Home गेस्ट ब्लॉग क्या शाहीन बाग से मुगल राज आ जाएगा ?

क्या शाहीन बाग से मुगल राज आ जाएगा ?

12 second read
0
0
555

क्या शाहीन बाग से मुगल राज आ जाएगा ?

Ravish Kumarरविश कुमार, मैग्सेस अवार्ड प्राप्त जनपत्रकार

शाहीन बाग का धरना शांतिपूर्ण ही रहा, कोई हिंसा नहीं हुई फिर भी इस धरने को लेकर सरकार के मंत्री से लेकर बीजेपी के सांसदों ने क्या-क्या नहीं कहा. इस धरने को लेकर खतरे की ऐसी-ऐसी कल्पना पेश की गई जैसे लगा कि भारत में कोई शासन व्यवस्था ही नहीं है. किसी मोहल्ले की भीड़ आकर दिल्ली पर मुगल राज कायम कर देगी. मुगलों का राज मोहल्ले से नहीं निकला था. इतिहास का इस तरह से देखा जाना आबादी के उस हिस्से को बीमार करने लगेगा जिन्हें यह समझाया जा रहा है कि एक मोहल्ले में धरने पर बैठे लोग हिन्दुस्तान जैसे विशाल मुल्क पर मुगल राज कायम कर देंगे. इस शाहीन बाग को बदनाम करने के लिए क्या-क्या नहीं हुआ.

बीजेपी आईटी सेल के अमित मालवीय ने एक फर्जी वीडियो अपलोड किया जिसे कई चैनलों ने कथित रूप से स्टिंग का रूप देकर चलाया. आप तक बात पहुंचाई गई कि यहां पर पैसे देकर धरने पर बैठने के लिए औरतें लाई गईं. आल्ट न्यूज़ और न्यूज़ लौंड्री ने जब इस कथित स्टिंग का खुलासा किया तो किसी ने जनता को दोबारा बताया भी नहीं कि शाहीन बाग को बदनाम करने के लिए एक ऐसे वीडियो को अपलोड किया गया जो शाहीन बाग से आठ किलोमीटर दूर रिकार्ड किया गया था. शाहीन बाग को कितना इम्तिहान देना पड़ रहा है. आंदोलन के भीतर बैठी महिलाओं के स्टिंग किए जा रहे हैं कि वे कहीं पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा तो नहीं लगा रही हैं. स्टिंग से मिला कुछ नहीं मगर यह सोच बताती है कि इस तरह के मकसद पत्रकारों और पत्रकारिता के नाम पर और भी लोग कैसी मानसिकता का बीज समाज में बो रहे हैं. शाहीन बाग पर गोलियां चलीं. पिस्टल लेकर लड़का पहुंच गया. शाहीन बाग पर हमला करने के लिए जत्थे भेजे गए. न जाने कितने लोगों ने स्टिंग करने की कोशिश की और ये गुंजा कपूर तो वो निकलीं जिन्हें ट्विटर पर प्रधानमंत्री खुद फॉलो करते हैं.

मगर शाहीन बाग के संयम का दायरा बड़ा होता गया. शाहीन बाग खुद के लिए भी और दूसरे आंदोलनों के लिए नज़ीर बनाता चला गया. वहां कश्मीरी पंडितों के समर्थन में पोस्टर बने. वहां फार्म बना कि मंच से जो भाषण देगा वो सिर्फ संवैधानिक बात कहेगा. अलग-अलग समुदाय के लोग शाहीन बाग पहुंचते रहे समर्थन करते रहे फिर भी उसकी पहचान खुलकर मुसलमानों से जोड़ी गई. एक छोटे से प्रदर्शन को लेकर खतरों के भूत खड़े किए गए. आबादी घरों में घुस जाएगी तो बिरयानी खिलाई जा रही है. चुनाव आयोग नोटिस भेजता रहा लेकिन बयान नहीं रुके. एक प्रदर्शन को सीधे-सीधे मुसलमान से जोड़कर फिर आतंकवाद से जोड़कर फिर गद्दार से जोड़कर फिर बिरयानी से जोड़कर उसे असंवैधानिक बनाने की कोशिश हुई जबकि वहां मौजूद पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं पाया. फिर भी शाहीन बाग को एक मौके के रूप में देखा गया जिसके नाम पर दिल्ली में ज़हर भरा जा सकता था. इस मुल्क के लिए कुर्बानी सबने दी है. उसका धर्म और जाति के आधार पर हिसाब करना विचित्र लगता है. एक तो शाहीन बाग में सिर्फ मुसलमान नहीं हैं फिर आप सोचिए कि कभी किसी बात को लेकर सिर्फ मुसलमान प्रदर्शन करें तो क्या वे आतंकवादी हो जाते हैं, गद्दार हो जाते हैं? क्या इसका मकसद यह है कि लोग इस तरह से सोचना शुरू कर दें बाद में उन्हें एक दिन इन अधिकारों से वंचित कर दिया जाए. याद रखिए, पहले बातें दिमाग़ में भरी जाती हैं. जैसे दंगों से पहले लोगों के दिमाग़ में ज़हर भरा जाता है और फिर कदम उठाए जाते हैं.

