Home गेस्ट ब्लॉग क्यों तथाकथित नक्सलियों की मौत का सत्य सत्ता के सापेक्ष होता है ?

क्यों तथाकथित नक्सलियों की मौत का सत्य सत्ता के सापेक्ष होता है ?

4 second read
0
0
727

किसी समुदाय की स्त्रियाँ जब हथियार उठा लें तो आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि उस समुदाय के साथ कितनी बर्बरता उतपीड़न और दमन किया गया होगा. 21-24 अप्रैल के दर्म्यान महाराष्ट्र पुलिस ऑपरेशन में मारे गए 39 तथाकथित नक्सलियों में से बीस औरते थी. जीवन के सारे सपने सारी रंगत छीनकर किसने इन औरतों को हथियार उठाने पर विवश किया ? इन सवालों के जवाब हमें चाहिए ही नहीं क्योंकि इनके सवाल ढूँढ़ते हुए संभव है सत्ता द्वारा हम नक्सली घोषित करके किसी एनकाउंटर में मार दिये जाएं या सोनी सोरी की तरह यातना के किसी बर्बरतम सुरंग में ठूँस दिय जाएं.

बहरहाल बात करते हैं छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे महाराष्ट्र नागपुर के गढ़चिरौली की, जहाँ कसनपुर में इंद्रावती नदी से लगे जिमलगट्टा और दूसरे जंगलों में 21 अप्रैल की आधी रात को महाराष्ट्र पुलिस के सी-60 कमांडो ने घेराबंदी करके 39 तथाकथित नक्सली लोगो को मार डाला, जिनमें 20 औरतें और 19 पुरुष थे. अप्रैल की सुबह मुठभेड़ हुई जिसमें 16 शव बरामद किए गए. इसमें श्रीनिवास और साईनाथ नाम के दो बड़े लीडर्स मारे जाने के दावे किए गए. बड़े-बड़े राष्ट्रवादी चैनलों पर इन नक्सलियों के पास से खतरनाक अत्याधुनिक हथियार होने और मिलने के दावे किये जा रहे. समझ नहीं आ रहा कि खतरनार हथियारों को लिए लिए वो तथाकथित नक्सली अचार डाल रहे थे या मेंहदी लगवा रहे थे. आखिर अत्याधुनिक हथियारों से लैश होने के बावजूद उन्होंने गर कोई जवाबी हमला किया होता तो क्या संभव था कि एक भी कमांडो न मारा जाता. मैं पिछले एक सप्ताह से लगातार इस घटना के बाबत सही जानकारी जुटाने का प्रयास करता रहा हूँ पर मुझे कहीं से कुछ नहीं हाथ लगा. सारे के सारे समाचार एजेंसियों में सरकार के ही नफरत भरे वक्तव्य भरे पड़े हैं.

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से लगातार या तो नक्सली मारे गये हैं या फिर नक्सल सफाये के नाम पर जंगल कब्जा करने भेजे गए जवान। पहले सरकार आदिवासी समुदाय के लोगो से उनकी जमीनें और जंगल छीने जब वो हथियार उठा लिए तो अब नकस्ल के नाम पर लोगो की नृशंस हत्याएं की जा रही है। आखिर सरकार ने संवाद का रास्ता क्यों नहीं अपनाया। क्यों नहीं विकास के नाम छीनकर उत्खनन के लिए पूँजीवादी डकैतों को सौंप दी गई जंगल और जमीन आदिवासियों और तथाकथित नक्सलियों को सौंपकर उनके सामने पुनर्वास का प्रस्ताव रखा।

इससे भी ज्यादा अफ़सोसनाक बात और क्या होगी कि दुश्मन देशों से निपटने के नाम पर खरीदे गये ग्रेनेड जैसे हथियारों का प्रयोग सरकार अपने ही देश के लोगों के खिलाफ कर रही है. बता दें कि 21 अप्रैल के गढ़चिरौली ऑपरेशन में सेना द्वारा UBGL (अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) का प्रयोग तथाकथित नक्सलियों के खिलाफ किया गया.

UBGL वो लांचर हैं जा बड़ी आसानी से एके-47 और इंसास राइफल में फिट हो जाते हैं. इससे निकले बम 400 मीटर दूर गिरते ही चालीस मीटर की रेंज तक सबकुछ तबाह कर देता है. बकौल एडीजी डी कनकरत्नम पूरा ऑपरेशन प्लान था, माने कोल्ड ब्लडेड.

इधर भारत सरकार भी दावा कर रही है कि नक्सल प्रभावित 126 जिलों में से 44 जिलों को नक्सल मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया गया है. बिहार और झारखंड के पांच जिले भी अति नक्सल प्रभावित टैग से मुक्त हो चुके हैं तो आपको इन नक्सलमुक्त क्षेत्रों में बहुत ही जल्द बड़ी बड़ी मशीने लिए पूँजीपति विकास करते मिलेंगे, आपका नहीं अपना विकास.

– सुशील मानव के वाल से साभार

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…