सुख भोगते हैं, उसे करने का फ़रमान हमें ज़ारी कर रहे थे, लेकिन, ये जानकर अच्छा भी लगा कि हमारा ज्ञापन/ शिकायत डस्ट बिन में नहीं पहुंचा है. उसके बाद तय हुआ कि इस मुद्दे को अब ठंडा नहीं पड़ने दिया जाएगा, सम्बंधित अधिकारीयों की नाक में दम करने के लिए हर सप्ताह उन्हें ‘डिस्टर्ब’ किया जाएगा.

इसी बीच एक ज़िम्मेदार और संवेदनशील अधिकारी का ज़िक्र ज़रूरी है. हालांकि, विनम्रतावश वे यह पसंद नहीं करते. 26 अक्टूबर को ही जब, लोकल मीडिया की मौजूदगी में गुस्से में तिलमिलाए मज़दूर पीएफ विभाग पर लानतें भेज रहे थे, उसी दिन सहायक आयुक्त श्री कृष्ण कुमार को मज़दूरों को शांत कर उन्हें टरकाने के मक़सद से नीचे भेजा गया था. ‘मेरा भरोसा करिए, शांत हो जाइये, अपने घर चले जाइये, सब के साथ न्याय होगा’, उस दिन उनकी इस इस गुहार को ‘सरकारी जुमलेबाज़ी’ समझकर नज़रंदाज़ कर दिया गया था.

अगले दिन उनसे जब बात हुई और उन्होंने कहा, ‘मैं डीसीएम (डेल्ही क्लॉथ मिल) मज़दूर का बेटा हूं, मैंने हड़तालें देखी हैं, फ़ाके सहे हैं’, तब उनकी आंखों की चमक से लगा यह व्यक्ति झूठ नहीं बोल रहा. पाला, लेकिन लखानी से पड़ा था, जो श्रम क़ानूनों को ना मानने को अपनी प्रतिष्ठा समझता है, पूर्व-मुख्यमंत्री से ‘उद्योग श्री’ का ख़िताब हासिल कर चुका है, ‘मैंने आजतक किसी मज़दूर मोर्चे को अपनी कंपनी में नहीं घुसने दिया, ये क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा कहां से पैदा हो गया’, कहकर शेखी बघारता रहता है. इसलिए आंदोलन की आंच में कोई कमी नहीं आने दी गई. कृष्ण कुमार जी अपनी ज़िम्मेदारी बदस्तूर निभा रहे हैं लेकिन भविष्यनिधि विभाग को बहुत सारे ‘कृष्ण कुमार’ चाहिए.

24 अप्रैल को एक और ज्ञापन सौंपकर, विभाग से अनुरोध किया गया कि ‘अमानत में ख़यानत’ के अपराध के लिए लखानी के विरुद्ध, भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के तहत आपराधिक मुक़दमा दर्ज किया जाए. साथ ही, लखानी की संपत्ति बेचकर बैंक जो वसूली कर ले गए हैं, उनके विरुद्ध भी मुक़दमा दर्ज कर, उनसे वसूली की जाए क्योंकि अगर कोई कंपनी डूबती है तो उसकी माल-मत्ता को बेचकर होने वाली वसूली में पहला हक़ मज़दूरों का होता है.

साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि मज़दूरों के इस आंदोलन के अगले चरण का केंद्र बिन्दू फरीदाबाद नहीं, बल्कि उनका हेड ऑफिस दिल्ली रहेगा. उसी दिन डीसी कार्यालय को भी लिखित आवेदन दिया गया कि मुख्यमंत्री के आगामी ‘जनता दरबार’ में, जहां वे लम्बी-चौड़ी घोषणाएं करते हैं, ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ भी शामिल रहेगी.

27 अप्रैल को भविष्यनिधि विभाग से एक और पत्र नं. 155 प्राप्त हुआ, जिसमें बताया गया कि के सी लखानी ने मज़दूरों के भविष्यनिधि बकाया के लगभग 18 लाख रुपये जमा कर दिए हैं. उसके विरुद्ध सेंट्रल पुलिस थाने में एफआईआर हो चुकी है. बकाया राशि जमा करने के लिए वह एक महीने की मोहलत मांग रहा है.

पूंजीवादी कोल्हू का एक ही क़ायदा है, मालिक मज़दूरों का जितना खून निचोड़ेगा, उसका मुनाफ़ा उतना ही बढेगा, मालिकों की आपसी गला-काट प्रतियोगिता में वह उतना ही टिकेगा. इसीलिए, मज़दूरों के पीएफ-ईएसआईसी कटौती भी डकार जाने की ये बीमारी, यूं तो, देश भर में है लेकिन खास तौर पर फ़रीदाबाद में फैलती जा रही है.

मज़दूरों का बढ़ता आक्रोश कहीं विस्फोट की शक्ल ना ले ले, इसलिए भविष्यनिधि विभाग ने फ़रीदाबाद में श्रम उपायुक्त के पद पर एक प्रतिष्ठित अधिकारी, निशा पी वी की नियुक्ति की है. वे इस फरीदाबादी रोग को अच्छी तरह पहचानती हैं क्योंकि मुख्य सतर्कता अधिकारी रह चुकी हैं. उनके आते ही, हर वक़्त मज़दूरों का हक़ हड़पने की जुगत लगाते धीट कारखानेदारों पर शिकंजा कसना शुरू हो गया है. लेकिन, कारखानेदारों को, मोदी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई ‘व्यवसाय की सुगमता’ इतनी कच्ची नहीं !! अभी तक फ़रीदाबाद में एक भी इंस्पेक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है.

इंस्पेक्टर कारखाने में जाकर जांच करेगा, तब ही तो पता चलेगा कि 1023 कंपनियां क़सूरवार हैं या असली आंकड़ा इसका कई गुना है. कुल कितने मज़दूर काम करते थे/ हैं, उनका पीएफ का कुल कितना पैसा देना बनता है, उस पर कितना ब्याज और दंड बनता है, मतलब कुल लायबिलिटी कितनी है, यह तो उसके बाद ही पता चलेगा.

एक बात लखानी के बहादुर मज़दूरों ने, फ़रीदाबाद के दूसरे मज़दूरों को ज़रूर सिखा दी है. मौजूदा शासन तंत्र, अमीरों द्वारा, अमीरों के लिए बनाया गया है. नतीज़तन, मज़दूरों को दो काम करने होंगे. पहला, अपने हक़ हासिल करने के लिए इकट्ठे होकर इस ज़र्ज़र तंत्र को लगातार झकझोरते रहना. दूसरा, मौजूदा निज़ाम द्वारा सताए हुए दूसरे सभी लोगों के साथ मिलकर इस अमीर-तंत्र की जगह मज़दूरों का अपना तंत्र प्रस्थापित करना.

  • फरीदाबाद से सत्यवीर सिंह की रिपोर्ट

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