इस बात के बाद भी कि वहां बहुसंख्यक समाज के लोग भी जाकर समर्थन जता रहे हैं. पंजाब से सिखों का जत्था जाकर उनके साथ खड़ा हो रहा है. इस बात के बावजूद कि शाहीन बाग में हवन तक कराया जा रहा है ताकि वो यह बात पहुंचा सके कि उनके आंदोलन में पूरा हिन्दुस्तान है. उनके आंदोलन को शामिल लोगों ने मज़हब से देखने की राजनीति बंद होनी चाहिए. मगर शाहीन बाग कुछ भी कर ले, बीजेपी के नेता लगातार इस प्रदर्शन को देश के लिए खतरा बताते रहेंगे. वही बेहतर बता सकते हैं कि क्या भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं खत्म हो गईं हैं कि शाहीन बाग से लोग चलकर लाल किला पहुंच जाएंगे और मुगल राज कायम कर देंगे. कभी आबादी तो कभी बलात्कार तो कभी मुगल राज के नाम पर बहुसंख्यक दिमाग में न जाने कितने खतरे भर दिए गए. एक स्वस्थ और उदार समाज को लगातार बीमार किया जा रहा है. भाषणों के ज़रिए सोच में एक समुदाय को उसके लोकतांत्रिक अधिकारों से बेदखल किए जाने के इन बयानों को लेकर भले कोई लापरवाह हो, यह अच्छा नहीं है. इस देश में कितने आंदोलन महीनों चले हैं. हर आंदोलन से असहमति जताई गई लेकिन किसी आंदोलन को लेकर नहीं कहा गया कि मुगलों का राज आ गया. वहां वही लोग बिरयानी खिला रहे हैं जो आतंकवादियों को खिलाते हैं. किसी ने ठीक कहा कि शाहीन बाग संयोग नहीं प्रयोग है. प्रयोग कौन कर रहा है यह लेकर सवाल है. प्रधानमंत्री अपने पीछे बैठने वाले सांसदों को इन बयानों से एक बार के लिए नहीं रोक सके. शाहीन बाग को लेकर दिए गए बयानों के कारण चुनाव आयोग ने बीजेपी के सांसद को प्रचार करने से रोका, उम्मीदवार को प्रचार करने से रोका, अब मुख्यमंत्री प्रचारक को नोटिस जारी किया है.

एक समुदाय को लेकर तरह-तरह के भय पैदा किए जा रहे हैं. जिन्हें आप अपने अनुभवों से जानते हैं, अब नेताओं के भाषणों से देखने लग जाएंगे. एक दिन आप बदल जाएंगे. हिंसा के इस वायरस को अपने भीतर ढोने लगेंगे. लोकसभा में गांधी को गोली मारने वाले गोड्से को देशभक्त कहने का वाकया तो हो ही गया. अब वहां बीजेपी के सासंद कह गए कि शाहीन बाग के खिलाफ बहुसंख्यक जमा नहीं हुए तो देश में मुगल राज आ जाएगा.

