मजदूरों की मजदूरी की मांग से बौखलाई सत्ता कम्पनी मालिकों की ओर से आदमखोर पुलिस को भेज कर मजदूरों पर न केवल हमला ही करवाती है बल्कि फर्जी मुकदमों में बंद कर गैरकानूनी तरीकों से थानों में बंद कर थर्ड डिग्री टार्चर कर मजदूरों को उसके मौलिक अधिकारों से भी वंचित करती है ताकि भयभीत मजदूर आगे से अपने मजदूरी की मांग न कर सके और खामोश हो जाये.
देश में आये दिन हजारों ऐसे वाकया घट रहे हैं जो शासकों के आतंक और मीडिया की मिलीभगत तले दम तोड़ जाती है. ऐसे मामले भी उजागर तभी हो पाते हैं जब मेहनतकश जनता शासकीय आतंक को तोड़ते हुए मामलों को आमजनों तक ले जाने में सफल हो जाती है औऋ अपनी फटी हुई इज्ज़त’ बचाना शासकों की मजबूरी बन जाती है.
ऐसे ही एक मामले जिसमें मजदूरी की मांग पर पुलिसिया हमला और पुलिस थाने में गैरकानूनी हिरासत और टार्चर के खिलाफ जनसमूहों ने आवाज बुलंद किया जिससे मजबूर होकर इसी शासकीय गिरोह का एक हिस्सा हाईकोर्ट द्वारा की गई जांच में अपनी ही पुलिस, न्यायपालिका और डॉक्टरों तक को दोषी पाया है, जिसमें एक हफ़्ते तक गैर क़ानूनी तरीक़े से शिव कुमार को हिरासत में रखा गया और इस दौरान उनकी न सिर्फ़ पिटाई की गई बल्कि उन्हें पानी में डूबा कर, तलवों, नाखूनों और सिर पर डंडे मार कर प्रताड़ित किया गया.
वेबसाइट वर्क्स यूनिटी द्वारा प्रकाशित एक खबर से पुलिस, मजिस्ट्रेट, डॉक्टर्स की मिलीभगत का ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है, जब मजदूरी की मांग कर रहे मजदूर नेता शिवकुमार को गैरकानूनी हिरासत में बंद कर सात दिनों तक थर्ड डिग्री टार्चर किया गया, जिससे शरीर के विभिन्न हिस्सों पर चोटें आई, जिसमें बाई जांघ, दाहिनी जांघ, दाहिना पैर, बाएं पैर और दाहिनी कलाई थी. बाएं हाथ के अंगूठे और तर्जनी के नाखूनों में नीले काले रंग का निशान दिखाई दिया, जिसकी पुष्टि खुद इसी के हाईकोर्ट द्वारा गठित जांच रिपोर्ट ने भी किया है.
प्रकाशित खबर के अनुसार पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा गठित जांच समिति ने दलित मज़दूर अधिकार कार्यकर्ता शिव कुमार पर पिछले साल ग़ैरक़ानूनी तरीके से हिरासत में लेने और उस दौरान बुरी तरह टॉर्चर करने के आरोपों की पुष्टि कर दी है. हाईकोर्ट की जांच रिपोर्ट में साफ़-साफ़ पाया गया है कि शिव कुमार की ग़ैरकानूनी गिरफ़्तारी, अवैध हिरासत और हिरासत में टॉर्चर के साक्ष्य मिले हैं. यहां तक कि जब 10 दिन की रिमांड दी गई उस दौरान पांच बार मेडिकल चेकअप हुआ और उसमें पुलिस की मिलीभगत से रिपोर्ट लिखी गई.
रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि 16 जनवरी 2021 से 23 जनवरी 2021 तक अवैध पुलिस हिरासत के दौरान और फिर 23/24 जनवरी 2021 की रात के बीच से 2 फरवरी 2021 तक पुलिस रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत किए जाने के दौरान शिव कुमार को बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया था.
सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच) चंडीगढ़ द्वारा तैयार मेडिकल जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने निष्कर्ष निकाला है कि शिव कुमार के शरीर के विभिन्न हिस्सों पर आठ चोटें थीं, जिसमें बाई जांघ, दाहिनी जांघ, दाहिना पैर, बाएं पैर और दाहिनी कलाई थी. बाएं हाथ के अंगूठे और तर्जनी के नाखूनों में नीले काले रंग का निशान दिखाई दिया.
जांच कर रहे जस्टिस दीपक गुप्ता ने रिपोर्ट में कहा कि शिव कुमार को पिछले साल 16 जनवरी को पुलिस द्वारा ‘उठा लिया गया था’ और 23 जनवरी, 2021 तक अवैध हिरासत में रखा गया था जबकि अगले दिन 8:40 बजे औपचारिक रूप से उनकी गिरफ्तारी दिखाई गई.
गौरतलब है कि शिव कुमार के पिता राजबीर ने पिछले साल अदालत में एक याचिका दायर कर मांग की थी कि कुंडली पुलिस थाने में दर्ज तीन प्राथमिकियों को एक स्वतंत्र एजेंसी को दिया जाये और पुलिस द्वारा उनके बेटे को अवैध रूप से हिरासत में रखने और प्रताड़ित करने की जांच की जाये. इसके बाद हाईकोर्ट ने उस समय फ़रीदाबाद में तैनात जिला सत्र न्यायाधीश दीपक गुप्ता को हिरासत में टॉर्चर की जांच सौंपी थी. दीपक गुप्ता पंचकुला के जिला एवं सत्र न्यायाधीश हैं.
दीपक गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस, घटना के दौरान चिकित्सा अधिकारियों और घटना के समय सोनीपत में तैनात एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को भी ज़िम्मेदार ठहराया है. जांच रिपोर्ट के अनुसार, 20 फरवरी, 2021 को गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, सेक्टर 32, चंडीगढ़ में उनकी मेडिकल जांच से पहले, शिव कुमार की 24 जनवरी से 02 फरवरी, 2021 के बीच पांच बार जांच की गई थी, लेकिन इनमें से किसी भी सरकारी अस्पताल के डॉक्टर, सोनीपत के डॉक्टरों या जेल में तैनात डॉक्टरों ने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई. इन सभी ने पुलिस अधिकारियों के इशारों पर ही काम किया.
जांच रिपोर्ट में कुंडली पुलिस स्टेशन के अतिरिक्त एसएचओ रह चुके एसआई एस. सिंह और उनके अन्य पुलिसकर्मियों को शिव कुमार पर की गई यातनाओं का जिम्मेदार माना है. रिपोर्ट में उस दौरान एसएचओ रहे आदमखोर इंस्पेक्टर रवि को भी दोषी बताया गया है. रिपोर्ट में सीआईए सोनीपत के प्रभारी इंस्पेक्टर रविंदर का नाम है जिन्होंने शिव कुमार को कथित रूप से अवैध हिरासत में रखा था.
जिला और सत्र न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने एक महिला आईपीएस अधिकारी, न्यायिक मजिस्ट्रेट, चिकित्सा अधिकारियों, पीड़ित और पुलिस सहित कुल 15 व्यक्तियों से पूछताछ की थी. सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार ने इस रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए भी कोर्ट से समय की मांग की है. हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन बंसल ने रिपोर्ट को रिकॉर्ड में रखने का आदेश देते हुए मामले की सुनवाई 27 जनवरी तक स्थगित कर दी.
क्या है मामला ?
