गुरूचरण सिंह
- राजनीतिबाज चाहे तो दो या तीन लोकसभा/विधानसभा क्षेत्रों से एक साथ चुनाव लड़ सकता है लेकिन एक नागरिक दो जगह पर वोट नहीं कर सकता, क्यों ?
- किसी भी कारणवश आप जेल में बंद हैं तो वोट नहीं कर सकते लेकिन अपने दूसरे घर जेल में रहते हुए भी राजनीतिबाज वहीं से चुनाव लड़ सकता है, क्यों ?
- अपनी या किसी और की गलती से आप यदि जेल चले जाते हैं तो ताजिंदगी आपके लिए सरकारी नौकरी के दरवाजे बंद, लेकिन राजनीतिबाज चाहे जितनी भी बार हत्या या बलात्कार के मामले में जेल क्यों न गया हो, वह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति जो चाहे बन सकता है, क्यों ?
- बैंक में मामूली-सी नौकरी पाने के लिए आपका ग्रेजुएट होना जरूरी है, लेकिन राजनीतिबाज अगर अंगूठा छाप भी हो तो भी भारत का वित्त मंत्री बन सकता है, क्यों ?
- सेना में एक मामूली सिपाही की नौकरी पाने के लिए आपको डिग्री के साथ साथ 10 किलोमीटर दौड़ कर शारीरिक क्षमता भी दिखानी पड़ती है, लेकिन कोई भी अनपढ़-गंवार और लूला-लंगड़ा राजनीतिबाज जल, वायु और थल सेना का चीफ यानि रक्षा मंत्री बन सकता है, क्यों ?
- जिसके पूरे खानदान में आज तक किसी ने स्कूल का मुंह नहीं देखा वह राजनीतिबाज देश का शिक्षामंत्री बन जाता है, क्यों ?
- जिस राजनीतिबाज पर बीसियों आपराधिक केस चल रहे हों वही कथित नेता पुलिस विभाग का चीफ यानि गृह मंत्री बन सकता है, क्यों ?
अजीब से जिस सिस्टम में राजनीतिबाज और जनता, दोनों के लिए अलग अलग कानून हो, वह धोखा नहीं तो और क्या है ?
भत्तो में बढ़ोत्तरी पर दो खबरें
1. कल ही यह खबर आई कि महंगाई भत्ते में 4% की बढ़ोत्तरी की गई है. सुरसा की तरह मुंह पसारती महंगाई के दौर में राहत की हल्की-सी हवा का झौका. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कैबिनेट के फैसलों के बारे बताते हुए यह खबर दी. इसके साथ साथ यह भी जोड़ दिया सरकार सामाजिक न्याय के प्रति कितनी जागरूक है और यह कि इससे देश भर के एक करोड़ आठ लाख कर्मचारियों और पेंशनरों को लाभ देने पर प्रतिवर्ष खजाने पर सालाना कितने करोड़ का बोझ पड़ेगा. बता दें कि यह स्थिति भी तब है जब केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या में लगातार भारी कटौती की जा रही है. अकेले रेलवे में ही यह संख्या लगभग सोलह लाख से घटती हुई नौ लाख के करीब रह गई है. महंगाई भत्ता भी अब खजाने पर एक बोझ लगने लगा है. कार्पोरेट को दिया जाने वाला सालाना 1.46 लाख करोड़ तो छू मंतर करके हवा में पैदा कर लिया जाता है, खजाने पर बोझ थोड़े न पड़ता है !
2. पिछले साल इन्हीं दिनों सांसदों के भत्तों में लगभग 50-60 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी, पर कहीं भी किसी भी टीवी चैनल में यह खबर चर्चा का विषय नहीं बनी कि इससे देश पर कितना बोझ पड़ेगा. इसके अलावा संसद की पंचतारा कैंटीन में स्ट्रीट फूड़ से भी पांच गुना सस्ता मिलता सामान तो किसी खाते में है ही नहीं. काफी खोजबीन करने पर पता चला कि हर एक सांसद के भत्तों में इससे लगभग ₹6 लाख की वृद्धि हुई थी, जब कि 4% महंगाई भत्ता बढ़ने से प्रति कर्मचारी कै वेतन/पेंशन में केवल 4 से 8 हजार की वार्षिक वृद्धि हुई है. देखिए न कितना बोझ बढ़ा है !!! अकेले शाही फकीर की सुरक्षा पर ही 1.82 करोड़ का रोजाना खर्च हो जाता है और दंगा करवाने वाले कपिल मिश्रा को भी वाई प्लस सुरक्षा मिल जाती है तो सुरक्षा पर कितना खर्च होता होगा ? नहीं खर्च दिखता है केवल कर्मचारियों का !!
सरकारी कर्मचारी 30 से 32 वर्ष की संतोषजनक सेवा के उपरांत ही पेंशन का हकदार बनता है, जबकि केवल एक दिन के लिए विधायक/सांसद रहे व्यक्ति को पेंशन. ऐसी ही न्याय और पुलिस व्यवस्था की हालत है. आप ही कहिए दोहरे मापदंड और कानूनों वाला यह सिस्टम धोखा है या नहीं ?
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