तेजस्वी सूर्य को पता नहीं है कि इस वक्त बहुसंख्यक समाज के नौजवान देश के कई शहरो में धरना प्रदर्शन पर बैठे हैं. उनसे तो खतरा नहीं है तो कायदे से वे उन धरनों में जाएं और उनकी नौकरी की समस्या दूर कर दें. दिक्कत यही है कि किसी भी प्रदर्शन से नेताओं को हमदर्दी नहीं है. लेकिन एक खास मोहल्ले के खास प्रदर्शन को लेकर भूत खड़ा किया जा रहा है कि वहां से निकलकर लोग मुगल राज कायम कर देंगे. मोहल्ले से मुगल राज कायम होने का यह बयान खतरनाक भी है और हास्यास्पद भी. इसलिए एक कवि का मन दुखी हो गया. हम उसकी रचना को सम्मानपूर्वक दिखाना चाहते हैं. कवि का नाम नहीं बताऊंगा. कवि का नाम बताने वाले को प्राइम टाइम के पांच एपिसोड के लिंक फ्री में दिए जाएंगे जिसे आप खुद ही यू-ट्यूब में सर्च कर सकते हैं.

मुग़ल राज आ जाएगा
कैसे कहते हो भाई
क्या जनता का राज चला जाएगा ?

दिल्ली की इस ट्रैफिक का हाल तो देखो
क्या बाबर BMW में आएगा
इतनी कारों के बीच अपना घोड़ा सरपट कैसे दौड़ाएगा
महरौली के लिए निकला अकबर मूलचंद ही रह जाएगा

मुग़ल राज आ जाएगा
कैसे कहते हो भाई
क्या जनता का राज चला जाएगा ?

देख चुकी है मुग़लों की दिल्ली
दिल्ली को क्या मुग़ल दिखाओगे
बड़े चले इतिहास पढ़ाने, गए हुओं को लौटाने
आ गए मुग़ल तो बोलो, घोड़े कहां से लाओगे
क्या काबुल से मंगवाओगे ?
मॉडल टाउन के घोड़ी वाले न डरते हैं मुग़लों से
छतरपुर के दूल्हे घोड़ी चढ़कर लगते हैं राजाओं से
राजपाट की नकल से जैसे कोई राजा हो जाएगा

मुग़ल राज आ जाएगा
कैसे कहते हो भाई
क्या जनता का राज चला जाएगा ?

अकल ऊंट पर चढ़ी तुम्हारी, घोड़ा भी शर्माता है
देखो दूल्हा लोकतंत्र का, जनता से ही घबराता है.

मोटी-मोटी किताबों से तुम क्यों इतना घबराते हो
गाइड बुक पलट-पलट कर हिस्ट्री रट-रट जाते हो.
गर आ ही गया पर्चे में तो, मुग़ल काल आ जाएगा
पढ़कर जाओ तो पहले, तुमको भी नंबर आ जाएगा
हिस्ट्री जो पढ़ता है वो लड़का परेशान नहीं
मुग़लों से डर लगता है तो मौर्य वंश भी आसान नहीं

नाम बदल कर सड़कों का शहरों का रंग बदलते हो
हिस्ट्री के डर को व्हाट्स ऐप में क्यों फैलाते हो
बचा क्या है उनका अब जो उनके नाम से डराते
आ ही गए मुग़ल अगर तो गूगल मैप क्या बतलाएगा
ओला वाला अकबर को किस किले में ले जाएगा

मुग़ल राज आ जाएगा
कैसे कहते हो भाई
क्या जनता का राज चला जाएगा ?

एक छोटा सा प्रश्न है भैया
मन करे तो ही बतलाना
बिरयानी की मेहनत तो देखो
किसी की घर की रोटी है
कपड़े दिखा दिखाकर इनके
कब तक डर फैलाओगे
नफ़रत की बातें है ये सब
नफ़रत से कब बाज़ आओगे