क़रीब दो साल पहले जनवरी 2021 में सोनीपत के कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में मज़दूरों के बीच काम करने वाले मज़दूर अधिकार संगठन (एमएएस) के कार्यकर्ता लॉकडाउन का बकाया दिलाने के लिए फ़ैक्ट्री गेट पर पिकेटिंग कर रहे थे. कुछ मज़दूरों के साथ एमएएस की नेता नौदीप कौर और अन्य लोग मजदूरी के भुगतान को लेकर फैक्ट्री परिसर के बाहर इकट्ठे हुए. आरोप है कि मैनेजमेंट के गुंडों ने हमला कर दिया था और मज़दूरों और गुंडों के बीच झड़प भी हुई.
आरोप ये भी है कि उस झड़प में कई राउंड हवाई फ़ायरिंग हुई थी जिसका वीडियो सबूत एमएसए के कार्यकर्ताओं के पास मौजूद है, ऐसा उनका दावा है. लेकिन 12 जनवरी को जब दोबारा ये लोग फ़ैक्ट्री गेट पर पहुंचे तो वहां कुंडली थाने की पुलिस आ गई. शिव कुमार का कहना है कि पुलिस ने आते ही मज़दूरों पर लाठी चार्ज कर दिया.
आक्रोशित मज़दूरों ने पुलिस का विरोध किया और देखते देखते दोनों पक्षों के कई लोग घायल हो गए. थाने के एक पुलिसकर्मी की कथित तौर पर सिर में चोट आई. इस घटना के बाद पुलिस ने नौदीप कौर को गिरफ़्तार कर लिया. चूंकि उसी दौरान कुंडली के पास सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन चल रहा था, इसलिए ये मुद्दा पूरे आंदोलन में छाया रहा. लेकिन नौदीप कौर की गिरफ़्तारी के कुछ ही दिन बाद शिव कुमार को गिरफ़्तार कर लिया गया.
आरोप है कि एक हफ़्ते तक गैर क़ानूनी तरीक़े से शिव कुमार को हिरासत में रखा गया और इस दौरान उनकी न सिर्फ़ पिटाई की गई बल्कि उन्हें पानी में डूबा कर, तलवों, नाखूनों और सिर पर डंडे मार कर प्रताड़ित किया गया. एक हफ़्ते बाद उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और फिर 10 दिन के रिमांड के बाद जेल भेज दिया गया, जहां से बाद में उन्हें ज़मानत मिली.
पिछले साल मार्च में शिव कुमार के पिता की याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंचकुला के जिला एवं सत्र न्यायाधीश दीपक गुप्ता को मामले की जांच रिपोर्ट बनाने का आदेश दिया. घटना के समय दीपक गुप्ता जिला सत्र न्यायाधीश फरीदाबाद के रूप में तैनात थे.
मेहनतकश अवाम के खिलाफ खड़ा है यह तंत्र
मौजूदा शासक वर्ग अपने दलाल मीडिया और भोंपूओं के शोर से यह बताना चाहती है कि भारत की पुलिस, न्यायपालिका, डॉक्टरों का महकमा देश की करोड़ों आम जनता की हिफाजत के लिए है, जबकि सच्चाई यह है कि यह सभी भारत की करोड़ों मेहनतकश आवाम के खिलाफ धन्नासेठों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है, ताकि मजदूर-किसानों के किसी भी विरोध को खत्म किया जा सके.
इसके साथ ही सेना और उसके लिए मंगवाये जा रहे लाखों करोड़ का असलाहा इसलिए है कि अगर कभी पुलिसिया गिरोह और न्यायपालिका की ठगी से भी आम लोग की आवाज ऊंची हो जाये तो सेना द्वारा उसकी आवाज को निर्ममतापूर्वक कुचल दिया जाये. इसलिए इस बात पर खुश होने की जरूरत नहीं कि भारत की सेना दुनिया की चौथी बड़ी सेना है और वह हर साल लाखों करोड़ रुपयों की असलाहों से लैस होती जा रही है. इस पूरी सेना और असलाहों का इस्तेमाल असलियत में देश की मेहनतकश जनता की आवाज के खिलाफ होगा, इसकी पूरी गारंटी है.
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