मुगल राज आ जाएगा
कैसे कहते हो भाई
क्या जनता का राज चला जाएगा

उपरोक्त पंक्तियों के कवि चाहते हैं कि आप ऐसी बातों से डरें नहीं. भारत का लोकतंत्र इतना हल्का नहीं है लेकिन इन बातों से लगने लगा है कि हल्का हो चुका है. वर्ना इतनी हल्की बात न कही जाती. हमारे नेताओं ने भाषण को ही काम समझ लिया है, इसलिए जनता को भी भाषण को ही काम समझकर सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए. आदत हो भी गई होगी. दिल्ली में चुनावी प्रचार खत्म हो गया. दिल्ली के चुनावों में जिस तरह भाषा की मर्यादा टूटी है वो आने वाले चुनावों के लिए पैमाना बन जाएगी. दिल्ली के चुनावों में भाषा की गिरावट ने एक मुकाम हासिल किया है. इस भाषा ने राजधानी के नेता और मतदाता होने का भ्रम तोड़ दिया है. नेताओं ने अपना इम्तिहान दे दिया है, अब दिल्ली की जनता का इम्तिहान शुरू होता है. इसका लाभ उठाकर दूसरे मुद्दों की तरफ प्रस्थान किया जा सकता है.

लखनऊ में प्रदर्शन करने आए शिक्षकों की व्यथा से चुनावी राजनीति पर असर नहीं पड़ता है न पहले और न बाद में. पांच महीने से किसी को वेतन न मिले तो उसका घर कैसे चलता होगा, यह अब विषय ही नहीं है. सैलरी के लिए ज़िले-ज़िले में प्रदर्शन के बाद शिक्षक लखनऊ के शिक्षा निदेशालय के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे. 2010 में उन जगहों पर जहां 5 किमी के दायरे में स्कूल नहीं था वहां राजकीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत स्कूल खोले गए. करीब 1600 स्कूल खोले गए. 8000 शिक्षकों के साथ 1000 के करीब स्टाफ भी है. किसी को पांच महीने से सैलरी नहीं मिली है. इन स्कूलों में सवा लाख से अधिक छात्र पढ़ते हैं. इनका कहना है कि पैसा नहीं होने के कारण सरकार सैलरी नहीं दे रही है. शिक्षकों का कहना है कि अगर सैलरी नहीं मिली तो 18 फरवरी से शुरू हो रही परीक्षा का बहिष्कार करेंगे. पांच दिसंबर को भी इन्होंने मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया था. मगर उसके बाद भी सैलरी नहीं आई.

शिक्षा पर हम कितना ध्यान देते हैं इसका उदाहरण दिल्ली में भी मिलेगा. उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आठ हज़ार शिक्षकों को तीन महीने से वेतन नहीं मिला है. हमारी प्राथमिकता बदल रही है. भाषणों में भले न बदलती हो लेकिन ज़मीन पर शिक्षा की हालत बता रही है कि किस तरह से शिक्षा व्यवस्था का दम घुट रहा है. लखनऊ में ही देश के एक प्रीमियर शिक्षण संस्थान की हालत की रिपोर्ट छात्रों ने भेजी है.

इन छात्र छात्रों के पोस्टर बता रहे हैं कि यूनिवर्सिटी की खराब व्यवस्था ने इनके छात्र होने की गरिमा को कितनी ठेस पहुंचाई है. तीन दिनों से जिन मांगों को लेकर धरने पर बैठे हैं वो आज की ही नहीं पिछले कई दशकों की देन हैं. 1979 में बने इस कैंपस का विकास तो नहीं हुआ लेकिन इस दौरान यहां की समस्याओं का खूब विकास हुआ. अंग्रेज़ी और भाषा विश्वविद्यालय के कैंपस हैदराबाद और शिलांग में हैं.

यह केंद्रीय विश्वविद्यालय है. दक्षिण एशिया का एक मात्र भाषा विश्वविद्यालय कहते हैं. यहां छात्रों की सीट कभी पूरी नहीं होती क्योंकि खराब सुविधाओं को देखकर कोई आना भी नहीं चाहता. यहां पर 110 के करीब छात्र हैं. बीए से लेकर पीएचडी की पढ़ाई होती है. इसके मेन कैंपस को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रिडिटेशन काउंसिल ने ग्रेड ए दिया है तो लखनऊ कैंपस भी खुद को ए ग्रेड समझ लेता है. जबकि कई दशक बाद इसकी अपनी इमारत नहीं है. सात कमरे में यूनिवर्सिटी चलती है. दुनिया की दुर्लभ यूनिवर्सिटी होगी. कैंपस भी समझें तो कैंपस के नाम पर मज़ाक ही है. जिस इमारत में यूनिवर्सिटी चलती है उसमें कई प्रकार के दफ्तर चलते हैं. इमारत के लान में शादियां होती रहती हैं. 110 छात्रों के लिए 15 शिक्षक हैं. छात्रों का कहना है कि कई बार हालत यह हो जाती है कि क्लास रूम को लेकर झगड़ा हो जाता है. कुर्सियों को लेकर झगड़ा हो जाता है. एक हॉस्टल है जो किराये के भवन में चल रहा है. जिसकी हालत अच्छी नहीं है. लड़कियों को 7 और 11 किमी दूर हॉस्टल उपलब्ध कराया गया है. न तो वहां कैंटीन है और न ही शौच की अच्छी व्यवस्था. हम आपको निराश नहीं करना चाहते इस तथाकथित सेंट्रल यूनिवर्सिटी की वेबसाइट से पता चलता है कि इसकी जो लाइब्रेरी है जो उत्तर भारत की श्रेष्ठ लाइब्रेरी में से एक है. कमरे ही सात हैं उसमें से भी लाइब्रेरी बेस्ट है. यही नहीं 40,000 किताबों का दावा किया गया है. फ्रेंच जर्मन, रशियन, स्पेनिश, अंग्रेज़ी साहित्य की यहां पढ़ाई होती है. इतनी किताबें तो प्रोफेसरों की पर्सनल कलेक्शन में होती हैं. तो आपने जाना कि भाषा के नाम पर यूनिवर्सिटी खोलकर, कैंपस खोलकर किस तरह छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया जाता है.

अब इस आंकड़ों को कितनी बार बताया जाए कि केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में कुल कितनी वेकैंसी हैं. कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद सिंह ने लोकसभा में कहा है कि 1 मार्च 2018 तक के आंकड़ों के अनुसार 6 लाख 83 हज़ार पद ख़ाली हैं. केंद्र सरकार में कुल मंज़ूर पदों की संख्या 38 लाख 02 हज़ार 779 है. करीब 31 लाख 18 हज़ार से अधिक पदों पर लोग तैनात हैं. रेलवे में ढाई लाख पद खाली हैं.

जितेंद्र सिंह ने कहा कि 2017-18 में 1,27,573 पदों के लिए और 2018-19 में 1, 56, 138 पदों के लिए सेंट्रलाइज़ इम्प्लायमेंट नोटिफिकेशन जारी हुए थे. ज्यादातर रेल मंत्रालय से जुड़े पद थे, ग्रुप डी और लोको पायलट के. दो साल से यह परीक्षा पूरी नहीं हुई है. यानि रिज़ल्ट आ गया है. दस्तावेज़ों की जांच हो गई है. पैनल भी बन गया है मगर नियुक्ति पत्र नहीं मिला है. इसके लिए छह महीने से छात्र अलग-अलग राज्यों में स्थित रेलवे के बोर्ड के चक्कर लगा रहे हैं. चेन्नई, जम्मू हो या गोरखपुर या कोलकाता हो.

बीजेपी के सांसद तेजस्वी सूर्य को लगता है कि शाहीन बाग से मुगल राज आ जाएगा तो वे लखनऊ के प्रदर्शन में चले जाएं. ग्राम विकास अधिकारी की परीक्षा का रिजल्ट छह महीने पहले आ गया. दो साल पहले वेकेंसी आई थी. छह महीने से रिजल्ट आने के बाद भी दस्तावेज़ की जांच नहीं हो रही है. 1953 नौजवान हर महीने धरना देते हैं. हर महीने आश्वासन मिलता है. मगर कुछ नहीं होता है. इनके प्रदर्शन से बहुसंख्यक को न तो खतरा है और न मुगल राज आएगा तो फिर तेजस्वी सूर्या इनकी लड़ाई लड़ते हुए क्यों नहीं दिखते हैं ?

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…